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प्रसव की एक सत्ता पर शायद रानी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई । अस्पताल से छुट्टी होने के बाद अपने घर जाना रानी के भाग्य में नहीं था । अब उसके पास रहने के लिए निवास स्थान के नाम पर केवल फ्लाईओवर के नीचे का वह स्थान था जहाँ पिछले लगभग एक माह से रह रही थी । पता अपने नवजात शिशु को लेकर दैनिक पुना फ्लाईओवर के नीचे अपने अस्थायी आवास पर लौटाई । दिसंबर की ठंड में प्रसूता को नवजात शिशु के साथ ट्राई ओर के नीचे रहते हुए देखकर आसपास के कुछ संवेदनशील लोगों ने सामूहिक सहयोग से उसके खाने पीने और पहनने, ओढने के लिए भोजन और उन्हीं कपडो, कम्बल आदि की व्यवस्था कर दी । डेढ दो महीने तक रानी और उसकी बच्ची के भोजन वस्त्रों की व्यवस्था इसी प्रकार होती रही, लेकिन नानी इस सत्य से भलीभांति अवगत थी कि ऐसा अधिक दिनों तक नहीं चल सकेगा । अपनी बच्ची के रूप में रानी को जीने का एक बहाना एक बडा लक्ष्य मिल गया था कि लक्ष्य था उस बच्ची के पालन पोषण की बडी जिम्मेदारी जिसका निर्वाह वह बहुत मनोयोग से कर रही थी । महत्व चौदह वर्ष की आयु में दुर्भाग्य से माँ बनी रानी शरीर बुद्धि से नितांत आप परिपक्व और अनुभवहीन होने के बावजूद एक आदर्श माध्यम दिन रात अपनी बच्ची की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती थी और स्वयं बेघर होने के बावजूद बच्ची के भविष्य को लेकर रंग बिरंगे सपने बुनती रहती थी । समय के साथ साथ बच्ची बडी होती जा रही थी । किसी पंडित, पुरोहित और आडंबर के बिना ही बडी ही प्राकृतिक ढंग से बच्चे का नामकरण हो गया था । अत्यंत सहज, सरल और स्वाभाविक प्रक्रिया से उसको लाली नाम मिल गया था । लाइनी कीशिशों की चेष्टाएं रानी और चंदू नंदू के लिए किसी खिलाने से कम नहीं थी । उसकी चंचल चेष्टाओं ने किसी मजबूत धागे की भांति चंदू नंदू को अपने साथ बांदिया था । डाली के प्रति उन दोनों की आत्मीयता इतनी बढ गई थी कि दिन में कई बार वे दोनों अपना काम छोडकर लाली के साथ खेलने के लिए चले आते थे । उनका लाली के साथ निर्मल पवन रिश्ता दिन प्रतिदिन डर से बेहतर होता जा रहा था । लाली के साथ चंदू नंदू के इस जुडाव से रानी कोई भरा पूरा घर परिवार मिल गया था, जहां गरीबी और अभावों के बावजूद प्रतिपल एक सकारात्मक उर्जा बहती थी । समय बीतने के साथ ही धीरे धीरे रानी को स्थानीय लोगों से मिलने वाली सहायता कम होने लगी थी । जिस अनुपात में सहायता घट रही थी, उसी अनुपात में रानी का जीवन कष्टप्रद होने लगा था । भोजन, वस्त्र जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना कठिन होने लगा था । ऐसी स्थिति में जीविका चलाने के लिए रानी ने एक बार पुनः अपनी चाय की दुकान जमाई, लेकिन मात्र दो ढाई माह की बच्ची के साथ चाय की दुकान चलाना उसके लिए दुष्कर हो गया । उस से पर्याप्त आय भी नहीं हो पाती थी । यद्यपि रानी के तंग हाली को देखकर कई बार नंदू चंदू उसके भोजन की व्यवस्था कर देते थे, किन्तु धन के अभाव के साथ साथ अनुभवहीनता के कारण उनमें भी इतना दायित्वबोध नहीं था कि समय पर रानी और उसकी बच्ची के लिए भोजन, दूध और वस्त्रों की व्यवस्था कर पाते । आस पास के अनेक स्थानीय लोग प्राया वहां से गुजरते हुए रानी