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Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 2 in  |  Audio book and podcasts

Ep 2: ग्रामोफोन पिन का रहस्य - Part 2

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ब्योमकेश बक्शी की रहस्यमयी कहानियाँ writer: सारदेंदु बंद्योपाध्याय Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma Script Writer : Sardendu Bandopadhyay
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कुछ दिन के अंतराल में ऐसे ही दो मौतें और हो गई । सारा शहर दहशत से सकते में आ गया । एक नागरिक यह समझ नहीं पा रहा था की वहाँ हत्यारे से अपने को कैसे सुरक्षित रखें । कहना न होगा कि ब्योमकेश भी गहन रूप से इस राय से पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था । गलत कार्य करने वालों को पकडना उसका व्यवसाय था और इस क्षेत्र में उसने पर्याप्त नाम भी अर्जित कर लिया था । वहाँ चाहे जितना जासूस शब्द से घृणा करता हूँ पर वहाँ अच्छी तरह से जानता था कि सभी तत्वों और उसके कार्यक्षेत्र को देखते हुए वह प्राइवेट डिटेक्टिव हुई है । इसलिए भी इस जघन्य हत्या कार्ड में उसके मस्तिष्क की समस्त क्षमताओं को हिला दिया था । हम दोनों सभी अपराध के घटनास्थलों पर जाते हैं और प्रत्येक घटनास्थल को सभी कोणों से जांचते । मैं कह नहीं सकता है की ब्योमकेश को इस जांच पडताल से कोई नया सुराग मिला या नहीं और यदि मिला भी हो तो उसने मुझसे इस बारे में कोई चर्चा नहीं की । लेकिन इतना जरूर था कि वहाँ अपने नोटबुक में बडी मुस्तैदी से छोटी छोटी जानकारी को दर्ज करता जा रहा था । संभव अपने मन के भीतर से उसे विश्वास था कि किसी दिन रहस्य की कोई टूटी डोर उसके हाथ लगी जाएगी । इसलिए आज जब टूटी डोर उसके हाथ के करीब आ गई तो मुझे ऐसा हो गया कि शांत चेहरे के बावजूद भीतर से वहाँ कितना उद्वेलित और अशांत है । विसर्जन कहने लगे, मैं आया था, क्योंकि मैंने आप के बारे में सुना था और अब देख रहा हूँ कि वहाँ सब गलत नहीं है । आश्चर्यजनक दक्षता जो आपने अभी दिखाई है, उसे देखकर मुझे लगता है कि आप ही है, जो मुझे बचा सकते हैं । पुलिस कुछ भी नहीं कर पाएगी, इसलिए मैं उसके पास गया ही नहीं । जरा देखिए, तो कम से कम पांच हत्याएं दिनदहाडे उनकी नाक के नीचे हो गई । क्या वे कुछ कर पाए और आज तो मैं भी जाने कैसे बच गया । उनकी आवाज लडखडाकर मध्यम हो गई और उनकी कनपटी पर पसीने की बूंदें चमक आई । ब्योमकेश ने उन्हें सांत्वना देकर शांत करते हुए कहा, मुझ पर विश्वास कीजिए । अच्छा हुआ कि आप पुलिस के बजाय मेरे पास चले आए । अगर कोई ऐसी को खोल सकता है तो यकीनन वहाँ पुलिस नहीं है । कृपा करके शुरू से सारी बात विस्तारपूर्वक बताई है । कोई भी बात छोडिये नहीं, क्योंकि मेरे लिए कोई भी जानकारी व्यर्थ नहीं होती । उन सज्जन ने सहज होकर कहना शुरू किया, मेरा नाम आशुतोष मित्र है । मैं नजदीक ही नए बूट ओला में रहता हूँ । अठारह साल की उम्र से ही मैं अपने व्यवसाय में लगा हुआ हूँ । मुझे कभी समय ही ना मिला कि मैं अपने