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हमारे डॉक्टर यौन विचार के अड्डे बनते जा रहे हैं । अभी कुछ वर्ष पूर्व ता की समस्या इतनी जटिल नहीं थी किंतु अधिक संख्या में महिलाएं दफ्तरों में आ रही हैं । उधर पांच शांति देशों के यौन उदारता का प्रभाव भी काम पर पडा है । इसी कारण से हमारे कार्यालयों में उनको कुछ शंकर यौनसंबंध स्थापित होते जा रहे हैं । नीलिमा सोनी कांड एक दुखद घटना है । दुकान इसलिए कि निलीमा विवाहित है और लिंग स्वामी विवाहित । यह तो सिद्ध हो चुका है कि दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे और स्वतंत्र रूप से मिलते थे । पता है ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नीलिमा की दुर्दशा के लिए लिंगा स्वामी ही दोषी है । इस आधार पर लिंगा स्वामी को कडे से कडा दंड दिया जाना चाहिए । प्रशासन को स्वच्छ तथा अनुशासन को कडा करने के लिए तो धारण तैयार मैं लिंग सोनी को नौकरी से निकालने की सिफारिश करता हूँ परन्तु इस मामले का एक अन्य मानवीय पहलू है । इस अप्रिय कांड के लिए केवल लिंगा स्वामी ही दोषी नहीं ले ली । मानसिंग पूर्ण रूप से सहभागी है । अतः मेरे विचार से यदि पांच वर्ष तक लिंगा स्वामी की पदोन्नति पर रोक लगा दी जाए तो ये न्यायोचित होगा । प्रकाश इन्होंने फाइल ऊपर भेज दी । परंतु वो उस दिन थे जब वो टिप्पणी लिखा रहे थे तो बार बार सुधा के हो । टोपर एशियन ऐसी वेदर भरी मुस्कान उभरती थी । जन का उपहास उडाती थी । कैसे खोखले शब्द थे उन्हें खुद महसूस होता रहा था तो हुई है कि लिंगा स्वामी को दंड की सिफारिश करते समय उन्हें महसूस हुआ था । स्वयं कहाँ घर में बैठकर वह व्यर्थ मिलेंगा । स्वामी पर पत्थर फेंक रहे हैं । यही नहीं, उनकी खुद गिनता का एक और कारण था । प्रशासनिक स्तर पर उन्होंने अनुशासनात्मक कार्रवाई पूरी कर ली थी । परंतु मानवीय दृष्टिकोण से नीलिमा की समस्या अनसुलझी रह गई थी । जैसे समाधान करें इस विकट समस्या का । यदि लिंगा स्वामी भी अविवाहित होता तो शायद वो से नीलिमा सिंह से विवाह करने के लिए मजबूर कर देते । उन्होंने सीमा से इस बारे में विचार विमर्श किया था । उसे सारा पैसा भी सुना दिया । उसे सुन सीमा बोली थी, ये तो सरासर मूर्खता और पागलपन है किसका दोनों का? अरे भाई बिहार के लिए बराबर स्तर चाहिए । दोनों को अविवाहित या फिर हमारी तरह विवाहित होना चाहिए । एक विवाहित, दूसरा विवाह ये तो एक दम ऐसा हुआ कि जैसे किसी सवारी में एक भैया साइकिल का हूँ और दूसरा ट्रैक्टर का । वो तो ठीक है पर अब लेनी बात सिंह का क्या होगा? उससे कहूँ कि वह संकट से मुक्ति वाले डॉक्टरों की राय से अब वो स्थिति नहीं रही है तो ठीक है । होते हैं वो अपनी मूर्खता का फल । हमारे ख्याल से समस्या का कोई समाधान नहीं । सिर्फ एक ही है वो किसी ऐसे उदार समाजसुधारक और स्वतंत्र विचार वाले आप विवाहित लडकी की तलाश करेंगे जो नीलिमा को इसको बाहर सहित स्वीकार कर ले । विचार तो तुम है पर मैं कहाँ से लाऊंगा? ऐसा लडका मेरे बस का नहीं ऐसे लडके को तलाशना फिर काहे को दुखी हो रहे हो । मारो गोली नीलिमा को वो जाने और उसके अभिभावक जा रहे हैं । सीमा ने व्यापारी ढंग से निर्णायक स्वर में कह दिया । इसराइल को ऊपर भेजकर प्रकाशचंद्र निश्चिंत हो गए परन्तु अंतर्मन की किसी कोने में लिलिमा की समस्या फांस बन गढी जा रही थी । अचानक उन्हें एक दिन इसका हल मिल गया । सुबह का व्यवस्था करीब ग्यारह बजे थे । उनको एक ग्रुप लिफाफा प्राप्त हुआ । प्रकाशचंद्र ने उसे खोला, अंदर से निकाला, पत्र पढा और उनकी भृकुटि चौदह रही तो उनका स्वयं का पीछे भी उन्होंने बजार दबाया और अर्जुन को अंदर बुलाया । उसे सामने बैठाकर वो बोले जो तुम ग्रेड चीज हो, जी साहब कब से नौकरी में हो? आप करीब छह साल हो गए नहीं अभी बच्चे हैं नहीं साहब, अभी तो हम खुद बच्चे हैं । आप अगर इजाजत हो तो एक शेयर्स करूँ । बकवास बंद करो छेड चीजें की बात ही मत करो । ये बच्चे नहीं है । अभी तो नौकरी फिक्र नहीं है । तो आप नौकरी पर कैसे सत्रह आ गया? प्रकाश इन्होंने उल्टे हाथ में पकडे कांग्रेस को दिखाकर का गिरा तुम्हारी मौत का परवाना बस मेरी कलम का एक तेज बार से तुम्हारी नौकरी खत्म । अंजुम गंभीर हो गया । वो समझ गया कि मामला गंभीर है । उसके मुख पर कविता की जगह निबंध ने ले ली । वो भयभीत और आतंकित साथ खून कर बोला हूँ । अब लगता है मामला कुछ टेडा है । ब्यूरो की रिपोर्ट मिली है कि तुम हमारे कुछ दुश्मनों के दूतावास सों में जाकर इधर की गुप्त सूचनाएं उधर देते रहते हो । इसके लिए तो मैं बिना जांच पडताल के संविधान की धारा तीन सौ ग्यारह के अंतर्गत दोनों नौकरी से निकाला जा सकता है । तब मैं एक बार गया जरूर, पर मैंने कोई गुप्चर ही नहीं किए होंगे । देवा प्रकाश उन्होंने कहा कर पूछा था इसी सांस्कृतिक भास्कर भी मौके पर वहाँ के दे जाने का निमंत्रण पत्र मिल जाए । सिर्फ इसीलिए या तो मैं नहीं मालूम । इस तरह का तुम्हारा वहाँ जाना सरकारी आदेशों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है । वहाँ मैंने आदेशों के बारे में अनभिज्ञ था । कानूनों के बारे में ना जानकारी बचाव की कोई बढिया दलील नहीं है । अंजुम को पसीने आ गए । बडी कठिनाई से मेरी नौकरी उसे जाती नजर आएंगे । जब जब उसे नौकरी से निकाल दिया गया तो वो तो जिंदगी भर के लिए नाकाम हो जाएगा और कहीं सरकारी नौकरी के लिए अब उसकी उम्र नहीं गई है । वो दोनों हाथ जोडे । विनम्र और दैनिक स्वर में बोला साहब, इस बार बचा लीजिए । अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा । प्रकाशचंद्र प्रचार