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आधी दुनिया का पूरा सच - Part 12 in Hindi

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AuthorKavita Tyagi
आधी दुनिया का पूरा सच उपन्यास बारह-तेरह वर्ष की रानी नाम की एक नाबालिग लड़की की कहानी है, जो छतरपुर , मध्य प्रदेश के एक निर्धन परिवार की बेटी है । अपनी माँ की प्रतीक्षा में स्कूल के बाहर खड़ी रानी को उसके ही एक पड़ोसी अंकल उसकी माँ को गम्भीर चोट लगने की मिथ्या सूचना देकर घर छोड़ने के बहाने बहला-फुसलाकर अपनी गाड़ी में बिठा लेते हैं । रानी को जब पता चलता है कि वह अपनी नादानी के कारण फँस चुकी है , तब वह दिल्ली में स्थित एक अंधेरी कोठरी में स्वयं को पाती है, सुनिये क्या है पूरा माजरा| Author : Dr. Kavita Tyagi Voiceover Artist : Shreya Awasthi
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प्रात आकाल इस तरीका चिरपरिचित मृदु मधुर सुर सुनकर रानी की नींद टूटी तो वह आश्चर्य से चौक करोड बैठे । आंटी आप इतनी सुबह फिर आंटी कहा तूने मौसी बोलने में जीत जलती है तेरी नहीं मौसी इसमें भूल गई थी पर आज अब इतनी जल्दी हाँ क्यों? मैं जल्दी नहीं सकती । मौसी मेरा ये मतलब नहीं था । पता है मुझे तेरा मतलब चल खडी हो दुकान पर नहीं चलना है चलने मौसी ये कहते हुए रानी मन में उत्साह भरकर उठ खडी हुई और आंखे मलते हुए स्त्री के साथ चल पडी । उसे ऐसा अनुभव हो रहा था की मझधार में डूबते हुए उसे एक दिन का नहीं बल्कि नाव पर आश्रय मिल गया है जिसकी सहायता से वो अपने जीवन में आए हुए तूफान को अवश्य पार कर पाएगी । बिना दीवार और बिना छत की अपनी दुकान में पहुंचकर स्त्री ने अपने सामानों में सर्वप्रथम खाने की कुछ खट्टी मीठी कीजिए निकली और रानी की ओर बढाते हुए कहा ले खाले तेरे पेट कर जइयो भूख से तडप रहा होगा । कह रहा होगा नानी भूखा रखती है कहकर इस्त्री अंगूठी सुलगाने लगी । रानी मुस्कुराते हुए इस तरीके हाथ से खाने की खट्टी मीठी चीजे लेकर खाने लगी । कुछ ही मिनटों में स्त्री ने चाय बनाकर दो प्यालों में छाले और दोनों ने बैठकर तक प्रशाद । दिनभर रानी ने ग्राहकों को चाय और सब्जी रोटी परोसी । झूठे बर्तन बीत हुए किंतु साथ ही साथ आज इस तरी ने एक आदर्श माँ की भर्ती रानी का विशेष ध्यान रखा । रानी का हृदय आज बहुत दिनों बाद किसी के व्यवहार से कुछ थोडी सी व्यक्ति की अनुभूति कर रहा था । आज से कुछ ऐसा अनुभव हो रहा था की परिवार में ना सही पर किसी रिश्ते नातेदार के परिवार के साथ अवश्य । उस दिन के पश्चात दिन प्रतिदिन रानी और मौसी में परस्पर आत्मीयता का भाव और अधिक प्रगाढ होता गया । किन्तु दोनों में प्रगाढ आत्मीयता के बावजूद अभी भी रानी को गाजियाबाद रेलवे जंक्शन के टिकट घर के हॉल में जाकर ही सोना पडता था । आठ दस दिन पर शायद एक दिन शाम को एक आकस्मिक घटना घटी । रानी दुकान पर बैठी ग्राहकों की झूठे बर्तन हो रही थी । तभी तीन चार योग वहाँ कर मौसी से बोले मौसी ये छह छबीली तितली कहाँ से पकडा लाइए । देखने में