के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते थे । रानी ने उनमें से बहुत से लोगों से प्रार्थना की कि वे जीविका चलाने में सहायता करने के लिए उसको अपने घर में काम पर रखें । उन सब से एक ही निवेदन करती थी, मैं आपके घर पर झाडू पोछा, बर्तन से लेकर कपडे धोने और खाना बनाने तक सारा काम करूंगी । बस मुझे पेट भर दाल रोटी के साथ रहने के लिए थोडी सी जगह दे दीजिए । मैं आपका ये एहसान जिंदगी भर नहीं भूल होंगी । किन्तु रानी का कहीं पर स्थायी ठोर ठिकाना नहीं होने के कारण कोई भी उसको अपने घर में काम देने के लिए तैयार नहीं था । परिश्रम करके पेट पालने की अपनी छोटी सी योजना में विफल हो गई । बच्ची को दूध पिलाने के लिए उसका अपना पेट भरना आवश्यक था । इसलिए जब वो अपना और बेटी का पेट नहीं भर पाती थी तो प्राया बेटी को गोद में लेकर सुबह शाम भगवान के प्रति पूर्ण समर्पित भाव से मंदिर की सीढियों पर जाकर बैठ जाती थी । उसकी सात्विक सोच और विनम्रता के परिणामस्वरूप भक्तगण पुजारी उसके प्रति सद्भाव रखते हुए उसे पर्याप्त भोजन उपलब्ध करा देते थे । सुबह शाम मंदिर में जाकर भक्तगणों से प्राप्त प्रसाद और दिन में फ्लाईओवर के नीचे अपनी छोटी सी अंगीठी पर चाय बनाकर बेचने से प्राप्त आए पर निर्भर रहकर जानी का अपनी बेटी के साथ जीवन व्यतीत होने लगा । माँ की ममता और चंदू नंदू के स्नेह के साथ लाली शारीरिक, मानसिक और संवेदनात्मक विकास के पथ पर तीव्र गति से अग्रसर होने लगी । थोडी बडी हुई तो माँ की गोद से उतर कर अपने पैरों पर चलना सीखा । जानी ने उसकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दो ढाई मीटर की एक रस्सी लेकर, उसका एक छोड लाली के पैर में और दूसरा छोर धरती पर लकडी का एक खोटा गाढकर उसमें बाहर दिया । अब लाली उस खूटे की इन बिगड केवल चार पांच मीटर की गोल खेरे में ही चल फिर सकती थी । लाली की शारीरिक मानसिक क्षमताएं प्रत्यक्षण उत्तरोत्तर विकास कर रही थी इसलिए वो उसके लिए माँ द्वारा परिसीमन की गयी भौगोलिक सीमाओं को लांघने के लिए छटपटाने लगी । उस परिसीमित क्षेत्र में लाली को बांध कर रखने का रानी जितना प्रयास करती थी डाली बाहर निकलने के लिए उससे कई गुना ज्यादा प्रयास कर दी थी । वो अपना विरोध दर्ज कराते हुए रोती थी और अपने छोटे छोटे नाजुक हाथों से पैर में बंधी रस्सी को खोलने का प्रयास करती थी और अपने प्रयास में असफल होकर फिर होने लगती थी । बेटी की इन शिष्टा ओं को देखकर रानी को उस पर बहुत प्यार आता था । तब वो बेटी को अपनी गोद में उठाकर इसने हिस्से दुलारते हुए चूमकर कहती थी कहाँ जाएगी मेरीलैंड वहाँ दूर चल मैं तुझे वहाँ पे चलती हूँ । माँ की गोद में उठाने से लाली का गुस्सा और अधिक बढ जाता था । माँ की बातों की प्रत्युत्तर में लाली गोद से उतारने के लिए हठपूर्वक आग्रह करते हुए अपनी छोटे छोटे नाजुक हाथों से माँ के चेहरे पर प्रकार करती थी । तब रानी खुश होकर उसके साथ हस्ती खेलती थी । दूसरी ओर चंदू नंदू भी जब वहाँ रहते थे, लाली के साथ खूब खेलते थे । जब वहाँ से जाते थे तब लाली को रेलवे स्टेशन पर घुमाने के लिए अपने साथ ले जाना चाहते थे । लाली भी उन दोनों के साथ जाने के लिए रोटी भर पढाती थी कि जानते हुए भी किरानी अपनी बेटी को एक्शन के लिए भी स्वयं से दूर नहीं करना