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दुकानें और उनके किरायेदार लंदन की सडकों पर । यदि आपको में तो आपको सोचने के लिए तमाम बातें मिल जाएगी । हम स्टर्न के साथ इत्तेफाक नहीं रखते हैं जिनका कहना है कि यदि आप डाॅन से ब्रशों तक पद यात्रा करें, यह सफर करें तो आपको सब कुछ बनचर देखेगा । हमें उस आदमी के साथ जरा भी सहानुभूति नहीं है जो ये कहीं की उसने अपनी छडी उठाई, हैट लगाई और कोविंद गार्डंस, सेंट पॉल चर्च तक गया था तथा वापस आया और उसके बदले में कुछ भी आनंद भूलती नहीं हुए या कोई मनोरंजन ही नहीं हुआ । पर इस तरह के लोग भी है जिनसे हम रोज ही मिलते हैं । बडे काली फोटो और उसके अन्दर हलकी बास्के, बहकी बहकी बातें और असंतुष्ट चेहरे इस तरह के लोगों के चरित्र गुण होते हैं और वह तेजी से आप के पास से गुजर जाते हैं । या तो किसी बिजनेस यह काम से जा रहे होते हैं या खुशी की खोज में भागते रहते हैं । ये लोग किसी पुलिस मैन की तरह बेचैनी से इधर उधर घूमते नजर आ जाएंगे । उनके मन पर कभी भी किसी भी चीज का कोई असर नहीं होता, जब तक कि कोई कोहली उन्हें धक्का देकर गिरा नाते या वो खुद ही किसी बग्गी के नीचे ना आ जाए । आप उनसे किसी भी दिन लंदन की सडकों पर टकरा जाए । जब वेस्टलैंड में किसी सिगार शॉप में शाम को नहीं पडने के पीछे से झांकते हुए देख सकते हैं वो यहाँ पर गोल्ड डबिंग या पाइप बॉक्सों पर बैठे देखे जाएंगे । चांदी की घडी पहने और गाल मुझे बढाए हुए वहाँ पर जो भी जवान और तेरे सुर फ्रेंड्ज के कपडे पहने होती थी और बडे बडे एयर रिंग्स भी उनके कानों में होते थे और जो काउंटर के पीछे से गैस लाइट की रोशनी में बैठी होती थी उनसे कुछ स्कूल जरूर और मीठी मीठी बातें करते हुए आपको मिल जाएंगे । जो जो आस पास के नौकरानियों की प्रशंसा के पात्र होती थी उसके दो दिन के अंदर जो लिट्टी ॅ बनाती थी उनकी भी चाहिए थी होती थी । हमारे मनोरंजन का एक साधन ये भी था की हम बहुत किसी दुकान की उन्नति का यानी उसके उत्थान और पतन का अध्ययन करना होता था । हमने इस तरह से शहर के कई हिस्सों में दुकानों का इतिहास जाना है । हम कम से कम ऐसी बीस दुकानों को जानते हैं जिन्होंने कभी भी टैक्स नहीं भरा है । हमने पाया कि वह कभी भी दो महीने से ज्यादा एक मालिक के हाथ में नहीं रही थी और मेरा विश्वास है कि उन दुकानों में हर तरह की चीजों का व्यापार हो चुका था । मैं यहाँ नमूने के तौर पर एक खास दुकान का जिक्र करना चाहूंगा जिसे मैं उसकी शुरुआत से ही जानता था । वो नदी के सरे की तरफ है । मार्च गेट से थोडी दूरी पर मूलता वो एक बहुत अच्छा घर था पर उसका मालिक परेशानियों में फंस गया और वो घर सरकार ने जब्त कर लिया । उसके बाद उसका किरायेदार भी चला गया और वो घर कालांतर में बर्बाद हो गया और खंडर हो गया । जब हमारा उस घर से परिचय हुआ तब उसका पेंट और पॉलिश उखड गया था और खिडकियां भी टूट गयी थी । सारे लॉन में झाड