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जन धन की मांग आजाद हिंद फौज का संगठन करने के साथ ही उसकी व्यवस्था और संबंधित आवश्यकताओं पर सुभाष ने गंभीरतापूर्वक विचार किया । वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे । सैनिक संगठन के लिए उन्हें जनता से आर्थिक सहयोग और उसकी सहानुभूति प्राप्त करना आवश्यक है । इस विचार को दृष्टिपत्र में रखते हुए सिंगापुर की एक विराट सभा में उन्होंने अपना आशय स्पष्ट किया । बहनों और भाइयों, सबसे पहले ही सपा, जो उसके साथ आप ने मेरा स्वागत किया, उसके लिए मैं आपको हृदय से धन्यवाद देता हूँ । विशेष रूप से हमारी बहनें धन्यवाद की पात्र है, विशाल संख्या में उपस्थित हुई है । हमारे देश वासियों को अपने देश में जिस मदद की आवश्यकता है, वह दो तरह की है नैतिक और भौतिक । प्रथम तो हमें विश्वास होना चाहिए कि अंततोगत्वा विजय हमारी होगी । मेरी योजनानुसार यह कदापि आवश्यक नहीं है कि हम दूरी शक्तियों के झुकाव के बारे में परेशान हो । यदि भारत के अंदर और बाहर रहने वाले भारतीय ही सिर्फ अपने कर्तव्य का पालन करे तो यह सर्वथा संभव है कि हम लोग अंग्रेजों को भारत से निकाल दे और अपनी अडतीस करोड देशवासियों को स्वतंत्रता प्रदान करें । अपस्थित संपूर्ण जनसमूह से मैं तीन लाख सैनिक और तीन करोड अर्थात तीस लाख डॉलर देने की आशा करता हूँ । मैं बहादुर भारतीय नारियों की एक यूनिट बनाना चाहता हूँ जब मृत्यु से जूझने वाली रजिमेंट होगी और वह तलवार उठाएगी और वहाँ वो तलवार उठाएगी । जॉॅब के स्वतंत्रता संग्राम वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उठाई थी दोस्तों हम लोग बहुत दिनों से यूरोप में दूसरे मोर्चे की बात सुन रही है कि दो हमारे देशवासी अपने देश में बुरी तरह से दबे हुए है और भी दूसरे मोर्चे की मांग कर रहे हैं । आप पूर्वी एशिया में अपना पूर्ण सहयोग दीजिए और मैं आपको दूसरा मोर्चा भारतीय संग्राम का वास्तविक दूसरा मोर्चा देने का वायदा करता हूँ । सुभाष का ये ओजस्वी भाषण सुनकर समस्त भारतीयों के रग रग में जीतना जाती थी और वे अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए आतुर होते थे । बडे बडे व्यापारियों ने लाखों रूपये सुभाष के चरणों में चढा दिए । इसके दो तीन दिन पश्चात ही एक अन्य सार्वजनिक सभा आयोजित हुई । इस सभा में उपस्थित होने के लिए और अपने प्रिय नेता जी का दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में पुरुष ही नहीं ऑस्ट्रिया भी दूर दूर से आकर सम्मिलित हुई । सभा स्थल ठसाठस भरा हुआ था । जिस समय नेताजी ने मंच पर पदार्पण किया । इन्कलाब जिंदाबाद के नारों और करते ध्वनि से जनसमूह ने उनका भव्य स्वागत किया । जय हिंद । अपार भीड को संबोधित करते हुए नेताजी ने अपने सारगर्भित भाषण में कहा, मैं कह सकता हूँ कि ईश्वर की असीम अनुकंपा से इकाई के अवसर आ गया है । यदि इस अवसर पर उठ खडे होते हैं और हर तरह का त्याग और बलिदान करने के लिए तैयार हो जाते हैं तो हमेशा के लिए राष्ट्रीय गौरव प्राप्त कर लेंगे । हमें स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मूल्य चुकाना हैं । स्वतंत्रता का मूल्य हैं त्याग और संघर्ष । यहाँ पूर्वी एशिया में हमारे तीन लाख भारतीय है और मुझे जरा भी संदेह नहीं है कि यदि हम अपने संपूर्ण साधनों को एकत्रित कर सके, मानवशक्ति, आर्थिक तथा अन्य साधना भी तो हम सब अपने देश से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड देखिए । नेताजी के ओजस्वी भाषण ने सभा में उपस्थित पुरुषों के साथ साथ महिलाओं को भी झकझोर कर रख दिया और उनमें भी त्याग और बलिदान का उत्साह हिलोरे मारने लगा । उन्होंने अपने गहने उतारकर नेता जी को अर्पित कर दिया । जनता ने उनकी धन जन की मांग को अपनी संपूर्ण शक्ति और क्षमता से पूरा किया । लोगों में नेताजी को पहनाई मालाओं को नीलामी में खरीदने की होड लग गई और देखते ही देखते करोडों रुपये और लाखों व्यक्ति नेताजी के संगठन में सहयोगी हो गए ।
Sound Engineer
Voice Artist