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भाग - 15 in Hindi

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AuthorRJ Abhinav Sharma
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तो अब दस बार में आपको और सीमा मेम साहब को बाहर ले गया था और मैंने आपकी प्राइवेट यात्राओं को सरकारी कर दिया । तो क्या हुआ साहब मैंने देखा फॅमिली थी करीब तीन सवा तीन सौ रुपए बनते हैं तो मुझे रात धमकाकर पैसे अपने आये । ऊं प्रकाश उन्होंने तनिक रोज से कहा । तब ऐसा करना होता तो हम आपकी इस कहानी को सारे दफ्तर में फैला देते हैं । पर नहीं हम नाम खराब नहीं है । जब भी किसी ने आप दोनों के बारे में गलत बयानी की हमने उसका मुंहतोड जवाब दिया । वो तो इस समय थोडी मजबूरी आ गई । वह हम आपको परेशान करते, बडा बनना है । ठेकेदार हो इतना घूमना निकलेगा ये तो उन्होंने कभी सोचा नहीं था । प्रकाशचंद्र का दिल डूब गया । गलत काम करके उन्होंने अपने आपको इस पटना से कर्मचारियों के हाथों देश दिया था । वो पराजित सा महसूस करते हुए बोले ठीक है इस समय मेरे पास नहीं है । कल ले जाना हूँ थी के साथ जरा याद कर के लिए आइयेगा क्या कर केदार चला गया । प्रकाशचंद्र बेहद उदास हो गए । ये सौ रुपयों की बात नहीं थी ये सिद्धांत की बात ही । यदि आज उप सचिव प्रशासन होते हैं तो क्या केदार की उनके पास आकर इस प्रकार रुपये मांगने की हिम्मत पडती? ठीक है समय समय की बात है । मौसम आया तो इसके दार के बच्चे को देख लेंगे तभी उन्हें याद आया हूँ । यहाँ शाम को अशोक होटल में एक प्रीतिभोज का आयोजन है । उनके एक सहकर्मी के पुत्र का निर्वाह हुआ था उसके उपलक्ष्य में । पता नहीं मेरे माना जाना पसंद करेगी या नहीं । जो भी हो उन्हें तो जाना ही होगा । चाहे हो जाए या नहीं । शाम को घर पहुंचे । घर पर कोई नहीं था । नानी मीना विवेक नाम आला सिर्फ नौकरानी थी । उसने बताया की माला कॉलेज से आकर किसी लडके के साथ चली गई है । विवेक अभी अपने दफ्तर से नहीं लौटाए और मेमसाहब वो तो दोपहर से दो बजे की निकली हुई है । छह बजे से पहले नहीं आएगी । नौकरानी द्वारा किए गए एक और है । उद्घाटन ने प्रकाशचंद्र को बुरी तरह चौंका दिया । मेमसाहब अक्सर दो दिन में करीब चली जाती और पांच बजे के बीच लौटा दी है । वो कहाँ जाती है? उन्होंने नौकरानी से पूछा पता नहीं चाहते क्या अकेली जाती है? हाँ साहब जाती तो के लिया पर पर क्या पर लौटी कार में है कार में कौन होता है । एक साहब तो उन्होंने जानती हूँ नहीं कार का रंग किया है । हल्का नीला ठीक है । प्रकाशचन्द्र के मन में संदेह कावेश खुल गया । उन का संपूर्ण अस्तित्व कपकपाने लगा । वो जैसे जैसे कमरे में चहलकदमी करते रहे, उन्हें लगा जैसे उनके पांव के नीचे की जमीन दलदली हो गई है । किसी भीषण वो उसमें समाज सकते हैं । कौन है नीली कार वाला क्या निर्मला भी उसी रास्ते पर निकल गई है जिस पर वो चल रहे हैं । क्या वो भी विविधता की जहाँ से अवश्य हो गई है? क्या सचमुच ऐसा हुआ? पूरे दिन घर पर अकेली रहती है माला