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5. Udarta Aur Seba Ki Ankur in Hindi

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AuthorNitin
क्रन्तिकारी सुभाष Author:- शंकर सुल्तानपुरी Author : शंकर सुल्तानपुरी Voiceover Artist : Raj Shrivastava Producer : KUKU FM
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उदारता और सेवा के अनुकूल सुबह सुबह क्या कह रहा है बेटा भर्ती हुई मां प्रभावती सुभाष के अध्ययन कक्ष में आ गई कमरा खाली महान चकित हुई अभी थोडी देर पहले जब सुभाष के लिए दूध लेकर आई थी अपनी में इस पर इशू का अध्ययन में तल्लीन था । आखिर सुभाष देखा ही चला । कहाँ गया मैंने अपने आपसे सुचार धीरे धीरे सुभाष की मैच के निकट उसने देखा कि चीटियों की लंबी कालीन हजार सुभाष कि मेरे से होती हुई उस की पुस्तकों की अलमारी की ओर जा रही है । यहाँ छुट्टियाँ क्यों? महान एक अमरीकी फर्श मेज और अलमारी के चारों तरफ ध्यान से देखा । वहाँ पर चीटियों का आना जाना वास्तव में आश्चर्यजनक था । इस साफ सुथरे व्यवस्थित स्थान पर चीटियों का क्या काम? मैंने सोचा हो सकता है सुभाष की अलमारी में कोई कीडा मकोडा मर गया हूँ । इस अनुमान से उसने अलमारी खोली और किताबें उलट पलट कर देखने लगे । शीघ्र ही उनके अनुमान की पुष्टि हो गई । मगर उनके अचरज का ठिकाना आया । कुछ तो अपने आप से सोचती रही । अगर प्रकृति का लडका है, पता नहीं उसका मन और मस्तिष्क कहाँ चलता रहता है । आखिरी रोटियाँ किस लिए अलमारी में पुस्तकों की कतार के पीछे दो सूखी रोटियां पडी थी । चीटियों की कतार रोडियों के कण तोड तोड कर ले जा रही थी । मांग को समझाते दिए नहीं लगी कि अवश्य ही रोटियाँ उसके बेटे की किसी विशेष प्रकृति से संबंध रखती है । माने रोटियों को हटाकर अलमारी की लेकिन उसे बीडी कैसे? विचित्र काम पर अब आशंका हो रही थी यहाँ क्या कर रही हो? मा कमरे में प्रवेश करते हुए सुभाष ने उदास स्वर में पूछा लगता है तेरा दिमाग खराब हो गया है । महान ईरोज में सुभाष के चेहरे की ओर देखते हुए कहा हरिपद ली उन्नीस अलमारी में रोटिया क्यों डाल रखी थी? ऍम कि क्या सुभाष ने भी एक घंटे से कहा और अनायास ही उसकी आखिर चल चलाई ये तुझे क्या हो गया? मैं रोटियों की बात कुछ समझ नहीं पाए । माने पर इसमें ऐसे सुभाषा कांदा सकता पाया । बात ये है कि मैं नित्य अपने खाने में से दो रोटियां बचाकर एक बूढी भी कारन को दिया करता था । वो मेरे स्कूल के रास्ते में खडी होती थी । कल जब मैं रोटियाँ देने गया तो अपनी जगह पर नहीं थी इसलिए उसकी इसी की रोटिया में यहाँ नजदीकी फिर किसी वक्त जा कर दिया होगा । मैं भी वहाँ गया था तो पता चला कि बेचारे का स्वर्गवास हो गया । अपनी बात समाप्त कर सुभाष इस प्रकार से क्या भरने लगा? मानव अधिकारों उनकी कोई आदमी हूँ, बेटे की सहर देता और उदारता पर मां प्रभावती का रूम रूम भगत हो था और वह हर्षातिरेक से उसके माथे को चूमती हुई प्रेम विभोर घंटे से बोली तो मनीष नहीं अवतारी है बेटे मेरी को धन्य हो गई । हमें गरीबों की सहायता करनी चाहिए ना माँ ये हमारा कोई अहसान