परिवार या शादी वगैरह के बारे में सोचता हूँ । दूसरे मुझे बच्चों का भी कोई शौक नहीं । इसलिए मैं इन सब झंझटों से दूर ही रहा । मेरे शौक भी कुछ अलग ही है । कुछ चीजें बहुत अधिक पसंद है । कुछ से मुझे सख्त नफरत है और इसलिए मैं अकेला रहना पसंद करता हूँ । समय के साथ उम्र भी बीत गई । मैं अगली जनवरी को पचास वर्ष पूरे कर लूंगा । दो साल पहले मैंने अपने काम से अवकाश ले लिया । मेरे पास मेरी बचत का पैसा लगभग डेढ । एक लाख रुपया बैंक में जमा है, जिसका ब्याज मेरी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है । मुझे रहने के लिए भाडा भी नहीं देना पडता क्योंकि जिस घर में रहता हूँ, वहाँ मेरा है । मुझे केवल संगीत का शौक है । सब कुछ होते हुए मुझे जीवन से कोई शिकायत नहीं है । ब्योमकेश ने प्रश्न किया, लेकिन क्या आप के ऊपर कोई निर्भर भी है । आशुतोष ने अपना सिली लाकर कहा, नहीं, मेरा कोई भी संबंधी नहीं है और इसलिए मेरे ऊपर कोई बोझ नहीं है । एक निकला भांजा जरूर है जो पहले पैसा मांगने आया करता था, लेकिन वहाँ छोकरा, शराबी और जो आ रही है । इसलिए मैंने उसके घर में घुसने पर रोक लगा दी है । ब्योमकेश ने पूछा ये भाग्य आप कहाँ है? आशुतोष बडे संतोष के साथ बोले, आजकल वह जेल में है । उसे मारपीट करने और पुलिस से हाथापाई करने के जुर्म में दो महीने की कैद हुई है । अब जेल में है । अच्छा ठीक है । अब आगे कहिए । जो कह रहे थे, जब से वहाँ बेहुदा विनोद मेरा भांजा जेल गया है, तब से जीवन आराम से कट रहा था । मेरा कोई मित्र नहीं है और मैंने जानबूझ कर कभी किसी का नुकसान नहीं किया है । इसलिए मुझे नहीं लगता कि कोई मेरा दुश्मन भी होगा । लेकिन कल एक का एक मैं जैसे आसमान से गिरा । मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है । मैंने अखबारों में ग्रामोफोन की पेन के रहस्य के खबरों को पढा जरूर था, लेकिन मुझे उन पर विश्वास नहीं होता था । मुझे लगता था यह सब मनगढंत कहानियां है । लेकिन मैं गलत था । वह कैसे? कल शाम मैं रोजाना की तरह घूमने निकला । जोडासांको के पास एक संगीत संगोष्ठी है जहाँ मैं शाम का समय गुजारता हूँ और रात में नौ बजे के आस पास लौट ता हूँ । आम तौर पर मैं पैदल ही जाता हूँ क्योंकि मेरी उम्र में स्वास्थ्य के लिए यह फायदेमंद है । कल रात को लौटते समय जब मैं हरिसन रोड और ऍम स्ट्रीट चौराहे पर पहुंचा, उस समय वहाँ की घडी सवा नौ बजा रही थी । उस समय भी सडकों पर भीड काफी थी । मैं फुटपाथ पर कुछ समय के लिए रुका रहा । मैं चाहता था कि आने वाली दो राम तो भी निकल जाए । जब ट्रैफिक बिल्कुल साफ हो गया तो मैं सडक पार करने लगा । मैं सडक के बीच में पहुंचा ही था कि एक का एक मैंने अपने सीने पर झटका महसूस किया । जैसे किसी ने मेरे रहते हैं के ऊपर की हड्डियों के पास जहाँ में अपनी ब्रेस्ट पॉकेट में अपनी घडी रखता हूँ, कुछ ठोक दिया है । उसके साथ ही मुझे दर्द हुआ जैसे किसी ने रहने में काटा, घुसा दिया हो । मैं गिरते गिरते बचा । किसी तरह मैंने अपना संतुलन बनाए रखा और सडक पार कर गया । मुझे चक्कर आया और मैं समझ नहीं