कॉलेज और वह पूरे अपने अपने दफ्तर चले जाते हैं । सुबह दस से छह बजे तक वो एकदम अकेली है । घर बाहर, सब स्थान पर पूर्ण सुबह होता । बंधन हिंगा एक कान शांति लोग तो बंधन और परतंत्रता के बावजूद असंख्य व्यक्तियों की भीड में जिंदगी की पूर्णता पा लेते हैं । फिर निर्मला के मार मैं कौन सी वाला है? अपने सिर को दोनों हाथों से पकडा । प्रकाशचंद्र सोचने पर बैठ गए । नौकरानी चाय ठन्डे के लिए पूछने आई थी । उन्होंने मना कर दिया था । न जाने कितनी देर तक वो संज्ञाशून्य से बैठे रहे । बस एकीभाव श्रेष्ठा उनके मन में ये घर कैसा था? अब कैसा हो गया है । करीब सवा छह बजे विवेक लौटा । वो सीधा अपने कमरे में चला गया । उसके पांच मिनट बाद ही निर्मला गई । गर्मी के कारण मूत हम जमाया था । पसीने से शरीर लतपत हो रहा था । उन्हें देखा देखा कर वो भी अंदर चली गई । प्रकाशन उत्तेजित होकर खडे हो गए । फिर वो अंदर जाकर तेज स्वर में बोले कहाँ गई थी? निर्मला ने कोई उत्तर नहीं दिया । बोलती क्यों नहीं? ऐसे मैंने तुम्हारा कौन सा माल मार लिया है जो हर समय मुझे बुलाए रहती हो? प्रकाश उन्होंने बेहद अवार्ड से का । मैं बेकार की बहस में नहीं पडना चाहती हूँ । फिर मेरे सवाल का जवाब दो । क्या मुझे स्पष्टीकरण देना होगा? ऐसा ही समझ लो अगर मैं ना दूर तो नहीं प्रकाशचन्द्र चीज पडे की कीमत जहाँ पे अंतर में झांकर देखिए फिर चीखेगा हो ये घर है । असाॅल्ट किसने बनाया? ऍम प्रकाशचन्द्र बुरी तरह चौपडे ये चुभता हुआ प्रश्न निर्मला ने नहीं देखने पूछा था वो चौक पर आकर खडा हो गया था तो वो मतलब को अपने कमरे में जाओ प्रकाश उन्होंने आदेश दिया वहाँ पर सीखने का आपको कोई अधिकार नहीं है । अगर अपने माँ से दुर्व्यवहार किया तो तो तुम की अगर हो गए । प्रकाशचन्द्र इस विचित्र स्थिति के लिए कतई तैयार नहीं है तो मुझे हस्तशिप कर नहीं होगा । वे तो अपने कमरे में जाओ । अभी मुझे अपनी सुरक्षा और बचाव करने की शक्ति है । निर्मला ने कहा और वो तौलिया लेकर स्नान घर की तरफ बडने लगे । प्रकाशचन्द्र ने उसका रास्ता रोक लिया । फिर वो उन्माद और भी तृषा मिले । सुर में बोले बाद में नाना पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दो तो मुझे धमका रहे हो । क्या मैं तुमसे बोलती हूँ कि तुम कहाँ जाते हो? जिसके पास जाते हो इसके साथ जाते हो । जब मैं नहीं पूछती हूँ तो मैं यहाँ हम उसे पूछने का प्रकाशन में हथियार डाल दिए । क्या लाभ था कटुता को बढाने से उन्होंने निर्मला का रास्ता छोड दिया । ठीक है तुम अपने रास्ते पर चलो । मैं अपनी राह पर चलूंगा । जय का प्रकाश इन्होंने हाथ हुए और कपडे बदलकर तैयार हो गए । अशोक होटल जाना था जहाँ संबंधों में सीमा तक तनाव और कटुता आ जाए । वहाँ कुछ भी कहना या करना मेरा था । कहने से कोई लाभ नहीं था । निर्मला नहीं जाएगी । तैयार हो प्रकाश । उन्होंने गाडी निकाली और प्रीतिभोज में चले गए । करीब दो घंटे तक काफी गहमागहमी रही । अशोक होटल की तीसरी मंजिल पर दावा हॉल में मित्रों और सहकर्मियों की भीड में