Made with in India
एक शोला और बढ का विद्यार्थी सुभाष मेधावी छात्र था । साथ ही उसमें देशभक्ति की भावना भी खोल छोडकर भरी थी । इसके अतिरिक्त हुआ नहीं । गुणों का सकर प्रतीक भी था । उसका चरित्र उस हीरे की भांति था जो किसी भी अग्नि परीक्षा धूमिल नहीं पडता । उसके आचरण में ऐसी गंभीरता और संतुलन था जिससे कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था तथा उसकी प्रकृति में ऐसा ओ जरुरत थी जो लोगों को पलभर में आकर्षित कर लेती थी । स्वामी विवेकानंद के उपदेशों और सिद्धांतों से प्रभावित होने के बाद उसके विचारों में ऐसी ओज और प्रौढता आ गई थी कि समकालीन विद्यार्थी दो आश्चर्यचकित रह जाते थे । बहुत कम लोग सुभाष की भावनाओं को समझ पाते थे । सही पार्टियों में केवल एक छात्र ऐसा था सुभाष ने जिसे अपनी संगत क्योंकि समझा व्यक्ति उन्हीं की तरह मेधावी छात्र और तीसरा बुद्धि का था । उस व्यक्ति का नाम था दिलीप कुमार । दिलीप सुभाष की विद्वता और प्रतिभा से परिचित होने के कारण उन के प्रति अत्यधिक आकर्षित हुए और सुभाष से मैत्री संबंध स्थापित करने का प्रयास करने लगे । एक दिन देवयोग से वो अवसर आ ही गया । सुभाष नाम नौ कॉलेजों में डिपेंट वाद विवाद क्लब स्थापित किया था और विशेष कर अपने प्रतिभाशाली भारतीय सहपाठियों को उन का सदस्य बना रहे थे । एक दिन होने दिलीप को बुलाकर कहा, मेरे विचार से डिबेट हम लोगों की प्रतिभा विकास में सहायक सिद्ध होंगे । देश को कुछ बेटर की आवश्यकता है । डाॅटर्स दिलीप जैसे आकाश, सिगरेट और अच्छे से कहा । रामकृष्ण परमहंस के अनुसार डिबेट समय सत्य से विमुख करते हैं, इसकी चिंता नहीं । सुभाष ने दृढता से कहा, हर क्षेत्र में हमें किसी कवि और संत की कहावते ही नहीं लागू कर देनी चाहिए । कहावत की इसी परंपरा ने हमारे हिन्दू सविता को संकुचित कर रखा है । अपने भविष्य के निर्माण के लिए हमें पुरातन की रेड पर नवीनतम दीवार खडी करनी है । हमारा जन्म अपने देश की सीमा के लिए हुआ है । हमें पुरानी बातें छोडकर नहीं, बातों को अपना रहा है । मैं रामकृष्ण परमहंस की आलोचना नहीं करता किन्तु उनकी अपेक्षा स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत अधिक ग्रहणीय । दिल्ली सुभाष की वजह से व्यक्तव्य से अत्यधिक प्रभावित हुए और बोले, किन्तु में कुछ अलवत्ता नहीं हूँ । मंच पर आते ही मुझे लग जा घेर लेती है है । ये एक मेधावी छात्र और भारतीय नवयुवक के शब्द है । सुभाष जोर से हंसने लगे और बोले, आरंभ में हर व्यक्ति को ऐसा सब कुछ होता है । हिन्दू अभ्यास से सभी कुछ सहज हो जाता है और उन्होंने सहपाठी दिलीप कुमार राय को आपने डिबेट संस्था का सदस्य बना लिया । उनके प्रभाव में आकर अनेक सहपाठी संस्था में सम्मिलित हो गए । शिक्षा के साथ साथ देश के राजनीतिक भविष्य के लिए उनके ऐसी प्रेरक कार्यक्रम भी चलते रहे । उन्ही दिनों विद्रोह का एक सोलह फिर भडका । एक दिन अंग्रेज पैसा मिस्र ओटन कक्षा में पढा रहे थे । उन्होंने किसी भारतीय विद्यार्थी से कोई प्रश्न पूछा जिसका उत्तर वो तुरंत ही नहीं दे सका । ऍम खत्म पडता है । हुआ विद्यार्थी सहन गया । कंट्रोल ऍम अपनी जबान संभाल के श्रीमान जी सुभाष विद्युत गति से उठे और शोले की तरफ भडक उठी । ऍम आपने इसे ब्लैक मनी क्यों कहा? सुभाष ने तेजस्वर में पूछा हम बीच में क्यों बोलता ऍम बोला होगा यूज ॅ यूमा की ईडियट्स, सुभाष टाॅपर एक भरपूर चांटा जड दिया । सारी कक्षा में सन्नाटा छा गया और मिस्टर ओटन अपना चोट खाया हुआ गाल सहलाते रहे गए । सुभाष ने उन्हें पीटा भी और सारी कॉलेज में हडताल भी करा दिया । इस प्रसिद्ध यूरोपियन स्कूल में घटित होने वाली ये प्रथम दुस्साहसिक घटना नहीं इसमें समस्त गोरी चमडी वालों में आतंक फैला दिया । इसके परिणामस्वरूप स्कूल अधिकारियों ने सुभाष को स्कूल से निलंबित कर दिया । कॉलेज से निलंबित कर दिए जाने के बाद सुभाष अपने गृहनगर कटक चले । पिता को सुभाष के कॉलेज से निलंबित कर दिए जाने की घटना पहले से ही ज्ञात थी । सुभाष से अत्यधिक