तो छुट्टी लग रही है । रानी समझ चुकी थी कि वे शोहदे इस सब कुछ इसी के बारे में बोल रहे हैं । फिर भी वह चुप चाप बैठी, बर्तन होती रही । मौसी ने भी उनकी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और अपनी गर्दन दूसरी और घुमाकर काम में लग गई । आपने भद्दे मजाक का कोई जवाब ना पाकर शोहदों ने रानी को लक्ष्य करके अश्लील शब्दों संकेतों के साथ छींटा कशी करना आरंभ कर दिया । कुछ दिनों तक मौसी सब देख सुनकर भी मान रही । मौसी को आशा अपेक्षा थी की रानी उन आवारा युवकों की अभद्र टिप्पणियों का विरोध अवश्य करेगी परंतु जब रानी ने स्वयं किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं की, मौसी ने यूको को गाली देना आरंभ किया । बेटी है मेरी हरामी पिल्लू इस की तरफ गलत नजर से देखा भी तो तुम्हारी आंखें नोच लूंगी । युवक उस समय तो कुछ दिनों के लिए वहाँ से हट गए किन्तु में मौसी की धमकी को मानने वाले नहीं थी । कुछ ही क्षणों प्रांत पुणे वहाँ कर अपनी शोहदे पन का परिचय देने लग गए । मौसी निरानी से अपनी आशा अपेक्षा इस बार भी युवकों का विरोध करने की कुछ दिनों तक प्रतीक्षा की । लेकिन इस बार भी रानी ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । चुप चाप नीचे दृष्टि करके अपने कार्य में व्यस्त रही । ऐसा प्रतीत हो रहा था की मौसी रूपी कवच की सुरक्षा में रहते हुए रानी ने इस की आवश्यकता का अनुभव ही नहीं किया था । अतः मौसी ने रानी को डांटते हुए कहा हरी इन लफंगों के बाडों से बिंद के भी तो बुद्ध बन के क्यों बैठी है ले अंगीठी की जलती लकडी से इन्हें एक बार ऐसा दाग दे की जिंदगी भर दोबारा इधर का रुख करने की हिम्मत ना कर सकें । रानी ने दृष्टि उठाकर मौसी की ओर एक बार देखा । तब तक मौसी पत्थर का एक छोटा सा टुकडा लेकर शोहदों की ओर दौर पडी थी हरामी कुत्ते की औलाद तुम्हारी बोटी बोटी को ऐसा कच्चा जवाब जाऊंगी की तुम्हारी लाश का भी नामोनिशान ना मिलेगा । घर वाले ढूंढते फिरेंगे कहाँ गया कहाँ गया मौसी की गालियां सुनकर दोनों आवारा लडके भाग गए । उनके जाने के बाद मौसी ने रानी को समझाते हुए कहा सडक पर बैठ के दुकान ऐसे ने चलाई जाती है बेटी पत्थर की तरह बजट होना पडता है । इतना बजट की कोई टकराए तो खुद चोट खाएं । ऐसे कोमल कमजोर बनके रहेगी तो हरामी आवारा लफंगे मर्द तेरह कोरमा बना के चार जाएंगे समझी तू समझ गए मौसी रानी ने स्वीकृति में अपनी गर्दन हिलाकर कहा । उस दिन के बाद भी कई बार ऐसी घटनाएं घटित होती रही थी । हर बार ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए मौसी ने रानी को कई युक्तियाँ और ढेर सारी गालियाँ सिखाई । शीघ्र ही ऐसा समय आ गया जब किसी शोध के अनचाहे क्रिया कलाप पर अपने गर्भस्थ शिशु के विकास से फूले हुए पेट के साथ भी रानी खूंखार घायल शेरनी का रूप धारण कर लेती थी । पुरानी के उस रूप को देखकर मौसी को अपना परिश्रम सार्थक अनुभव होता था । तब वो मुस्कुराकर कहती थी शाबाश रानी, अब तो इस दुनिया में आराम से जी सकती है । मौसी की पहली बार