झंकार और बडी बडी होगी आई थी करो और बाउंड्री वॉल पर काई जम गयी थी । पानी के भी बडे से हॉल में से तमाम पानी इधर उधर बह चुका था । उस पर कोई ढक्कन भी नहीं था । सडक पर जो दरवाजा खुलता था वहीं उस घर की दुर्दशा बयान कर देता था । आस पास के छोटे छोटे बच्चों का ये खेल सा हो गया था कि वो उसके सीढियों पर इकट्ठा होकर उस पर लगे नौकर लोहे के कुंडे को जोर जोर से खटखटाते रहते थे जिसमें पडोसियों को बडा संतोष होता था । खासकर एक वृद्ध नर्स लेडी को कई बार उनकी शिकायतें की गई और उनके ऊपर तमाम बाल्टी पानी उन्हें लग गया पर बच्चों पर इसका कोई भी असर नहीं हुआ । इस शामिल कोने में जो एक मरीन स्टोर था उसके मालिक एक दिन उसके नौकर को ही खा ले गया तथा उसे बेच दिया और वो अभागा घर पहले से भेज ज्यादा खराब दिखने लगा । हमने अपने इस दोस्त यानि की हमारे घर का कुछ दिनों के लिए हाल चाल लेने नहीं गए । पर आश्चर्य की बात ये थी कि जब हम उस जगह पर कुछ दिनों बाद होते तो उसका कुछ नामोनिशान तक नहीं था । उसकी जगह खूबसूरत दुकान बनने की तैयारी थी जो अब लगभग तैयारी पर थी । उसके शटर पर बडे बडे इश्तिहार लगे थे जिस पर लिखा था ये दुकान जल्दी ही खोलने वाली है । यहाँ पर पर्दे, सोफी बिस्तर आदि के लिए फॅमिली और लेनिन मिलेगी और जल्द ही वह दुकान खुल भी गई और वहाँ पर साइनबोर्ड पर बडे बडे अक्षरों में प्रोपराइटर का नाम और काम नहीं लिखा हुआ था । हूँ । चांदी जैसे चमकते अक्षरों में लिखा था जिससे आँखें चौंधिया जाती थी । ऐसे रेविन और ऐसे शॉल और काउंटर के पीछे दो युवा आगे जो सफेद रंग के साफ कॉलरों वाली कमी से पहले थे और गले में साफ सुथरे सफेद रंग के ही दो इसका लपेटे हुए थे जैसे कि किसी नाटक में कोई प्रेमी हो । जहाँ तक मलिक का सवाल था वो दुकान में इधर उधर घूम रहा था और बी सेक्टर और ग्राहकों को कुर्सी पर बैठने का आग्रह कर रहा था । वो बीच बीच में अपने दो युवा सेल्समैन से कुछ बात भी कर लेता था । शायद वही एंड हो रहे होंगे जिनकी ये दुकान थी । हमने ये सब बहुत दुख के साथ देखा क्योंकि हमें कुछ ऐसा लग रहा था या पूर्वाभास हो रहा था कि वह दुकान ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगी । और ऐसा ही हुआ भी और दुकान बंद हुई पर जरा धीरे धीरे लेकिन बंद जरूर हो गई । उसकी खिडकी पर टिकट इस्तिहार ये नोटिस चिपकाई गई थी । फिर पहले नेल के मंडल के मंडल जिस पर लेकिन लगे थे दरवाजे के साथ खडे कर दिए गए । फिर दरवाजे पर जो बाहर स्वीट पर खुलता था नोटिस चिपकानी गया कि उस घर ये दुकान की पहली मंजिल ऍम यानी बिना साजोसामान के किराये के लिए खाली थी । उसके बाद दो में से एक नवयुवक बिल्कुल ही गायब हो गया और दूसरे नहीं । गले में सफेद के वजह काले रंग का स्कार्फ लगा दिया और मालिक ने शराब पीना शुरू कर दिया था । दुकान गंदी रहने लग गई थी और खिडकी के जो शीशे टूट गए थे वो वैसे ही पडे रहे । दुकान में से धीरे धीरे सारा सामान गायब होने लगा । अंत में वो कंपनी का आदमी वहाँ आया और उनके पानी की सप्लाई भी बंद कर दी और फिर लेनी टेम्पर भी दुकान छोडकर भाग गया और मकान मालिक के लिए पीछे चाबी छोड गया और साथ ही अपनी शुभकामनाएं दुकान का अगला किरायेदार एक फॅस को अभी आदि का विक्रेता था । दुकान को ठीक ठाक से पेड कॉलेज करवा दिया गया और साफ सुथरी भी । जब हम वहाँ से कुछ रही तो हमें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो दुकान भी मुश्किल से ही चल पा रही थी और शायद ही उनका खर्चा निकल पा रहा होगा । हमने उनके मालिक को अपनी शुभकामनाएं दीं और उसकी सफलता के लिए प्रार्थना भी किए । उसका मालिक एक विधुर था और वो शायद कहीं और भी काम करता था क्योंकि हमने उसको अक्सर शहर की ओर आते जाते देखा था । दुकान का सहारा कम उसकी बडी बेटी देखती थी । बेचारी लडकी उसको किसी कि मदद की जरूरत नहीं थी । हमें कभी श्वाब के पीछे वाले कमरे में दो तीन बच्चे दिख चाहते थे जो उसी की तरह उदास से बैठे रहते थे जैसे कि किसी का शोक मना रहे हो । और जब भी हम वहाँ से रात में गुजरते थे तो हमें वो लडकी हमेशा कुछ काम करते हुए ही दिख जाती थी । यहाँ तो अपने लिए कुछ बनाती हुई या फिर दुकान के लिए कुछ छोटी मोटी चीज बनाते हुए हम वहाँ से गुजरते हुए मोमबत्ती की रोशनी में उसका पीला और उदास चेहरा देखकर अक्सर ये सोचा करते थे कि वो और जो उस से सामान आधी खरीदती थी क्या उन्हें उसके दुःख या कष्ट का आधा हिस्सा भी पता था । वो बिचारी किस तरह की गरीबी से गुजर रहे थे? क्या उन्हें इसका कुछ भी आभास था? किस तरह से ईमानदारी से वो अपना रोज मर्रा का जीवन व्यतीत कर रहे थे । उन्हें ये सब पता चलता तो उन्हें एक धक्का सही लगता है । पर इन सब बातों में हम दुकान को तो भूल ही गए । हम उस दुकान पर नजर बनाए रखे थे और हर रोज उसे देखते थे । उसको देखने से यही पता चलता था की उसमें रहने वाले पहले से ज्यादा गरीबी के दिनों में गुजारा कर रहे हैं । बच्चे तो साफ सुथरे रहते थे पर उनके कपडे बहुत ही गरीबों वाले लग रहे थे । पहली मंजिल के लिए अभी तक कोई भी किरायेदार नहीं मिला था जिससे वो किराया और अपना रोज मर्रा का कुछ खर्चा चला लेते हैं । बडी लडकी की खांसी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी जिससे वह दुकान के लिए ज्यादा काम नहीं कर पा रही थी । तीन महीने के मांग मकान मालिक को किराया लेने का दिन आ गया था । पिछले किरायदार की फिजूलखर्ची से परेशान मकान मालिक ने इस बार के किरायेदारों पर किसी भी प्रकार की कोई दया नहीं दिखाई । उसने अधिकारियों से मिलकर उनके सामान की कुर्की यानी नीलामी करवा दी । एक दिन जब हम उस मकान के सामने से कुछ रहे तो देखा कि दलाल के आज उस दुकान जो भी टूटा फूटा पुराना फर्नीचर था, उसे हटवा रहे हैं और फ्रंट डोर पर दोबारा टू लटका स्टीकर चिपक गया था । किराए के लिए उपलब्ध इस बात का मोर बडे बडे अक्षरों में लगाया