Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
14 रसरंग -आज की सरकारी शिक्षा in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

14 रसरंग -आज की सरकारी शिक्षा in Hindi

Share Kukufm
49 Listens
AuthorSaransh Broadways
"गुलों में कई रंग हैं बहार में कई रस हैं जीवन अपने आप में रंगरस है"
Read More
Transcript
View transcript

आज की सरकारी शिक्षा वैसे तो लगभग पचास साल पहले भी भारत की राजधानी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में यही होता था जो आज हो रहा है आगे भी होता रहेगा ऍम खुद अपने स्कूल में देखा कॉटन अपने स्कूल का नाम नहीं बताया था एक काल्पनिक स्कूल की बात करते हैं कहाँ होना चाहिए उसको नवगांव कर लो अपने गांव का इस बात को छोडो कहीं भी हो सकता है किसी भी राज्य में जो राज्य आपको पसंद हो या फिर ना पसंद नहीं पर नवगाम पैसा लेते हैं पैसे आप नवगांव के स्थान पर कोई और भी लिख सकते हैं जो आपको पसंद है । शहर नवगांव धन सरकारी हाईस्कूल कक्षा बारहवीं अब आप पूछेंगे कि बारवीं कक्षा ही क्यों बारवी इसलिए क्योंकि बच्चे बडे हो जाते पिताजी के साथ इसके बनियान पहनने लगते हैं ऊॅट भी करने लगते हैं इस कारण बारवीं कक्षा उचित है स्कूल के हेडमास्टर के पढाने की ड्यूटी लगी है तो नहीं था उन का पढाने का ऐसे बच्चों का कौन सा दल होता पढने के लिए ना तो पढाने वाले का दिल और नहीं पडने वाला हूँ मजबूरी अहमदाबा पडने में देते हैं स्कूल में हम औपचारिकता भी तो पूरी करनी होती है स्कूल का समय हो गया । बच्चे स्कूल में इधर उधर मस्ती कर रहे हैं । कुछ काम कर रहे हैं स्कूल कम सब्जी मंडी अधिक लग रहा है । प्रिंसिपल हैडमास्टर से कह रहे हैं बारहवीं की बोर्ड परीक्षा असर पडे पढाने के लिए टीचर नहीं ऐसा करो सरकारी नीति के अंदर आठवीं तक तो किसी को फेल करना नहीं ऍम स्कूल की प्रतिष्ठा होती है अब से तुम पार्टी को पढाओ ऍम मुझे ये नहीं होगा । मैं तो छोटी ऍम आठवीं तक पढा सकता हूँ । प्रिंसिपल मैं कुछ नहीं होगा बारह को पढाना होगा ऍम नेताओं वाले काम चला करवा प्रिंसिपल क्या मतलब ऍम नेताओं को क्या अभी वित्त मंत्री तो कभी कोयला मंत्री तो कभी शिक्षा मंत्री हम आम लोग ये काम नहीं कर सकते । आठवीं का मास्टर बारवीं को नहीं पढा सकता है । प्रिंसिपल मैं कुछ नहीं जानता तो आज से हमारे को पढाना शुरू कर दो फॅार भी क्या करें? बारवी क्लास में पढाने पहुंच गए आज की क्लास आरंभ क्लास में टूटी फूटी कुर्सियां और फ्रेंच पिछले स्कूल में हेडमास्टर खडे होकर बढा रहे हैं और विद्यार्थी आसपास बैठे या खडे सुन रहे हैं । बाजार का भेजा प्रिंसिपल से बात करके पहले ही फ्राई हो चुका था बेमन से पढाना नाम क्या है? हेड मास्टर भारत में असभ्य लोग रहते थे । सारे के सारे ऍम किसी को कल नहीं गडबड, गडबड गाया करते थे । उनको लोग भेद कहने लगे सब सब थे । अंग्रेजों ने भारत को सभ्यता सिखाएगी । ज्ञानचंद सब सत्य जब अंग्रेजों का जन्म भी नहीं हुआ था तब से भारत सब हैं । रामायणकाल और महाभारत काल में अंग्रेज कहाँ थे? हमारे वेद शास्त्र, उपनिषद और पुराण भारत की आदिम सभ्यता की घोषणा करते हैं । उधर गवार के अंग्रेजों के देश में नहीं रहते हैं । उनके असभ्यता आ गई थी । मालूम नहीं भाईसाहब