चाहेगी । वे दोनों लाली की जिद पूरी करने के लिए उसका हाथ पकडकर स्टेशन की ओर चल पडते । लेकिन रानी अगले ही क्षण जल्दी से झपट कर उनके हाथ से लाली का हाथ छुडा लेती थी । चंदू नंदू रानी को समझाते हुए कहते, रानी हम पर भरोसा रख हम इसको रेल दिखा के अभी थोडी देर में यही वापस छोड जाएंगे । मैं मेरी लाली के लिए किसी पर भरोसा नहीं करूंगी । अन्ना किसी के साथ कहीं भेजूंगी, मैं नहीं चाहती हूँ । एक पल के लिए भी लाली मेरी आंखों से ओझल हो रानी स्पष्ट शब्दों में कहती पुरानी से सपा शैली और कठोर शब्दों में ना सुनकर चंदू नंदू दोनों दास होकर रेलवे जंक्शन की ओर चल पडते और लाली रो रोकर उस समय रानी का वहाँ रहना दुश्वार कर देती । अंत में लाली को छुप करने के लिए और रेलगाडी देखने की इस की जिद पूरी करने के लिए उसको लेकर रानी को स्वयं रेलवे स्टेशन जाना पडता था । इसी प्रकार चलते चलते लाली चार वर्ष की होगी । अब लाली चंदू नंदू के साथ जाने या अपने अन्य किसी बात को मनवाने के लिए केवल जिद नहीं करती थी बल्कि अब वहाँ से प्रश्न पूछने लगी थी । इसी दौरान एक दिन लाली ने सुबह सुबह स्कूल ड्रेस पहने हुए बच्चों के समूह को रिक्शे में बैठकर सडक पर जाते हुए देखा तो स्कूल जिसके लिए मचल उठी । रानी ने उस समय बेटी को समझा बुझाकर स्कूल ड्रेस लाने का आश्वासन देकर शांत किया और साहस जुटाकर सडक के पार रह रहे एक परिवार से उनके बच्चे की पुरानी स्कूल जिस मांग कर ली आई और लाली को पहना दी । स्कूल ड्रेस पहन का लाली बहुत प्रसन्न हुई और ड्रेस पहनते ही स्कूली बच्चों के साथ रिक्शे में बैठकर स्कूल जाने के लिए मैं चलने नहीं । रानी ने लाली की जिद पर उसको समझाने का प्रयास किया । मेरी लाडो ये सब बच्चे स्कूल जा रहे हैं । मैं तुझे स्कूल में नहीं भेज सकती कि सब स्कूल जा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं जा सकती? लाली ने अपनी जिद को जायज ठहराते हुए प्रश्न पूछा, यद्यपि लाली ये नहीं जानती थी कि बच्चे स्कूल क्यों जाते हैं । फिर भी स्कूल आते जाते बच्चों को देखकर अपनी जिद पर अडी रही । लाली का आग्रह अर्जित देखकर रानी की इच्छा हुई कि उन बच्चों की तरह वो भी अपने बच्चे को स्कूल भेजते । लाइक स्कूल भेजने का विचार आते ही रानी को अपना अतीत याद हुआ है । मैं अपनी कक्षा में पढाई में हमेशा प्रथम स्थान पर रहती थी । अपने स्कूल में होने वाले हर खेल में भी हिस्सा लेती थी । इसीलिए तो सब टीचर मुझे इतना प्यार करते थे । लाली भी मेरी तरह ही अपनी कक्षा में प्रथम आया करेगी । ये है ही इतनी होशियार । इसलिए स्कूल में सब टीचर इसको मुझ से भी ज्यादा प्यार क्या करेंगे? लेकिन अतीत की सुखद यादव और उस लिए भविष्य के सपनों में खोई ईरानी धीरे धीरे अपनी काले अतीत में भी चलने लगी कि कैसे एक छोटी सी भूल के कारण उसने नकारती कृष्ट होगी आपने । नारकी अतीत का स्मरण होते ही रानी का रूम रूम का आपने लगा किसी अज्ञात पहने उसके ऊपर अपना नियंत्रण कर लिया और एक मूक सर बार बार उभरने लगा । मेरी बेटी के साथ मैं ऐसा नहीं होने दूंगी । मैं बाल के लिए भी उसे अपनी आंखों से दूर नहीं करेंगे । मैं इसको स्कूल भी नहीं भेजूंगी । अगले ही स्टेशन उसके अंतर करन से सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फुटन हुआ और वो