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विदेशों में सक्रिय सुभाष की समुद्री यात्रा सकुशल समाप्त हुई । विवेन इसमें कुछ दिन रहने के बाद वियना के लिए रवाना हुए जहाँ पर वे मैसेज मूलर की मेहमान रहे । मैसेज मूला प्रसिद्ध ऑस्ट्रियन लेखक मिस्टर आरएफ मूल्य की धर्मपत्नी थी । इस परिवार में सुभाष कई महीनों तक रहे और उनकी परेशानियां बडी आत्मीयता के साथ होती रही । यहीं पर सुभाष ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक इंडियन स्ट्रगल का लेखन कार्यारंभ क्या व्यवस्तता के कारण में स्वयं लिख पाने में असमर्थ थे इसलिए मैसेज मूलर ने स्थिति को समझते हुए एक महिला तीनों की व्यवस्था कर दी । उसका नाम कुमारी ऍम था । सुभाष उसकी कार्यकुशलता और विद्वता से बहुत प्रभावित हुए और एम । एल । के प्रयास से उनकी पुस्तक का लेखन, अत्यधिक सुंदरता और सफलता के साथ संबंध हुआ । वियना से सुभाष ने पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए स्विट्जरलैंड को प्रस्तान क्या अस्वस्थता की स्थिति में भी वे शांत नहीं बैठे । उन्होंने यूरोप के विभिन्न देशों में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए । रूम में पूर्वी विद्यार्थी कॉन्फ्रेंस संपन्न हुई जिसमें प्रायः सभी एशियाई देशों के छात्र सम्मलित हुए । सुभाष इस सम्मेलन में सर्वसम्मति से सभापति चुने गए और महत्वपूर्ण भाषण दिए । विद्यार्थी आंदोलन पर बोलते हुए उन्होंने कहा, भारतीय विद्यार्थी आंदोलन का संबंध राष्ट्रीय आंदोलन से हैं । इटली तथा जर्मनी के विद्यार्थी आंदोलन को देखकर भारतीय विद्यार्थियों को भी अपना संगठन सदृढ करना चाहिए । रूम के बाद सुभाष ने पॉलैंड को प्रस्थान क्या जहाँ पर उनकी भेंट अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों से हुई । स्वतंत्र पॉलैंड निवासियों ने भारत के आंदोलन के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की । उसके बाद उन्होंने वहाँ की कई ग्रामीण स्कूल देखे जहाँ वैज्ञानिक प्रणाली से शिक्षा दी जाती थी । वार्ता में सुभाष ने देखा कि वहां के निवासी भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बडे प्रेमी हैं । उन्होंने ओरियंटल सोसाइटी के समक्ष अपना वक्तव्य भी दिया । वहीं पर उनकी भीड प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान स्टानिस्लास से हुई । जनवासे उन्होंने दक्षिण फ्रांस की और प्रस्थान किया जहां की जलवायु से उनके स्वास्थ्य में काफी संतोषजनक सुधार हुआ । वहाँ से वे पुनः मिलन और रूम की ओर चले गए जहाँ पर उन्होंने एक विराट सभा में भारत और इटली के संबंधों पर भाषण दिया । लौटकर जने वहाँ आने तक उनकी पेट का दर्द काफी कम हो गया । चेकोस्लोवाकिया में कल सुबह अधिक प्रसिद्ध स्थान है । यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है । इसकी सुरंग में पहाडियों और झरनों को देखकर उदास से उदास चेहरे पर आनंद की लहर दौड जाती है । कहा जाता है । तीन झरनों के तब तक और रोगनाशक जल में स्नान करने से मनुष्य को व्याधि मुक्ति मिल जाती है । सुभाष भी जल चिकित्सा के लिए यहाँ इन्हीं चरणों की स्मृति स्वरूप उन्होंने एक बार कहा मैं बडी आशा स्वराज्य के सुनहरे दिन को देख रहा हूँ, जब विदेशी स्वास्थ्यप्रद जलप्रपातों की शरण लेने के लिए हमें यूरोप जाने की आवश्यकता नहीं होगी और भारत के जलप्रपातों को हम अपना लेंगे । जिनेवा में भारतीय विशेष तृतीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें विश्व के प्रायः सभी प्रमुख देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया । इस कॉन्फ्रेंस में सुभाष का वक्तव्य अत्यंत प्रभावशाली रहा । सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, भारत की वर्तमान दशा को समझने के पूर्व ये जानना आवश्यक है कि भारत में कैसा कठोर दमन हुआ है । जो जेल से छूटे गए हैं, वे भी बंदी ही है । लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम पराजित होकर बैठे हैं । जब तक जनता मालिक और मानवीय अधिकारों से वंचित रहेगी और वह