नहीं । कर्तव्य सुभाष ने सहजभाव से उतार दिया । समाज की फाॅर्स समाचार पत्र पर टिकी थी । ऊपर ही मोटे मोटे अक्षरों में अंकित था । जहाजपुर में है जे का भीषण प्रकोप और उसके नीचे जाजपुर में पहले हुए हैं जैसे होने वाली जीवन शक्तियों का वर्णन अत्यंत मार्मिक शब्दों में किया गया था । बालक सुभाष पर इस दुखद समाचार की बडी गहरी प्रतिक्रिया हुई । उसके अंतरात्मा हाहकार कर उठे और हृदय का विक्षोभ अधरों पर भराया । वो आज महामारी के प्रकोप से अनगिनत रानियाँ समय ही कालकवलित हो रहे हैं । कोई भीषण काल से उनकी रक्षा करने वाला नहीं । बेचारे ग्रामीण असहाय अवस्था में मृत्यु के हाथों अपने जीवन का सौदा कर रहे होंगे । हाँ, मुझे अट्टालिका में रह रहे हैं । स्वादिष्ट भोजन कर रहे हैं और सुख चैन की बंसी बजा रहे हैं । पर विचारों पर क्या विपत्ति गुजर रही होगी? क्या हमें इस दुखद घटना को सुनकर भी खामोश बैठे रहना चाहिए? यहाँ तो हम मनुष्य होकर भी पशु से भी बदतर है । सुभाष ज्ञान बडे स्नेहा से पुकारती । विम दिलाने कमरे में प्रवेश किया । सुभाष का ध्यान हो गया आम रिजिला सुभाष ने पीके मुस्कान के साथ कहा और समाचार पत्र समेटकर एक और रख दिया तुम्हारा नहीं चलते मेरी समझ में आता ही नहीं है । भाई था बालिका एकदम निकट आकर उनके गले में बाहें पहनाकर बोलिए । हर घडी गंभीर ही रहते हो कभी मिनट में हस्ते मुस्कराते नहीं देखा जरूर हमारे दिल में कोई दर्ज पर राय समाज था, है ना अपनी बात समाप्त कर बालिका सुभाष के गंभीर गहरे नेत्रों में झांकने लगी तो ठीक कैसे हम बदला सचमुच मेरे दिल में एक भयानक दर्ज पड रहा है और मैं हमेशा उस दर्द की छटपटाहट से बेचैन रहता हूँ । ईश्वर तुम्हारे दिल में इतना दर्द होता है, सुभाष था और तुम नहीं देने बाहर अगर उसको छुपा रखा है कोई बढिया तो बदलाव व्यग्रता से बोली हूँ तू तो मेरी बच्ची है । सुभाष ने उस वगंधा जब पाते हुए कहा गरीब बदली मेरे दिल का दर्द मेरा कोई शारीरिक रोग नहीं है । ये तो समूचे देश का दर्द है, समूची मानवजाति की पीडा है और संपूर्ण भारत की वेदना है । मैं चिंतित और दुखी इसलिए रहता हूँ कि अपने देश में हमको नाम क्यों है? गोरी सरकार ने हमारे अधिकारों को क्यों छीन रखा है? हम दरिद्रता, गरीबी, पराधीनता और संताप का जीवन चौधरी रहे हैं । हमने भारत से उखाड देखने के लिए कटिबद्ध क्यों नहीं होते? और बताओ मेरे दिल में डर किस लिए हैं? समाज में अपने मन का संताप इतने वेक से प्रवाहित किया कि वह आप उठा और आगे बोलने में असमर्थ हो गया । बारह वर्षीय अबोध बालिका मृदला अचरज से अपलक बाल विद्रोही सुभाष के तमतमाए चेहरे को देखती रही । तुझे अचरज हो सकता है । मृदुला की जरा से सुभाष कैसी कैसी बातें करता है । लेकिन सच मान मैं जो भी कह रहा हूँ, मेरे दिल की सच्ची झनकार है जो मेरे मस्तिष्क को घडी भर चैन नहीं लेने देती । आज मेरे दुख और चिंता का कारण जाजपुर में पहला भयंकर है । चाहे जो अंग्रेज प्राणियों को मृत्यु का ग्रास बना रहा है । सच तुम्हारे विचार बहुत ऊंचे और उदार है । सुभाष मृदुला सीम श्रद्धाभाव से बोली, लेकिन ऐसी उसी भावनाएं