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आजकल क्या नौकरी भी आसानी से मिल जाती है? फिर जो कुछ उन्होंने उसके साथ क्या है? क्या उसका बदला नहीं ले रही है? कुछ दिन पहले उन्हें टीवी पर देखिए अंग्रेजी फिल्म याद आ गयी । बिलकुल निमी की उम्र की एक विवाहिता महिला बीस वर्ष से ऊपर के युवक की माँ एक टेनिस खिलाडी के प्रेम में फंस जाती है क्योंकि उस महिला का पति भी अपनी इमारत में रहने वाली एक अन्य महिला के प्रेम पांच में फंस चुका है । नहीं प्रेम बंधा होता है । वासना का दलदल ऊपर से मोहक पर अंदर से मारा होता है । एक बार गलती से किसी का पाओ उस पर पडा नहीं कि वह दलदल उसे अपने मैं आत्मसात कर लेता है । आयु, उत्तरदायित्व, सुख सुविधाएं, संतोष, प्रतिष्ठा, परिपक्वता सब के सब महत्वहीन हो जाते हैं । इस दलदल में भाषा नहीं तो क्या निर्मला हो सकता है इस विचार के उनके अंदर की समझ व्यक्ति को सोच लिया । वो निष्प्राण और निर्जीव से कुर्सी पर बैठे रहे । नहीं, ये भयावह स्थिति वो सही नहीं पाएंगे । इसका फैसला होकर ही रहेगा । वो निर्मला की जासूसी करेंगे । उसे रंगे हाथों पकडना ही होगा । फिर क्या होगा तलाक? क्या हत्या हिन्दू भयावह शब्दों का उच्चारण करते उनका अंतर कहाँ गया? पति दवाई संबंधों की परिनीति यही तो है नहीं ना बोल गाल चाहते हैं ना हिंसा । वो तो ऐसा तारतम् में सामान जैसे और संतुलन चाहते थे । जहां हर व्यक्ति अपने स्थान पर प्रतिशत रहेगा । कहीं कोई संबंध चटके न टूटे पर ये सब संभव नहीं हो पाया । वो अनायास बिना इसके भयावह परिणामों की कल्पना किए दलदल में धंस गए थे । अब इस से निकलना कितना कठिन हो गया है । जितना वो हाथों मारते हैं, उतने ही उसमें और ज्यादा पूछते चले जाते हैं । ठीक सवा पांच बजे वो दफ्तर से उड गए । कार में बैठकर वो सीधे सीमा के घर करते । दरवाजा बंद था । घर के अंदर बाहर शमशान का सा मोहन गया था । उन्होंने घंटी बजाएगी, कोई प्रत्युत्तर नहीं । अंदर कोई हलचल होने के संकेत नहीं मिले । कुछ बाद उन्होंने फिर घंटी बजाएंगे । कई मिनट तक प्रतीक्षा करने के बाद दरवाजा खुला । उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि खुले दरवाजे के बीच पिंकी खडी है और उनसे कह रही है, आइए चाचा जी, वो अंदर चले गए । उन्होंने आश्चर्यपूर्वक पूछा, वहाँ नहीं है क्या? आॅक्सी मैंने दरवाजा क्यों नहीं खोला तो उसका प्रकाशचंद्र पूरे विस्मित हो गए । वहाँ अंदर की कमरे की ओर बढते हुए बोले कि मैं तीन दिन से नव सर क्यों नहीं जा रही है? पिताजी से उनका झगडा हो गया था । अच्छा किस बात पर ये तो पता नहीं पर बीच बीच में वो लोग आपका नाम भी लेते जाते थे । पिंकी ने बडे बोले बन से कहा प्रकाशचन्द्र बुरी तरह चौंक गए तो क्या उनके स्वयं के घर में घटित होने वाला नाटक इस घर में भी अभिनीत हो रहा है । उन के कारण सीमा और लाल के मंजूर दवाई संबंध चढ गए । डूबे उदास मन से वह सीमा के कमरे में पहुंचे । उसे पलंग पर पडा देखकर वह चकित रह गए । तीला मुखपृष् स्टेज, आंखें, निष्प्राण शरीर एकदम शाम के समय मुरझाई, सूरजमुखी फूल जैसी वो पलंग पर पडी थी । उन्हें देखकर वो धीरे से मुस्कुरा हूँ । एकदम ऐसे ही जैसे बुझते दिए मैं थोडा तेल डाल दिया गया