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5 minsग्रामीण विकास की प्रवृत्तियाँ एवं सामाजिक परिवार बन भारत की कुल आबादी दो हजार ग्यारह की जनगणना के अनुसार एक अरब पच्चीस करोड के आस पास है जो पूरे विश्व की आबादी का सत्रह दशमलव पांच प्रतिशत है । इसमें से प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है । वर्तमान में दो हजार ग्यारह की जनगणना के अनुसार पूरे भारत में छह दशमलव लाख गांव है । शायद इसलिए ही यह कहा गया है कि भारत गांवों का देश है अर्थात गांवों की तरक्की के बिना भारत की उन्नति संभव नहीं है । आज विकास के कई पहलू हैं और प्रत्येक पहलू के मायने अलग अलग व्यक्तियों के लिए अलग अलग होते हैं । विकास मनुष्य के झाओ एवं आकांक्षाओं से जुडा होता है । किसी भी विकास से प्रगति स्पष्ट दिखती है जो लोगों के जीवन एवं उसकी सोच पर वास्तविक प्रभाव डालती है । बात अगर हम भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की करें । आज के एस बीसवीं शताब्दी में ग्रामीण सामाजिक संरचना में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं । ग्रामीण विकास के बाद अगर हम करते हैं तो इस विकास को हम तीन अहम मुद्दों से जोडकर देख सकते हैं । एक । शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली तथा आवाज आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं का विकास दो व्याप्त गरीबी को दूर करने है तो रोजगार का समुचित अवसर प्रदान करना । तीन । देश के शासन क्या गवर्नेंस में ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करने है तो उनमें जागरूकता एवं चेतना का संचार करना । इन तीन अहम मुद्दों को विकसित करके ही ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास किया जा सकता है । आज सरकार कामों की बुनियादी सुविधाओं और आधारभूत संरचनाओं के निर्माण एवं विकास के द्वारा ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने का प्रयास लगातार कर रही है । ग्रामीण समाज के उपेक्षित और दलित वर्गों के विकास के लिए विशेष अवसर उपलब्ध करवा रही है । साथ ही बचत की राशि देश के विकास में योगदान देती है । प्रधानमंत्री की एक और योजना स्वच्छ भारत अभियान ने भी लोगों को समानता के साथ साथ अपने कर्तव्यों और दायित्वों का बोध कराया है । आज ग्रामीण विकास के प्रवृतियां ग्रामीण सामाजिक दर्शन एवं संरचना में अमूल परिवर्तन लाई है, लेकिन देखा जाए तो अभी और भी परिवर्तन की आवश्यकता है और यह परिवर्तन अन्य कारणों से भी आ सकता है । जैसा कि एस । श्रीनिवासन कहते हैं, जब निचले वर्ग के लोग उच्च वर्ग के संस्कृति, भाषा, रहन सहन और रीति रिवाज इत्यादि का अनुसरण करते हैं तो समाज में सामाजिक परिवार बन आते हैं । आज सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक पैमाने या तत्व के रूप में हम कुछ अहम मुद्दों को ले सकते हैं जो मानव विकास के साथ साथ उनके कल्याण में भी सहायक होते हैं । जैसे शिक्षा का विकास, राजनीति में युवा वर्ग की भूमिका का विस्तार, सामाजिक मूल्य स्तर में वृद्धि, आधारभूत सुविधाओं तक सबकी पहुंच, प्राकृतिक संसाधनों का उपयुक्त प्रयोग, नवीन तकनीकी और प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण । ये कुछ ऐसे तत्वों या पैमाने हैं जिनके द्वारा विकास, सामाजिक गरीबी सूचकांक, मानवाधिकार और प्राकृतिक संसाधनों, हत्यारी से विकास एवं सामाजिक परिवर्तन को देखा है । वह माता जा सकता है । साथ ही इन पैमानों को लागू कर इनमें सुधार भी किया जा सकता है । सरपंचों को कई न्यायिक अधिकार सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं । पुलिस स्टेशन पर अंकुश बनने करानी रखने के लिए जनता की एक टीम कई गांवों में गठित की गई है । नई संचार व्यवस्था आने के कारण गांवों के लोग भी आज अपने मौलिक अधिकारों को समझने लगे हैं, जिस कारण लोगों में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता आई है । गांवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति हो रही है । इससे जहाँ नुकसान हो रहा है, वहीं गांवों को इसके फायदे भी मिल रहे हैं । पलायनवादी लोग शहरों से पैसे कमाकर गांव में अपने परिवार को उन्नत तरीके से रखना चाहते हैं । एक आदमी का शहरीकरण होने से एक नई संस्कृति का जन्म होता है । औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, परिवहन के साधनों में वृद्धि, अंग्रेजी शिक्षा की लोकप्रियता, राजनीतिक एवं सामाजिक जागरूकता तथा छुआछूत को दूर करने वाले कानून इत्यादि ने जातिवाद के कुप्रभावों को आज गांवों में भी काम कर दिया है । हर वर्ग द्वारा भेदभाव का तारीख खेलने के कारण गांव का कमजोर एवं दलित वर्ग आज अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गया है । सूचना के अधिकार दो हजार पांच नहीं ग्रामीण प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेहिता और शीघ्रता लगा दी है, जिसमें ग्रामीण लोगों को उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी एवं उनके सर्वांगीण विकास के लिए चल रही योजनाओं को जानने में काफी मदद की है । किसने ग्रामीणों के बीच चेतना एवं जागरूकता भी बढाने का कार्य किया है? निष्कर्ष ग्रामीण सामाजिक परिवर्तन तेजी से न होने का कारण क्या भी है कि ग्रामीण चिंता को केवल संख्या में या फिर उदाहरण की चीज समझी जाती है, लेकिन अगर वहीं उन्हें मानव संसाधन में परिणत कर दिया जाए तो वह एक स्थायी परिसम्पत्ति बन जाता है । ऐसा होने पर ही एक समतामूलक समाज का निर्माण होगा और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन को भी समझा जाएगा । पूर्व से अब तक चली आ रही ग्रामीण विकास की योजनाओं के मूल्यांकन भी किए जाने चाहिए ताकि यह पता चल सके की बहन योजना कितने प्रतिशत लागू हो पाई है और ग्रामीण विकास एवं सामाजिक परिवर्तन में कितना योगदान दे पाई । विकास का मतलब हमेशा केवल नई योजना लागू करना ही नहीं होता है बल्कि पहले से चली आ रही योजनाओं की समीक्षा भी इसमें शामिल होती है । साथ ही लोगों की सोच भी इसमें मायने रखती है क्योंकि जब तक लोगों की मानसिकता में परिवर्तन नहीं आएगा, हम या सरकार चाहे कितना भी प्रयास क्यों ना कर ले, विकास संभव ही नहीं है । अतः ग्रामीण जनता को योजनाओं एवं कार्यक्रमों के माध्यम से मान के विकास के पहलुओं, नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन कार्यों में सफलता, खुलापन, संवेदनषीलता एवं उत्तरदायित्व प्रतिबद्धता का होना नितांत आवश्यक है ।
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