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आप सुन रहे हैं । फॅमिली किताब का नाम है कहानी एक आईएएस परीक्षा की, जिसे लिखा है कि विजय कार्तिकेयन ने और मैं हूँ हरीदर्शन शर्मा कुकू ऍम सुने जो मन चाहे भाग एक बयासी हजार पांच सौ छह विमॅन के साथ अपने टेबल पर टाइप क्या नंबर टाइप करते हुए उसके हाथ काट रहे थे । यह वर्ष दो हजार की सिविल सेवा परीक्षा में उसका रोल नंबर था । प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम अभी अभी सामने आए थे । विष्णु अधिकारिक वेब साइट में अपना रोल नंबर दर्ज करने के बाद स्क्रीन को बोलने लगा । ऍम जैसा लग रहा था जैसे उसे अंतिम बार के दशक में बदला गया हूँ । शमा करें आपका रोलनंबर सफल उम्मीदवारों की सूची में अंकित नहीं है । स्क्रीन पर लिखा था लखनऊ निवासी विश्वनाथ उर्फ विष्णु एक लंबा सुगठित पच्चीस वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग का स्नातक युवा था । अपने प्रतिशत बैच मेट की तरह दाखिला लेते समय उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि वहाँ इंजीनियरिंग में प्रवेश क्यों ले रहा था । हालांकि जब तक उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, कॉलेज के पांच सत्र पूरे हो चुके थे । फिर भी उसे लगा कि पछताने से बेहतर था । देर हो ना वह दफ्तर, घर, दफ्तर की मशीन, दिनचर्या में बंद कर रहने वालों में से नहीं था । उसे चुनौतियां चाहिए थी और वहाँ हमेशा लोगों से घिरा रहना चाहता था, मशीनों से नहीं । उसने अपने पिता को डॉक्टर के रूप में प्रभावी कार्य करते देखा था । आंतरिक संतुष्टि के साथ बहुत एक सफलता को संतुलित करते हुए । फिर भी विष्णु बडी चुनौतियों और एक बहुआयामी भविष्य चाहता था और वे चुनौतियां उसे इंजिनियर बन कर नहीं मिलने वाली थी, जैसा कि वहाँ अक्सर अपने पिता के सामने दावा करता रहा था । उसे लगता था कि सिविल सेवाओं में आना, विभिन्न चुनौतियों का सामना करना और उनके समाधान प्रदान करना एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में शामिल होने, मोटा वेतन प्राप्त करने और एक मशीनी जीवन जीने से कहीं बेहतर था । भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी के आईएएस में प्रवेश पाना उसका सपना था । लेकिन अब अपना इंजीनियरिंग का करियर पीछे छोडने को और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने को एक साल देने के बाद उसकी आशाएं और सपने धाराशाही हो गए थे । विष्णु को अपने गले में घुटन महसूस हो रही थी । वहाँ मुश्किल से साथ ले पा रहा था । वास्तविकता ने उसे जोर का झटका दिया था । वहाँ परीक्षा में असफल रहा था । उसका कडा परिश्रम व्यर्थ चला गया था और उसके और उसके माता पिता के सपने टूट गए थे । उसकी आंखों से आंसू निकलकर घायल पर लुढक रहे थे जबकि वहाँ पहली बार जीवन का दबाव महसूस कर रहा था । पिछले पच्चीस सालों में विष्णु ने पढाई में हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया था । जीवन में यह उसकी पहली बडी सफलता थी और उसे बहुत अधिक ट्रस्ट हो रहा था । यहाँ केवल विश्व नहीं था जो आहत हुआ था । देशभर से करीब चार लाख इक्यासी हजार अन्य उम्मीदवार जो सिविल सेवाओं में प्रवेश प्राप्त करके एक बेहतर भारत का निर्माण करने