हूँ । ये क्या हाल बना रखा है? सीमा प्रकाश इन्होंने भरवा इस्वर में पूछा । चलो आपको फुर्सत तो मिल गई । मेरा हाल मालूम करने की तीन दिन से दफ्तर नहीं आ रही थी । फिर भी चिंता नहीं हुई । नहीं जानता हूँ मुझ पर क्या बीत रही थी । पर ये तो बताओ हुआ क्या ये क्या हाल बना रखा है । अभी तक जिंदा हूँ मारी नहीं । बस साफ साफ बताओ क्या हुआ की कह रही थी कि तुम्हारा लाल से झगडा हो गया । मेरा झगडा हो गया । उसने मेरे साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया । किस लिए तुम को लेकर जाना उसके लक्षण नहीं जानती । वो खुद कौन सा दूध का धुला? मैं खूब जानती हूँ । वो क्यों महीने में चार बार चंडीगढ जाता है । आदमी खुद कुछ भी कर लेगा पर बीवी को दो जब खरीद गुलाम बना करना चाहता है, क्या उसे सब कुछ पता चल गया? सब कुछ क्या पता चलेगा? सिर्फ शक है और क्या मैं किसी कीमत पर उसके साथ नहीं रहूंगी? इसलिए मैंने उस दिन नींद की कई गोलियां खाली पर फिर भी मारी नहीं हो ये तुमने क्या क्या सीमा ये तो तुमने सरासर कायरता और पागल बन की बात कर डाली । जिस तरह उसने मुझे जलील किया, अपमानित किया उसे तो मेरा मर जाना ही बेहतर था । पर एक बात तय है कि मैं डाल के साथ नहीं रह पाउंगी । देर क्या अगर होगी कुछ भी करूँ, कहीं भी जाओ पर थोडा शांति से कम लोग सीमा कैसे अलग होता होगी? क्या तलाक होगी तलाक किस आधार पर मिलेगा ये सब मैं नहीं जानती । मैं तो लाल को छोड अब स्थायी रूप से तुम्हारे साथ रहूंगी । मेरे साथ स्थायी रूप से हाँ अगर कोई जगपति आपत्ति हो तो अभी से बता दो और निर्मला वो तुम्हारी समस्या है । तुम जानो उन्हें तलाक दे दो तो ठीक रहेगा वरना मिला तलाक के भी हम दोनों पति पर नहीं चला रह सकते हैं । सात फेरों याॅर्क की मोहर की को विश्वास है । मैं नहीं है । मेरे लिए प्रकाशचन्द्र के सामने एक बेहद जटिल समस्या उत्पन्न हो गई थी । जिन संबंधों को वह सिर्फ मनोरंजन और मनबहलाव का साधन समझे हुए थे, वो खतरनाक मोड पर पहुंच चुके थे । एक तो उनको निर्मला से तलाक लेना होगा, फिर सीमा और लाल का तलाक हो, तब कहीं जाकर उनका और सीमा का स्थायी मिलन संभव है । दोनों के लिए तलाक के कोई पर्याप्त कारण नहीं है । फिर भारत में तलाक की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि ये सब सरलता से नहीं हो सकता । वर्षों लग जाते हैं । इस प्रक्रिया को पूरा होने में क्या सोचने लगे । यदि तुम्हारे लिए ये संभव नहीं तो मुझे बता दो, मैं समस्या का कोई और समाधान खोज होंगी । सीमा ने वो कृष्णा से कहा, सीमा बाद संभव और असंभव की नहीं है । हम दोनों को इतनी आसानी से तलाक मिलना संभव नहीं । मैं चला के लिए कब कह रही हूँ? क्या हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की शादी नहीं हुई? क्या वे लोग पहले से विवाहित नहीं थे? इंसान चाहे तो असंभव को भी संभव कर सकता है । सीमा मैं नहीं जानता । इन फिल्मी कलाकारों ने ये सब कैसे किया? शायद उनके पास पैसा था । हमारे पास भी दो पद है । सीमा थोडी समझदारी से कम लोग । हम दोनों ही जिम्मेदार सरकारी अवसर है । आश्रणीय मौली के अनुसार एक पति या पत्नी के होते दूसरी पत्नी पति से विवाद नहीं कर सकते । विवाह की बात कौन कर