हम इशकजादे हूँ । आप सुन रहे हैं चाणक्य नीति ऍम के साथ अभी तक आपने सुने हैं छह अध्ययन अब शुरू करते हैं साथ बात है । साथ ही है की शुरुआत में श्री चाइना के कहते हैं कि बुद्धिमान पुरुष धन के नाश को, मन के संताप को रहने के, दोषियों को, किसी धूर्त के द्वारा ठगे जाने को और अपमान को किसी को नहीं बताते हैं । यहां मनुष्य की सहनशीलता की और इशारा करते हुए कहा है कि बुद्धिमान व्यक्ति वहीं है जो अपने परिवार के नुकसानों को और दोषियों को छिपाकर सहन कर लेता है, क्योंकि उसका प्रदर्शन करने से केवल जगह ही होती है । ऐसी बातों को कभी भी अन्य व्यक्तियों के सामने उजागर नहीं करना चाहिए । चाहे की का मानना है कि कई बार संकोच की प्रवृत्ति के कारण मनुष्य को हानि उठानी पडती है । मनुष्य के लिए ये जरूरी है कि किसी भी आर्थिक व्यवहार में उसे लिखा पडी कर लेनी चाहिए । इसमें उसे जरा भी संकोच नहीं करना चाहिए । इसके अलावा विध्या लेते समय भोजन करते समय कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए । आगे समझाते हैं कि संतोष से सर्वश्रेष्ठ सुख की प्राप्ति होती है । याचक दीनता प्रकट करता है, धनी गर्व करता है तथा और अधिक की शिक्षा करता है । जिसका धन नष्ट हो गया हूँ, वहाँ शोक करता है पर जो संतोषी हैं वहाँ सुखी रहता है । आगे समझाते हैं कि अपनी स्त्री भोजन और धन इन तीन चीजों में सन्तोष रखना चाहिए और विद्याध्यन तब और दान करने में कभी भी संतोष नहीं करना चाहिए । जीवन में सफलता बहुत जरूरी है इसलिए चाय के का कहना है कि दो ग्रामीणों के बीच से गुजरने का अर्थ यही है कि आप उन के बाद विवाद में बिजनेस डाल रहे हैं । अतः कभी उनके बीस से होकर ना निकले ग्रामीण और अपनी के दिन से गुजरने का अर्थ यही है कि आप उनके अग्निहोत्र में बिग डाल रहे हैं । पति पत्नी तथा स्वामी पार सेवक के बीच जब वार्तालाप चल रहा हो तब बीच में घुसकर आप उनकी बातों में बैंक डालते हैं । इसी तरह बाॅलर हल्के बीस से निकलते वक्त चोट लग जाने का भय बना रहता है । अगर इन बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए आगे समझाते हैं कि पैर से अग्नि, गुरु, ब्लॅड गांव, कन्या रद्द और बालक को कभी नहीं होना चाहिए । इन्हें पैर से स्पर्श करने पर पाप लगता है क्योंकि ये सभी आदरणीय हैं । चाइना की कहते हैं कि बैलगाडी से पांच हाथ घोडे से दस हाथ खाती से हजार हाथ दूर बजकर रहना चाहिए और दुष्ट पुरुष या राजा का देश छोड ही देना चाहिए । यहाँ वो ये समझाना चाहते हैं कि जो जितना अधिक दुष्ट है उसे उसी अनुपात में दूरी रखते हुए जीवन यापन करना अच्छा होता है । आगे समझाते हैं कि हाथ को अंकुश से, घोडे को, चाबुक से, सिंह वाले बैल को डंडे से और दूसरे व्यक्ति को वर्ष करने के लिए हाथ में तलवार लेना आवश्यक है । आचार्य चाणक्य के अनुसार दूसरे व्यक्ति को आसानी से ना तो वर्ष में किया जा सकता है और न ही उसे सुधारा जा सकता है । ऐसे व्यक्ति को ठीक करने के लिए कभी कभी उसे तलवार से चोट पहुंचाने पडती है और कभी कभी उसे खत्म करना पडता है । आगे चल के कहते हैं कि ब्राह्मण भोजन से संतुष्ट होते हैं । मोर बादलों के गरजने से साधु लोग दूसरों की समृद्धि देखकर और दुसरे लोग दूसरे पर विपत्ति आई देखकर प्रसन्न होते हैं । आगे समझाते हैं की अपने से शक्तिशाली क्षत्रों को विनय पूर्वक उसके अनुसार चलकर दुर्बल शत्रुओं पर अपना प्रभाव डालकर और सामान बाल वाले शत्रु को अपनी शक्ति से या फिर विनम्रता से जैसा अवसर हो उसी के अनुसार व्यवहार करके अपने वर्ष में करना चाहिए । क्षत्रों से व्यवहार करते समय इस बात की ओर