पुना एक मूक स्वरूप उसी गलती इसलिए हुई थी क्योंकि मेरी माने कभी मुझे इस काली दुनिया का असली रूप नहीं बताया । सादा उजला रूप से दिखाया था । पनजी साहस के साथ मैं नरक से भी ज्यादा दर्दनाक, बडे बडे दुखों के सागर पार करके आज भी जीवित हूँ । वो साहस मुझे मेरी माँ से ही मिला था । मेरी लाली को भी अपनी माँ से साहस तो जन्मजात मिला ही है । दीन दुनिया का ज्ञान इसको मैं सिखाऊंगी । मैं अपनी लाली को दुनिया के उस रूप को भी दिखाउंगी जो सामने से दिखाई नहीं देता है । अपने इस वैचारिक दृष्टिकोण को आधार बनाकर रानी ने अपनी बच्ची के ज्ञानवर्धन के लिए एक रणनीतिक योजना बनाई, जिसके अनुसार रानी के अपने जीवन में घटित घटनाओं को न केवल बेटी को सुनाना, बल्कि उसको उन घटनाओं का कथ्य कंट्रास्ट भी कराना प्रथम कार्य और था बेटी को अक्षर ज्ञान कराना ताकि वह पढना लिखना सीख सकें, उसकी योजना का दितीय कर्तव्य था । अपने वैचारिक पक्ष और रणनीतिक योजना का विश्लेषण करते हुए रानी ने एक बार पुनः सोचा मेरी काली अतीत को सुनकर मेरी लाली के नंदी से मन पर कुछ बुरा असर तो नहीं पडेगा जाने के प्रश्न का उत्तर उसके हृदय और मस्तिष्क से एक सराया मेरी माने भी यही सोच कर इस दुनिया के उस काली अंधियारे भाग के बारे में मुझे कभी नहीं बताया होगा जिसमें मेरी जिंदगी में अंधेरा कर दिया और जिसको मैंने जीवन में होगा है । जिस बेटी को को मार समझकर दुनिया के काले पक्ष को देखने सुनने से भी दूर रखा गया, वहीं कोमल कमजोर बेटी और सब को भोगने के लिए मजबूर हो गई । पर मैं मेरी बेटी के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी । मेरी नन्ही सी कली को अपने साथ घटित घटनाओं कंठस्थ कराके इस दुनिया की वास्तविकता अवश्यकता होंगे ताकि वो अपनी कच्ची उम्र में भी समझ सके कि कोमल फूलों को निर्ममता से नोचने वाले काटे कहाँ कहाँ किन किन रूपों में मिल सकते हैं । लाली ने ये देखकर किसकी माउस की जिद पर ध्यान ना देकर अपने विचारों की दुनिया में तन मैं अपना प्रश्न पुनः दोहराया । इस स्कूल जाते हैं तो मैं क्यों नहीं जा सकती तो अभी बहुत छोटी है । जाने नहीं । उसे समझाया लेकिन लाली इतनी सरलता से समझने वाली नहीं थी । लाली ने शिकायत करते हुए रानी से कहा हरदम तेरे ही साथ रहती हूँ । थोडी देर के लिए भी तो मुझे चंदू नंदू के साथ नहीं जाने देती है । बच्चों के साथ स्कूल भी नहीं भेजेगी । लाली की शिकायत सुनते ही उसका उत्तर देने की बजाय रानी क्या के नाम हो जाती थी । एक दिन लाली हट करके बैठ के सारे दिन बस तेरे साथ बैठी हूँ । बच्चों के साथ देना खेलो चंदू नंदू के साथ ना जाऊँ क्यों? जब तक मेरी बात का जवाब नहीं मिलेगा मैना कुछ खाऊंगी ना कुछ भी होंगी लाली की बाल हट के आगे हथियार डाल दी । रानी ने निश्चय किया की लाली जहाँ जाना चाहेगी उसको जाने देगी । लेकिन इससे पहले गुलाली को इस दुनिया का कडवा सच दिखाने के लिए अपने जीवन के कडवे अनुभव जरूर बताएगी । उसी समय रानी ने दृढतापूर्वक अपने निर्णय को कार्यरूप में परिणित करने के लिए अपने भोगी हुई दुनिया के काली उजली पक्षों और अपने अनुभवों को अपनी चार साल की नदी से बच्ची लाली को सुनाना आरंभ कर दिया । नन्ही सी लाली के लिए जहाँ एक और ये कहानियां मनोरंजन का साधन थी, वहीं दूसरी ओर लाली को