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युद्ध भूमि पर सेना बडी सुभाष आजाद हिंद फौज का सेनापतित्व ग्रहण करते हुए सुभाष ने अपनी फौज के सिपाहियों के नाम संदेश दिया । आजाद हिंद फौज और भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के हित में आज मैंने अपनी सेना का पूर्ण अधिनायक ग्रहण कर लिया है । मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि प्रत्येक परिस्थिति में मुझे भारत के प्रति करते हुए पालन के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान करेंगे । साथियों, अधिकारियों तथा सैनिकों अपनी कर्तव्यनिष्ठा, देशभक्ति और मदद से आजाद हिंद फौज भारत की क्रांति का उपकरण होगा । अन्ततोगत्वा मैं विश्वास दिलाता हूं कि निश्चय ही हमारी विजय होगी । सुभाष चंद्र बोस, प्रधान सेनापति ऍफआईआर आजाद हिंद फौज पच्चीस अगस्त उन्नीस सौ रंगून में बहादुरशाह के मकबरे पर स्वतंत्र भारत के अंतिम बादशाह की स्मृति में नेताजी ने श्रद्धांजलि अर्पित की । हम भारतीय धार्मिक विश्वासों को अलग रख बहादुरशाह का स्मरण करते हैं । इसलिए नहीं कि वे वह पुरुष थे जिन्होंने शत्रुओं से लडने के लिए भारतीयों का आह्वान किया था बल्कि इसलिए कि उनके झंडे के नीचे सभी प्रांतों, सभी धर्मों के मानने वालों ने युद्ध किया था । वह पुरुष जिसके पवन झंडे के नीचे स्वतंत्रता के इच्छुक मुसलमान हिंदू और सिखों ने साथ साथ लडाई लडी । स्वयं बादशाह ने कहा था हिन्दू में बु रहेगी जब तलक ईमान की दखते था उस तक चलेगी तेज हिंदुस्तान की जब तक भारतीय स्वतंत्रता के लिए लडने वालों की आत्माओं में विश्वास का अंतिम का बाकी है, भारत की तलवार था उसके लिए लडकी रहेगी अर्थात लंदन की छाती को लगातार छेडती रहेगा । आजाद हिंद फौज का सेनापतित्व ग्रहण करने के पश्चात सुभाष का उत्तरदायित्व बहुत बढ गया । घूम घूमकर जन संपर्क स्थापित करते और अपनी फौज का कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए जन धन की मांग करते । सुभाष ने जब देखा की आजाद हिंद संघ और आजाद हिंद फौज का कार्य बहुत विस्तार पा गया है तो उसे यथावत संचालित करने और धूरी राष्ट्र से बराबरी का संबंध बनाए रखने के लिए अस्थि आई हिंद सरकार स्थापित करने का निश्चय किया । आज आधीन सरकार जिस दिन आजाद हिंद संघ का विराट समारोह हुआ उस समय सिंगापुर में विशाल जनसमूह उमड पडा अस्थि आई आजाद हिंद सरकार की घोषणा करते हुए सुभाष ने कहा पूर्वी एशिया में भारतीय स्वाधीनता संघ द्वारा अस्थि आई आजाद हिंद सरकार की स्थापना करते हुए जो प्रगति हमने की है उसके लिए पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए आगे बढते हैं आजाद इनकी अस्थाई सरकार घोषित की जाती है । प्रत्येक भारतीय इसपर निष्ठा के साथ दावा कर सकता है । ये सरकार अपने प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता और साथ ही समान अधिकार तथा समान सुविधाएं देने का वादा करती है । ये सरकार राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुख समृद्धि की समान रूप से रक्षा करने की घोषणा करती है । विदेशी सरकार द्वारा अतीत में भेदभाव और चालाकी से जिस कटु परिस्थिति को जन्म दिया है, उसे दूर कर शांतिपूर्ण स्थिति बनाने की भी घोषणा की जाती है । इसके बाद नेताजी ने आजाद हिंद सरकार के पदाधिकारियों की घोषणा की । पद घोषणा के पश्चात प्रत्येक सदस्य ने अस्थि आई आजाद हिंद सरकार के प्रति निष्ठा की शपथ ली और अपने