घिरे हुए वो घर में उत्पन्न पडता को जी रहे थे । एक एकांत कोने में अकेले वो खाना खाते रहे । एक मित्र ने पूछा भी था क्यों भाई क्या बात है? उदास नजर आ रहा हूँ । कुछ नहीं क्या करूँ होता? टाल गए थे । प्रीतिभोज समाप्त होने से पूर्वी माहौल से बाहर निकल भागे । गाडी में बैठे वो चले तो उन्हें ऐसा लगा जैसे वो घर नहीं कारावास की तरफ जा रहे हैं । राष्ट्रीय में सीमा का घर बडा अपना जाने की भावना से प्रेरित हो । उन्होंने उसके घर के सामने कहा रोक दी । वहाँ एक घंटे रोककर जब घर पहुंचे तो किसी ने उनसे कुछ नहीं पूछा कि आखिर तुम कहाँ गए थे? गए थे तो ठीक आ गए तो टी पूरे पच्चीस साल का । प्रकाशचंद्र कम से कम एक विदेश यात्रा का सपना देखते रहे थे । पूरे दफ्तर में एक भी अवसर ऐसा नहीं था जो एक दो बार के चक्कर न लगाया हूँ । इस बार उन्हें अवसर मिला था । लंदन में राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों के प्रशासनिक अधिकारियों के लिए दस सप्ताह का एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया जा रहा था । उन्होंने उस के लिए अर्जी दी थी । उन्हें पूरा विश्वास था इस बार उन्हें इस विदेश यात्रा की अनुमति अवश्य मिल जाएगी । कई दिन से फाइल सचिव के पास पडी थी । वैसे उन्हें अपनी सफलता का विश्वास तो था, पर चूंकि श्रीमती काशीनाथ स्वाइल पर टिप्पणी लिख दी थी, उन का मन बार बार आशंकित हो जाता था । तीन चार दिन की दम वोट प्रतीक्षा के बाद सरकार के निर्णय की घोषणा हो गई । जिस बात की आशंका थी, वही हुई । सचिव ने उनके नाम का अनुमोदन नहीं किया था । वे बेहद उदास, निराश और परेशान थे । उनको अपनी इस सफलता का कारण पता था उन का पहला संयुक्त सचिव और सीमा का । वर्तमान संयुक्त सचिव घनिष्ट मित्र हैं और वे सचिव के अग्रणी चमचे हैं । फिर जिस अवसर का चुनाव हुआ, उसके सामने वो टिक भी कैसे सकते थे? श्रीमती काशीनाथ लंदन जा रही थी । वो एक बार पहले भी कनाडा हुआ ही नहीं । ठीक है, जब श्रीमती काॅफी लिखनी थी, तो उनकी सफलता का तो प्रश्न नहीं उठता था । कमरे में मन नहीं लग रहा था । अंतर मन की पीडा को बांटने की खाते वो सीमा के पास चले गए । उसके कमरे में बैठने वाला अन्य अवर सचिव शायद आपने उप सचिव के पास गया हुआ था । इससे उन्हें सीमा से बातें करने के लिए एकांत मिल गया । उन्होंने हो और सीमा हो देखा वो भी थोडी, चिंतित, परेशान और उदास तो क्या उसे भी उनकी इस सफलता के बारे में पता चल गया । ऐसे समाचार कितनी तीव्रता और शीघ्रता से दफ्तर में प्रचारित हो जाते हैं? सीमा आज कौन सी के लिए क्यों नहीं आई? प्रकाश उन्होंने पूछा यही मन नहीं किया । इसमें परेशान होने की क्या बात है । जब तक श्रीमती काशीनाथ प्रशासन को देखती रहेंगी, हमें कुछ नहीं मिलेगा । सीमा ने उसी दृष्टि से प्रकाशचंद्र को देखा । वो कुछ नहीं समझ पाई । ऐसे क्या देख रही हो? मैं समझी नहीं तो क्या? तो मैं पता नहीं कि मैं लंदन नहीं जा रहा हूँ । नहीं तो फिर तुम उदास क्यूँ प्रकाश निरॅतर पूछा होश और पर सीमा उदास चिंता ऐसी