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09 स्मृति -साँझ in Hindi

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Authorमन मोहन भाटिया
जीवन के हर पल को डायरी में कैद करता रहा। वर्षो बाद उस पुरानी सी डायरी को खोल कर पढ़ा, यादें ताजा हो गई।
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साझा राकेश दो दिन की छुट्टी ले सकते हो । खरीदना ने रविवार की सुबह बालकनी में बैठकर चाय पीते हुए राकेश से पूछा क्या हुआ बहुत दिन? क्या मुझे लगता है कि साथ आठ वर्ष बीत गए होंगे? हमें छुट्टी पर कहीं बाहर गए हुए हैं । एक लंबा समय बीत गया होगा । पहले हम हर छह महीने बाद कहीं न कहीं अवश्य जाते थे । लगभग सभी जगह में देखिए ताकि वो तो थी गया शादी के बाद पूरा देश को मैं फिर बच्चे हुए तब उनके साथ घूम है । लेकिन अब तो सात आठ वर्ष से कहीं नहीं गए । घर में बन गए सेरेना अब हम पान प्रस्थ आश्रम में है । राकेश इन आश्रमों को छोडो कहीं एकांत में कम से कम दो दिन बताना चाहती हूँ । गृहस्ती में फंस कर रह गई हूँ । तुम तो सुबह ऑफिस के लिए निकलते हो तो रात को घर में वापस आती हूँ । रविवार की छुट्टी होती है दूसरा और चौथा शनिवार भी । छुट्टी मेरी कौन से छुट्टी होती है? रविवार तुम क्या बच्चे भी आराम करते हैं और मैं रसोई और घर के बाकी कार्यों में व्यस्त रहती हूँ । सोच क्यों? कई मशीन तो नहीं बन गई प्रेणा ऑफिस की जब छुट्टी होती है तब मैं कौन सा आराम करता हूँ । घर के सभी काम निपटा था । राकेश तभी तो कह रही हूँ कि कहीं चलो दो दिन ही सही, कुछ सुकून मिलेगा । आपको छाडकर दिनचर्या होगी तभी कोई तनाव नहीं होगा । अर्थात तनावमुक्त बिल्कुल सही जहाँ कोई जानता नहीं हूँ कहाँ चले मुझे कहीं घूमना नहीं सिर्फ तनावरहित वातावरण मिले चलूँ प्रकृति की गोद में राकेश ने कुछ सोच विचार मन ही मन की आपको छडों बाद रीना से कहा ना ऑफिस में काम की प्राथमिकता देख कर दो तीन दिन में कहीं जाने का कार्यक्रम बनाता हूँ । राकेश ने अगले दिन ऑफिस में काम की प्राथमिकता देखकर बुद्ध, वीर और शुक्रवार के छुट्टी लेनी है और चौथे शनिवार को ऑफिस बंद और रविवार भी छुट्टी है । कल पांच दिन हरियाणा और राकेश को एकांत में बताने के लिए मिल गए तो उन्होंने ऋषिकेश में ये दिन बताने की सोची । ट्रेन की टिकट बुक करवा लूँ । सेना ने आग्रह किया जनरल कोच में जाने की अभी हिम्मत नहीं है । इसी कोच में भेज देंगे । खार में चलते हैं ऍम लंबी यात्रा हो जाएगी । खुद ट्राइ करोगे तो थकान होगी । कम से कम छह घंटे की ट्राई तो हो ही जाएगी । सुबह चलते हैं । छह बजे तक सडकों पर ट्रैफिक नहीं होता । आराम से ट्राई होगी । मुझे आनंद आॅफ मुद्दत हो गई जब हम दोनों सिर्फ हम दोनों अकेले लम्बी ट्राई पर गए । कोई बात नहीं । छह घंटे लगेंगे साथ हमारा कोई व्यापार तो चल नहीं रहा । छुट्टी पर एकांत में मन की शांति के लिए जा रहे हैं । मौसम तो सूटकेस पैक कर और खाने पीने का थोडा सामान भी रख लेना । बुधवार सुबह छह बजे राकेश और रीना अपनी कहा से ऋषिकेश के लिए रवाना हुए हैं । अक्टूबर महीने की सुबह हल्की ठंड थी । सडके खाली । दिल्ली का ट्रैफिक अभी शुरू भी नहीं हुआ था । चालीस मिनट में दिल्ली छोड हमने उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया । मनपसंद की सुनते हुए रास्ते में नाश्ते के लिए आधा घंटा रुक कर कुछ आराम किया । अंतर हल्का नाश्ता किया । मध्यम रफ्तार से कार चलाते हुए और लंबे सफर का भरपूर आनंद लेते हुए छह घंटे में दोपहर के बारह बजे पे ऋषिकेश पहुंचे कोयल घाटी में एक भवन में रुके थे । वहाँ से गंदा किनारे बने भवन के कमरे से मनमोहक दृश्य देख रहा था । बालकनी में कुर्सी पर बैठकर सफर की थकान दूर करते हुए सामने पर्वत श्रृंखला के नीचे पवित्र गंगा मध्यम गति से कल कल किस पर में पहनती जा रहे थे । दिल्ली में एक उतरती नजारा देखने को नसीब नहीं होता । आधे घंटे तक अमरीकी बालकनी से कुर्सी पर बैठे हुए प्राकृतिक दृश्य को देखकर आनंदित होते हैं । फिर दोपहर का खाना खाने नीचे उतरे हैं । भवन में खाना सिर्फ रसोई में बैठ कर खाने की अनुमति थी । डाइनिंग रूम बहुत बडा था । जहाँ दस टेबल लगी थी और हर लेवल पर ऍम वहाँ का आराम से एक साथ साठ व्यक्ति खाना खा सकते हैं । जब राकेश और रीना डाइनिंग रूम में पहुंचे तब लगभग बीस व्यक्ति पहले से खा रहे थे । उनकी कुर्सी पर रहते ही था । लिया गई तेल की गोल थाली और उसमें चार छोटी कटोरियाँ एक डाल दो । सबसे और रायते के साथ सलाह पापड, अचार, चावल और चपाती बिल्कुल घर जैसा हल्का भोजन । कम मात्रा में पहले सब्जियाँ देते हैं । मतलब जितनी भूख हडताल बार कटोरियाँ भर जाते हैं । राकेश और रीना को घर जैसा खाना खाकर आनंद आया । खाना खाने के बाद उन्होंने आराम किया । सफर की थकान के कारण नहीं था गई । चार बजे उठ कर दो ना फिर से डाइनिंग रूम गए और चाहे रात के खाने के लिए रसोई में अपना नाम लिखवा दिया । सावन में खाना रहने वालों और काम करने वालों के लिए ही बनता है । अधिक नहीं बनाते हैं । जितने लोग उतना खाना । बात सही भी है कि अधिक बनाकर बर्बाद करने से अच्छा है कि जरूरत के मुताबिक बनाया जाए । राकेश और बिना भवन के पीछे पैदल पद बनाया जाए । एकदम शांत पता बना । शाम की सहर के शौकीन ही टहलते हुए नजर आ रहे हैं । कुछ दूर चलने के पश्चात दोनों एक बेंच पर बैठकर शांत रहती । गंगा को निहारने लगे । शाम चल रही थी । गंगा के दूसरे छोर पर पर्वत श्रृंखला पर सूरज की सुनहरी धूप । धीरे धीरे भूरी छटा में परिवर्तन होने लगी । कितना अच्छा लग रहा है भी नहीं । हवा कल कल के मधुर संगीत के साथ मस्त चाल में चलती करूंगा । सामने पर्वत श्रृंखला और एकांत पैदल था । इन्हीं पलों को तुम्हारे साथ बताना चाह रहे थे । तीन ने राकेश के हाथों को अपने हाथों में लेकर का दिल्ली महानगर की भागती जिंदगी में काम जीवन बस बता रहे थे । उसको चीजें नहीं, हर जगह भीड भाड एकांत को तरह चाहते थे । यहाँ प्रकृति की गोद में जीवन का भरपूर आनंद उठाया जा रहा । राकेश ने पवित्र कंधा को निहारते हुए कहा जितनी पवित्र गंगा यहाँ है, मैं सही संदर्भ आता है । घर आके हम यहाँ नहीं रह सकते हैं । यही विडंबना है ना जो यहाँ रहते हैं वो शहर की और भागते हैं क्योंकि यहाँ शांति है पैसा नहीं । शहर में अधिक पैसा है तो शांति नहीं तो मैं इस भवन के मालिक को देखो । इतना बडा भवन बनवाया और अपने लिए कुछ कमरे बंद रखे हुए हैं । जब आते रहते हैं पता तो आते होंगे शायद वर्ष तो वर्ष में एक बार तो या चार दिन रुक कर वापस अपने व्यापार बोला जाते हैं और हम यहाँ रहना