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Audio Book | hindi | Self Help
8 minsआठ सौ रहे हैं । कोई कोई फिल्म आरजेएम आया के साथ सुनी जब मन चाहे जिम्मेदारी किसकी बालिस्टर सी हंगुल छह पुस्तक की रूपरेखा पुस्तक की रूपरेखा इस प्रकार है संपूर्ण ब्रह्मांड में मौजूद आठ ग्रहों में से केवल पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह उत्पन्न हुआ है जिसपर जीवन सुख सुविधापूर्ण बिताया जा सकता हूँ और ईश्वर को ठीक तरह से सोचा और समझा जा सकता हूँ । पृथ्वी ग्रह ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जहाँ पर स्वयं ईश्वर ने भी अवतार लिया था तथा अपने अनेक अंशों के रूप में मानव जाति को प्रकृति का आनंद लेने के लिए इसी ग्रह पर भेजा गया है । ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरित होना इस और इशारा करता है कि वह जरूर ही मानव समाज के कल्याण हेतु पृथ्वी पर अवतरित हुए होंगे ताकि मनुष्य प्राकृतिक नियमों को ठीक ढंग से समझ सकें । अगर कहा ये जा सकता है कि जब तक मानव प्रकृति के नियमों का पालन करता रहा तब तक बहुत सुखी रहा । आज ही इसी का ही परिणाम है कि आज तक और आज से लाखों करोडों वर्षों पूर्व तक प्रकृति उसी गति से चलती रही हैं जिस गति से उसका प्रारंभ हुआ था । इसलिए कहा जा सकता है कि हर प्राणी वारिक शुरू से ही प्रकृति के अधीन रहा है तथा उसने प्रकृति के नियमों का भी भलीभांति पालन किया है । आज के समय की वर्तमान स्वरूप जिंदा हकीकत यही है की प्रकृति तो अपने नियमों में आज भी हमें बंदी हुई नजर आती है किन्तु मानव नहीं । आज के समय में कई वर्षीय से प्रकृति के नियमों का पालन करने वाली मानव जाति आज उसी प्रकृति को ही ललकार रही है । इसका परिणाम फिर अंततः यही होता है कि कहीं आपदा आती है, कहीं विनाशकारी भूकंप होते हैं । कहने का सीधा सारा यही है कि अगर हम प्रकृति के नियमों को तोडेंगे तो निश्चित ही प्राकृतिक घटनाएं हमें तोड मरोडकर रख देंगी । जितना महत्व मानव के लिए प्रकृति का है, उतना ही महत्व मानव समाज का भी है । समाज की उत्पत्ति भी एक विशेष नियम के तहत हुई है ताकि मानव के जीवन का संचालन लिखते ही चलता रहेगा । इसीलिए समाज के नियमों का पालन करना भी मानव जाति को अति महत्वपूर्ण था । मानव जाति के उत्थान में जितना योगदान सामाजिक पहलुओं का होता है, उतना योगदान तो किसी भी चीज का नहीं होता, क्योंकि मानव के जीवन की गति का पहला कदम समाज से ही शुरू होता है । सामाजिक पहलू ही वह पहलु होते हैं । जमानो को मानवता का पाठ पढाने में अहम योगदान रखते हैं । इसीलिए हमारी सोच भी अपने समाज का दिया हुआ उपहार ही तो होती है । हमें क्या सही करना है और क्या गलत करना है, ये सभी प्रकार की सोचे हमें सामाजिक संस्कारों सहित प्राप्त होती है । दुनिया भर में अपने नाम का परचम लहराने वाले व्यक्तियों के जीवन पर यदि हमें एक सरसरी नजर गडाए तो हम पाएंगे कि ये उनकी सामाजिक सभ्यता ही थी कि आज उन्होंने अपना नाम हर जगह रोशन किया है । आज भी भारतीय कवारी युग में हमें ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जिन्होंने अपने समाज के आदर्शों पर चलकर बडी से बडी उपलब्धियां