हस्ताक्षर किए । नेताजी की इस घोषणा को लाखों भारतीयों ने स्वीकार किया । फिर आजाद हिंद फौज की शानदार परेड हुई तथा नेताजी ने सलामी ली और हजारों काट एक साथ का पडेगा जय हो, जय हो शुभ सुख चैन की वर्ष बरसे, भारत भाग है, जाएगा पंजाब, सिंध, गुजरात मराठा द्राविड, उत्कल बंगा चंचल सागर, विंध्य हिमाचल नीला जमुना गंगा तेरे नितिन गुड का भी तो जिसे जीवन भी सब टाॅय तू राज्य बनने कर जगह परचम के भारत नाम सुभागा, जय हो, जय हो जय हो जाया जाया जाया जाए हो आजाद इन सरकार की घोषणा की । कुछ दिनों पश्चात ही विभिन्न राष्ट्र ने नेता जी को बधाई भेजी और सरकार को मान्यता दी जिसमें जापान, इटली जर्मन थाईलैंड वर्मा जो कि ये वर्तमान में अनुमान आदि मुख्य झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस पर रानी झांसी रेजिमेंट का उद्घाटन करते हुए प्रधान सेनापति श्री सुभाष चंद्र बोस ने अपने ओजस्वी भाषण के अंतर्गत कहा यदि झांसी की स्वतंत्रता की लडाई में भारत ने एक लक्ष्मीबाई पैदा की थी तो आज भारत की स्वाधीनता की लडाई में अडतीस करोड भारतीयों को मुक्त कराने के लिए भारत में हजारों झांसी की रानी का उत्पन्न किया है और करेगा नेताजी की ओजस्वी वक्तव्य । शंकर विरांगनाओं की नस नस में बिजली का संचार हुआ, रग रग से क्रांति की चिंगारियां निकलने लगी । सभी ने महसूस किया भारत आजाद होगा और आवश्यक होगा इस उत्सव की दूसरे ही दिन आजाद हिंद सरकार ने अपने रेडियो स्टेशन से ब्रिटिश और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करती हैं । सारी दुनिया ने आश्चर्य के साथ स्वतंत्र भारत की इस घोषणा कुछ ना इस घोषणा के साथ ही सुभाष अपनी सेना को खोज करने के लिए तैयार करने लगे । इस बीच टोकियों में बृहत्तर एशिया के देशों के प्रतिनिधियों की कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें वर्मा के प्रधान डॉक्टर बामाने भारत के स्वाधीनता संग्राम में हर तरह का सहयोग देने का प्रस्ताव किया जो सर्वसम्मिति से पास हो गया । इसी अवसर पर जनरल तो उन्होंने जापान सरकार की ओर से अस्सी आई हिंद सरकार को अंडमान और निकोबार नामक टापू सौंपने की घोषणा की । सुभाष ने अंडमान और निकोबार टापू का नाम बदलकर क्रमशः शहीद और स्वराज टापू रखने की घोषणा की और इन द्वीपों के शासन के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल चैट जी को अपने स्टाफ के साथ भेज दिया । पोर्ट ब्लेयर पर राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया गया । जब सुभाष ने अपनी तैयारी पर्याप्त कर ली तो उन्होंने अपनी फौज का प्रधान कार्यालय सिंगापुर से हटा रंगून ले जाने का निर्णय किया । सारी सेना सिंगापुर से चैंपियन तक ट्रेन पर फिर वहाँ से मेरे गो तक स्टीमर में और मेरे घूसे मोल मीन तक पैदल सफर कर रंगून पहुंची । सेना में अपूर्व उत्साह था । आजाद हिंद फौज में सभी जातियों, धर्म और विचारों के लोग थे । चाहे हिन्दू मुसलमान से क्या एंग्लो इंडियन अर्थात किसी भी समुदाय के रहे हो । ये सभी देश भक्त थे । सुभाष की आश्चर्यजनक संगठन शक्ति को देखकर समस्त संसार तंग था । उन्होंने सेना को चार ब्रिकेट ओ सुभाष गांधी नहीं हूँ और आजाद ब्रिगेड में बता, जिनका नेतृत्व अलग अलग सेनापतियों के हाथ में था और जिनकी कार्यप्रणाली में अंतर रखा गया था । युद्ध प्रारम्भ करने के पूर्व सुभाष ने लेफ्टिनेंट गवर्नर ए । सी चाट जी को शाहिद टापू से वापस बुलाकर एक ब्रिगेड उनके