पाया कि यहाँ हुआ क्या । जब मैंने ब्रेस्ट पॉकेट में अपनी घडी निकालकर देखी तो वहाँ ठप हो गई थी । उसका शीर्षा पूरी तरह टूट गया था और और एक ग्रामोफोन दिन उसमें घुस गया था । आशा बाबू फिर पसीने से तरबतर हो गए । उन्होंने कांपते हाथों से अपनी बहू पर आए पसीने को पहुंचा और अपनी जेब से निकालकर एक डिब्बी दे दी और बोले यह रही हुआ घडी बी ओमकेश ने डिब्बी खोलकर घडी निकली । घडी गनमेटल की बनी थी । ऊपर का शीशा नदारत था । घडी में समय साढे नौ बजे का था और एक ग्रामोफोन का पिन घडी के बीचोंबीच गडा हुआ था । ब्योमकेश ने घडी को बडी बारीकी से कुछ देर देखा फिर उसे डिबिया में रखकर सामने मेज पर रख दिया और बोला, हाँ तो आप अपनी बात जारी रखी है । आशु बाबू बोले भगवान ही जानता है कि उसके बाद मैं कैसे घर पहुंचा । मैं तनाव और परेशानी में सारी रात सो नहीं पाया । यहाँ घडी मेरे लिए वरदान ही समझिए । अन्यथा तो अब तक अस्पताल में पोस्टमॉर्टम की टेबल पर मेरी लाश पडी होती । आशु बाबू के रोंगटे खडे हो गए । एक ही रात में मैंने अपने जीवन के दस वर्ष खो दिए हैं । ब्योमकेश बाबू पूरी रात मैं सोचता रहा हूँ कि मैं क्या करूं, किसके पास जाऊँ, अपने को कैसे बचा हूँ । दिन की पहली किरण के साथ ही मुझे आपका नाम सूझा । मैंने आप की अभूतपूर्व क्षमताओं के बारे में सुना था और इसलिए मैं पहले ही फुर्सत में आपके पास चला आया हूँ । मैं एक बंद टैक्सी में आया हूँ । पैदल चलने की मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि कहीं ब्योमकेश उठकर अशुतोष बाबू के पास गया और उनके कंधों पर हाथ रखकर बोला, आप आराम से रहिए । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपका अब कोई बाल बांका भी नहीं कर पाएगा । यह सही है कि कल आप बाल बाल बचे हैं, लेकिन आगे से यदि आप मेरी सलाह पर अमल करेंगे तो आपके जीवन को कोई खतरा नहीं रहेगा । आशा बाबू ने ब्योमकेश के हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा भी उनके इस बाबू कृपा करके मुझे इस दुर्गति से बचा लीजिए । मेरा जीवन बचा लीजिए । मैं आपको एक हजार रुपये का पुरस्कार दूंगा । ब्योमकेश मुस्कुराते हुए वापस अपनी कुर्सी पर बैठकर बोला, यह तो आपकी उदारता है । इस को मिलाकर कुल तीन हजार रुपये होते हैं क्योंकि दो हजार रुपए के इनाम की घोषणा सरकार कर चुकी है है कि नहीं । लेकिन ऐसा बाद में पहले मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दीजिए । कल जब आप पर हमला हुआ उस समय आपने कोई आवाज सुनी थी किस तरह की आवाज, कोई भी जैसे कार के टायर फटने की आवाज आशु बाबू ने निश्चयपूर्वक कहा नहीं । ब्योमकेश ने फिर पूछा कोई और आवाज ये ध्वनि जैसा की मुझे याद आता है । मैंने ऐसा कुछ नहीं सुना । ध्यान से होती है । काफी देर सोचने के बाद आशु ने कहा, मैंने वेद दुनिया सुनी जो अक्सर भीड भरी सडकों पर होती है । जैसे कारो ट्रांप ओ रिक्शों की आवाजें और जहाँ तक मुझे याद आ रहा है । मुझे झटका लगने के समय मैंने साइकल की घंटी की आवाज सुनी थी । कोई और अस्वाभाविक आवाज नहीं । ब्योमकेश कुछ क्षणों तक चुप