दूसरों के शोषण का साधन बनी रहेगी, तब तक अशांति दूर नहीं हो सकती । हिंदुस्तान की समस्या केवल राष्ट्रीय समस्या नहीं है, वो सारी दुनिया की समस्या है । भारत में ब्रिटिश राज ब्रिटिश साम्राज्यवाद का आधार है, और बडे साम्राज्यवाद की नींव पर विश्व साम्राज्यवाद स्थित है । इसलिए हिंदुस्तान की मुक्ति के लिए प्रयत्न करना संसार की स्वतंत्रता के लिए प्रयुक्त करना है । ऑस्ट्रिया में रहते हुए सुभाष ने वहाँ की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति का गंभीर अध्ययन किया था । उन्होंने वहाँ से संबंधित अनेक समस्याओं पर भारतीय पत्रों में प्रकाश डाला । वे जब वियना में थे, वहाँ के अनेक गणमान्य व्यक्ति उनकी कार्यक्षमता और व्यक्तित्व से प्रभावित हुए हैं । वियना के प्रसिद्ध पत्र ने उनके संबंध में कूज पूर्ण और प्रशंसात्मक विज्ञप्ति प्रकाशित की । कलकत्ता के भूतपूर्व मेयर वियना में आजकल एक प्रतिष्ठित भारतीय थी । वियना के एक मकान के कमरे में ठहरा हुआ है । रहन सहन में वह यूरोपियन दिखता है, लेकिन विचार, धर्म और संस्कृति से वह हिंदू है । ये अपने देश के स्वाधीनता संग्राम का महान योद्धा है । व्यक्तित्व और विद्या में वहाँ प्रतीम हैं । विद्वता और ज्ञान में उस किसानी ही नहीं । वो सुभाष चंद्र बोस के नाम से प्रख्यात है । आपने यूरोप प्रवास में अस्वस्थ रहते हुए भी सुभाष कभी शांत नहीं बैठे । उनके तूफानी कार्यक्रम वहाँ भी चलते रहे । वे जहाँ भी गए, वहीं महत्व और सम्मान प्राप्त हुआ । जनता और जननायकों ने उन्हें हाथों हाथ लिया । अभी वे कुछ दिनों तक और भारतीय स्वतंत्रता की स्थिति को दृढ बनाने के लिए यूरोप के विभिन्न देशों का भ्रमण करते हैं । किन्तु तभी अचानक उन्हें पिता की गंभीर बीमारी का तार मिला । सूचना पार्टी ही सुभाष को छडों तक सब रहे गए, फिर तत्काल ही स्वदेश वापस आने का निश्चय किया । कराची एयरपोर्ट पर सुभाष के सामान की जबरदस्त तलाशी ली गई और उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक इंडियन स्ट्रगल की प्रतिलिपि छीन ली गई । सौभाग्य से इस पुस्तक की एक प्रतिलिपि इंग्लैंड की विशाल कंपनी के पास थी जब बाद में मुद्रित हुई और जिसे अनेक देशी विदेशी विद्वानों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ कहाँ जो भी हवाई जहाज बम्बई दमदम हवाईअड्डे पर उतरा, नेताजी चिरंजीवी हो, नेता जी अमर रहे आदि की तमिलनाडु से हजार ऊॅट स्वर स्वागत आह्वान के लिए मुझे भारी संख्या में जनता नेता जी के स्वागत अभिनंदन के लिए हवाई अड्डे पर उपस् थित थी । पुलिस वहाँ से दो पुलिस अधिकारी उतरे और सुभाष को गाडी में बैठाकर घर की ओर ले भागे । आदर उत्सव जनता अपने लाडले नेता को भरा हो भी ना देख सकें । घर पहुंचते ही पुलिस अधिकारियों ने सुभाष के आगे एक सरकारी परवाना पेश कर दिया जिसमें लिखा गया था कि सुभाष आपने एल्गिन रोड के मकान के बाहर नहीं जाएंगे । परिवार वालों के अतिरिक्त किसी अन्य से बात नहीं करेंगे तथा कोई पत्रव्यवहार नहीं करेंगे और बाहर से आने वाली डाक को जांच कराने के बाद ही पढ सकेंगे । यदि उन्होंने इस में से किसी भी शर्त का उल्लंघन किया तो उन्हें सात साल की सजा और साथ में जुर्माना भी देना होगा । एक ओर पिता मृत्युशय्या पर अंतिम सांसे ले रहे थे, दूसरी और सुभाष के सिर पर सरकारी ऑर्डिनेंस की तलवार लटक रही थी । सरकार को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ और उसने ये भी आदेश जारी किया कि एक हफ्ते के भीतर पुनः यूरोप चले जाएं अन्यथा सरकार दूसरा रुख अपनाएंगी । सुभाष काहिर ऐसी अमानुषिक नीति पर शुद्ध हो उठा फिर भी बडी संतुलन से उन्होंने सरकार से एक माह की मोहलत मांगी । मृत्युशय्या पर अंतिम सांसे गिन रहे पिताश्री जानकीनाथ बोस शायद आपने इसी लाडले के दर्शनार्थ भी जीवित थे लेकिन जैसे ही सुभाष उनके निकट आए उसके कुछ दिनों बाद रायबहादुर जानकीनाथ के प्राण पखेरू उड गए । संपूर्ण भवन करोड रोधन से आप्लावित हो उठा और संभलते समझते भी सुभाष की आंखों से आंसू लग ही पडेगा ।
Sound Engineer
Voice Artist