शाबाशी को सुनकर रानी को अच्छा लगा था । किन्तु उनके वक्तव्य को ना समझ पाने की मुद्रा में मायूस प्रश्नात्मक दृष्टि से मौसी को देखने लगी थी । मौसी ने पुनः समझाने की शैली में कहा था दूसरों का जीना हराम करने वालों को सबक सिखाने की ताकत जिसमें होती है, वही इस दुनिया में सुख चैन से रह सकता है । पन्ना । दुनिया में सीधे साधे इंसान को ऐसे लोग जीने नहीं देते हैं । समझे रानी ने मौसी की सहमती में मुस्कुराते हुए गर्दन हिला दी । मौसी की पहली शाबाशी के बाद से किसी की भी अनिश्चित बात का विरोध करने का रानी का उत्साह दिनों दिन बढने लगा और दुकान पर आने वाले ग्राहकों की किसी भी अनिश्चित व्यवहार का विरोध करके वो मौसी की शाबाशी कमाने लगे । अब रानी को अपने माता पिता ना मिलने पर भी मौसी के संरक्षण में ऐसा लगता था कि धीरे धीरे उसका जीवन पटरी पर आ रहा था । दूसरी ओर शुक्लपक्ष के चंद्रमा की भर्ती दिन प्रतिदिन उसका पेट बढता जा रहा था । मौसी एक सुखद माँ की तरह बराबर उसकी देखभाल कर रही थी । उसके खाने पीने का एक्शन प्रतिशत ध्यान रख रही थी । कई बार सरकारी अस्पताल में उसकी जांच भी करा चुकी थी । मौसी को जब भी थोडा खाली समय मिलता तभी रानी को बताना आरंभ कर देती है कि गर्भवती स्त्री को कैसे लेना चाहिए, किस मुद्रा में बैठना चाहिए, क्या खाना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए, क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । शिशु को जन्म देने के पश्चात माँ को अपनी ओर अपने बच्चे की देखभाल कैसे करनी चाहिए ताकि मां और शिशु दोनों सस्त्र हैं । मौसी की हर एक बात को रानी ध्यानपूर्वक सुनती और ग्रहण कर दी थी । ध्यान से मौसी की बातें सुनते हुए उसके मन मस्तिष्क में सदेव एक प्रश्न कौंधता रहता था और कई बार वो अपनी जिज्ञासा को सीधे सपाट सरल शब्दों में मौसी के समक्ष अभिव्यक्त कर चुकी थी । मौसी बच्चा पेट से बाहर कैसे आएगा? मेरी मेरी रानी तो इस सब की चिंता मत कर । बच्चे पैदा कराने का काम डॉक्टर नर्स कर लेंगे तो इस चक्कर में क्यों पड रही है? तो बस इतनी सोच जितना तुझे करना है कहते हुए मौसी मुस्कुराकर उसके गाल पर इसमें ही कि एक चपत लगती और उसके सिर पर हाथ रखकर ढेरो आशीष डालती । ऐसा करते हुए प्राया मौसी के आंखों से दो बोनास क्यूकि टपक जाती । तब रानी अनायास पूछ रहती । मौसी अब क्यों रो रही हूँ? क्या डॉक्टर नर्स मेरा पेट चीरकर बच्चे को बाहर निकालेंगे? रानी के प्रश्न को सुनकर और उसके चेहरे पर भयमिश्रित चिंता के भाव देखकर मौसी वातावरण को हल्का करने के लिए खिलखिलाकर हंस पडती और कहती डर और चिंता जैसी कोई बात नहीं है । आने तो देव शुभ दिन को जब मेरी बेटी माँ बनेगी और मैं नानी बनाऊंगी । मौसी का उत्तर सुनकर रानी उस समय चुप हो जाती है किन्तु उसकी जिज्ञासा शांत नहीं करने की उसकी शिकायत मौसी से बनी ही रहती । मौसी स्वयं को आरोपमुक्त करने के लिए अपने पक्ष में सफाई देते हुए कहती मेरा कोई बच्चा होता तो मैं तुझे जरूर बताती रानी जितना मुझे पता है तो ये