Made with in India
निर्दोष अपराधी महाशक्ति का महापर्व संपन्न हो गया । स्वराज देवता निर्माण को प्राप्त हो गया किंतु सुभाष, मांडली, जीएलके, लाहौर सीन बच्चों में बंदी रहे लिंटन सरकार के दमन चक्र की परिक्रमा अब भी यथावत थी । धैर्य और संतुलन की एक सीमा होती है किंतु क्रूरता और अमानुषिकता जब निरंतर सीमा पर वजह घाट ही करती चली जाती है तब स्वाभाविक रूप से उस सीमा को अतिक्रमित हो जाना पडता है । निर्दोष अपराधी सुभाष जब इस आशा से पूर्णतः हताश हो गए कि उनकी निर्दोषिता का भास्कर सरकार उन्हें यात्रा मुक्त कर देगी, तब उनकी जो गलत आत्मा विद्रोह के लिए छटपटा थी । फरदर सुभाष ने अपने बीस साथियों सहित बंदीग्रह में आमरण अनशन आरंभ कर दिया । एक तो योगी भारतीय जनता अपने प्राणप्रिय नेता के अकारण बंदी बनाए जाने के कारण संतृप्त और विश्व थी । दूसरे सुभाष के आमरण अनशन की सूचना समग्र भारत को विद्रोह विफल कर दिया । उनके अनशन से सारा देश चिंतित था और सरकार की तीव्र आलोचना होने लगी । विभिन्न स्तरों पर हडताल ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारेबाजी और सुभाष को मुक्त करने के लिए सभाओं का आयोजन होने लगा । केंद्रीय फॅमिली में श्री गोस्वामी ने बडी उत्तेजना में कहा अनशन का कारण यही नहीं है कि बंदियों को दुर्गा पूजा की सुविधाएं नहीं दी गई बल्कि इस मांग के साथ उनकी दूसरी न्यायोजित मांग भी ठुकराई गई । श्री सुभाष चंद्र बोस तथा उनके साथियों का जीवन खतरे में है । यदि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो जाए तो सरकार भले ही संतोष की ठंडी सांस लेते हैं लेकिन बंगाल तथा संपूर्ण भारत की जो छती होगी उसे कौन पूरा करेगा । लाला लाजपत राय ने अत्यंत भावविह्वल स्वर में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा यदि श्री सुभाष चंद्र बोस जैसे चरित्रवान प्रतिभाशाली व्यक्ति को अनशन करने के लिए विवस होना पडा तो स्थिति कितनी भयंकर है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है । इस प्रस्ताव के तुरंत बाद ही श्री गोस्वामी और लाला लाजपत राय ने सुभाष को तार भेजकर अनशन समाप्त करने का आग्रह किया । इसी विषय स्थिति में श्रीनिवास शास्त्री का वक्तव्य भी प्रकाशित हुआ । सुभाष बाबू की दिया की प्रशंसा करना सूरज को दीपक दिखाना है । मुझे उनकी त्याग की गाथा साहसपूर्ण तथा कल्याणकारी काफी की तरह मालूम पडती है । चाहे हम विभिन्न राजनीतिक विचार रखते हो लेकिन जहाँ नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा का प्रश्न उठता है, वहां हम सब की एक ही आवाज है । अपने अनशन की ये क्रांतिकारी प्रतिक्रिया देखते हुए सुभाष तथा उनके साथियों ने अपना अनशन भंग कर दिया । जनता के अतिरिक्त विभिन्न समाचारपत्रों ने सुभाष की निरापराध गिरफ्तारी के संबंध में अपना विरोध प्रकट किया । स्टाॅल तथा ऍफ इंडिया इन्होंने इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए ये घोषणा की । सुभाष चंद्र बोस तमाम आतंकवादियां दोनों के संचालक रहे हैं किन्तु साथ ही स्टेज मैंने ये भी स्वीकार किया सुभाष चंद्र बोस को कभी न्यायालय के सामने खडा नहीं किया गया और न उनके अपराध ही बताए गए इंग्लिश मानता था क्या ऍफ इंडिया में न जाने किस विरोधी ने ये टिप्पणी कर डाली । स्वयं सुभाष बाबू के पिता ने अपने पुत्र को आतंकवादी स्वीकार किया है । इस विज्ञप्ति