कमान में दी और उनके स्थान पर एडी लोकनाथ को शहीद बसवराज टापू का चीफ कमिश्नर बनाकर भेज दिया । नेताजी ने अपने बहादुर सिपाहियों का दृढसंकल्प और पूर्वा देश भक्ति देखकर उन्हें अराकान के मोर्चे पर भेज दिया और चार जनवरी उन्नीस को आजाद हिंद फौज ने अराकान क्षेत्र पर सशस्त्र आक्रमण कर दिया । आजाद हिंद फौज के हेडक्वॉर्टर्स की ओर से मेजर पी । के । सहगल ने आदेश जारी किया, जिसमें सब यूनिट कमांडरों से अपनी फौजी टुकडियों की परेड का इंतजाम करने के लिए और अराकान मोर्चे संबंधी बातें बनाने के लिए कहा गया था । प्रधान सेनापति सुभाष का आदेश इस प्रकार था संसार की टकटकी अराकान के मोर्चे पर लगी हुई है । मुझे विश्वास है कि अराकान के मोर्चे पर हमारे साथियों के वीरतापूर्ण कार्य, आजाद हिंद फौज के बाकी अब सरोवर सिपाहियों का उत्साह बढाएंगे । मध्यम से जिसका इंतजार था वह दिल्ली की कुछ शुरू हो गई और पक्के इरादे से कूद जारी रखेंगे । साथ ही हूँ भारत की मुक्तिवाहिनी के अफसरों और सैनिकों । आपके दिल में एक ही निश्चय होना चाहिए आजादी क्या मौत और आपकी जुबान पर एक ही नारा हूँ दिल्ली चले दिल्ली का रास्ता आजादी का मार्ग है । विजय निश्चय ही हमारी होगी । इन्कलाब जिंदाबाद, आजाद हिंद जिंदाबाद । नेता जी का ये संदेश हर एक सैनिक को सुना दिया गया । इस प्रकार में हर सिपाही में अटूट विश्वास भरते रहते थे । आजाद हिंद फौज के साथ जापानी भी लडते थे किंतु दोनों फौजों का प्रबंध स्वतंत्र था । आजाद हिंद फौज बिना लारी टू के पैदल ही आगे बढती रही । झांसी रानी रेजिमेंट कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मीबाई सहगल के नेतृत्व में घायलों की तीमारदारी का काम कर रही थी किंतु उन सबके दिल युद्ध में भाग लेने के लिए लग रहे थे । नंबर दो और तीन बटालियन काले वाममोर्चे के लिए पूछ करके इसी समय आराकान विजय का समाचार मिला । नेताजी ने इस संबंध में अपनी प्रसन्नता प्रकट की और आगे बढते रहने का संदेश भेजना । तीसरी बटालियन की दो कंपनियां फॅमिली सीफ्लोर को रवाना कर दी गई । राम सेवन पांच सौ सिपाही को लेकर फ्लोर के लिए रवाना हो गया । मेजर फुलवाडा नहीं स्टेडियम को घेर लिया । उनके सैनिक बडी वीरता से लडे और अंग्रेजों के छक्के छूट गए । डंपर अधिकार हो गया । कर्नल शाहनवाज नंबर तीन बटालियन की सहायता करने के लिए टेडिम भेजे जाने वाले थे । हिन्दू शुभ समाचार पाकर योजना स्थगित कर दी गई । इसी बीच दो सौ सिपाही भाग गए जिन्हें पकडने के लिए राम सिंह और सिकंदर को आदेश दिया था करना शाहनवाज खान अपनी फौज के साथ कोहिमा में घुस गए । भीषण गोलाबारी के बीच उनकी सेना दुश्मन से लडकी हुई आगे बढती गई लडाई भयंकर रूप से हो रही थी और तीव्र गति से आजाद हिंद फौज प्रगति करती बढती जा रही रणबांकुरे अपनी जान की बाजी लगाकर भारत की ओर बढते जा रहे थे । वे अपना खून बहाकर भी देश को आजाद कराना चाहते थे । कर्नल शाहनवाज के नेतृत्व में फौज ने कोहिमा पर अधिकार कर लिया । नेताजी समाचार पाक ऋण भूमि का निरीक्षण करने के लिए गए और कर्नल शाहनवाज को बधाई दी । इसी समय जापानियों के अभद्र व्यवहार का समाचार मेजर ठाकुर सिंह से पाकर शाहनवाज पालन से हट आ गया । पानी बरसने के कारण रात भर ताओ नदी के किनारे रुके रहे । क्लब क्लब की पोस्ट का निरीक्षण कर उन्होंने किम बारी से साफ साफ बातचीत की । दीपक, जंगजू और आवल की कॉन्फ्रेंस बुलाकर सबको विभिन्न आदेश दिया । अलग अलग पर दुश्मन ने