रहने के बाद बोला, क्या आपके ऐसे दुश्मन है जो चाहते हो कि आप की मृत्यु हो जाए? नहीं । जहाँ तक मेरी जानकारी में है मैं ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता हूँ । आपने शादी नहीं की इसलिए आपके बच्चे तो है नहीं । मैं समझता हूँ आपका भांजा ही आपका बारिश है । आशु बाबू पहले तो दुविधा में हिचकी जाए और बाद में बोले, नहीं क्या आपने आपने वसीयत लिख दी है? हाँ, कौन है आपका बारिश? आशु बाबू संकोच में मुस्कुराए और कुछ क्षण चुप रहने के बाद कुछ रखते हुए बोले, आप मुझसे इसे छोडकर कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं । यहाँ मेरा निजी मामला है, प्राइवेट है और वहाँ अपनी उलझन में हो गए । ब्योमकेश पैनी निगाह से आशु बाबू को देखकर बोला भी है, लेकिन क्या आपका भविष्य का बारिश जो भी हो, आपकी वसीयत के बारे में जानता है । नहीं, यह मेरे और मेरे वकील के बीच पूरी तरह से गोपनीय है । क्या आप अपने वार इससे अक्सर मिलते रहते हैं? आशु बाबू ने दूसरी ओर देख कर कहा, हाँ, आपके भांजे को जेल गए कितने दिन हुए हैं? आशु बाबू ने हिसाब लगाकर बताया, लगभग तीन माह ब्योमकेश बाबू कुछ देर व्यग्रता में बैठा रहा । फिर एक निश्वास छोडकर उठ खडा हुआ । आप अभी घर जाइए । यहाँ घडी और अपना पता मेरे पास छोड चाहिए । यदि मुझे और किसी जानकारी की जरूरत पडेगी तो मैं आपसे संपर्क करूंगा । आशु बाबू एका एक परेशान होते हैं और बोले लेकिन आपने तो मेरे लिए कोई व्यवस्था नहीं की । यदि मुझे फिर आपको केवल इतना ध्यान रखना है की आप अपने घर से बाहर न निकले । आशु बाबू का चेहरा भय से सफेद हो गया । उन्होंने कहा, मैं घर में अकेला रहता हूँ । यदि कोई ब्योमकेश बोला घबराइए नहीं, आप घर में पूर्ण सुरक्षित है । हाँ, यदि आप दरबान चाहते हो तो रख सकते हैं । आशु बाबू बोले, क्या मैं घर से बाहर बिल्कुल नहीं नहीं चल सकता? ब्योमकेश कुछ क्षण सोचता रहा । फिर बोला, यदि आप घर से बाहर निकलना ही चाहते हैं तो केवल फुटपाथ का ही प्रयोग करें । किसी भी स्थिति में सडक का प्रयोग न करें । यदि करते हैं तो मैं आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले पाऊंगा । आज सुबह के चले जाने के बाद ब्योमकेश काफी देर तक थ्योरी चढाकर विचारों में दूबारा । इसमें कोई संदेह नहीं कि फिलहाल उसके मस्तिष्क के लिए उन्हें काफी मसाला मिल गया था । इसलिए मैंने उसे छेडना नहीं चाहा । कोई आधा घंटे बाद उसने मूड अगर देखा और बोला, तुम सोच रहे हो कि मैंने आशु बाबू को घर से निकलने के लिए मना कर दिया और मैं कैसे इस निर्णय पर आया कि वे केवल घर में ही सुरक्षित रहेंगे । मैंने चौकर देखा और मेरे मुंह से निकल गया । हाँ, ब्योमकेश ने कहा ग्रामोफोन पिन केस में यहाँ स्पष्ट है कि सभी हत्याएं सडक पर हुई है । सडक के किनारे भी नहीं बल्कि सडक के बीच में । क्या तुमने सोचा ऐसा क्यों हुआ है? नहीं? क्या कारण है? दो कारण हो सकते हैं । पहला कि सडक पर मारने से इल्जाम से बच जाना आसान हो सकता है । हालांकि यह ज्यादा मुमकिन नहीं लगता । दूसरे हत्या का हथियार भी ऐसा है जिसका