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धूरी राष्ट्रों से संपर्क बोलिन पहुंचकर सुभाष ने अडॉल्फ हिटलर से भेंट की । एडॉल्फ हिटलर ने बडी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए कहा, हमें बडी खुशी है कि आप सकुशल यहाँ आ गए । उनका धन्यवाद अदा करते हुए सुभाष ने अपनी योजना उनके सामने रखी । वास्तव में में इस समय ये जानना चाहता हूँ कि मुझे भारत की स्वतंत्रता पाने के लिए कौन सा रास्ता चलना चाहिए । मैं अजीब सी उलझन में हूँ । मेरे देश के नेताओं का रवैया इस मामले में मुझे बिल्कुल अलग है । वे अहिंसा हिंसा चलाते हैं । मेरी समझ में नहीं आता कि क्या ब्रिटिश सरकार उनकी मांगों को पूरा करेगी? क्या वह भारत को पूर्ण प्याज स्वाधीन करेगी? मेरे विचार से जैसा विश्वासघात, धोखेबाजी, व्यवहार आप लोगों के साथ ब्रिटिश साम्राज्य में क्या है? लगभग वैसा ही बर्ताव वह भारतीयों के साथ कर रहे हैं । आपका इस संबंध में क्या विचार है? सुभाष के इस वक्तव्य पर हिटलर कुछ देर तक आपने आपने विचारमंथन करते रहे । फिर बोले, मैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ कि बडी सरकार धोखेबाजी और विश्वासघात की नीति को नहीं छोडेगी । जैसा कि अपने पिछले मुलाकात में अंग्रेजों के चरित्र और स्वभाव के बारे में चर्चा करते हुए इंगित किया था, वास्तव में आज उसी को घटित होते देख रहा हूँ और इसी आधार पर इस निर्णय पर पहुंचा होगी । बिना हथियार उठाए उनसे स्वतंत्रता की आशा करना व्यर्थ है । मैं तो यह समझता हूँ कि एक सशस्त्र सेना, कुछ हजार टुकडी हजारों लाखों अस्तित्वहीन क्रांतिकारियों को काबू में कर सकती हैं । मेरे विचार से तब तक हम अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते जब तक विदेशी शक्तियों की सहायता लेकर बाहर की ओर से सीमा पर धावा नहीं बोलते हैं । इन्हीं विचारों से सहमती रखते हुए मैं आपसे सहयोग की अपेक्षा करता हूँ । सुभाष ने स्वीकारात्मक भाव से कहा, मेरा हर प्रकार का सहयोग आपके साथ है । इन्द्रचंद होगी । भारतीय सेना का दसवां ब्रिगेट लिबिया में हमारे वृद्ध युद्ध कर रहा है । हिटलर ने चिंता व्यक्त की । मैं शीघ्र ही भारतीय सेना के नाम अपना संदेश प्रसारित करूंगा । मैं उनके समक्ष स्थिति की वास्तविकता रखते हुए जर्मन के वृद्ध युद्ध न करने की अपील करूंगा । आप विश्वास रखी है कि वे मेरी बात अवश्य मान जाएंगे । सुभाष ने हिटलर को आश्वस्त किया कुछ देर तक दोनों वरिष्ठ राजनीतिज्ञ विभिन्न राजनीतिक स्थितियों पर बात करते रहे और फिर सुभाष इटली के लिए प्रस्थान कर गए । ये उनका एक तूफानी दौरा था जिसमें मैं उन सभी धूरी राष्ट्र के सर्वोच्च अधिकारियों से मिले जो ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध थे । वह भारतीय स्वतंत्रता के प्रति सहयोग, सहानुभूति और सहायता की भावना रखते थे । उन्होंने रोम में मुसोलिनी से भेंट की । कियानी और इवेंट रब से मुलाकात की । भ्रमण करने के पश्चात विपिन अहा जर्मनी पहुंचे और उन्होंने जर्मन के विरुद्ध लड रही भारतीय सेना के नाम एक संदेश जर्मन वायुयानों के द्वारा ब्रिगेट पर गिराया । संदेश इस प्रकार था मैं तो मिनी पहुंच गया हूँ । आप से मुझे एक लंबी कथा कहनी । आपको विधि होना चाहिए कि ये युद्ध हमारा युद्ध नहीं है । ब्रिटेन और जर्मनी की आपसे युद्ध से हमारा कोई संबंध नहीं है । मैं चाहता हूँ कि आप युद्ध बंद करते हैं ।
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