चाहते हैं पर हमारे पास साधन नहीं रह नहीं सकते हैं । कोशिश कर के देखो कोई भी एक दो कमरों का छोटा सा मकान जहाँ जीवन किसान चैन से भी थे । अच्छा तो लगता है कि किसी शांत जगह है । शांत और स्वच्छ वातावरण में रहने से भी अच्छा रहता है । घर के समीप ऑफिस या दुकान हो, आने जाने की चिंता भी नहीं और परिवार के साथ भरपूर समय बिताने का सुनहरा । अक्सर दिल्ली की जिंदगी बस भागदौड की है । सुबह उठते ही ऑफिस जाने की चिंता, डेढ घंटा ऑफिस जाने में ऑफिस में काम शामको, डेढ घंटे की थकान वाला सफर घर वापस आने के लिए, थकान से जोर से मुश्किल से आधा घंटा मैं तुम आपस में समय बिताते हैं । कुछ सोचो और कुछ करो कि जीवन किसान में बुड्ढा बुड्ढी तेल की कुछ बातें करें और शांत मन से स्वच्छ वातावरण में रहे हैं । बाहर तुम्हारी सही है परंतु जैसा हम सोचते हैं ऐसा होता नहीं है तो नकारात्मक क्यों सोचते हो? मेरी सोच सकारात्मक है । उन सब का हो गया हूँ । साठ में रिटायरमेंट होनी है । घर का होम लोन है, उसके किसमें आदि तन्खा निकल जाती है । सोचा था कि बच्चों का आर्थिक सहयोग मिलेगा । इसलिए बडा मकान लिया और रेंट पे अधिक ले लिया । घर के दूसरे खर्चे भी करने पडते हैं । बच्चे अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं, अपने ऊपर खर्च करते हैं । घर के खर्चों में सहयोग मिलता नहीं । क्या करें जैसा समय आ रहे हैं बता रहे हैं कहकर आकेश गंगा के बहते जल को अपने हाथ में लगा बस आर्थिक मजबूरियाँ के इरादे राकेश ट्रेन अबे गंगा के बहते जल को निहारने लगी । वास्तविकता उसे मालूम थे इस कारण चुप रहे । कुछ देर की चुप्पी के पश्चात दोनों फुटकर चुपचाप पैदल पथ पर त्रिवेणीघाट की और चलती है । धीरे धीरे चलते चलते तो लगभग बीस मिनट में त्रिवेणीघाट पहुंचे । बिल्कुल खामोश कोई बातचीत में समय पौने छह बजे का हो रहा था । छह बजे के संध्या आरती की तैयारियाँ हो चुके थे । घाट पर पचास हो रही थी । तेरी ना और राकेश भजन सुनने बैठ गए । मधुर, मनमोहक सा और और आवास में भजन सुन राकेश और रीना मंत्रमुक्त हो गए । बुझा मन तरो ताजा हो गया तो उन्होंने एक दूसरे को देखा और मुस्कुराते हुए भजन सुनने में मतलब हो गए । ठीक छह बजे गंगा आरती आरंभ हुई । अतुलनीय, दर्शनीय और मनमोहक आरती ने राकेश और देना को मंत्रमुक्त कर दिया । आरती में सम्मिलित होकर बिना राकेश अपनी समस्याएं भूल गए । भर्ती समापन के पश्चात बाजार में घूमते हुए दुकानों को देखते हुए वापस भवन में आ गए । आठ बजे रात का भोजन तैयार था । पे टाइमिंग रूम में बैठकर रसोइये थाली भरोसे, थाने के पश्चात कमरे में बिस्तर पर बैठ टीवी देखते हुए दोनों सुखद यात्रा पर चर्चा करने लगे हैं । दिल्ली से ऋषिकेश का लम्बा सफर, एक लॉन्ग ड्राइव का आनंद और ऋषिकेश में कंधा का किनारा । मरीन ड्राइव परसेंट निकालो तो और अतुलनीय गंगा आरती में आनंदविभोर होना । दिल्ली की भागम भाग जिंदगी से विपरीत ऋषिकेश का शांत वातावरण, सीना और राकेश कैसे तय को परिवर्तित कर गया । मैं तो कई बार रीना और राकेश है । दिल्ली से बाहर छुट्टी मनाने निकले । परंतु एक लंबे अरसे के बाद एक अनोखा सुकून मिला तो वहाँ के पश्चात तो इतने आनंदित हुए थे कि आज लगभग पैंतीस वर्ष बाद तो उतना ही आनंद लौट कराया । बीच का समय, बच्चों के बार बारिश, उनके व्यवहार, परपौत्र पौत्री के लालन पालन । मैं खुद को दोनों फूल चुके थे । आज जीवन की सांझ में फिर एक दूसरे को समझने का एकांत समय मिला । कल सुबह आराम से उठेंगे ऍम सोई पर आदत के अनुसार सुबह साढे पांच बजे रीना की नहीं खोली राकेश सो रहा था । अपने दिनचर्या के अनुसार स्नान किया और ध्यान में बैठ गई । ध्यान के बाद रीना भजन गन बनाने लगे । हम तेरी मछली घायल कर जाती है । मुस्कान तेरी मीठी दिल को चुरा आती है जो होती सोने की तो क्या करते तो मोहन ये बात की हो कर के इतना कर पाती है शाम तेरी फॅमिली घायल कर जाती है । मुस्कान तितली थी दिल को छू रहती है । कर्णप्रिय मदर्स पर राकेश के कानों में पडे राकेश ने उठकर रीना को बाहों में ले लिया प्रभात पहला प्रभु बंधन की होती है, इश्क लडाने की नहीं । रीना ने अपने को राकेश की बाहों के बंधन से छुडाने की कोशिश की लेकिन राकेश ने चंबल रीना के कार्यों पर अंकित कर दिया । प्यार करने की कोई सीमा नहीं होती और समय का बंधन भी नहीं होता । राकेश ने रीना को बाहों के बंधन से मुक्त किया । कुछ उम्र का ख्याल करो ज्यादा बन चुके हो । ट्रेन के लिए उम्र नहीं देखना चाहिए । रीना रानी ही आ गए अभी डेढ साल ऐसा ध्यान में अभी सारे अट्ठावन करूँ तब साठ का हो जाऊंगा तब से होंगा । अच्छा ये डेढ साल का कारण स्पष्ट कीजिए तो साठ की उम्र होती है । सठियाने की साठ और सठियाना तभी तो रिटायरमेंट की उम्र साठ रखी है । आदमी सठिया जाता है । पठार कर रहे छोडो मजाक की बात गंगा किनारे चिंतन करने चलते हूँ चलो ऍम राकेश दस मिनट बात हो गया और फिर हीना के संग गंगा किनारे सुबह के साथ करने लगा । पैदल पथ पर एक्का दुक्का सुबह की सैर करने वाले आ जा रहे हैं । कुछ तेज गति से तीस हजार और कुछ धीरे धीरे शहर कर रहे थे । हाल किसी ठंडक थी । गंगा के दूसरे छोर की पर्वतश्रृंखला के छोटी के पीछे से लाले मारने लगे । सूर्य उदय का समय हो रहा था । कुछ दूर शहर करने के बाद तो नौ गंगा किनारे एक बेंच पर बैठ के सुबह हल्की ठंड के मौसम में कहते हुए रीना ने उठते सोने को नमस्कार । क्या स्वच्छ वातावरण, कोई प्रदूषण नहीं, गंगा का किनारा और तो सभी तटपर पर्वत श्रृंखला के कारण मौसम दिल्ली से बहुत अच्छा । यहाँ के स्थानीय लोग टाॅल पहने हैं । पर हम बिना गर्म कपडों में राकेश ने भी सोते को नमस्कार क्या? राकेश उधर सीरिया नीचे उतरने के लिए चलो काम करके तत्पर बैठते हैं क्या? खाना तो नहीं है पर गंगा के तट पर बैठे हैं और नहाने के लिए जगह बची हुई है । जल्दी नीचे उतरते हैं । हाँ घाट तो त्रिवेणीघाट रामझूला लक्ष्मणझूला है । चलो राकेश नीचे उतरते हैं । गन्दा के किनारे थोडी थोडी दूरी पर नीचे उतरने के लिए सीढियां थी जहाँ बडे पत्थरों से छोटे छोटे बैठेंगे स्थान बने हुए हैं । दस पन्द्रह व्यक्ति उस पर आराम से बैठ सकते थे । बिना और राकेश सीढियों से नहीं चाहते हैं तो वहाँ कोई नहीं था । आंखे बंद करके दोनों ध्यान में बैठ गए । धीरे धीरे प्राणायाम करने लगे । सूर्य की प्रथम किरण है तो ना पर पडी और होठों पर मुस्कान आ गए । हल्की ठंडी हवा परसोरिया की किरणें सुकून दे रहे थे । पंद्रह मिनट बाद राकेश ने आंखे खोली वो ही ना । अभी भी ध्यान मुद्रा में मतलब काम की व्यस्तता के कारण राकेश कम ही ध्यान में