मालूम हो गए । फिर अनायास जैसे उनके अंतर्मन में बिजली सी कौन गई? वो थोडे सहज बोलेगा । अभी कुछ देर पहले तुमने कहा था कि तुम अविवाहित हूँ जी साहब, इसमें भी मेरा कोई कसूर नहीं चाहते तो ये है कि कोई ढंग की लडकी मिली ही नहीं । अब अगर मिल जाए तो तो शादी करके उसे खिलाऊंगा कैसा? नौकरी तो जाने वाली है तो मान लोग मैं तुम्हारी नौकरी बचा लूँ और तुम से किसी लडकी से शादी करने के लिए कहूँ तो क्या? तो साहब मुझे सौदा मंजूर है । लडकी कैसी भी हो, लडकी कैसी भी हो, किसी भी ओसा चलेगी पर मेरी नौकरी वो नहीं जाएगी । पर अंजुम तुम लिलिमा से दिल्ली से अंजुम तिलमिलाकर बोला था । वो तो किसी का पास अन्जुम, उसे बात क्या कहते हो? कई बार पुरूष किसी विश्वास जी से विवाह करता है । मैं वहाँ के बच्चे होते हैं । क्या वे बच्चे उसके अपने नहीं हो जाते हैं या हूँ? बच्चा अभी अजन्मा है । सिर्फ इतना ही फर्क है । चाहता हूँ मुझे सोचने का समय मिलेगा जरूर । पर अंजुम मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि ये बोलने का काम है । ठीक ऐसा । अब इन बातों में हम आपको कोई नहीं लाए तो ही अच्छा है । मैं कल तक आपको बता दूंगा । ठीक है । अंजुम चला गया तो प्रकाशचंद्र को खयाल आया । इस विषय में निलीमा से भी तो पूछना चाहिए । उन्होंने उसे भी बोला भेजा । उसे अंजुम के बारे में पूछा । उसने सहर्ष ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । अगले दिन अंजुमने भी इस विवाह के लिए सहमती दे दी । प्रकाशचंद्र बेहद खुश थे । उन्होंने ऍम की समस्या का मानवीय आधार पर समाधान कर दिया था । पर उनकी खुशी अल्पजीवी थी । अभी वह इस विषय में सीमा को बदलाने के लिए इंटरकॉम का प्रयोग करने ही वाले थे कि उनके कमरे का दरवाजा खुला । उन्हें देख कर थोडा विस्मय हुआ कि बिना किसी पूर्व सूचना के श्रीमती काशीनाथ उनकी कमरे में आ गई है । वाई और कुर्सी पर बैठकर बोली थी राम प्रसाद वाली फाइल कहाँ है कौन नाम? प्रचार वही जो निलंबित पडा है । क्या करना है उस मोबाइल का? प्रकाशन में रिश्तों से पूछा जिसने अभी भी मुझे बुलाया था उनके पास शायद मंत्री के निजी सचिव का फोन आया था । वो तो आपसे कह कह कर थक गए हैं । हारकर उन्होंने संयुक्त सचिव को फोन किया । जी एस चाहते है कि मैं फाइल आपसे लेकर सीधे उन्हें भेज दूँ । संयुक्त सचिव मुझसे सीधे बात कर सकते थे या उनके आदेश मुझे आपके माध्यम से पहुंचेंगे । प्रकाश इन्होंने उखडकर कहा ये उनसे पूछे इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती । मैं उनसे बात करूंगा अवश्य । आप पिछले दो दिनों से शायद दफ्तर नहीं आई थी । नहीं बिना किसी सूचना के ना छुट्टी की अर्जी, ना कोई फोन । मैंने अर्जी भेज दी थी । सीधे संयुक्त सचिव को आप मेरे नीचे काम करती है ना कि संयुक्त