गया था । पुराने किरायेदारों का इसके बाद क्या हुआ हमें कुछ पता नहीं । हमारा विश्वास है कि वो लडकी इस दुनिया के हर प्रकार के कष्ट और दुख से दूर चली गई थी । भगवान उसकी मदद करें । हम ये जानने के इच्छुक थे कि उस मकान या दुकान का आगे क्या हुआ । जल्दी ही टू लेट का साइनबोर्ड हट गया और उस दुकान के अंदर कुछ छोटे मोटे बदलाव किए गए । हमें बस ये जानने का बुखार चढा था कि अब उस दुकान में जो आएगा वो कौन सी लाइन का होगा और क्या बेचेगा? हमने हर तरह के धंधे की कल्पना कि जो उस दुकान में चलाया जा सकता था । वो दुकान जो पहली भी ज्यादा बडी नहीं थी, उसे दो हिस्सों में विभाजित कर दिया गया था । एक बहुत पतली से पार्टीशन द्वारा और एक सस्ता स्ट्रॉ पेपर चिपका दिया गया था । दुकान के एक हिस्से में एक बोनट क्षेत्र में कर था और दूसरे हिस्से में एक टोमॅटो यानी तंबाकू वाला जो झाडियाँ और संडे न्यूजपेपर भी बेचता था । तुम ऍम हमारी याददाश्त में सबसे ज्यादा समय वहाँ ठहरा । वो लालमोहन वाला खडे इंसान था । न कैसे काम का न कार्यका और वो इस चीज का आदेश था कि जो भी चीज जैसे चल रही है बस ठीक ही है और किसी भी खराब काम का कैसे सबसे अच्छे तरीके से करना । वो दिन भर में जितने भी स्वीकार मुमकिन हो सकता था, बेचता था और बाकी खुद भी जाता था । वो बस तब तक उस दुकान में टिका रहा जब तक की लैंडलॉर्ड ने उसे आसानी से शांतिपूर्वक रहने दिया । उसके बाद वो बिचारा भी दुकान बंद करके चला गया । उस समय से लेकर अब तक उन दो छोटी दुकानों में तमाम लोग आए और चले गए । तंबाकू वाले हिस्से में एक नाटक में काम करने वाले लोगों की ऍम सिंह या केशसज्जा करता था और उसने अपनी खिडकी के शीशे पर तमाम सेक्टरों के फोटो भी नहीं स्टाइलों के साथ लगा रखी थी । बोले छह पर की दुकान में अब एक सब्जी वाला जैसे ग्रीन अग्रसर कहते हैं, आ गया था और हिस्ट्री आॅफ बार बार या हेयर ड्रेसर की दुकान में अब एक टेलर यानी दर्जी आ गया था । इधर हाल में दुकानों को किराए पर लेने वाले और उनके ब्रिसल्स में इतनी जल्दी जल्दी और इतने ज्यादा बदलाव आए कि हम अब उनका हिसाब नहीं रख पाए और उन दुकानों के किराएदारों में बाद में अन्य कमरों को भी किराये पर देना शुरू कर दिया गया तथा अपने दिए केवल सामने कहे साथ या पार्लर ही रखा था । पहले एक कमरे के बाहर के दरवाजे पर पीटल की एक ब्लेड जो नजर आई उस पर लिखा था लीडी स्कूल । उसके बाद फिर एक और पीतल की प्ले और डोर बेस । फिर एक और ब्लॅक लेट नजर आई । जब जब हम इस घर ये दुकान के पास से गुजरते हैं तो हमें ऐसा प्रतीत होता इसका मालिक दिन प्रतिदिन गरीब होता जा रहा है । पर हमारा ऐसा सोचना एक दिन गलत साबित हुआ जब हमने देखा कि उसमें एक दिन एक डेरी या साइनबोर्ड लगा हुआ था और उसके बाहर मुर्गे मुर्गियां घूम रहे थे जो घर के पिछवाडे हिस्से में भी जा रहे थे हूँ ।
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Producer