प्रयोग केवल सडक पर ही संभव । मैंने उत्सुकता से पूछा किस तरह का हथियार हो सकता है? ब्योमकेश बोला, अगर यही पता लग जाए तो ग्रामोफोन पेन का रहस्य ही नहीं खुल जाए । मेरे मस्तिष्क में एक विचार रह रहकर उठ रहा था । मैंने कहा, क्या कोई व्यक्ति ऐसा रिवॉल्वर रख सकता है जिसमें गोली के स्थान पर ग्रामोफोन बिन का इस्तेमाल हो सके? ब्योमकेश ने मेरी बात की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा आइडिया मार्केट है लेकिन इसमें कुछ संदेह दिखाई दे रहा है । कोई व्यक्ति जो बंदूक और पिस्तौल का इस्तेमाल करना चाहता है, वहाँ क्यों चाहेगा? तर्क के अनुसार वहाँ एकांत ही खोजेगा । दूसरे बंदूक तो छोडो पिस्तौल के शॉट का धमाका भी भीड के कोलाहल में छुप नहीं सकता । फिर गनपाउडर की महक रहे जाती है । वह कहता है ना कि एक धमाका दूसरे को छुपा सकता है । लेकिन मैं कैसे छिपेगी? मैंने कहा संभव है वहाँ एयरगन हूँ । ब्योमकेश जोर से ऐसा वाह क्या बेहतरीन आइडिया है गंदे पर एयर गन लटकाकर हत्या करने जाना । लेकिन क्या यहाँ व्यवहारिक है? नहीं मेरे प्यारे मित्र यहाँ इतना आसान नहीं है । यहां सोचने की बात यहाँ है कि जो भी हथियार होगा वहाँ धमाका करेगा ही । दावत कैसे उस धमाके को छुपाया जा सकता है । मैंने कहा तुम अभी अभी क्या कह रहे थे कि एक धमाका दूसरे को छिपा सकता है । एक झटके से ब्योमकेश खडा हो गया और मुझे बडी बडी आघोषित घुटने लगा और बडबडाने लगा यहाँ सही है । यहाँ बिल्कुल सही है । मैं चौंक उठा, क्या बात है? ब्योमकेश ने सिर हिलाते हुए कहा कुछ नहीं । मैं जितना ग्रामोफोन दिन का रहस्य के बारे में सोचता हूँ उतना ही मुझे लगता है जैसे सारी हत्या एक दूसरे से जुडी हुई है । एक विशेष प्रकार की समानता सभी हत्याओं में दिखाई दे रही है । हालांकि ऊपर से ऐसा कुछ नहीं लगता । वह कैसे? ब्योमकेश ने उंगली पर चेन्नई लगाते हुए कहा शुरू करें तो सभी शिकार मध्यवय के व्यक्ति थे आशु बाबू जो घडी के कारण बच गए । वे भी मध्य आयु के हैं । दूसरे सभी खाते पीते संबंध व्यक्ति है । कुछ दूसरों से अधिक धनी हो सकते हैं । किंतु निर्धन कोई नहीं था । प्रत्येक व्यक्ति की हत्या सडक के बीचोंबीच हुई, सैकडों की भीड में और अंत में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सभी संतानहीन थे । मैंने कहा तो तुम्हारा अनुमान यह ब्योमकेश बोला, मैंने अभी तक कोई अनुमान नहीं लगाया है या सब बहाते । मेरे अनुमान के केवल आधार है तो इन है संभावना कह सकते हो । मैंने कहा लेकिन केवल इन संभावनाओं से हत्यारे को पकडना । अभी ब्लॅक इसने ठोक दिया, हत्यारे नहीं । अजीत, हत्यारा बहुवचन का प्रयोग केवल प्रतिष्ठा जोडने के लिए है । वास्तव में व्यस्त है । अखबार वाले भले ही हल्ला मचा रहे हैं कि इनके पीछे हत्या रहेगा, गिरोह है, लेकिन उस गिरोह में एक ही व्यक्ति है जो इस मानवीय हत्याओं का पोशाक गुरु और हत्यारा है । सभी हत्याओं के पीछे केवल एक ही व्यक्ति है । मैं अपने संदेह को रोक नहीं पाया । धोनी है । सब इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है? ब्योमकेश