असंतुष्ट थे । बीच अध्ययनकाल में कॉलेज से निकाल दिया जाना चिंता और चोट का विषय था । सुभाष घर आए तो पता नहीं रोशनी पूछता हूँ । बीच में ही कैसे आ गए । वो इस तरह पूछने लगे मानव को जानते ही नहीं हूँ । इधर तो छुट्टियाँ भी नहीं है । मैंने अपमान का विरोध किया । फलस्वरूप मुझे कॉलेज से दो वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया है । सुभाष ने सत्य बता दिया की आप मान हुआ तुम्हारा? पिता ने ऍम में पूछा फॅसने मुझे बेवकूफ मुर्क । बदमाश कहा मैं ऍम नहीं कर सका और तुम ने उन्हें थप्पड मार ऍम पिता बीच में ही खडपडे । ईंट का जवाब पत्थर ही होता है । सुभाष ने दृढ स्वर में कहा क्या यह उचित था की मैं अपने और अपने देश वासियों के लिए अपमानजनक शब्द सुनता और खामोश रहता । मुझे नहीं सहन हो सका पिताजी । तुम अपने हाथों से अपना भविष्य चौपट कर रहे हो रायबहादुर छुब्ध होकर बोल बडे मैं तुमसे बहुत बडी बडी आशा करता हूँ मैं आपकी आशाएँ धूमिल नहीं होने दूंगा । पिताजी गंभीर स्वर में सुभाष नहीं मैं मानता हूँ कि कॉलेज से निलंबित कर दिया जाना मेरे शैक्षिक विकास के लिए अच्छा नहीं हुआ तो ये भी तो उचित नहीं था कि मैं अपमान का कडवा घूंट पीकर गोरी चमडी वाले प्रोफेसर की दृष्टा को प्रोत्साहित करता हूँ तो भरी बातों में एक नवयुवक की भावुकता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । पिता गंभीरतापूर्वक किस देकर ही देखो । सुभाष ऐसी बचकानी उग्रता से तुम अपना ही कर रहे हो । किसी भी उद्देश्यपूर्ति का सीधा रास्ता विद्रोह नहीं । कुछ बनने और कुछ करने के लिए तुम स्वयं उस योग्य बनना होगा । मैं जानता हूँ । मैं चाहता हूँ कि मेरे प्रयास में कुछ कमी है । पिताजी सुभाष ने पहली जैसी दृढता के साथ कहना क्या? तो मैं अपने प्रति विश्वस्त हूँ क्योंकि मुझे इस बात का आभास हो चुका है कि मेरा चंद्र किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ है । अचानक ही पल भर को रायबहादुर की आंखों में वह सपना कौन गया जो उन्होंने सुभाष के उत्पन्न होने के तुरंत बाद देखा था । फिर भी वह संतुष्टि के भाव से ही बोले कुछ भी हो, तुम्हारा रास्ता न्यायसंगत नहीं है । जब तक तुम जीवन में वास्तविक कर्तव्य कपूर नहीं कर लेते हैं, किसी भी क्षेत्र में सफलता नहीं प्राप्त कर सकते । सुबह मैं कर्तव्य से मुक्त नहीं पिताजी सुभाष ने दृढनिश्चय के साथ इस कर्तव्य के साथ ये भी हमारा कर्तव्य है कि उस विदेशी नीति और सत्ता का दामन करे जो हमारी शोषण और दासत्व का प्रतीक है । ये सब बकवास पाते हैं । ऊबकर रायबहादुर कमरे में टहलने लगे । सुभाष अपने कक्ष में चले गए । रायबहादुर के मन और मस्तिष्क में तूफान आ रहा था । सुभाष को अपने विचारों और सिद्धांतों की सीमाओं में बांध करन के अनुसार चलने के लिए विवश नहीं किया जा सकता हूँ । अब उसका विचार पक्ष अत्यंत विकसित और प्रॉफिट हो चुका है । उस पर कोई दूसरा रन चढा पाना सर्वथा संभव है । किंतु यह कितनी विचित्र बात है कि मेरे जैसे स्थिर और गंभीर व्यक्ति के यहाँ उस जैसा उग्र और क्रांतिकारी विचार तो पालक उत्पन्न हुआ । सुभाष की ये उग्रता कभी भी मेरी प्रतिष्ठा पर कोई विस्फोट कर सकती है । अपने कक्ष में आने के साथ इस भाषा की दृष्टि वहाँ पर पडी जो अत्यंत शूट दशा में उनकी प्रतीक्षा कर रही थी तो हम अच्छा संतुष्ट नहीं हूं । अनायास ही गंभीर होकर सुभाष ने पूछा इन्होंने कैसे सोच लिया माँ पुत्र पर स्नेहल दृष्टि टिकाकर कहा तो जो भी करता है, जैसा भी करता है, उसे मैं तेरह कृत्य नहीं बल्कि अब तरीका कृति समझती हूँ । ऐसी दशा में असंतोष का प्रश्न ही नहीं उठता तो कितनी महान है । इसमें हमें वृद्धि, करंट से सुभाष इतना ही कह सके । दो वर्ष पश्चात सेर आशुतोष के प्रयत्न से सुभाष को कलकत्ता विश्वविद्यालय में पुनर्प्रवेश मिल गया । इस बार भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाया । दर्शनशास्त्र में बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में तीन की
Sound Engineer
Voice Artist