बैठी रही हैं । चार अंदर से साहस नहीं जुटा पा रही थी या फिर फैसला नहीं कर पा रही थी कि वो उनसे भागीदारी करें या नहीं । क्या लाल से झगडा हो गया है? प्रकाशचंद्र ने यही मजाक में पूछ लिया । सीमा क्या है? छलछल आई अरे तो रो रही हो प्रकाशचंद्र बुरी तरह से बता रहीं हूँ । कल रात को लाल से झगडा हो गया और नहीं तो क्या करूँ? किस बात पर झगडा हुआ तुम को लेकर मेरी वजह से प्रकाशचंद्र बोले और अंदर बहुत गहराई में जाकर वो भयभीत हो गए । इन विवाहेतर संबंधों के दुखद परिणामों से वो भलीभांति परिचित थे । फिल्मों तथा अन्य किस्से कहानियों के माध्यम से वो इन संबंधों के दुष्परिणामों को देख चुके थे । हाँ, पता नहीं किस कमीने व्यक्ति लाल को एक गुमनाम पत्र लिख दिया । उसमें हमारे हमारे संबंधों की पूरी जानकारी उसे दे दी । पत्र घर पर मिला था । नहीं, वो लाल के दफ्तर के पते पर भेजा गया था । तो कल शाम को दफ्तर से घर लौटा और पूरा घर से पर उठा लिया । ऐसे बिगडा की बस पूछो मत, ये तो बहुत बुरा हुआ । प्रकाश उन्होंने काम पे स्वर में कहाँ? उन्हें लगा कि ये संबंध खतरनाक मोड पर पहुंच गए । एक विश्वासघाती महिला कारूष पति पत्नी के प्रेमी की हत्या करने में भी नहीं इसके जाता हूँ । इस विचार के साथ ही प्रकाशचंद्र का पूरा शरीर पसीने से नहीं आ गया । मैं लाल की परवाह नहीं करते हैं । मेरा जो मन करेगा, मैं वही करूंगी । खुद का घर में बैठेंगे पर दूसरों पर पत्थर फेंकने से बाज नहीं आएंगे । प्रकाशचन्द्र की समझ में कुछ नहीं आ रहा था । एक अगर भय से वो कहाँ रहे थे । वो सोचते हैं कि मैं उनकी गीदडभभकियों के आगे झुक होंगी । मुझे तो सिर्फ एक ही बात है क्योंकि है अगर पिंकी और खयाल ना होता तो मैं कल रात लाल को छोडकर हमारे पास आ जाती हूँ । हूँ । फिर क्या होता यदि सचमुच सीमा किसी दिन उनके घर आ जाए तो क्या करेंगे? क्या निर्मला और उसको एक साथ हो एक ही घर में रह सकते हैं और वो भी खास तौर पर । विवेक और माला के होते हुए नहीं या संभव है । मुझे तो लगता है इस गुमनाम चिट्ठी को भेजने वाला साथ हुई है । वो कुछ भी कर सकता है । सीमा बेहद को तेजित हो गई । सीमा तो थोडे विवेक से काम लेना चाहिए । इस तरह पति से झगडा करना उचित नहीं । प्रकाश इन्होंने उसे समझाया तो तुम क्या चाहते हो ना उसका अन्याय को चुपचाप सहन हूँ । वो चाहे कुछ करें पर मैं कुछ नहीं कर सकती । ये क्या बात हुई मैं तुम्हारी व्यथा समझता हूँ सीमा पर जिस तरह की व्यवस्था में हम जी रहे हैं उसमें हमें अपने अपने जीवन साथी को सन्तोष रखना ही होगा । अन्यथा अच्छा क्या होगा? सीमा ने ऊपर कर पूछा कुछ भी हो सकता है । प्रकाश इन्होंने और पूर्ण स्वर में कहा कुछ भी हो जाए पर मैं लाल का न्याय, अत्याचार और अनाचार नहीं होंगी । प्रकाशचन्द्र मौन हो गए । सीमा से आगे बहस करना व्यवस्था वो खडी और उत्तेजित थी । ऐसी स्थिति में वो इस विवाद के दुष्परिणामों की कल्पना करने में पूर्ण रूप से असमर्थ थी । प्रकाशचंद्र ने फैसला कर लिया कि वो सीमा को समझाएंगे, अभी नहीं । जब