मानवीय संवेदनाओं की भूमि पर टीके सत्यम शिवम सुंदरम समाज को समझने, सीखने और विकृतियों के छद्म रूप से भरी क्रूरतम समाज को पहचानकर इस से बचने का एक रास्ता भी दिखाती थी । माँ के दिशा निर्देशों, कहानियों को सुनकर, टेलीविजन देखकर और अपने छोटी से निम्नवर्गीय समाज के कार्य व्यवहारों के बीच रहते हुए लाली की सीखने की प्रक्रिया अनवरत चल रही थी । सीखने के इसी क्रम में जब लाली अपनी आयु के मात्र सात वर्ष पूरे किए थे, तब महाशिवरात्रि के पावन पर्व के दिन एक ऐसी घटना घटित हुई जिसमें चंचल बुद्धि की स्वामिनी लाली को सब भी शिक्षित समाज के जिम्मेदार नागरिकों के समकक्ष प्रतिष्ठित कर दिया । हुआ ये कि पिछले दो तीन दिन से पूरे उत्तर भारत में बम बम के स्वर की खोज अपने चरम उत्कर्ष पर थी । गाजियाबाद में भी महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा था । सडक भोले की भक्ति में झूमते नाचते हुए शिवभक्तों और कांवडियों से भरी थी । उन की सुविधा के लिए जी टी । रूट को वन वे कर दिया गया था । डाली अभी मात्र सात वर्ष की थी । पिछले तीन वर्षों से वह सडक पर जाते हुए कंपनियों को देख कर आनंदित होती रहती थी । इस पर उसकी रानी ने महाशिवरात्रि के पर्व पर उसको बडे मंदिर पर लेकर चलने का आश्वासन दिया था । फॅमिली ने रूआंसी मुद्रा बनाते हुए कहा माँ जल्दी चलना बम बम भोले देखने रानी ने बेटी को दुलारते हुए मुस्कुराकर कहा चल चलती हूँ तेरे बहाने मुझे भी कावड देखने का पुण्य मिल जाएगा । नहीं तो सारा देने इस घर की धंध करते निकल जाता है । कहते हुए माने घर का दरवाजा बंद किया और लाली का हाथ पकडकर चलती है । दूधेश्वरनाथ मंदिर पर भक्तजनों की भीड थी । न क्यू की सुरक्षा व्यवस्था में बडी संख्या में पुलिस बल को लगाया गया था । सुरक्षा की दृष्टि से शिवजी का अभिषेक करने ही तो कांवडियों के लिए और सामान्य भक्तों के लिए अलग अलग पंक्तियां बनाई गई थी । कुछ अकिंचन भक्तगण महाशिवरात्रि के महान पर्व पर प्रसाद पाने की आकांक्षा में मंदिर के बाहरी पंक्तिबद्ध बैठे थे । उन्हें मिलने को लेकर उसकी माँ खडी हो गई लेकिन लाली की चंचल उपस् थिति उसके वहाँ खडे होने में शनि शनि बाधा बन रही थी । पहली बार बार मंदिर की ओर दौर थी और मैं हर बार उसको पकडकर समझाते हुए अपने पास शांत खडी होकर बम बम देखने का आग्रह कर दी । कुछ दिनों तक माँ की मजबूत पकड में रहने के बाद लाली मंदिर के प्रांगण की ओर संकेत करके माँ से कहती हाँ जाने देना एक बार वहाँ देख के जल्दी से लौटा होंगे । चुप चाप ही खडी होकर शांति से देख ले, नहीं तो आगे से कभी तेज साथ लेकर यहाँ नहीं होंगी । मांग की चेतावनी सुनकर लाली मासूमियत से कहती ठीक है माँ नहीं जारी मैं मेरा हाथ तो छोड दे, बहुत दुख रहा है । पुरानी बेटी की पीडा का हिस्सा खासकर के हाथ छोड देती तो कुछ क्षणों प्रांत और सर पाकर लाली फिर मंदिर के अंदर जाने के लिए दौर परती और हर बार वो अपने प्रयास में विफल होकर माँ की पकड में फंस जाती हैं । कई घंटे तक यही उपक्रम चलता रहता लाली के मना हम मस्तिष्क में एक जन ने देखने की प्रबल इच्छा जाग रही थी कि जिस प्रतिबंधित स्थान पर स्वयं उसको उसकी माँ को और उनके जैसे अनेक लोगों को जाने से रोका जा रहा है, वास्तव में वहाँ क्या है? लेकिन माँ और पुलिस