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22 - संचार के परम्परागत माध्यमों का जीवन पर प्रभाव in Hindi

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Authorडॉ निर्मला सिंह और ऋषि गौतम
“कस्तूरबाग्राम रूरल इंस्टीट्यूट, कस्तूरबाग्राम, इंदौर” में 15-16 जनवरी, 2016 को “ग्रामीण समाज और संचार: बदलते आयाम” विषय पर संपन्न “राष्ट्रीय संगोष्ठी( national seminar)” के तहत प्रस्तुत विद्वता-पूर्ण शोध लेखों का संग्रहणीय संकलन है यह पुस्तक। जो निश्चित रूप से एक पुस्तक के रूप में मीडिया-जगत के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के साथ साथ विभिन्न विषयी अध्येताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा। Voiceover Artist : RJ Manish Author : Dr. Nirmala Singh Author : Rishi Gautam Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Manish Singhal Author : Dr. Nirmala Singh & Rishi Gautam
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संचार के परंपरागत माध्यमों का जीवन पर प्रभाव पारंपरिक माध्यम संचार प्रणाली के प्रभावी महत्वपूर्ण भाग है । जिस प्रकार से ये है हमारे जीवन में खुलते मिलते जा रहे हैं, उस अनुसार कि अपने आप में अद्वितीय प्रकृति के हैं । हमारे देश के लगभग सडसठ प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है । इन ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ समाचारपत्रों, टेलीविजन, रेडियो ट्रांसमीटर्स की सुविधा उपलब्ध नहीं है, ऐसे में एक बडे ग्रामीण जनसमुदाय को संप्रेषित करने हेतु प्रभावी तरीका है परंपरागत रूप से संप्रेषण करना, संचार के पारंपरिक माध्यमों द्वारा संप्रेषण करना अर्थात मानव संप्रेषण का एक अंतर्वैयक्तिक रोग का प्रयोग करना है । पारंपरिक माध्यमों द्वारा संचार सदैव विभिन्न समुदायों में आदर व सम्मान का साधन माना जाता है, क्योंकि यह प्रदेश के अपनी संस्कृति व परंपराओं से जुडा हुआ है । प्रत्येक धर्म संस्कृति में उत्सवों पर त्योहारों को मनाने के लिए विभिन्न प्रकार के नृत्य, संगीत, खेल, विधाएं अपनाई जाती है । इन सभी में एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को परंपरागत माध्यमों द्वारा सूचनाओं का संचार किया जाता है । हमारा देश लोकनृत्य, लोकसंगीत, लोककला, लोग कहानियों तथा लोकगाथाओं से समृद्ध सभ्यता वाला देश है, जिनका की उपयोग प्रगतिशील कार्यों के लिए किया जाता है । आजादी की जद्दोजहद के दौरान जब जनसमुदाय ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में था, तब स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा अंग्रेजों के कार्यों पर अट्टाहास करने हेतु तमाशा हवाई नौटंकी का उपयोग किया जाता था । आजादी के पश्चात भी भारत सरकार द्वारा जनसमुदाय के मध्य स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा अन्य सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने हेतु संचार के परंपरागत माध्यमों का प्रयोग किया जाता रहा है । रंगनाथन के अनुसार भारत सरकार तथा प्रदेश सरकार ने जनसमुदाय को परिवार नियोजन, विकास, शील प्रक्रियाओं, प्रजातांत्रिक मूल्यों तथा राष्ट्रीय एकीकरण पर शिक्षा देने है तो राष्ट्रीय हरिकथा का प्रयोग किया था । कुमार लवल जे के अनुसार ग्रामीण संचार संस्था ने उदयपुर में साक्षरता है तो पर्यावरण इमारत के प्रचार के लिए लोककला का सफलतापूर्वक प्रयोग किया था और पालीवाल पील के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ताओं, सुधारकों तथा राजनेताओं द्वारा ग्रामीण जनसमुदाय को शिक्षित करने तथा नई सूचनाओं को करने के लिए विभिन्न लोककला जैसे थोल की बारिश, लोकनाट्य, जत्रा, कीर्तन तथा कठपुतलियों के खेल का प्रयोग किया । इस प्रकार जनसंचार के परंपरागत माध्यम स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों से संबंध रखते हैं । संबंधित समाज के संस्कृति का एक भाग होते हैं । अतः ये चांदन जनसमुदाय पर सामान्य लोगों की समझ वा भाषा अनुरूप ही होते हैं तथा उनके द्वारा सम्माननीय होते हैं । संचार के विभिन्न पारंपरिक माध्यम संचार के पारंपरिक माध्यमों