सचिव के । देखिए बेकार में बोर तो कीजिए नहीं । अगर फाइल देनी है तो दे दीजिए वरना वरना क्या मुझे तो थोडा देंगी । प्रकाशचंद्र बौखला गए । वो इस महिला से बेहद परेशान हो चुके थे । जरा जरा सी बात संयुक्त सचिव के पास पहुंचा देती है । श्रीमती काशीनाथ ने कोई उत्तर नहीं दिया । वो तमतमाकर खडी हो गई और घूरकर उन्हें देख वो तेजी से कमरे के बाहर निकल गयी । वो जानते थे अभी थोडी देर में उनके पास संयुक्त सचिव का संदेश आएगा । उसने सीधे वहाँ जाकर उनके विरोध खूब विश्व अमन क्या होगा? ठीक है करेंगे । इस बार वह भी उसकी संयुक्त सचिव के सामने कलई खोलकर रख देंगे । वो दफ्तर में कभी समय पर नहीं आती थी । बिना सूचना या अर्जी दिए वो हफ्ते में दो तीन दिन दफ्तर से गैर हाजिर रहती है तो वहाँ काम सुबह फाइलों पर दस्तखत के सिवा उसने कभी कुछ किया ही नहीं । जान तक संयुक्त सचिव ने उन्हें नहीं बुलाया । वो थोडा सकपकाए ये क्या हुआ अगला दिन । फिर उसके बाद एक और दिन कई दिन बीत गए, पर संयुक्त सचिव ने उन्हें नहीं बुलाया । इतना कुछ कहा ना । इस बीच श्रीमती काशीनाथ उनके पास आई यही नहीं उस महिला ने उनको फाइलें भेजना भी बंद कर दिया था । उन्होंने अनुभाग अधिकारी को बुलाकर पूछा तो पता चला कि श्रीमती काशीनाथ सारी फाइलें सीधे संयुक्त सचिव को भेज रही है । उनके स्तर को लांघकर वो तिलमिला गए और वह अवस्थी क्या करते हैं? अवश्य संयुक्त सचिव के निर्देश पर ही हो रहा है । ठीक है वहाँ करेंगे । उन्हें क्या काम फाइल आ रही है तो और भी अच्छा है । उन्हें फुर्सत ही फोर थी । सीमा के साथ और ज्यादा समय बिताने का अवसर मिल रहा था । जल्दी प्रकाशचंद्र कोई दफ्तर य, संकटपूर्ण मॉन्स, खनने लडा । एक सप्ताह तक ऊपर का कोई अवसर ना बुलाये । इतना संयुक्त सचिव ना सचिव एकदम ऐसा महसूस होता है जैसे उन्हें देश निकाला दे दिया गया है । बहुत हुआ शक्ति की मुख्यधारा से कट कर वो एक नाम शक्तिहीन अस्तित्व जी रहे हैं । ये सब पता ज्यादा दिन नहीं चली । एक दिन वो सुबह दफ्तर पहुंचे तो पाया उनकी कुर्सी पर श्रीमती काशीनाथ विराजमान है । उनका खून खौल गया । वो अपनी कुर्सी के पास पहुंचे तो अभी वो बैठी रही । वो तमतमाए तो श्रीमती काशीराज मुस्कुराई । आज के इशारे सोने सामने पडी कुर्सी पर बैठने को कहा और बोली शायद कल दोपहर बाद आप श्रीमती लाल के साथ फिल्म देखने चले गए थे । यह क्या बदतमीजी? श्री मति काशीनाथ बत्तमीजी आपको एक महीना से बात करने की भी तमिल नहीं । आप मेरे कमरे से जा सकते हैं । श्रीमती काशीनाथ फॅार कहा ये काम राहत का है । आपको दफ्तर में बनाने से फुर्सत नहीं । फिर कैसे पता चलेगी दफ्तर में क्या हो रहा हैं? प्रकाशचंद्र को महसूस हुआ जैसे कुछ घटेगा घट गया है । पता है वो थोडे नरम होकर बोले की आपकी पदोन्नति हो गई है । संयुक्त सचिव से जाकर पूछे पैसे कल शाम को ये आदेश जारी हो गए थे । श्रीमती काशी नाते एक परिपत्र उनकी तरफ फेकते हुए कहूँ उन्होंने कहाँ से हाथों से वो आदेश पकड लिया धोते हिरदय से उसे पढा था उनका अनुमान सही था । श्रीमती काशीनाथ की पदोन्नति कर उप सचिव प्रशासन नियुक्त किया गया था । उन्हें उप सचिव सामान्य प्रशासन लगाया गया था । उनका ये संयंत्र निश्चित रूप से एक दम था । उनको एक महत्वपूर्ण पद से हटाकर एकदम व्यर्थ और महत्वहीन पद पर लगा दिया गया था । अपने वर्तमान पद पर वह दफ्तर के एक शक्तिशाली व्यक्ति माने जाते थे । डॉक्टर के समझ कर्मचारियों की समस् कार्मिक समस्याएँ उनके पास ही है । अवसर और कर्मचारी उनके कमरे के बाहर पंक्ति लागर खडे रहते थे । हर कोई सिफारिश लेकर आता हूँ । वो जो चाहते वही होता । लोगों ने मानते थे । चपरासी से लेकर मंत्री के साफ तक सब में उनकी प्रतिष्ठा थी । अब एकदम ऐसा ही हो गया था जैसे किसी मंत्री को मंत्रिमंडल से निकाल दिया गया हूँ । कुर्सी थी पर असली कुर्सी छीन चुकी थी । प्रकाशचंद्र खडे हो गए । उदास दुखी, निराश शिंदे और अपनाने थे । श्रीमती काशीनाथ को पदोन्नति की बधाई दें । वो मारी छल से आपने पर आए हुए कमरे से बाहर आ गए । पिटे हुए से वो सीधे यंत्रवत संयुक्त सचिव के कमरे में पहुंच गए । संयोग वर्ष उस समय उनके कमरे के बाहर हरी बत्ती चल रही थी । अंदर पहुंचकर उन्होंने कुर्सी पर बैठ एकदम सीधे सीधे पूछ लिया हूँ । मुझे किस बात के लिए सजा दी गई है? सजा कैसी सजा? क्या एक सीट से दूसरी सीट पर बदलना सजा है? क्या तुम्हारा वेतन या पर कम हो गया है? संयुक्त सचिव ने रोष से पूछा जहाँ मुझे पलभर में महत्वहीन बना दिया गया है । आखिर क्यों? ये ठीक है कि श्रीमती काशीनाथ ने आईएस में आठ वर्ष पूरे कर लिए थे और वह पदोन्नति पाने की अधिकारिणी थी परंतु मुझे क्यों हटा दिया गया? उत्तेजित हो प्रकाशचंद्र ने पूछा सचिव बेहद नाराज है तो मैं भी तमीज भी नहीं की । आपने अधीनस् काम करने वाली महिलाओं से कैसा व्यवहार किया जाता है? तब वो अनुशासनहीनता पर प्रकाशचंद्र हो । तुम अनुशासनहीनता की बात करते हो । संयुक्त सचिव ने बिगाड कर रहा हूँ । फिर वो तेजी से बोले नीचे वालों को अनुशासित करने के लिए पहले स्वयं को अनुशासन के बंधन में बांधना होता है । जब मर्जी आया दफ्तर से चले गए, बैठा का झूठ भरा बना दिया । पहले है कि बस पडी हुई है । सचिव कहेगा मंत्री का विशेष आया, कोई असर नहीं कहीं इस तरह उप सचिव के स्तर पर काम चलता है । फिर पूछते हैं कि मुझे किस को दूर की सजा दी जा रही है । प्रकाशचंद्र निरुत्तर हो गए । वो पिटे और पराजित से बैठे रहे । मैं नहीं समझता इस साल सचिव तुम्हारे कोई खास अच्छी रिपोर्ट देंगे । संयुक्त सचिव ने एक और है उद्घाटन कर दिया हूँ ।