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4 minsग्रामीण भारत में संचार क्रांति का असर आजादी मिलने के साल भारत में लगे कुल करीब तीस हजार टेलीफोन में ज्यादातर सरकारी दफ्तरों या राजा महाराज, सेठ, साहूकारों आदि के यहाँ लगे थे । उस दौरान भारत में लगे कुल फोनों से ज्यादा संख्या अकेले सिडनी शहर में थी । पहले स्तर फोनों का ही जमाना था और आजादी के बाद सरकार के चौंतीस साल के नियोजित प्रयासों के बाद ही हमारे फोनों की कुल संख्या बीस दशमलव शून्य पांच तक हो गई थी । लेकिन हाल के वर्षों में हम नया अध्याय लिख रहे हैं और दुनिया के कई महत्वपूर्ण देशों के समकक्ष खडे हो गए हैं । परन्तु यहाँ ध्यान रखने की बात है । बीते दशकों में संचार क्रांति ने खास तौर पर शहरी इलाकों पर विशेष ध्यान दिया । ग्रामीण इलाकों में भी दूर संचार क्रांति की दस तक हाल के सालों में हुई और ग्रामीण टेलीकाॅम बढकर अडतीस से ज्यादा हो गया । जबकि शहरी एक सौ के करीब शहरों की तुलना में गांवों में काम टेलिकाॅम की कई वजह है । जैसे कम प्रति व्यक्ति आय, बिजली, सडक की दिक्कत, कम साक्षरता दर और ग्रामीण आबादी के सामाजिक आर्थिक स्तर में कमी को इसका कारण माना जाता है । लेकिन एक बडा कारण गांव में निजी कंपनियों का जाने से कतराना भी रहा है । देश के प्रस्तावित राष्ट्रीय दूर संचार नीति दो हजार बारह में मौजूदा ग्रामीण टेलीफोन करे तो सन दो हजार तक बढाकर सत्तर और दो हजार दो तक सौ करने की परिकल्पना की गई है । यह लक्ष्य भी रखा गया है कि सन दो हजार तक सभी गांवों तक सार्वजनिक फोन पहुंच जाएंगे और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी हो जाएगी । ताजा आंकडों के मुताबिक भारत के सत्याग्रह दशमलव आठ फीसदी गांवों तक सुविधाएँ पहुंच गई हैं । गांवों में मोबाइल और स्थिर फोनों के विकास में सरकार की पहल पर पर ये सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि का खास योगदान रहा है । इसी निधि से अब तक बीएसएनएल ने हजार नौ सौ अट्ठावन ग्रामीण टेलीफोन और रिलायंस ने अठारह हजार सात सौ छत्तीस फोन लगवाए हैं । अभी इस निधि में करीब बाईस हजार करोड रुपये उपलब्ध है जिनमें गांवों में संचार क्रांति के इंतजाम करने हैं । दरअसल सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि की स्थापना दुर्गम देहाती इलाकों में सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए एक अप्रैल दो हजार से लागू की गई थी । इसकी परिधि में मोबाइल और ब्रॉडबैंड सेवा को शामिल करने के लिए नियमावली में हाल ही में संशोधन किया गया है । किसी तरह भारत के उन सात हजार तीन सौ तिरेपन जगहों पर जहाँ मोबाइल फोन या लैंडलाइन कवरेज नहीं है, वहाँ टावर लगाने के लिए नई स्किम शुरू की गई है और जल्दी ही यहाँ पे फोन पहुंच जाएंगे जिनमें अधिकतम इलाके उग्रवाद प्रभावित है । नियोजित विकास का असर आजादी मिलने के बाद ही हमारी संचार सुविधाओं के विकास का नियोजित प्रयास शुरू हुआ । पंडित जवाहरलाल नेहरू के निर्देशन में पहली पंचवर्षीय योजना में हर तालुका थाना मुख्यालय तक पहुंचाने के साथ पांच हजार से अधिक की आबादी पर टेलीफोन एक्सचेंज लगाने की योजना बनाई । आजादी के पहले आठ सालों में पंद्रह हजार नए फोन लगे । पचास में पटना, आगरा, फिरोजपुर, लखनऊ आपन और बडौदा में लोकल फोन सेवा शुरू हुई तो बडी खबर बनी । इसके पश्चात विकास की गति निरंतर जारी रही । यहाँ दिल्ली में उन्नीस सौ उन्यासी में टेलीफोन उपभोक्ताओं पर किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया की अठारह दशमलव छियासी फीसदी उपभोक्ताओं को छोड कर बाकी फोन प्रशासन, उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में काम कर रहे थे । अन्य उभोक्ताओं में भी कई टेलीफोन रखने वाले सरकारी विभागों के अवसर और व्यवसायिक संस्थाओं के कर्मचारी थे । इनको वास्तव में घरों पर सरकारी फोन मिले हुए थे । इस तरह फोनों से आम आदमी के रिश्तों को आसानी से समझा जा सकता है । निष्कर्ष भारत में उदारीकृत व्यवस्था के बीच में संचार क्रांति का असली श्री गणेश हुआ । पहले माना जाता था कि मोबाइल से संपन्न हो कि दुनिया का संचार होगा, पर इसके विपरीत दिशा स्थिर लाइनें यानी लैंडलाइन को कटवाकर लोग मोबाइल ले रहे हैं और जिस गति से यह काम हो रहा है, वह दिन दूर रही । टेबल ऑनलाइन सरकारी दफ्तरों तक ही विराजमान रहे । वहाँ भी ई प्रशासन का जोर दिख रहा है ।
Sound Engineer
Voice Artist