रहा है तो साथ रहने के लिए क्या रहेगा? सीमा ये भारत है पश्चिम नहीं । यहाँ बिना विवाह केसरी पुरुष का साथ साथ रहना ठीक है । फिर ये कहानी खत्म । कल से हम दोनों के रास्ते अलग अलग । अब कभी मिलने की कोशिश मत करना । अब आप जा सकते हैं रोज और उत्तेजना में भरकर । सीमा ने निर्णायक स्वर में कहा, इतने अपमानजनक आक्रमण के बावजूद प्रकाशचंद्र बैठे रहे । मोटे नहीं । इतनी दूर तक दलदल में फंसकर क्या उस से निकलना संभव था? क्या एक ही कार्यालय में साथ साथ काम करते हुए इतने घनिष्ठ संबंधों के बावजूद वे दोनों एक बार फिर से परिचित बन पाएंगे और संभव जनमी को छोड देना संभव होगा । सच तो ये है कि पिछले दिनों से उसने उनकी जिंदगी नरक बना दी है । यही नहीं आजकल तो उसने एक नया गुल्ली खिलाया हुआ है । यदि नीली कार वाले के साथ उसके पति व्यवसाई संबंधों के प्रमाण मिल जाते हैं और उसका विश्वासघात तथा चरित्रहीनता सिद्ध हो जाए तो तलाक के लिए एक मजबूत आधार बन जाएगा । अब बैठे हुए क्या सोच रहे हैं? सीमा ने उखडकर का सीमा जल्दबाजी से कम देना ठीक नहीं । मुझे सोचने के लिए कुछ समय तो ठीक है । तो लोग अब मैं और नहीं होंगे । ये निर्णय तथा अनिश्चितता की स्थिति बस दो चार दिन नहीं अंतिम फैसला करना होगा । सीमा आश्वस्ति हो गई । फिर थोडी देर तक विचारमग्न रह कर वो बोली क्या करूँ? मेरी हिम्मत नहीं होती उठने की वो चाय कॉफी उसकी चिंता मत करो । मैं दफ्तर से पी कर आया था । अब मैं चल होगा मेरा ये लाल कहाँ चला गया? काॅलेज गया है अकेला नहीं । चंडीगढ से उसकी प्रेमिका और उसका पति आए हुए हैं । उन्होंने शहर कराने उठाना खिला रहे हैं प्रकाश । इन्होंने सीमा के इस वक्तव्य को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया । वो सोचने लगे तीन और लाल में झगडा हुआ है । इसी के कारण चंडीगढ से आए मैं तो उसकी पत्नी को शायद सीमा ने गलत समझ लिया है । ऐसी आंखें मटका मटकाकर लाल से बातें कर रही थी और बीवी के गुलाम नरेंद्र को देखो । बीवी पराए मर्द को रिझा रही थी और आपकी से निंबोरकर चीज ही कर रहा था । अच्छा सीमा अब मैं चलूंगा क्यों? क्या जल्दी में हो? क्या निर्मला की याद आ रही है प्रकाश चंद्र को सीमा की ये सस्ती इस तरह बातें जम नहीं । नहीं नहीं । फिर भी वह कोई प्रतिवाद नहीं करना चाहते थे । अब है कलाई पर बंधी खडी में देखकर वो बोले सवाल बज रहे तीन घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला । देखो मुझे हमेशा के लिए अपना लोग फिर देखना समय का पता भी नहीं चलेगा । प्रकाशचन्द्र उठे और बाहर आ गए । बेहद उमस और धूल भरा सा माहौल था । बाहर भी डर एक साथ वहां से रवाना हो । वो सीधे घर आ गए हैं हूँ । उन्हें देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि निमी अभी तक नहीं लौटी थी । चार । विवेक भी नहीं आया था । सिर्फ माला घर में अकेली थी । संभव है । नौकरानी भी छुट्टी करके जा चुकी थी । उन्होंने कपडे बदले, उससे पहले स्नान घर में जाकर न आए । फिर इससे ठंडी बोतल निकली, उसे पूरी पी डाली । तब कहीं जाकर उन्हें को शांति मिली । पर ये शांति शारिक स्तर पर ही थी । मानसिक और भावना को डिस्टर्ब हो । बेहद अशांत थे निर्मला की ये हिम्मत सरयाम वो पराए मर्द