रखी भी हम क्या कर सकते हैं? बहुत कुछ कर सकते हैं । मृदला सुभाष ने तुरंत ही प्रतिवाद किया । यदि मनुष्य में साहस, लगन और दृढ संकल्प हो तो वह क्या नहीं कर सकता? मैं मानता हूँ कि मनुष्य मनुष्य की शारीरिक व्याधि को अपने ऊपर नहीं हो सकता, किंतु बहुत ज्यादी को समाप्त या कम करने में सहायक हो सकता है । जानती हूँ मैंने क्या निश्चय किया है क्या? मृदुला ने अधीरता से पूछा ये है कि मैं जांच पर आकर रोगियों की सेवा करूँ । अकेले ही जो भी समझता, महिला चिकित्सा बोली, क्या अंकल राय बात हो तो मैं वहाँ जाने देंगे । नहीं । मेरे पिताजी हृदय तथा विचारों से महान होते हुए भी अपने जीवन स्तर के संबंध में अत्यंत सजग है । मैं कभी नहीं चाहिए कि उनका बेटा रोगियों के बीच जाकर सहायता करेंगे । तो फिर मृदुला ने पूछा तो भी जाऊंगा । सुभाष ने गिरफ्तार में कहा, उनके विचारों की अवहेलना करोगे हैं । इस समय करनी ही पडेगी पर वो कारण सेवा के मार्ग में अनेक बाधाएं आती है । मनुष्य को साहस के साथ उन का सामना करना चाहिए । अच्छा अब तो जाम रिजिला मजाजपुर के लिए अभी ही निकल जाता हूँ कहकर सुभाष उठे और बाहर की ओर जल्दी सुनो । सुभाष मैं दिलाने पुकारकर कहा मासी सीटों में लोग तुमने खाया भी तो नहीं खाया होगा चिंता नगर मृदला इस समय मुझे भूख प्यास कुछ भी नहीं है । कहते हुए सुभाष आंखों से ओझल हो गए और मॅहगी सी खडी रह गई । बालक सुभाष महीनों जांच पर गांव में रोगियों की सेवा सुश्रुषा करता रहा । उसके साथ ही विनम्रता और सेवा तत्पर्ता देखकर किसी को अनुमान भी न हो सका कि वह कटक के सो सम्मान सरकारी वकील रायबहादुर जानकीनाथ का पुत्र होगा । जब लोगों कोइ सच्चाई का ज्ञान हुआ तो इसमें हुए । वहाँ से लौटकर सुभाष ने सर्वप्रथम पिता के चरणों में प्रणाम किया और अत्यंत विनय भाव से कहा पिताजी शमा खींचेगा । मैं बिना आपकी सहमती लिए जाजपुर चला गया था । अच्छा हाँ, दीर्घ निश्वास के साथ रायबहादुर ने बेटे को ऊपर से नीचे तक पूरा फिर गंभीर वाणी में बोले, अब तक जमा का प्रश्न ही नहीं उठता । वैसे तुमने जो किया है, वह सर्वदा मेरी प्रतिष्ठा के विपरीत है । मैं ज्ञान होना चाहिए कि तुम एक प्रतिष्ठित सरकारी वकील के बेटे हो और तुम्हें उनके स्तर के अनुकूल ही रहना चाहिए । जी अपनी जानकारी में मैंने आपकी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल कार्य नहीं किया । विनम्र, आदरणीय भाव से कहने लगे सुभाष क्या करता है? जब मैंने जहाजपुर में भयंकर हैजा फैलने का समाचार पढा तो मेरा मन विचलित हो था और ये भाग जागी कि मुझे मुझे वहाँ जाकर रोगियों की सेवा करनी चाहिए । सफाई देने की कोई आवश्यकता नहीं । बीच में गुड पडे रहे बातें एक तुम्हारी ही सेवा की जरूरत थी वहाँ पर अगर तुम्हारा यही रंग ढंग रहा था, निश्चित है की तुम्हारा भविष्य निकाल में होगा । पिताजी सेवा कार्य निंदनीय तो नहीं होता? सुभाष ने आगे भी कहना चाहिए ये रायबहादुर परिवार के लिए अपमानजनक है । रायबहादुर ने टाॅस की बात करती हूँ तो आगे मेरे लैंड व्यापारी व्यतीत । मां प्रभावती झपट्टी हुई । उसके निकट आई और इससे हृदय