हासिल की है । हमें मिल कुल नहीं भूलना चाहिए कि हमारे अंदर मानवता को बढाने वाली शिक्षा यानी नैतिकता का विकास समाज से ही होता है । आधुनिक दुनिया आज जिस तरीके से आधुनिकता की और लगातार बढ रही है, वहाँ भी एक आधुनिक सोच होती है । लेकिन फिर वहाँ पडता है कि यदि हमारी आधुनिक सोच अच्छी है, वहाँ आधुनिकता का विकास होना भी उचित है । अरियरी हम अपनी आधुनिक सोच का इस्तेमाल अपने स्वार्थ हित के लिए करते हैं तब जरूर ही गलत तरीके की आधुनिक सोच हमें कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाने वाली मानी जाएगी । आज ये मानवीय सोच का परिणाम ही है कि हमें आज विश्व में कई तरह के ऐसे परिवर्तन देखने को मिलते हैं जिनसे मानवता को ठेस पहुंचती हैं । आज आतंकवाद, भ्रष्टाचार, राजनीति, दुष्कर्म जैसी कई विनाशकारी समस्याएँ कोई नहीं बात नहीं है । ऐसी समस्याओं से हर कोई भली भांति परिचित हैं कि ये किसी तरह से लगातार अपनी अंधकार रूपी आंधी से हर प्राणी को ठेस पहुंचा रही हैं । जो राजनीति एक समय में जनहित को मध्य नजर रखते हुए की जाती थी, आज वही राजनीती स्वार्थ हित से ही की जा रही हैं । और तो आज आज धर्म परिवर्तन भी इस कदर चरम सीमा पर है कि मानव अब धर्म की बातें गुजरे हुए समय की बातें हो । हर तरफ हमें यही देखने को मिलता है कि कहीं दुष्कर्म हो रहे हैं तो कहीं भी हत्याएं हो रही हैं । कहीं आतंकवाद आम जन को निकल रहा है तो कहीं भ्रष्टाचार रूपी आंधी अंधकार फैला रही है । इन सभी परिवर्तनों से हमें यही प्रतीत होता है कि मानव हम स्वयं ही ऐसे परिवर्तन कर रहे हैं जो हमारे विनाश का कारण हो । पर्यावरण ीय तथा प्राकृतिक घटनाएं आज जिस तरीके से अपना कहर बरपा रही है उन से तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है । जो विनाशकारी परिवर्तन प्रकृति में आज से पहले कभी नहीं हुए वो आज यदि हमें दिखाई दे रहे हैं तो निश्चित ही ये हमारे द्वारा किए गए कार्यों का ही परिणाम हो सकता है । वर्तमान में अबतक शायद शिक्षा भी मानव व्यवसायिकरण के हत्थे चढ गई हूँ । ऐसा कुछ कहना भी कोई गलत नहीं ठहरा सकता जो शीर्षा संस्कृति, सभ्यता, मानव में नैतिकता का विकास किया करती थी । आज ऐसा माहौल हमें कहीं कहीं पर ही दिखाई देता है । शायद यही कारण रहा होगा कि आज मानव के द्वारा किए गए परिवर्तन उसी के विनाश का कारण बनते जा रहे हैं और किसी को उससे कोई भी आपत्ति महसूस ही नहीं हो रही है । आज के माहौल में जिस किसी से भी अगर ऐसी समस्याओं के बारे में बात की जाए, हर कोई अपनी बात को कलयुग चल रहा है, ऐसा कहकर वही की वही खत्म कर देता है । लेकिन अगर वास्तविक हकीकत पर हम नजर डालें पाएंगे कि कलयुग भी कोई बोरा योग नहीं है । अगर कुछ हो रहा है तो वह सिर्फ हमारी सोच एक नई युवा सोच के लिए लिखी गई इस प्रस्तुत पुस्तक में हम विश्व पटल पर घटित होने वाली उन सभी बुराइयों के बारे में जानेंगे जब कहीं ना कहीं हमारी गलतियों की कारण ही उप की हैं और साथ ही साथ अच्छा पर घटित होने वाली समस्याओं का जिम्मेदार मानव वैल्यू किस प्रकार से हैं, ये सभी बातें हम अगले अध्यायों में आपको सुनाएंगे ।
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