के साथ आवारागर्दी करती पढिए । उसके दिल से ये भी डर निकल गया है कि अब रात के नौ बज रहे वो करा चुके होंगे और उसे अब घर लौटना चाहिए । अंदर ही अंदर वो बोलते हुए माला के कमरे के बाहर पहुंचे और उसे आवाज नहीं माला किताब पकडे बाहर आकर खडी हो गई तो बोली कुछ नहीं वहाँ का प्रकाशन लाॅकर पूछा । मुझे नहीं मालूम घर में रहती हो या नहीं । प्रकाशचंद्र बिगडे रहती हूँ पर एक उपेक्षित लडकी की तरह चौकीदारी करना नहीं आती तो ये घर आया सराय, आखिरी से सलाह किसने बनाया है? माला का मुफ्त तमतमा गया । उन से टक्कर लेने के लिए कटिबद्ध नजर आ रही थी । माला तुम प्रकाश इन्होंने क्रोध में भर कर रहा हूँ वहाँ पिताजी मैं बच्ची नहीं नहीं, कमोबेश सबको समझती हूँ । आखिर हमारे घर को क्या हुआ है ये विघटन शुरू करने के लिए आप की जो जिम्मेदार रहे वाला तो मुझे दबा लडाई हो । ठीक है अगर आपको इसका सच को सुनने में तकलीफ होती है तो मैं अंदर चले जाते । रहते हुए माला अंदर कमरे में चली गई और पडने लगी प्रकाशचन्द्र वहीँ खडे रह गए । अपमानित पिटे हुए और परेशान से क्या करें हो? अब एक ऐसी स्थिति आ गई है जब कल तक उनका सम्मान करने वाले बच्चे उनका सामना कर अपमान करने से नहीं चूक रहे हैं । वहाँ से चले गए । बाहर लॉन के किनारे जाकर वह खडे हो गए । चांदनी रात ही पूरा चान सिर के ऊपर आ गया था । इसी की वजह से उमस कम हो गई थी । निरुद्देश्य से वह लॉन में चहलकदमी करने लगे । दस बजने लगे थे पर निर्मला का कहीं कोई पता नहीं था । कहाँ गए वो वो चिंतित और आप तोड से बार बार समझ की ओर देख रहे थे । तभी मुख्य समय पर एक नीले रंग का आधार होगी । बोल पा कर आगे बडे तब तक निर्मला आगे की सीट से बाहर निकली, दरवाजा बंद किया और जो करियर की चार पांच सीधा हाथ हिलाकर ड्राइवर को बाय बाय करके वो लोन की तरफ आ गई । प्रकाशचन्द्र का खून खौल रहा था उनका जी । क्या वो अभी तत्काल इस विश्वासघाती चरित्रहीन महिला का खून कर नहीं किस शान इतनी और शालीनता से चली आ रही है । यार के साथ गुलछर्रे उडाकर निर्मला लॉन के पास पहुंची तो प्रकाशचंद्र ने तो आपका पूछा, नहीं नहीं दी । निर्मला ने उनकी ओर उपेक्षाओं से देखा और फिर उन्हें देखा । अनदेखा कर वो अंदर चली गई । प्रकाशचन्द्र के क्रोध में उबाल आ गया । वो तेजी से अंदर गए । निर्मला के पीछे पीछे बैठक नहीं । उन्होंने उसकी दोनों बाहों को कसकर पडा और आवेश में भरकर कहा मैंने कोई बुझाता चुना था जब आप क्यों नहीं दिया? जरूरी नहीं समझा जरूरी था मेरे खयाल से नहीं था प्रकाशचन्द्र के हाथों का दबाव । निर्मला की बाहों पर बढा तो वो तो कर बोली हाँ! छोडिए! प्रकाश! इन्होंने हाथ नहीं छोडे । चीखकर बोले जवाब दो ऐसे स्तर पर उतर आए हो तो मेरे सर की बात करते हो । अपना स्तर तो देखो । एक बार आई मार के साथ इतनी रात गए चोरी और सीनाजोरी । तकलीफ हुई ना बदलाव पता चला विश्वास हाथ कैसे कचोटता है । माला बाहर आ गई थी । मूवी और चिंतित दर्शन बनी वो घर में होने वाले महाभारत को देख रही थी । निर्मला ने एक झटका दे अपनी बातें मुख करा ली । फिर वो अंदर चली गई । अपने कमरे में नहीं माला के कमरे में प्रकाशचंद्र में अकेले खडे रह गए । कोई संपत्ति कक्ष में पडे गोलमाल की तरह हूँ ।