गोलीबारी शुरू कर दी थी तो लेफ्टिनेंट ले हम सिंह की फौज से दुश्मन को मुंह की खानी पर उसने नहीं गर्म तक दुश्मन का पीछा किया जिसमें तीन चीनी मारे गए और तीन पकड लिए गए । नंबर वन डिवीजन के कमांडर मेजर एमजेड की आनी थी और आजाद क्षेत्रों का शासन भी उनके अधीन था । इसी समय जब गांधी ब्रिगेड काली वह युद्ध कर रही थी तो नेहरू, ब्रिगेट और आजाद ब्रिगेड उनकी सहायता के लिए चल पडी । गांधी ब्रिगेड की नंबर दो गुरिल्ला रेजिमेंट पाल एल और तामू इलाके में युद्ध करने के लिए भेज दी गई और इसी समय सुभाष ब्रिगेट की एक बटालियन को कलादान सत्यकाम युद्ध करने के लिए भेज दिया गया । इस बटालियन के साथ जापानी सैनिकों के भी कई दस्ते थे जो पश्चिम में अफ्रीका नो की वृद्धि लड चुके थे । इस युद्ध में काफी छती हुई । झांसी रानी रेजिमेंट की वीरांगनाएं युद्ध करने के लिए लाइट थी अच्छा उन्होंने अपनी इच्छा पत्र के द्वारा नेता जी के पास पहुंचाई नेताजी ने रानी झांसी रेजिमेंट की दो कंपनियों को युद्ध क्षेत्र में जाने का हुक्म दे दिया । साथ ही उन्हें ये भी आगाह कर दिया कि युद्धक्षेत्र व्यवस्था संगीन हैं । जंगली युद्धक्षेत्र पहाडी और पतले दर्रों से भरपूर था । वो जान, कपडे और अस्त्रशस्त्र की कमी थी । इंदूर विरांगनाओं ने इस बात की जरा भी चिंता ना की और दुश्मन पर धावा बोलने के लिए तीन बजे रात को रवाना हो गई । उन लोगों को चुपचाप आगे बढने का बना मीलो चलने के बाद एक पहाडी पर उन्होंने अपनी पोजिशन । उनसे ब्रिटिश फौज की दूरी एक नहीं थी । दुश्मन को इस बात की जरा भी आशंका ना थी । वो तेजी के साथ बडी जा रही थी । जब थोडी दूरी रह गई तो उन्हें फायर करने का आदेश मिला । अद्भुत जोश था, विरांगनाओं का फुर्ती से फायर कर रही थी । जैसे नारे के साथ टूट पडी दुश्मनों पर कौन घायल हो रहा है, कौन मार रहा है? इन बातों की चिंता किए बिना आगे बढती गई और अंत में अपनी बहादुरी से उन्होंने दुश्मन पर विजय प्राप्त अंग्रेजों ने जहाँ लिया कि भारत की पुरुष ही नहीं ललनाएं भी अपना जौहर दिखाने में सारे संसार में आगे है । उधर करना शाहनवाज की डिवीजन को इंफाल के मोर्चे पर भेज दिया गया । अन्य कमांडरों को कालांतर पर हमला करने का आदेश मिला । तीन नंबर बटालियन को उधर जाने का मामला इस समय तक मोरे से पालेम तक का पंद्रह सौ वर्ग मील का भूभाग आजाद हिंद के कब्जे में आ चुका था । पाल एल पर अधिकार करने के पश्चात जापानी फौज इंफाल तक पहुंच गई थी । गांधी ब्रिगेड की पांच कंपनियां एस । एस । वह इमा के नेतृत्व में आगे मौजे पर लड रही थी । तीन कंपनियाँ रसद आदि पहुंचा दी थी । एक कंपनी महत्वपूर्ण घाटियों पर पहरा दे रही । कोहिमा और मणिपुर पर घमासान युद्ध के पश्चात विजय मिल चुकी काल अंदर एक दिन पाल एल और कोहिमा से फौजी आगे बढी और दूसरे दिन इंफाल पर अपना राष्ट्रीय झंडा कार दिया । स्वतंत्रता के वीर सैनिक खास खास खाकर खूब कोई रहकर अंग्रेजी सेनाओं का जीतोड मुकाबला कर रहे थे । कई बार उन्होंने अंग्रेजी सेना को पीछे खदेड दिया था । हिंदू साधनों और वायुसेना के अभाव में आजाद हिंद फौज को पीछे हटने को विवश होना पडा । आजाद हिंद बैंक बराबर अधिकार हो जाने के पश्चात सुभाष ने आजाद हिंद बैंक की स्थापना कि रंगून के एक मुस्लिम सज्जन ने अकेले तीस लाख रुपये दिए । सुभाष ने वर्मा रजिस्ट्रेशन कानून के अनुसार बैंक की रजिस्ट्री कराई । बैंक के चेकों का मान चालू सरकारी नोटों के बराबर था । व्यवसायी उन्हें खुशी से स्वीकार करते थे और जापानी नोटों से अधिक पसंद करते थे । जनता का समर्थन प्राप्त होने से बैंक की साख जम गई और कुछ ही दिनों में इस की तीन शाखाएं खुल गई । आजाद हिंद के सारे खजाने बैंक में जमा रहते थे । अस्थि आई हिंद सरकार ने भारतीयों पर कर लगाया कर वसूल करने का ढंग था कि पहले प्रमुख व्यापारियों की एक समिति गठित हुई । ये सभी व्यक्तियों की पूंजी निर्धारित कर उसका दसवां हिस्सा कर के रूप में वसूल करती थी । समिति यह निश्चय कर दी थी कि कितनी किस्तों में रकम चुकाई जाएगी । ये कर केवल भारतीयों से ही वसूल किया जाता था । उस समय तक वर्मा से आठ करोड रुपये मिल चुके थे जिनमें से साढे तीन करोड का सामान फौज के लिए भेज दिया गया और बाकी धनराशि बैंक में जमा कर दी गई थी । सुभाष ने सिंगापुर में अपना स्वतंत्र प्रेस खरीद लिया जिसका मुख्यपत्र आजाद था । प्रतिदिन इसके दो संस्करण निकलते थे । एक अंग्रेजी और दूसरा हिंदी जो रोमन लिपि में सरल हिंदी में छपता था । कभी कभी मद्रास और आंध्र प्रदेश के लिए तमिल संस्करण भी निकलता था । नेताजी ने सरल हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया था । यद्यपि उसके लिए भी रोमन थी । अखबार में मोटे अक्षरों में आजाद हिंद और उसके ऊपर तीन शब्द रहते थे एकता, यूनिटी, विश्वास, फिट, बलिदान, सैक्रिफाइस और नीचे लिखा रहता था । भारतीय स्वतंत्रता संघ का मुखपत्र और दिन ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस लीग हैड क्वाटर्स अपने संपादकीय आज और कल के कालम में एक बार संपादक ने लिखा था जय हिंद, कैसी शानदार सलामी है, हमारे रोंगटे खडे हो जाते हैं हमारा दिल धडकने लगता है जय हिंद, हिंदुस्तान की जय हो, चालीस करोड भूखी और लगी आत्माओं की जय हो सभ्यता की मशाल जलाने वाले उस महान राष्ट्र की जय हो, उस भारत की जय हो जिसके संतों ने सादा शांति का उपदेश दिया है । करोडो पददलित ओके उस राष्ट्र की जय हो जिस पर मुठ्ठी भर विदेशी शासन कर रही हैं । वे विदेशी जो तब गुफाओं में रहते थे जब हम अपनी उन्नति के शिखर पर थे । प्रयाण गीत अहा! अराकान के आह्वान पर सुभाष ने अपने सिपाहियों को संबोधित कर कहा था दूर बहुत दूर है । इस नदी वन जंगलों के हरे भूभाग के शैल शिखर और नदी झरनों के उस पार हमारा देश है । उसी में हम जन्मे थे और उसी में फिर जा रहे हैं । सुनो भारत हमें पुकार रहा है भारत की राजधानी दिल्ली हमें पुकार रही है । अडतीस करोड नब्बे लाख देशवासी हमें पुकार रही है, हमारी माता है और स्वजन हमें पुकार रही है । कुछ तो समय नष्ट नहीं करना है । हथियार उठालो पूरे हो तुम्हारे सामने पद खुला पडा है, हम उसी पद से आगे बढेंगे । शत्रुसेना को चीरकर हम अपना रास्ता बना लेंगे । भगवान की इच्छा होगी तो हम रण क्षेत्र में शहीद हो जाएंगे । किंतु जिस पद से हमारी सेना दिल्ली की ओर बढेगी, मृत्युशैया ग्रहण करने से पूर्व एक बार उस पद को छू मिलेंगे । दिल्ली का पद स्वाधीनता का पद हैं दिल्ली चलो और आजाद हिंद फौज का प्रयाण गीत गूंज था कदम कदम बढाए जा खुशी के गीत है या ये जिंदगी है तो माँ की दुकान पे लुटाए जा तू शेर हिंदी आगे बढ मरने से तू कभी ॅ तलक उठा के सर जोशे वतन बढाए जा हिम्मत तेरी बढती रहे खुदा तेरी सुनता रहे जो हमने तेरे अडे तू का काम नहीं मिला चलो दिल्ली पुकार की कमी हमेशा संभाल के लाल किले ॅ जहाँ पहरा आए जा
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