बताते सिखाती रहती हूँ । समय निरंतर आगे बढता जा रहा था । प्रकृति की अपनी विकास प्रक्रिया के अनुरूप रानी का गर्भस्थ शिशु जितना बडा होता जा रहा था उसी अनुपात में रानी का पेट बढता जा रहा था । जो जो दिन बीत रहे थे क्यों तुरानी का प्रस्ताव समय निकट आता जा रहा था और जो जो रानी का प्रसव समय निकट आ रहा था क्यों तो उसके एक शिक्षण की कल्पना करके मौसी के मन में उत्साह और चिंता और रानी के हृदय में शीघ्र आने वाले अज्ञात अभुक्त क्षण के प्रति वह बढता जा रहा था । मौसी को अब रानी की चिंता पहले की अपेक्षा कुछ अधिक होने लगी थी । रानी की चिंता करके उसके साथ मौसी भी अब रेलवे जंक्शन के टिकट घर में लेट कर कुछ समय बिताने लगी थी और कई बार वो देर रात तक वहीं पर रानी के साथ लेटी रहती थी । जब रानी नींद के आगोश में सपनों की दुनिया में विचरण करने लगती है तब मौसी वहाँ से उठकर अपने निवास पर जाती और प्राथना रानी की नींद टूटने से पहले हिरानी के पास लौट आती थी । भोली भाली मासूम रानी को ये आभास भी नहीं हो पाता था की रात भर मौसी की अनुपस्थिति में भीड के बीच अकेली हुई थी । उसको एकमात्र एहसास रहता था की मौसी के रहते उसे चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है और वह हर पल इसके साथ हैं । लगभग एक महीने से जब रानी की नींद टूटी थी तो उसे सर्वप्रथम मौसी के ममता मई उदारमना व्यक्तित्व के दर्शन होते थे । उस प्रथम दर्शन से लेकर रात को सोने तक दिनभर मौसी अपने पुराने मैले पहले से कुछ न कुछ चीजें निकाल कर रानी को देती रहती थी । कई बार रानी खाने के लिए मना करती तो मौसी स्नेहपूर्वक डाटती थी कि तेरे लिए नहीं है तेरे पेट के बच्चे के लिए है । बच्चा भूखा रहेगा तो तेरे साथ साथ मुझे भी श्राप देगा । ले चुपचाप खाली । तब रानी मुस्कुराते हुए चुप चाप मौसी का दिया हुआ खाद्य पदार्थ खा लेती । मौसी कस नहीं पाकर रानी प्राया सोचती रहती थी । ईश्वर ने मुझे मेरे मापा पर से अलग करके कम से कम एक ऐसी मौसी से तो मुझे मिला दिया जो मुझे माँ की तरह दुलारती हैं, देखभाल करती है और ढाल बनाकर पल पर मेरी रक्षा करती है । एक दिन नानी रहता उठी तो मौसी उसको अपने आस पास कहीं दिखाई नहीं पडी । घंटों तक वो मौसी के आने की प्रतीक्षा करते रहे । वो प्रतीक्षा करते करते थक गई किंतु मौसी नहीं आई । भूमि लगाई थी । मौसी के बताया निसा रानी को अनुभूति हो रही थी की भूख उसको नहीं बल्कि उसके गर्भस्थ शिशु को लगी है । इसलिए वह बार बार अपने पेट पर हाथ रखकर मन ही मन की होती । मैं तो दिन भर भूखी रह सकती हूँ पर तो भी बहुत छोटा है ना । इसलिए तुझे अभी भूख सहन करने की आदत नहीं है । रानी कुछ दिनों तक इधर उधर की बातें सोचती हुई मौसी को ढूंढती और फिर कहती है पर चिंता नहीं करते । मौसी को आज अपने घर से आने में देर हो गयी होगी इसलिए वह सीधे अपनी दुकान पर चली गई होंगी । की सोचते सोचते पुरानी के कदम मौसी की दुकान क्यों रुठकर । कुछ ही मिनटों में वो मौसी की दुकान पर पहुंच गई किंतु मौसी वहाँ पर भी नहीं थी तो