वो शांत और सहज होगी, वो सीमा के पास से चले आए । बडे उस दिन परेशान और उदास से क्या करें? कहाँ जाएँ और बाहर डॉक्टर सब जगह सफलता है । मैं बोलता है और प्रतिकूल पर से दिया उनका मुंह चिढा रही थी । आज सीमा से मिलकर उनके मन में एक भाई घर कर गया । यदि लाल को इन संबंधों के बारे में पता चल गया है तो उनका कुछ भी अहितकर सकता है, यहाँ तक की हत्या भी । इस भयावह कल्पना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया । वो हमले उनका विवेक जागृत हुआ, एक व्यक्ति की भावनाओं भी नहीं । अब वो इस संबंध को समाप्त कर देंगे और संबंध टूटने के लिए जोडता है । क्या लाभ जिंदगी में ऐसा खतरा मोल लेने से ठीक है । वो सीमा और लाल से मिलेंगे । शांतिपूर्वक ठंडे दिल से वो लाल को समझा देंगे । ये गुमनाम पत्र साधु ने या दफ्तर की किसी अन्य व्यक्ति ने एशिया वर्ष लिखा है और उसे गंभीरतापूर्वक लेने की आवश्यकता नहीं है । पर तभी वो अपने आप को अवश्य महसूस करने लगे । कई बार ऐसा निर्णय कर चुके हैं । पर हर बार सीमा का सामना होते ही उनका निश्चय सूखे पत्ते जैसा हो जाता है । ऐसा क्यों होता है? प्रकाशचंद्र की एक महीने की छुट्टी स्वीकृत हो गई थी । इसकी सूचना प्रशासन अनुभाग के अधिकारी ने दे दी थी । उन्होंने तुरंत सीमा से संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया, पर वो नहीं मिली । कई दिन तक यही सिलसिला चलता रहा । तीन दिन तक सीमा दफ्तर नहीं आएगी । नहीं, उसमें कोई सूचना भेजी नहीं । छुट्टी की अर्जी जरूर वो बीमार हो गई होगी । प्रकाश इन्होंने सोचा और उन्होंने शाम को दफ्तर से सीधे उसके घर जाने का फैसला कर लिया । इधर निर्मला के रेस में व्यवहार ने उन्हें बहुत परेशान कर रखा है । वो बराबर दो और पांच बजे के बीच घर पर फोन करते रहे थे । एक बार भी निर्मला नहीं मिली थी । हो उनकी घंटी बजती रहती थी । एक दो बार इसी पर उठाया गया था । वो भी नौकरानी द्वारा । वो आवाज पहचान गए थे । उन्होंने बिना बोले फोन बंद कर दिया था । पर एक दिन उन्होंने बात की थी । पूछा था मेमसाहब है वो नहीं ऐसा नौकरानी उनकी आवाज पहचान गई थी । कहाँ गई पता नहीं चाहते क्या वहीं गई हैं जहाँ हो जाती हैं? हाँ साहब, अब तो कार वाला साहब हम सबको दोपहर को लेने भी आता है । अच्छा जी साहब आज तो देर से आने की भी बोल रही है । ऐसा और उत्तेजित हो उन्होंने फोन बंद कर दिया । उनकी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया । क्या वो निर्मला को गवा बैठे हैं पर तभी भी अपने मन को आश्वस्त करने लगे । क्या मूर्खतापूर्ण बातें हो जाते है हूँ अवश्य निमी ने मेरा उनसे पूछे बहुत काटने के लिए कहीं नौकरी कर ली है । वही समझदार महिला है पढी लिखी सौं, सुसंस्कृत ग्रहणी दो युवा हुए बच्चों की मां भावनात्मक तथा मानसिक रूप से परिपक्व । उसे जीवन की समस्त सुविधाएं उपलब्ध है तो उनके साथ क्यों विश्वासघात करेगी? पर प्रकाशित बहुत देर घर अपने मन को नहीं पहला सके छलावा ऍम हूँ

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