के बार बार रोकने से उसकी बलवती जी कैसा? शांत होने की बजाय किसी भारी पेशंस से दबी स्प्रिंग की भारतीय दोगुने वेग से सक्रिय हो रहे थे । लाली का पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था और उसकी सभी ज्ञानेंद्रियां पूर्ण समर्पण भाव से उसके लक्ष्यप्राप्ति में सहयोग कर रही थी । मात्र एक्शन के लिए एक समय ऐसा आया जब उसने अनुभव किया कि उसकी माँ का ध्यान से हटकर कहीं अन्यत्र विचरन कर रहा है । उसी समय उसने देखा कि प्रतिबंधित स्थान पर जाने से रोकने वाला पुलिस कर्मी भी अपने स्थान पर उपस् थित नहीं चंचल । प्रकृति की सात वर्षीय बच्ची लाली ने उसी शन को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए शुभ अवसर के रूप में चुना और अविलंब ही नी शावक की भर्ती उछलती कूदती मंदिर के प्रांगण में प्रवेश कर गई । अगले एक्शन जब उस की रानी को बेटी के जाने का एहसास हुआ तो उसके पीछे पीछे बेटी को पुकारती हुई दौडी, लाली, लाली, हरियो, लाली टू बिटिया अंदर नहीं जाते तो पुलिस पकड ले जाएगी । रानी के देखते ही देखते लाली कुछ ही क्षणों में भीड कोचीन टीवी मंदिर के प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रविष्ट हो गई । जब तक रानी प्रतिबंधित क्षेत्र की सीमा तक पहुंचती तब तक वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी भी पहुंच चुका था । उस पुलिस कर्मी ने रानी को बाहर ही रोक दिया । रानी कुछ दिनों तक उस पुलिस कर्मी से अनुनय विनय करती रही । बाबूजी मेरी बेटी गलती से अंदर चली गई है । बच्ची को बाहर लाने के लिए मेरा जाना बहुत जरूरी है । वो अकेली छोटी बच्ची भीड में गुम हो जाएगी । लेकिन पुलिस कर्मी ने उसकी एक नहीं सुनी । लाली विजय पताका के रूप में अपने होठों पर मुस्कान बिखेरती हुई मां की आंखों से ओझल हो गई । रानी के पास अब वहीं पर बैठकर बेटी की प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था । अतः बेटी की शरारतों से परेशान वहीं पर सिर पकडकर बैठ गई और उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा । बेटी की लौटने की राह में रहनी बेसब्री से पलके बिछाए हुई थी । लगभग आधा घंटा पश्चात रानी की आंखों में चमक दिखाई थी । जब उसको दूर से ही भीड में अपनी बेटी वापस आती हुई दिखाई थी । लेकिन पांच तक आते आते बेटी के चेहरे पर विचित्र हाओबाम देखकर रानी की आंखों की चमक फीकी पडने लगी । लाली उस स्थान तक तो आई जहाँ पर उसकी माँ बैठी थी लेकिन उसकी माँ की ओर देखा तक नहीं । बुआ आकर सीधी वहाँ पर खडे पुलिस इंस्पेक्टर की ओर आगे बढ गई और आगे बढकर पुलिस इंस्पेक्टर का हाथ पकडकर खींचते हुए संकेत से अंदर चलने का आग्रह करने लगी । लाली के आग्रह में ऐसा कुछ था कि पुलिस इंस्पेक्टर ना चाहते हुए भी उसके साथ साथ चल दिया । दैनिक एक बार पुना लाली लाली हो, लाली पुकारती हुई उसके पीछे दौडी लेकिन एक दूसरे पुलिस कर्मी ने उसको आगे जाने से रोक दिया । रानी तब तक बेटी को वापस लौटाने के लिए पुकारती रही जब तो उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई । परंतु लाली ने एक बार भी पीछे मुडकर नहीं देखा । लाली के साथ पुलिस इंस्पेक्टर के जाने के कुछ क्षणों परांठे मंदिर के चप्पे चप्पे पर पुलिस की सक्रियता बढने लगी । पुलिस कर्मी को बुलाकर ले जाते