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बारह मासी परहेज क्या न खाएं चेते गोल्ड बैसा के तेल जेठे बाट साडे बेल सावन साल न बहुत तो दही कुमार करेला कार्तिक नहीं घन जीरा पूज घना माहे मिस्री फागुन चना जो कोई ऐसे परी हरे डाकघर वैध पैर न करे बाबार चाहत में गोल्ड वेसाख में तेल जेट में बात चलना आषाढ में बेलफल सावन में सात बातों में दही, कुमार में करेला, कार्तिक में घटाई अगहन में जीरा पूछ चावल मांग में मिस्री फागुन में चना कभी कहता है कि जो इन खाद्य पदार्थों का वर्णित किए गए महीनों में प्रयोग नहीं करता वहाँ सदर स्वस्थ रहता है और उसके घर में वैद्य के आने की आवश्यकता नहीं पडती । स्पष्टीकरण बहुचर्चित कहावत है कि परहेज इलाज से बेहतर है । एक दूसरी कहावत में भी कहा गया है कि एक परहेज हजार दवाओं से बेहतर है । यदि खानपान में परहेज रखा जाए तो निश्चित ही शरीर निरोगी और स्वस्थ रहेगा । इसी बात को ध्यान में रखते हुए लोककवि ने अपने अनुभव के आधार पर बताया है कि चेतमा वह में गुड वेसाक में तेल, जेट में दोपहर की पैदल यात्रा, अषाड माह में बेलफल, सावन में साग, अर्थर पत्ते वाली सब्जी, बहुतों में छाछ अथवा मट्ठा, दही कुमार में करेला, कार्तिक में खटाई, अध्ययन में जीरा, स्पोर्ट्स में धान था । चावल, माघमास में मिस्री, फागुन में चना आदि खाद्य सामग्रियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए । इस प्रकार का परहेज करने वाले व्यक्ति का शरीर पूरे वर्ष स्वस्थ रहता है और उसे किसी प्रकार की बीमारी नहीं होती । इस कहावत में कवि ने मौसम के अनुसार भोजन की तासीर को ध्यान में रखकर परहेज की बात कही । चेत् वेसाक जेस्ट आषाढ माह ग्रीष्मऋतु में आते हैं था । इसको गर्म ताजी फिर यह प्रकृति के खाद्य पदार्थों के सेवन से मना किया गया है । जिस में भीषण गर्मी होती है । अतः दोपहर में पैदल चलने को मना किया गया है । आषाढ माह में बेलफल खराब होने लगते हैं । उसमें अमले बनने लगते हैं इसलिए मना किया गया है । सावन भादो बरसात के महीने हैं । इनमें मौसम में नमी की प्रचुरता रहने से हरी पत्ते वाली सब्जियों पर तीनों का प्रकोप होता है और दही, मठा, छास में हानिकारक अमृता आती है । घन पोष मार्क सभी शरद ऋतु के महीने हैं । इनमें सर्दी पडती है । इसलिए ठंडी प्रकृति या तासीर के खाद्य पदार्थों यह था जीरा, चावल, मिस्री को मना किया गया है । लाभ ग्रीष्मऋतु में गर्म प्रकृति वाले खाद्य पदार्थों से तथा शीत ऋतु में ठंडी प्रकृति वाले खाद्य पदार्थों से तथा बरसात में गरिष्ठ भोजन से बचने दू कवि ने सलाह दी है । इससे पूरे वर्ष शरीर में वात, पित्त, कफ का संतुलन बना रहता है और शरीर स्वस्थ रहता है । सारा लोककवि ने अनुभव के आधार पर कहावत में महीनेवार परहेज करने की सलाह दी है । तब अनुसार परहेज करके स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना चाहिए ।
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