ने उत्तर दिया, सबूत तो अनेक हैं, लेकिन फिलहाल एक ही पर्याप्त है । यहाँ यहाँ संभव है कि सभी लोग इतनी अद्भुत दक्षता से ये एक ही जगह पर दागे गए हथियार से मारे जाए । प्रत्येक बार केंद्र है के बीच में ही होता है । रंच मात्र भी न इधर न उधर आशु बाबू का केस ही ले लो । यदि घडी न होती तो वह दिन कहाँ लगता? तो तुम्हारी नजर में कितने लोग हो सकते हैं जो इतनी दक्षता से यह कार्य कर पाएंगे जिनका निशाना इतना अचूक होगा । यहाँ तो उस तरह से हो गया जैसे पानी में लकडी की मछली की छाया को देख कर घूमते पहिए के बीच मछली की आंख में तीर मानना मैं समझता हूँ तुम्हें द्रौपती के स्वयंबर की कथा याद होगी । जरा सोचो यहाँ केवल और जो नहीं कर पाया था । महाभारत काल में भी इतनी अचूक दक्षता आकाश रेयर केवल एक ही व्यक्ति को मिला था । ब्यू उनके जब उठा तो हस रहा था । ड्रॉइंग रूम के बगल वाला कमरा ब्योमकेश का निजी कमरा था जिसमें वहाँ हर समय मुझे भी आने नहीं देता था । वास्तव में यह उसकी लाइब्रेरी, प्रयोगशाला और ड्रेसिंग रूम था । उसने आज बाबू की घडी उठाकर अपने कमरे की ओर जाते हुए कहा, लंच के बाद इस केस पर मस्तिष्क लगाने के लिए पर्याप्त समय होगा । अब समय है नहाने का । ब्योमकेश दोपहर में साढे तीन के आसपास बाहर चला गया । मुझे नहीं मालूम कहाँ और क्यों गया और वापस आया । तब तक अंधेरा हो चुका था । मैं उसके इंतजार में बैठा था । चाहेगा । समय बीता जा रहा था । जैसे ही वहाँ आया, पुत्ती राम नाश्ता ले आया । हम लोगों ने पूर्ण शांति में नाश्ता किया । हम लोगों की शाम को साथ साथ चाय पीने की आदत थी । ब्यू उनके इसमें कुर्सी पर कमाल दिखाते हुए जरूर जलाकर पहली बार मौन दौडा तो मैं आशु बाबू कैसे व्यक्ति लगे? मुझे प्रश्न कुछ अटपटा लगा । मैंने बुझा ऐसा क्यों पूछते हो मैं समझता हूँ ये सज्जन पुरूष काफी सहज और मिलनसार व्यक्ति है । ब्योमकेश ने कहा और उनका नैतिक चरित्र मैंने उत्तर दिया । जिस प्रकार अपने उस शराबी भांजे के बारे में उनकी नफरत देखी, मैं तो कहूंगा कि वे सीधे तथा सच्चे इन्सान है । फिर उनकी उम्र भी हो गई है । उन्होंने विवाह भी नहीं क्या संभव है जवानी में उन्होंने कुछ बिहार बिहार की हरकतें की हो, लेकिन उन सब के लिए उनकी अब व्यवस्था नहीं है । ब्योमकेश हंस पडा । उन की अवस्था ना भी हो तो क्या उन बहुतों ने उन पर कोई रोक लगाई है । जोडासांको के जिस घर में आशु बाबू रोज शाम को संगीत सुनने जाते हैं वहाँ एक स्त्री का घर है दारा । साल यहाँ कहना कि वहाँ उस इस तरी का घर है गलत है क्योंकि आशु बाबू उसका भाडा भरते हैं । उस घर को संगीत, संगोष्ठी, स्कूल कहना भी शायद गलत होगा क्योंकि संगीत संगोष्ठी बनाने के लिए कम से कम दो व्यक्तियों की दरकार होती है । यहाँ तो वे केवल एक ही है ।

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ब्योमकेश बक्शी की रहस्यमयी कहानियाँ writer: सारदेंदु बंद्योपाध्याय Voiceover Artist : Harish Darshan Sharma Script Writer : Sardendu Bandopadhyay
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