सोचने लगी मौसी भी देश से तो कभी नहीं आती आज इतनी देर कोई बात नहीं । कुछ काम लग गया होगा । आ जाएंगी । मौसी तब तक में अंगीठी सुलगा देती हूँ । रानी ने स्वयं उत्तर देते हुए स्वयं को संतुष्ट करने का प्रयास किया और अंगूठी सुलगाने लगी । कुछ दिनों तक का नीति में डाली । फिर ईधन से धुंआ उठने के पश्चात आग धधक उठी । किंतु आग पर पकाने के लिए कुछ सामान उपलब्ध नहीं था । धीरे धीरे अंगीठी की आग ठंडी राख में परिवर्तित हो गई । दूसरी ओर रानी की जठराग्नि प्रज्ज्वलित होकर प्रचंड से प्रचंड तक होती जा रही थी, जिसको सद्य शांत करने का उसको कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । धीरे धीरे क्रीम इशाक दिन चढा और ढल गया परन्तु मौसी का कहीं कोई अता पता नहीं था । रानी को भूख से दुर्बलता का अनुभव होने लगा । जब उसकी आंखे बंद होने लगी, उसे अपनी भूख शांत करने का एक उपाय सूझा । वो कुछ दूरी पर चल रहे ढाबे पर गई और मौसी की दुकान की ओर संकेत करके ढाबे के स्वामी से प्रार्थना की । मैं वहाँ मौसी के साथ उनकी दुकान पर रहती है । आज अभी तक मौसी नहीं आई हैं । मुझे बहुत जोर से भूख लगी है । मेरा बच्चा भूख से तडप रहा है, आप मुझे थोडा सा खाना दे दो । बदले में में आपके बर्तन धोने और सब्जी छिलने काटने का काम कर दूंगी । रानी की प्रार्थना स्वीकार करके ढाबा स्वामी ने ढाबे पर काम करने वाले बावर्ची को आदेश दिया किरानी को भरपेट भोजन करा दे । जब रानी ने भोजन कर लिया तब ढावा स्वामी ने उससे भोजन के बदले काम नहीं कराया और आत्मीयता से आराम करने के लिए कहकर वहाँ से भेज दिया । रानी पुनः मौसी की दुकान पर आकर बैठ गयी । रानी को मौसी की प्रतीक्षा में दुकान पर बैठे बैठे रात हो गई । तब तक भी मौसी नहीं आई ही उसको मौसी की कोई सूचना मिली । अंत में देर रात होने पर वो उठकर रेलवे जंक्शन के टिकट घर लौट आई और भूखे पेट हो गई । कराता आंखे खुली तो धरती पर लेटे लेटे उसकी दृष्टि नियम मौसी को खोजने का प्रयास असफल क्या क्योंकि वो रात हो गयी थी । इसलिए उठते ही उसने अनुभव किया कि गर्भस्थ शिशु भूख से बेचैन है । भूख से तडपते हुए बच्चे के प्रति कर्तव्य निर्वहन के विचार से प्रेरित होकर रानी उठी और मौसी की दुकान की ओर चल दी । रास्ते में वही ढाबा था जहाँ उसने पिछले दिन अपने पेट के द्वारा शांत की थी । ढाबे के निकट पहुंचते ही रानी के कदम ठिठककर रुक गए । वो कुछ दिनों तक वहीं खडी रही और ढाबे पर रखे भोजन को ललचाई दृष्टि से निहारते हुए भोजन की सुगंध लेती ही सुगंध से भूख शांत होने के स्थान पर और अधिक प्रचंड होने लगी । आज रानी ढाबर स्वामी से भोजन मांगने का साहस नहीं जुटा सकी । पिछले दिन यदि ढाबर स्वामी भोजन के बदले उससे कम करा लेता तो शायद आज वो भोजन मांगने की हिम्मत कर सकती थी । उसने आशा की स्वयं ढाबा स्वामी या बावर्ची उसे भोजन देने का प्रस्ताव देते तो लेकिन ऐसा नहीं हुआ । वो कुछ क्षणों प्रांत वहां से प्रस्थान करके मौसी की दुकान पर जाकर बैठ के धीरे धीरे सूरज अपनी गति से ऊपर चढने लगा । दोपहर होते होते धूप तेज हो गई और दिन गर्म हो चला । दूसरी ओर भूमि पडने से रानी की बेचैनी बढने लगी लेकिन पेट भरने का कोई सुलभ साधन नहीं था । भीख मांग कर तिरस्कार की रोटी खाने में उसकी रूचि नहीं थी और रोटी के बदले उसको काम देने के लिए कोई तैयार नहीं था । नही वो काम करने की दशा में थी । बैठे बैठे रानी को अपनी भूख शांत करने का एक उपाय सुझाए । क्यों ना मैं किसी मंदिर में ईश्वर की शरण में जाकर बच्चा हूँ जहाँ प्रसाद पाकर पेट की ज्वाला कुछ शांत हो सके । अपनी सोच के अनुसार पुरानी अपने स्थान से उठे और मंदिर की दिशा में चल पडी । वो कुछ ही दूर चल सकी थी की भूख दुर्बलता और धूप के कारण उसका सिर्फ घूमने लगा । ऐसी स्थिति में वो आगे एक भी कदम नहीं बढा सके और वापस मौसी की दुकान पर सब कुछ ईश्वर के भरोसे छोडकर आंखे बंद करके धरती पर लेट गई । दोपहर ढलने के प्रशाद दो युवक उधर से गुजरे और रानी पर छींटाकशी करने लगे । युवकों की पत्तियां सुनकर रानी ने बहुत परिश्रम से अपनी आंखे खोली और देखा । ये दोनों वही युवक थे जिन्होंने मौसी की दुकान पर उसके आने के दो तीन दिन पर शायद पहली बार छींटा कशी की थी और मौसी उन्हें गालियां देते हुए डंडा लेकर उनके पीछे दौडी थी और उनके जाने के बाद रानी को भी ऐसी परिस्थितियों से दो दो हाथ करना सिखाया था । किंतु आज रानी में इतनी शक्ति शेष नहीं बची थी की मौसी की शिक्षाओं को कार्यरूप में परिणत कर सकें । कुच चुपचाप आंखे खोलकर उनकी ओर देखती रही । कुछ समय तक दोनों युवक अपनी वाणी तथा संकेतों से उसके प्रति अनपेक्षित व्यवहार का प्रदर्शन करते रहे । रानी की ओर से आपने अभद्र व्यवहार की । आशानुरूप प्रतिक्रिया ना पाकर दोनों युवक रानी के और अधिक निकट आकर बोले मौसी की बात हो रही है । अब मौसी नहीं आने वाली तेरी सहायता करने के लिए । एक युवक ने कहा रोज तो बडी ईट पत्थर फेंक की थी । गालियों के साथ डंडा लेकर दौडती थी । चुप क्यों है मेरी हम मोरानी दूसरा योग बोला आज एक हमारे ऊपर पत्थर आज देगा । लिया आज पत्थर नहीं थे क्योंकि आज गालियां नहीं देगी । खाॅ कहते हुए दोनों युवक ठहाका मारकर हंस पडेगी । इतनी पर भी रानी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । रानी को इस प्रकार मूव शांत देखकर दोनों युवकों में फुसफुसाहट आरंभ हो गई । शायद इस को पहले ही पता लग चुका है । एक योग ने फुसफुसाते हुए धीमे सर में कहा नहीं हमारे सिवा इसको कौन बता सकता है । दूसरे युवक ने प्रतिवाद किया तो भी सही कह रहा है । तबियत तो खराब नहीं हो गई । इस की चल पूछ लेते हैं । पहले युवक ने कहा और दोनों रानी के बिल्कुल निकट आ गए । एक युग में रानी को हाथ से छूकर पूछा तेरी तबियत ठीक है । योग के हाथ का स्पष्ट पाते ही रानी के हृदय में भय के साथ क्रोध का संचार हुआ । उसने युवकों का प्रतिकार करने के लिए उठने का प्रयास किया किंतु विफल रही । अंत में कटुवाणी में कुछ स्पष्ट शब्दों का उच्चारण किया । रानी के स्पष्ट शब्दों को सुनकर उनमें से एक युवक बोला उठने भर का दम