पर सुभाष की अंतरात्मा तिलमिला उठे और उन्होंने पिता के प्रति निराधार वक्तव्य का जोरदार खंडन किया । इतने कोहराम और उठा पटक के बाद भी सुभाष को जेल से रिहाई नहीं मिल सकी । उनकी शारीरिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी । उनके लिए उठना तक मुश्किल था । अंत में उनके भाई डॉक्टर सुनील चंद्र बोस एवं अन्य सरकारी मेडिकल ऑफिसरों ने जांच की और उनकी दशा सोचनीय बताई । परिणाम कहाँ मुस्लिमो बरली ने बंगाल सरकार की तरफ से ये प्रस्ताव पेश किया कि सुभाष को स्वास्थ्य लाभ करने के लिए स्विट्जरलैंड ले जाना चाहिए । ये प्रस्ताव न्यायसंगत था किंतु जब सुभाष का ध्यान इसके साथ जुडी हुई निर्मम शर्तों की ओर गया तो अस्वस्थता की स्थिति में भी उनकी बाहर पडी थी । इस प्रस्ताव के अंतर्गत कहा गया था सुभाष बाबू जी जहाँ यात्रा करें वो सीधा यूरोप हो जाए और वे कलकत्ता भगवान ने किसी बंदरगाह पर नहीं उतर सकेंगे । ये शहर किसी प्रकार थी जिस प्रकार की पिंजरे का द्वार खोल दिया जाए और उडते हुए पक्षी के चारों गिद्धों का पहला लगा दिया जाएगा । इस विज्ञप्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप सुभाष ने शुष्क मुस्कान के साथ कहा, ब्रिटिश सरकार का सदस्य रवैया रहा है कि वह एक हाथ से किस चीज को देने के लिए लुभाती है तो दूसरे हाथ से ले लेती है । क्रिमनल ऑॅल सरकार का एक ऐसा सुदर्शनचक्र था जब चाहा उसे छोड दिया और जब जहाँ अंगूठी की तरह अंगुली में पहन लिया । इसके मूल में सरकार की कुटील नीति काम कर रही थी । सुभाष यूरोप चले जाए ऍफ को मार कैंडी ऋषि की भारतीय चिरंजीवी बना दिया जाए । जनता भले ही इस को टीम नीति के अंदर नहीं दुर्भावों को न समझती रही हो किंतु क्रांतिवीर सुभाष भली भांति समझते थे । जब मुक्ति आंदोलन के सारे प्रयास विफल हो गए । तब सुभाष ने अपने बडे भाई सर चंद्र बोस के नाम एक मार्मिक एवं सारगर्भित पत्र लिखकर संपूर्ण स्थिति स्पष्ट की । फॅमिली चार अप्रैल उन्नीस सौ सत्ताइस प्रिया भाई साहब आप ये जानने को उत्सुक होंगे कि मैं माननीय मिस्टर मोबली की उदारता के विषय में क्या सोचता हूँ । आज वो समय आ गया जब मैं आपके समूह अपने हो गए खोल सकूँ मेहमान भी गृहसचिव के वक्तव्य को कई बार पढा जो निसंदेह है बडी चतुराई से निर्मित किया गया है । छोटे ज्यादा डॉक्टर सुनील चंद्र बोस इन्होंने मेरे बारे में जो रिपोर्ट दी है और जो सिफारिशें की है वे मुझसे पूछ कर नहीं कि अन्यथा में इस तरह की सिफारिश का कभी समर्थन नहीं करता । उन्हें ये भी ख्याल नहीं था की सरकार इन सिफारिशों को अपनी राजनीतिक पूंजी में परिणीत करेगी । इसके लिए ना तो मैं और न कोई और उन्हें दोस्ती सकता है । मुझे ऐसा जान पडता है कि सरकार छोटे ज्यादा की रोक विश्लेषण को स्वीकार नहीं करती क्योंकि माननीय मेंबर ने कहा था इस समय मिस्टर सुभाष चंद्र बोस बहुत सख्त बीमार नहीं है । ये जानने लायक बात होगी कि सरकार किस दिशा में मुझे सकते । बीमार समझेगी क्या जब मेरी व्यवस्था लाइलाज हो जाएगी अथवा मेरी मृत्यु की कुछ ही दिन शेष रह जाएंगे । छोटे ज्यादा की सिफारिश ये नहीं कहती कि मुझे घर ना जाने दिया जाए । सिफारिश में ये भी नहीं कहा गया है कि बंगाल क्राॅस की समाप्ति के लिए मुझे अपने देश को नहीं लौटना चाहिए । इन सब बातों से मुझे सरकार की नियत में विश्वास नहीं होता । बंगाल सरकार ये चाहती है कि मैं बंगाल