से लगाकर हर्षातिरेक मैं छलकाने लगी । सुभाष ने शुक्कर तक्षण ही मां के चरण स्पर्श किए । तुम्हारी यही ममता इसकी उलजलूल कृतियों को प्रोत्साहन देती है । कहकर रायबहादुर उस कक्ष से चले गए । बधाई से भाजपा विधायक मृदला बाहर से जब पट्टी हुई सुभाष के पास है क्या वहाँ से मृदला सुभाष ने इस नहीं से मुस्कराते हुए उस की ओर देखा । महिला के हाथों में समाचार पत्र के पृष्ठ थे । उसने उसे सुभाष के आगे फैलाते हुए एक स्थान पर अंगुली रखकर कहा ये ऍम ये मेट्रिकुलेशन का परीक्षाफल था । उत्तीर्ण विद्यार्थियों में सुभाष को द्वितीय श्रेणी प्राप्त हुई थी । धन्यवाद मंजिला शिव समाचार लेकर रहे सुभाष इस इसने ही तब की लगाकर बोले परीक्षा काल में मैं इतना व्यस्त था की मुझे उत्तीर्ण होने की आशा ही नहीं थी । केंद्र मुझे तुम्हारे तीन होने में कोई संदेह था । मृदुला सहज गर्व से कह पडी जब बिना ठीक से पढे लिखे तो इतनी अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण होते हुए सुभाष था । तब तो दैनिक परिश्रम करने पर तुम्हारी प्रथम श्रेणी आ सकती है । मैं तो जैसे ही ये परीक्षाफल देखा उस चल पडी अब जल्दी से मेरा मुंह मीठा कराओ तो मिठाई कब सिखाने लगी? सुभाष आज प्रथम बार विनोद के भाव में आकर बोलेगी । विजित नमकीन ही अधिक पसंद है । देखो मुझे डालने की कोशिश मत करो । वहाँ के न जाती हुई कहाँ पर तुम अपनी पढाई से कल मेरी प्रार्थना से अधिक सफल हुए हो । क्या मतलब देखो जब तुम्हारी परीक्षा चल रही थी तब मैं नित्य माँ दुर्गा से प्रार्थना करती थी कि मेरी सुभाष को अवश्य तीन कर देना । ये उसी का प्रतिफल है । महादुर्गा गिरी प्रार्थना सादा मान लेती है । जो भी श्रद्धा भक्ति से उन्हें ऍम करें उसी की प्रार्थना सुन लेती है । अच्छा हुआ उस अंग्रेजी स्कूल से छुट्टी में अब मैं किसी भारतीय स्कूल में पढूंगा । सुभाष ने मनोकामना व्यक्त की । प्रभावती ने अखबार पति को दिखाया । सुभाष देर हो गया । यद्यपि मुझे तनिक भी आशा नहीं थी तो गंभीर स्वर में कहने लगे मुझे इस बात का अनुमान है की वो मैं जहाँ भी विद्यार्थी है नदी वो अपना समय कुछ बेकार के कामों में ना खराब करे तो उसकी प्रथम श्रेणी आ सकती है । मैंने उसका वातावरण बदलने का निश्चय किया । वातावरण बदलने का निश्चय मैं कुछ समझी नहीं जी । प्रभावती ने आशंका से पूछा हम अब लडको को कलकत्ता वाली नहीं कोठी में भेज दूंगा । वहाँ ये लोग प्रेसिडेंसी कॉलेज में पडेंगे । ये प्रशन चल ही रहा था कि वहाँ पर सुभाष और मृदला भी यहां पहुंचे । सुभाष ने आगे बढकर पिता के चरण स्पर्श किए । चिरंजीवी हो बिदानी गंभीर स्वर में आशीर्वाद दिया । फिर अच्छा नहीं अपना निर्णय सुना दिया । आगामी जुलाई से तो मैं प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश करना है । जैसी आप क्या क्या सुभाष में इतना ही कहा

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क्रन्तिकारी सुभाष Author:- शंकर सुल्तानपुरी Author : शंकर सुल्तानपुरी Voiceover Artist : Raj Shrivastava Producer : KUKU FM
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