नहीं है । फिर भी गाली देने में काम नहीं हो । दोनों विद्रोह फंसी, हस पडे चली । आज हम उठा देते हैं कहते हुए पहला युवक पुनः आगे बढकर रानी को उठाने का प्रयास करने लगा । रानी ने उस युवक के सहयोग से उठने में कोई रूचि नहीं ली और पूर्ववत अत्यंत शील वाडी में स्पष्ट गालियाँ उच्चारित करती रही । पता है वो युवक भी उसको उठाने के अपने प्रयास में सफल नहीं हो सका । लेकिन दानी को उठाने का प्रयास करते हुए उसको अहसास हो गया था कि भोजन पानी ना मिलने के कारण रानी का शरीर अत्यधिक दुर्बल हो गया है । पता उसने अपने साथ ही दूसरे युवक से कहा नंदू जाता, जल्दी पानी ले । क्या इसका मूल सूख रहा है? शायद ही इसलिए न्यूज पा रही है और नहीं ठीक से बोल पा रहे नंदू दौड कर वहाँ से कुछ दूरी पर चल रहे ढाबे से पानी ले आया और रानी की ओर बढा दिया । पानी को देखते ही रानी की प्राण हरी हो गए । वो अपनी पूरी शक्ति के साथ उठ बैठी और बिना कुछ सोचे समझे बिना कुछ बोले युवक के हाथ से गिलास लेकर पूरा पानी एक सांस में घटा काट दी गई । उसको पानी पीते देखकर योग एक बार पुनः वहाँ का मार्कर ऐसे अब तो तुझ में पत्थर फेंकने और गाली देने की ताकत पड गई होगी । रानी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । चुप चाप बैठी रही । बैठे बैठे भी दुर्बलता से उस किया कि बार बार छपक रही थी । उसकी इस दशा को देख कर पहले योग ने पूछा खाना खाएगी । रानी को तेज भूख लगी थी । वो जानती थी कि भोजन करने की प्रशाद, उसकी दुर्बलता कुछ सीमा तक दूर हो जाएगी । किन्तु उसके अंतकरण से एक मौन सर उभरा इन का दिया हुआ भोजन करने से तो मर जाना बेहतर है । अगले ही स्टेशन प्रतिवाद स्वरूप एक और सर उभरा तो मारेगी तो इस दुनिया में आने से पहले ही तेरह बच्चा भी मर जाएगा । भूल गई पुजारी काकानी और मौसी ने कहा था बच्चा ईश्वर का रूप होता है । एक माँ के लिए अपने बच्चे की सेवा ईश्वर की सेवा हैं । अपने ही अंतकरण से दो परस्पर विरोधी विचार उठने के कारण रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया । पुरानी के अंतर्द्वंद का दो युवा का अनुमान लगा सकते थे । अतः चंदू ने पुनः आदेश दिया जांदू इसके लिए ढाबे से थोडा सा खाना लिया । शीघ्र ही नंदू ने निकट के ढाबे से दाल रोटी और एक बोतल पानी लेकर रानी के सामने रख दिया । भोजन देखते ही रानी के मन मस्तिष्क ने कहा खाली रानी वो रोटी का टुकडा तोडकर मूह में डालने वाली थी । तभी न जाने किस शक्ति ने उसके हाथों को आगे बढने से रोक दिया । रानी को निष्क्रिय देखकर चंदू ने कहा खाले तेरे लिए ही मंगाया है कुछ खाएगी नहीं तो डंडे, पत्थर मारने और गाली देने की ताकत कहाँ से आएगी । हो तो मुझे ये तो डर नहीं कि हमने तरह खाने में कुछ मिला दिया होगा । फिर ऍम बंदो ने कहकर ढाका लगाया रानी अभी भी निष्क्रिय चुप बैठी थी । देख रानी हम लोग वैसे बिलकुल नहीं है जैसा तो सोच रही हमें मौसी नहीं भेजा है । चंदू ने रानी को आश्वस्त करते हुए कहा हूँ

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