समय अपनी बेटी के हाओ भाव का इस मिनट करके अब पुलिस की परिवर्तित बढती सक्रियता को देखकर रानी समझ गई कि दाल में कुछ काला अवश्य उस डाल के कालेपन में फंसी हुई अपनी बेटी के विषय में सोच कर ही रानी की धडकने बढने लगी । वो मन ही मन उस शहर को कोसने लगी जब उसका ध्यान अपनी बेटी से तार कहीं अन्यत्र भटक गया था जिसका लाभ उठाकर बेटी उसके नियंत्रण से मुक्त हुई और शीघ्रतापूर्वक प्रतिबंधित क्षेत्र के अंदर प्रवेश कर गई थी । कुछ ही मिनट पर शात रानी ने देखा कि पुलिस की बढती सक्रियता के बीच कुछ विचित्र वेज थारी लोगों का एक विशिष्ट समूह तेज कदमों से उधर ही बडा जा रहा है जिधर उसकी बेटी लाली पुलिस इंस्पेक्टर को लेकर गई थी । वास्तव में विचित्र वेश धारी समूह बम निरोधक दस्ते की टीम थी । बम निरोधक दस्ते की टीम को देखते ही वहाँ पर उपस् थित भक्तगणों एवं दर्शकों की हिरदय में भय अपनी जगह बनाने लगा था । सभी लोग अपने परिचितों अपर सीटों से इस विषय पर जानकारी जुटाने का प्रयास करने लगे थे । क्योंकि अभी तक पुलिस भगदड के संकट से बचने के लिए ऐसी कोई चेतावनी अथवा सूचना देने से बच रही थी । इसलिए इस विषय में किसी को कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी । लगभग आधा घंटा बीतने के पश्चात बम निरोधक दस्ते की टीम उसी रास्ते से वापस लौट के लाले की । माने अनुभव किया कि भक्तजनों के चेहरे पर अब भय की जगह राहत का भाव लौट आया था । अभी तक रानी वहीं पर खडी हुई अपनी बेटी लाली के लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी और पंजों के बल उझा कुछ चक्कर भीड में बेटी को तलाशने की असफल चेष्टा कर रही थी । उसी समय माँ के कानों में लाली का कोमल मधुर स्वर सुनाई पडा माँ रानी ने पी बायून मुड कर देखा जिधर से लाली ने माँ को पुकारा था । रानी ने देखा पुलिस इंस्पेक्टर लाली को अपनी गोद में उठाए हुए उस की ओर इसने है आभार और शाबाशी भरी मिश्री दृष्टि से देख कर उसकी पीठ थपथपाना रहा था और लाली के होठों पर वही चिरपरिचित निश्चल बाद सुलभ गर्वित मुस्कान फैली थी जो सह जी आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी । माँ के निकट आते ही डाली पुलिस इंस्पेक्टर की गोद से उछलकर नीचे उतर गई और जाकर माँ की बगल में खडी होकर खिलखिलाती हुई हस्कर बोली ये मेरी माँ है मैं अपनी मासी थोडी सी देर पल भर को भी अलग हो जाती हूँ तो माँ का दिल जल्दी जल्दी और जोर जोर से ढक तक करने लगता है । फॅस कहते हुए लालिमा के सीने से लिपट गई । रानी को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे । उसने लाली के सिर पर इस नहीं की हल्की सी चपत लगाते हुए मात्र इतना ही कहा चुप कर पगली कितनी बोलती है तू बहुत समझदार है आपकी ये बच्ची इसीलिए थोडी चंचल है । अपनी सीजन जनता के चलते आज इसने कई हजार लोगों के प्राण बचाए हैं । इस का धन्यवाद और आभार शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं । कहाँ रहते हैं आप लोग? वहाँ फ्लाईओवर के नीचे लाली ने संकेत से बताया बहन जी मैं इंस्पेक्टर आर्य मुझे अपने घर का पता नोट करा दीजिए । एक दो दिन में हम वहाँ आएंगे । डाली की माने पुलिस इंस्पेक्टर को फ्लाईओवर की भौगोलिक स्थिति बता दी । स्पेक्टर पता लिखकर वहाँ से चला गया ।
Writer
Sound Engineer