बैठ जाता था । लेकिन हाँ रीना को शाम के समय फुर्सत होती थी तथा अनुसार उसने संध्या वंदना और ध्यान का नियम बना रखा था । तीनों को ध्यान में मदद एक राकेश ने गंगा में अपने पैर रखे । पानी बहुत ठंडा था । शरीर में छोड ही उठी । पैर झट से गंगा से निकले । कुछ रुककर धीरे से पहले को कपडा में क्या आधे मिनट बाद गंगाजल का तापमान सामान्य लगने लगा । राकेश एक सीढी उतरकर गंगा के पानी में खडा हो गया । उसने घुटने तक पैर चल में कर ली है । राकेश ने हाथों में चलने कर्मो धोया और सूर्य को जल अर्पित कर नमस्कार क्या? रीना अब ध्यान से बाहर आ गई । राकेश को गंगा में खडे देख उसने भी गंगा में पैर रखे हैं । ऍम धूमने कैसे रखे हुए हैं? बिना ने चल से पैर निकालकर राकेश से पूछा धीरे धीरे रखो । एक मिनट में तापमान सामान्य लगने लगेगा । हाँ, ये तो है । रीना ने भी धीरे धीरे जल में बैर रखें और राकेश के समीप आ गई । पर फिर एक सीडी नहीं चौतरे रीना की कमर तक चला गया । रीना को देखा राकेश भी एक सिटी नहीं होता है । हाथ पकडकर तो एक से भी और उतरे । राकेश डुबकी लगाएंगे तब तो नहीं चुकी हूँ तो क्या होगा? गन्दा में खडे होकर गंगास्नान नहीं किया तो गंगा का अपमान हमारी यात्रा भी सफल नहीं होगी । ठीक कह रही हूँ । पहले हरिद्वार आते थे तब हर की पौडी में गंगा स्नान करते थे । आज पहली बार ऋषिकेश में गंगा स्नान करते हैं । दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकडा और गंगा में डुबकी लगाई । शरीर में काम कभी से हुई हाथों में चलने का, सोने का अर्पितकर नमस्कार क्या फिर गंगा का नाम लेकर पांच छह डुबकी लगाई । राकेश और रीना स्नान के पश्चात बैठ गए तो कर लिया बदलने के लिए कपडे भी नहीं उठाए थे और ना ही बदल सिखाने के लिए तौलियां धूप निकल आई है तो दस मिनट शांत वातावरण में फिर ध्यान लगाते हैं । अभी कपडे सोच जाएंगे गीले कपडे तन से चिपक गए थे । रीना और राकेश गंगा की मंदगति और पद्मावत श्रृंखला के ऊपर होते सूर्या देखते हुए आपस में वार्तालाप करते रहे हैं । सेना कि छ ऋषिकेश में जीवन की समझ बताने के लिए राकेश भी कुछ ऐसा ही जा रहा था परन्तु आर्थिक मजबूरी के चलते है ऋषिकेश रहने की चाहत पूर्ण नहीं कर सकता था । खाते घंटे बाद हस्ते रहो तो नोट है और एक स्वर में बोले हैं जो हर इच्छा गीले कपडे बहुत हद तक सूख चुके थे । अंदर से जब के आवास तरह ढीले हो गए थे तो उन्होंने भवन लौटकर कपडे बदले और फिर नाश्ता किया । राकेश नाश्ते के पश्चात टीवी पर न्यूज देखने लगा जनाब टीवी देखना है ऋषिकेश नहीं है । चलो राम झूला स्वर्गाश्रम के और चले टीवी दिल्ली में देख लेगा चलते हैं थोडा आराम करने दो दो घंटे बाद चलते हैं, लंच नहीं कर लेंगे । चलो ना दिल्ली जाकर आराम करना कुछ घुमक्कड बनाऊँ । दिल्ली में आराम का भागम भाग ही होनी है । यहाँ आए थे आराम करने । यहाँ भी चैन नहीं । आराम बन को चाहिए तो कंदा के स्नान और शांत प्राकृतिक वातावरण से मिल गया । मन शांत हो गया । अब उठो और गृहस्ती के कर्तव्य निभाओ थालियां जाओगे । घर बच्चों के लिए शॉपिंग करनी है । महिला शॉपिंग करेंगे तो हो ही नहीं सकता । जंगल में भी जाएंगे तो वहाँ भी शॉपिंग जरूर करेंगे । जब करनी है तब करनी है । एक याद होती है की ये चीज हम ऋषिकेश से उस वर्ष में लाए थे । चलो राम झूला पर कार्यपाल की और बोर्ड से गंगापार स्वर्गाश्रम लक्ष्मण राम झूला पर कई बार पैदल गंगा भारतीय चलते । समय काल किसी कंपनी छोले की यात्रा को आनंद कर दिया । अब स्कूटर और बाइक पे छोले पर चलती नजर आई । वोट पर गंगा बाहर जाने का अपना एक अलग आनंद हैं । चूले दोनों छोड के खाते हैं । शांतभाव पर रहती पवित्र गंगा और पीछे पर्वत श्रृंखला का नयन लुभा मंत्र शेयर रोमांच से भर देता है । गंगा बार बिना और राकेश छोटे बाजार और मंदिर घूमते रहेंगे । गीता भवन में राकेश ने कुछ धार्मिक पुस्तके खरीदी और वस्त्र भंडार सेना ने परिवार के हर सदस्य के लिए खरीददारी की । शाम के समय सर त्रिवेणीघाट कि गंगा आरती में सम्मिलित हुए । रात को भवन के बालकनी में बैठ गंगा को शांत चाल पर मंत्रमुक्त हो गए । भवन की लाइट और पैदल पद की लाइटिंग से गंगा की चाल कल कल के मधुर स्वर से शांत वातावरण चितचोर हो गया । परिंदे हो चुके थे । आसपास के भवनों की रोशनी, रात के कालिमा को मिटाने में नाकाम रहने पर भी पीना और राकेश को मदहोश बना रहे हैं । दोनों शांत वातावरण में शांत गंगा की कल कल सनराइज हैं । अगले दिन सुबह सूर्य उदय से पहले तो गंगा तत्पर चट्टान पर बैठ गए । सब्जियाँ दे रहा था । रात के कालिमा कुछ पलों में घटने वाली नहीं । कल आसमान धीरे धीरे पूरा हो गया । पर्वत श्रृंखला नजर आने लगी । पर्वत श्रृंखला के पीछे से आजमान पूरे से संतरी में परिवर्तन होने लगा । सूर्य उदय हो गया । दिन हो गया । कालिमा पूरी तरह से झट गए । धीरे धीरे सूर्य पर्वत श्रृंखला के पीछे से ऊपर होने लगा तो उन्होंने एक साथ हाथों में गंगाजल लिए और सूर्य को अर्पित करके सूर्य नमस्कार । क्या सूर्य की पहली किरण ने दोनों के पदन को छुआ । गंगा के ठंडे जल में डुबकी लगाकर किनारे ध्यान में बैठ गए । मंदिर हवा के झोंकों पर सूर्य के गिरने, मदन पर पडती हुई सुकून दे रहे थे । एक घंटे बाद दोनों भवन वापस आएगा । राकेश भाजपा जाना होगा । मजबूरी है । आज अंतिम छुट्टी है । कल ऑफिस जाना हैं, फिर कब आना होगा, आना जाना तो लग सकता है । कभी यहाँ कभी कहीं और प्रकृति की कोर्ट है । बस यहाँ बसने की चाह रहे गए अपना घर स्वर्ग है । चाहे कितनी कमी हो, इंसान की हर अच्छा पूर्ण नहीं होती । कुछ मिलता है और कुछ लेकर जाता है । कुछ यहाँ चाहे और कुछ अच्छा आप का घर है । कमी हर स्थान में मिल जाएगी । एक वादा कर कि ऐसी आजीन प्रकृति की बातों में वर्ष में दो बार तो मुझे लेकर आ हो गए । फायदा क्या एक बार करने में और एक बार सर्दियों में पाता निभाओगे? खुलता नहीं । बच्चे बडे हो गए । उनकी अपनी दुनिया है । उम्र की सांस एक मैं और एक बच्चा किला छोडेंगे । पौत्र पौत्री को भी संभालना है बच्चों की खुशी में अपनी खुशी उनके साथ रहकर किसान हस्ते खेलते भी थे । यही तमन्ना क्यों चलो? दार्शनिक महोदय का स्टार्ट करूँ । बच्चे प्रतीक्षा कर रहे होंगे । राकेश ने कहा घाट के और अपने घर के लिए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया

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Sound Engineer

जीवन के हर पल को डायरी में कैद करता रहा। वर्षो बाद उस पुरानी सी डायरी को खोल कर पढ़ा, यादें ताजा हो गई।
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