भूले भटके पूरे स्कूल में ज्ञानचन्द्र जैसे दो चार पता नहीं कहाँ से पडने आ जाते हैं । देखा जाए तो सरस्वती मेहरबान रहती है और प्रतिभासंपन्न दो चार विद्यार्थियों की बदौलत सरकारी स्कूल बडे घर से कहते हैं कि कौन कहता है कि हम पढाते रहे हैं । आजकल तो माँ बाप बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढाने के चक्कर में रहते हैं । हम तो फ्री में पढाते हैं । पता नहीं आजकल अभिभावक प्राइवेट स्कूलों के पीछे पागल क्यों ऍफ है उससे पीछा छुडाने के लिए कर्मचंद से पूछ लूँ फॅार कितने बंदर है? कर्मचंद बंदरिया बंदरगाह ऍम बंदरगाह यहाँ पे आना मैं के बच्चे अध्यापक की खिचाई कर रहे हैं । अब अध्यापक भी क्या कर रहे जब आठवीं कक्षा के अध्यापक को बारहवीं कक्षा पढाने को दे दी जाए कर्मचारी मैं अपने दिमाग के साथ अत्याचार नहीं कर सकता कि उसे स्टेज के बन्दर याद करूँ जिससे मेरे जीवन को कोई लाभ नहीं । अपने पुस्तकालय में बोल की पुस्तक रखी हुई है उसमें दुनिया भर के बन्दर और बंदरगाह लिख है आप स्वयं पर लेना ऍम रेखा गया ऍम प्रशांत महासागर ऍम अब क्या हो गया ऍम फॅसने मेरे पिता से कह दिया कि मैं आज खेलता हूँ और दो हजार रुपए हर रोज आता हूँ । मैं हार भी जाता हूँ तो उसके बाद के पैसे आता हूँ । मैं आता हूँ तो क्या चला जाता है । उसके बाद का ऍम जमाना अलग अलग बैठ गए । रमेश कहाँ बैठी हूँ कोई फॅमिली से स्कूल में ऐसा करता हूँ कि कल घर है लडाई लेकर आ जाऊंगा । आराम से कोने में बिछाकर लेट होगा ऍम ऍम दिया दिनेश जब मैं ज्यादा की किताब उठाता हूँ तो दिल और देवा आगे की बात कहते हैं फॅस करेगा मेरी यह तो अत्याचार ऐसा ऍम हरी शिक्षा को अत्याचार बताता है । ज्ञानचंद इन सब पाठ्यपुस्तकों को हारकर फेंक देना चाहिए । कुछ भी व्यवहारिक नहीं । हमारी शिक्षा प्रणाली में दिनेश फॅमिली हमारे में से आधे तो बात की दुकानों पर बैठना और बाकी आधुनिक लडकी करनी है । स्कूल में ना तो दुकान पर बैठने की शिक्षा मिलती है और नई क्लर्क बनने की ज्ञानचंद ॅ तो दुकान में कोई मदद करता नहीं । क्लर्की में हम ऍम मास्टर तो लोगों को विद्या नहीं आएगी । तमाम उम्र नालायक रहोगे क्या आंचल विद्यालय कर क्या करेंगे? ऍम सब एक नंबर कॅाम में और पाजी, पाजी और सारे के सारे सभी लडके एक सर में हमारे साथ गाली गलोच कितना अच्छा नहीं होगा ऍम हुआ हूँ । इतना सुनकर सभी लडके हेड मास्टर हाय हाय के नारे लगाते हुए क्लास से बाहर आए । पूरे स्कूल का चक्कर लगाया और स्कूल के गेट पर धरने पर बैठ गए । फॅार हेड मास्टर से बोला पंगा लेने को किसने कहा था पदनाम इसे तो बाहर में जा लडके पढे आना पडेगा हमारे बाप का क्या जाता है अपनी सैलेरी की चिंता करो हर महीने ऍम को गोली मार हूँ ऍम की समझ में आ गया । स्कूल गेट पर धरने पर बैठे लडकों से माफी मांग ली । ऍम में जाकर आराम फरमाने लगा । लडके हुल्लड मचाने लगते हैं कही कैसी लगी आपको अपने स्कूल के दिन याद आयॅल आ गए बहुत बढिया बाबा वह ज्यादा नहीं मैं झूठ लिख रहा हूँ तब तो ये सत्य है कि आप सरकारी स्कूल में बडे ही नहीं अपनी आप बीती सुनाई । आप मना तो सच नहीं तो छूट ।

Details

Sound Engineer

"गुलों में कई रंग हैं बहार में कई रस हैं जीवन अपने आप में रंगरस है"
share-icon

00:00
00:00