क्रिमनल ऑॅफ के अंत तक विदेश में ही रहो । ये कानून जनवरी उन्नीस सौ तीस में होगा । लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि उसके बाद उसकी आयु नहीं बढाई जाएगी । ऍम, डीआईजी, आईजी सीआईडी के साथ मेरी जो अंतिम बातचीत हुई थी, उससे मेरे कथन की पुष्टि होती है । मुझे इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि यदि उन्नीस सौ पच्चीस का बंगाल क्राॅस उनतीस में सदा के लिए कानूनी किताब में शुमार कर लिया जाए । इस दशा में मैं जीवन भर के लिए अपने देश से निर्वासित हो जाऊंगा । ऐसा करना तो स्वयं अपने लिए ही एक ऑर्डिनेंस बनाना होगा । यदि सरकार की मंशा बिल्कुल सच्ची होती तो वह मुझे सूचित कर देती की किस तारीख तक मुझे विदेशों में रहना चाहिए । मुझे भली भांति विदित है कि स्विट्जरलैंड में ब्रिटिश जासूसों के अतिरिक्त इटालियन, फ्रेंच, जर्मन था । हिंदुस्तानी जासूस अंग्रेज सरकार की नौकरी में नियुक्त रहते हैं जो विरोधियों और राजनीतिक संदिग्ध व्यक्तियों का छाया की तरह पीछा करते हैं । मुझे अपनी जन्मभूमि से स्वेच्छापूर्वक निर्वासित होने की चाह नहीं है । अतएव मेरी इच्छा है कि सरकार इस दृष्टिकोण से विचार करें । जब मैंने ये पढा की मुझे ये शर्त देनी है कि मैं हिंदुस्तान वर्मा और लंका को नहीं लौटूंगा । तब बार बार मैंने अपनी आंखें, मालिक और मन में कहा क्या में ब्रिटिश सरकार के अस्तित्व के लिए इतना खतरनाक हूँ कि केवल बंगाल प्रांत से मेरा निर्वाचन काफी नहीं है । यदि ऐसा नहीं है तो क्या ब्रिटिश सरकार ने एक भानुमति का पिटारा खडा किया है? मैं नहीं समझता कि बंगाल सरकार के सिवा अन्य प्रांतीय सरकारों अथवा भारतीय सरकार को मेरे खिलाफ कोई शिकायत है । सरकार को यह भली प्रकार विदित है कि मैं लगभग ढाई वर्ष से घर से दूर रहा हूँ और इस बीच में अपने माता पिता तथा कई रिश्तेदार उसे ना मिल सका । अब यदि में यूरोप को जाओ तो कम से कम ढाई तीन साल लगेंगे, जिस बीच मुझे भेंट करने का कोई अवसर नहीं मिल सकता । ये मेरे लिए कठोर है ही, लेकिन मुझे प्यार करते हैं । उनके लिए तो ये और भी कठोर है । एक पांच चाहती व्यक्ति के लिए यह समझना मुश्किल है कि पूर्व के लोग अपने सगे संबंधियों से कितना मोह रखते हैं । सरकार ये बिल्कुल भूल गई है कि उसने मुझे ढाई वर्षों तक कितनी तकलीफ हो में डाला है । देखी मैं हूँ ना कि वो इतने समय से अकारण ही उसने मुझे बंद कर रखा है । मुझे केवल ये कहा गया है कि मैं अस्त्र शस्त्रों को संगठित करने, विस्फोटों को बनाने तथा पुलिस अफसरों को मारने का दोषी हूँ । भला ऐसी दशा में अगर ऐसे ही निराधार दोष सर एडवर्ड मार्शल हालिया सर जॉन साइमन के ऊपर मंडे जाते तो वे भी स्वयं को नर अपराधी कहने के अतिरिक्त और क्या सबूत दे सकते थे? यदि सरकार और किसी नैतिक उत्तरदायित्व को अपने स्तर पर लेने के लिए तैयार नहीं है तो उसे कम से कम मुझे उसी शारीरिक अवस्था में मुक्त करना चाहिए जैसी अवस्था मेरी उन्नीस सौ चौबीस थी । यदि जेल में मेरा स्वास्थ्य खराब हुआ है तो सरकार को मुझे मुआवजा देना चाहिए । मेरा खर्च तब तक उसे बर्दाश्त करना चाहिए जब तक मेरा स्वास्थ्य पूर्ववत ना हो जाए यदि सरकार ने मुझे एक बार घर जाने दिया होता, मेरे यूरोपियन जीवन का खर्च अपने ऊपर ले लिया होता था । चंगे होने पर मुझे निष्कंटक रूप से घर लौटने के आगया दी होती तो इस उदारता में कुछ मानवीय होता । मुझे श्री देशबंधु की याद आ रही है । मुझे नवयुवक मुठा कहते थे क्योंकि मुझे उनको एक निराशा से दिखाई देती थी । एक दृष्टि से मैं निराशावादी हूँ क्योंकि मैं बुरे बुरे परिणाम की कल्पना करता हूँ । सरकार की सुधारता को अस्वीकार करने का भीषण से भीषण परिणाम सोचने का मैंने प्रयत्न किया है । लेकिन मैं ये विश्वास नहीं करता कि स्वदेश में आजीवन निर्वासन जीवन पर्यन्त जेल जीवन से श्रेयस्कर है । स्वतंत्रता का मूल्य खजाना प्राप्त करने से पहले हमें व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से अभी कितनी कुर्बानियां देनी है? ईश्वर को मैं धन्यवाद देता हूँ कि मुझे बडी शांति है और मैं प्रसन्नतापूर्वक किसी भी अग्नि परीक्षा का जिससे वो मुझे जाना चाहिए, सामना करने के लिए उद्यत होगा । मैं तो ये सोचता हूँ कि मैं भारत के विगत पापों का एक छोटे से रूप में प्रायश्चित कर रहा हूँ और इसी प्रायश्चित से मुझे आनंद मिल रहा है । यह सकती है कि हमारे विचार मार नहीं सकते । हमारे आदर्श राष्ट्र की स्मृति पटल सीमित नहीं सकते और भावी संतान उन चीज संचित स्वप्नों के अधिकारी होगी । बस यही विश्वास मुझे अग्नि परीक्षा में सदा विजयी बनाएगा । रुपया पत्रों, तार शीघ्र दीजिए आपका परम सनी सुभाष । इसके कुछ ही दिन बाद सुभाष की रिहाई के संबंध में एक सरकारी विज्ञप्ति प्रसारित हुई । श्री सुभाष चंद्र बोस की चिंताजनक व्यवस्था का समाचार पाकर ये उचित समझा गया था कि उन्हें अल्मोडा जेल भेज दिया जाएगा । केंद्र उनकी दूसरी डॉक्टरी परीक्षा से क्या हुआ की उनकी दशा अत्यंत गंभीर है । अच्छा अब बंगाल सरकार ने यह निर्णय किया है कि उन्हें रिहा कर दिया जाएगा, ताकि वे बिना किसी प्रतिबंध के जहाँ चाहे अपना इलाज करा सके । सुभाष के भाई श्री शरद चंद्र बोस को सुभाष की रिहाई से संबंधित जब ये तार मिला, वे तुरंत ही सुभाष को लेने के लिए मांडली जिला पहुंचे । सुभाष नहीं, हमें बोर हो कर कई छडों तक भाई की गले से चिपके रहे । शरद चंद्र संतप्त हृदय और शुभ दृष्टि से भाई के छह निकाय शरीर और कांतिहीन मुखाकृति को निहारते रहे गए । जेल से बाहर आते ही सुभाष ने देशवासियों के नाम संदेश प्रसारित करते हुए कहा क्योंकि अब मैं फिर अपने घर पहुंच गया हूँ । मैं समझता हूँ कि मेरा पहला कर्तव्य ये है कि मैं अपना कार्य फिर से आरंभ करने के लिए अपना स्वास्थ्य सुधार जेल में इतने दिनों रहने के कारण मुझे अपने सह बंदियों की आज रात दिन सताएगी । मैं आशा करता हूँ की मेरे देशवासी यही कामना करेंगे कि मैं शीघ्र स्वस्थ हो जाऊँ ताकि हम सब मिलकर दिलोजान से उस दिए की प्राप्ति के लिए लग जाए जो हमारे है ना मैं छुपा है उनके मुक्ति समाचार से संपूर्ण भारत में हर्ष और उत्साह की लहर दौड गई । स्थान स्थान पर मुक्ति सभाओं का आयोजन हुआ और लोकप्रिय नेता की स्वास्थ्य के लिए मंगलकामनाएं की गई । उन के दर्शनार्थ घर के समक्ष दर्शनार्थियों का मेला लग गया । केंद्र डॉक्टरों की विज्ञप्ति के अनुसार उस समय उनके विश्राम में किसी प्रकार का व्यवधान उनके स्वास्थ्य के लिए उचित था । इस सूचना पर दर्शन में फल जनता केवल गगनभेदी नारों से आपने हेडन आय का स्वागत अभिनंदन करती रही । दूर बहुत दूर तक जैसे कहा की प्रतिध्वनि गूंजती रही । नेताजी जिंदाबाद, नेताजी अमर रहे, नेताजी चिरंजीवी हो, इन्कलाब जिंदाबाद
Sound Engineer
Voice Artist