के कई उदाहरण हैं, जिन्हें हम अपने जीवन में उपयोग करते आए हैं तथा जिनके माध्यम से हम ने अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने या दूसरों की बातों को समझने का प्रयास किया है । जैसे नुक्कड नाटक, कठपुतलियों का खेल, गली में थियेटर निष्पादन, कहानी कथन, लोककला त्यौहार पर होने वाले परंपरागत खेल, धार्मिक गीत गाथाएं, पौराणिक कथाओं पर आधारित खेल, विधिविधान आधारित नृत्य, स्थानीय नृत्य आदि भारत में विकासशील सूचना देने का एक उत्तम माध्यम है । परंपरागत संचार के ये माध्यम लोककलाएं, लोक नृत्य तथा स्थानीय संगीत इत्यादि लोकगाथाएं लोकगाथाएं एक तरह की कविता या संगीत के रूप में कहानी सुनाने का तरीका है । संचार करने है तो लोग गाथाएं अत्यंत शक्तिशाली प्रभावी तरीके से संप्रेषण करने का माध्यम है । पर्यावरण, दहेज तथा ऊर्जा संरक्षण से संबंधित कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें लोककथाओं द्वारा सरल तथा व्यक्तियों के मध्य प्रचारित करना संभव हो पाया है । जनसमुदाय हेतु संचार के परंपरागत माध्यमों का प्रयोग, मनोरंजन का साधन, संचार के इन परंपरागत साधनों द्वारा जनसमुदाय का मनोरंजन भी होता है । वृद्ध, श्रोता, बच्चे, महिलाएं सभी इन साधनों का आनंद लेते हैं तथा इनमें अपनी भागीदारी भी दर्शाते हैं । श्रोताओं को शिक्षा इन साधनों का प्रयोग जनसमुदाय को जागरूक करने तथा शिक्षित करने के लिए भी किया जाता है । इन समस्याओं पर जनसमुदाय को सार्वजनिक रूप से संचार के परंपरागत साधनों द्वारा सूचित किया जाता है । प्रत्येक द्वारा प्रयोग के दायरे में संचार के परंपरागत साधनों में सहायक साधनों की आवश्यकता नहीं होती । तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है । जनसमुदाय के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इसका प्रयोग करना आसान है । भाषा अवरोध से पर संचार के ये साधन स्थानीय लोगों से संबंधित है तथा अक्सर संप्रेषण के दृश्य प्रकार का प्रयोग करते हुए सूचना को संप्रेषित करते हैं । अजय इन माध्यमों से संप्रेषण करने में भाषा रुकावट नहीं बनती है । समिति आई समाचार पत्रों, टेलीविजन के प्रयोग, धन खर्च की समस्या होती है तथा समय भी अधिक व्यतीत होता है, जबकि जनसमुदाय के किसी भी आर्थिक वर्ग, बारा इन माध्यमों का प्रयोग किया जाता है । इन माध्यमों से संचार है तो समय बैठन दोनों का प्यार नहीं होता है । संचार के परंपरागत माध्यमों की सीमा दूर दराज तक सम्प्रेषण संभव नहीं । संचार के परंपरागत माध्यमों द्वारा कहीं दूर बैठे व्यक्ति को सोचना संप्रेषित नहीं की जा सकती है । शीघ्रता कम खर्च जहाँ इसके लाभ के रूप में है, वहीं स्थान इसकी सीमा के रूप में अत्यधिक विशाल जनसमुदाय है तो अनुपयोगी विशाल जनसमुदाय को इन माध्यमों द्वारा सूचना संप्रेषित नहीं किए जा सकती है । उपसंहार परिवर्तन नवाचार नहीं है तथा विज्ञान द्वारा प्रगति भी संभावना संचार के इन परंपरागत माध्यमों का प्रयोग विचारों को समझने है तो ग्रहण करने है तो प्रत्येक जान द्वारा किया जाता है, किन्तु करती हुई वैज्ञानिक तकनीकियां संचार के परंपरागत माध्यमों हेतु भाई बनते जा रहे हैं । फिर संचार के परंपरागत माध्यम हमारी जिंदगी हेतु सरल तथा मानवीय संबंध के लिए अत्यंत उपयोगी है ।

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Sound Engineer

“कस्तूरबाग्राम रूरल इंस्टीट्यूट, कस्तूरबाग्राम, इंदौर” में 15-16 जनवरी, 2016 को “ग्रामीण समाज और संचार: बदलते आयाम” विषय पर संपन्न “राष्ट्रीय संगोष्ठी( national seminar)” के तहत प्रस्तुत विद्वता-पूर्ण शोध लेखों का संग्रहणीय संकलन है यह पुस्तक। जो निश्चित रूप से एक पुस्तक के रूप में मीडिया-जगत के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के साथ साथ विभिन्न विषयी अध्येताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा। Voiceover Artist : RJ Manish Author : Dr. Nirmala Singh Author : Rishi Gautam Producer : Saransh Studios Voiceover Artist : Manish Singhal Author : Dr. Nirmala Singh & Rishi Gautam
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