इशारा किया है कि शत्रु से व्यवहार करने से पूर्व उसकी शक्ति और सामर्थ्य का पूर्वानुमान लगा लेना चाहिए । राजा की शक्ति उसके बाहुबल में, ग्रामीण की शक्ति, उसके तत्वज्ञान में और स्त्रियों की उनकी सांगरी तथा माधुरी में होती है । संचार में अत्यंत सरल और सीधा होना भी ठीक नहीं है । बन में जाकर देखो कि सीधे बृक्ष को ही पहले काटा जाता है और तेरे मेरे बच्चों को छोड दिया जाता है । इस बात में जीवन की सच्चाई की और संकेत क्या है? सीधापन आदमी की कमजोरी का परिचायक माना जाता है तो उसे हर कोई सताने लगता है परन्तु तेरे स्वभाव के दुष्ट व्यक्तियों से कोई भी उलझना नहीं चाहता । सभी उन से बचना चाहते हैं । जिस सरोवर में जल रहता है, हंस वहीं रहते हैं और सूखे सरोवर को छोड देते हैं । मनुष्य को ऐसे हंसो के सामान नहीं होना चाहिए कि बार बार स्थान बदले । चाणक्य का मत है कि मनुष्य के लिए अपना स्वार्थी प्रमुख नहीं होना चाहिए । जैसे स्थान विशेष से एक बार नाता जोड लिया जाए तो उसे कठिनाई आने पर भी नहीं छोडना चाहिए । कमाए हुए धन का दान करते रहना ही उसकी रक्षा है । जैसे तालाब के पानी का बहते रहना ही उत्तम है । तालाब का पानी एक स्थान पर रुका रहेगा तो वह सड जाएगा । संसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं । उसी के सब बंधु बांधव होते हैं । वहीं श्रेष्ठ पुरुषों की गिनती में गिना जाता है और वहीं ठाटबाट से जीवन जीता है । चाहे के कहते कि धन के बिना कोई भी कार्य नहीं चलता है । धन परमात्मा तो नहीं है परंतु उसका छोटा भाई आवश्यक है । जिसके पास धन है वहीं कुलीन है, विद्वान है, शास्त्रीय के हैं, धोनी हैं, वक्ता है, धन कमा हूँ मगर ईमानदारी से काम हूँ । अत्यंत क्रोध करना, कडवी वाणी बोलना, दरिद्रता और अपने सगे संबंधियों से मैं विरोध करना, बीच पुरुष का संघ करना, छोटी कुल के व्यक्तियों की नौकरी अथवा सेवा करना । ये छह दुर्गणों ऐसे हैं जिनसे युक्त मनुष्य को प्रति लोग में ही मैं रख के दुखों का आभास होता है । मनुष्य दी से हैं की मांग के पास जाता है तो मजबूती पाता है । पानी दी सीआर की मांग के पास जाता है तो बछडे की पूछ और गधे के चमडे का टुकडा पाता है । भाव यह है कि बडे लोगों के पास जाने से धन, संपत्ति और ऐश्वर्य प्राप्त होता है और छोटे तथा नीच लोगों की संगती करने से सेवाएं दुःख के और कुछ भी प्राप्त नहीं होता है । आगे जाना कि कहते हैं कि बोल चाल अथवा वाणी में पवित्रता मन की स्वच्छता का, यहाँ तक कि इंडिया को वर्ष में रखकर पवित्र रखने का भी कोई महत्व नहीं होगा । जब तक के मनुष्य के मन में जीवन मात्र के लिए दया की भावना उत्पन्न नहीं होती है । आगे जाने की समझाते हैं कि जिस प्रकार स्कूल में गंद तीनों में तील लकडी में आग, दूध में भी गन्ने में मिठास आदि दिखाई न देने पर भी विद्यमान रहते हैं, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दिखाई न देने वाली आत्मा निवास करती है । यह रहस्य ऐसा है इसे विवेक से ही समझा जा सकता है । मनुष्य को चाहिए कि वह इस रहस्य को समझने का प्रयास करें । वहाँ शरीर न होकर आत्मा है । आत्मारूपी तत्व इस देर में उसी प्रकार विधमान रहती है जिस तरह फूलों में गन, तीनों में तेल और लकडी में अग्नि तथा गन्ने में मिठास और दूध में घी विधमान होने पर भी वहाँ दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वे उसमें हैं । इसी प्रकार हम सब में भी कई सारे गुरु पस्थित है । उन्हें पहचानकर उन्हें बाहर निकालने की कोशिश कीजिए । यह था अध्याय साथ अब हम बढते हैं । अध्ययन आठ की ओर आप सुन रहे हैं फॅमिली साथ