का सपना देख रहे थे, ऐसा ही महसूस कर रहे थे । सपने, आकांक्षाएं, प्यार, आशा, विश्वास, भरोसा, आत्मविश्वास, धैर्य, समर्पण, दृढ निश्चय सब टूट गए थे क्योंकि प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होने वाले लगभग पांच लाख आकांक्षियों में से केवल बारह हजार उम्मीदवारों का चयन हुआ था । कुछ लोगों ने यह परीक्षा सहकर्मियों और परिवार के दबाव में आकर दी थी । कुछ लोग इसे जीवन में स्थायित्व प्राप्त करने के साधन के रूप में देख रहे थे और कुछ के लिए यह परीक्षा ही उनका जीवन थी । विष्णु के लिए यह परीक्षा उसके सपने तक पहुंचने का द्वार थी । अपने देश के लिए किसी तरह से उपयोगी होने के सपने की । उसकी माँ ने उसे रोते हुए देखा और भाग कर उसके कमरे में आ गई । वे समझ गई कि क्या हुआ था और उसे दिलासा देने लगी । कोई बात नहीं बेटा तो उन्हें बहुत मेहनत की लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है उदास मत हो । उन्होंने कहा, विष्णु ने रोना बंद नहीं किया लेकिन एक संकल्प की भावना रेंगते हुए उसके अंदर प्रवेश करने लगी । आसुओं के प्रत्येक दौर के लिए वही सोच रहा था । यहाँ मेरे जीवन में आखिरी बार है कि मैं परीक्षा परिणाम के लिए रहूंगा । उसने यही विचार अपनी माँ के सामने दोहराया और फिर जी भरकर रो लेने का फैसला किया । एक घंटे बाद उसके पापा ने उसे बुलाया तो फेल नहीं हुए हो तो भारी सफलता का समय आगे बढा दिया गया है । उन्होंने कहा ओके पापा, आपको न इलाज करने के लिए सौरी । अगले साल इसी समय मैं आपको प्रिलिम्स यानी की प्रारंभिक परीक्षा पास कर लेने की खुशखबरी सुनाऊंगा । विष्णु ने धीमे लेकिन आत्मविश्वास से भरे स्वर में कहा उसके माँ बाप दोनों को जिन्होंने उसकी धीमी आवाज में कहीं बात सुन ली थी । बहुत खुशी हुई । एक ऐसी उम्र में जहाँ थोडा सा दबाव पढते ही युवा नियंत्रित होकर उल्टी सीधी हरकतें कर बैठते हैं । विष्णु ने जिस प्रकार अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखा था, उससे उन्हें गर्व महसूस हो रहा था । हालांकि विष्णु ने अपने माँ पापा के सामने इतने बहादुरी और संयम से भरा व्यवहार किया था । फिर भी वहाँ उस रात सो नहीं पाया कि आप गलती हो गई । क्या कमी रह गई, वहाँ सोचता रहा हूँ । इस बीच उसका फोन बजने लगा । शालिनी का कॉल था । वहाँ उसके स्कूल के दिनों की दोस्त थी, जिससे बाहर आपको दो बजे भी बात कर सकता था । विष्णु ने फोन उठाया हैलो हुआ बोला ऍम हो गया है ना । उसने पूछा हाँ मैंने तुम्हारे हेलो से अंदाजा लगा लिया था । अब क्या हूँ? अगले साल पक्का पास कर लूंगा, हाँ जरूर कर लोगे । शालिनी ने उसे आश्वस्त किया । मुझे एक बात और कहना है क्या आई लव यू खाली नहीं, मुझसे शादी करोगी । क्या तुम्हें होते हैं? इस तरह जाना क्यों क्या क्यूँ कैसे कब ये सब बहुत ज्यादा है । बस मुझे अपना जवाब दे दो तो मुझे क्या? जब आप चाहते हो तुम्हारा दिमाग झंड हैं, तुम्हारा दिल सुरक्षित है, ज्ञान देना बंद करो प्लीज और सोचो सोच लो और मुझे बताऊँ । अब मुझे सच में नहीं ना रही है या नहीं । अच्छी बात है आराम से सोना गुडनाइट । अगली सुबह विष्णु उठकर अखबारों के पन्ने पलट रहा था । शुक्र है अब मैं करेंट अफेयर्स डी आने की सामयिक विषयों से ज्यादा सिनेमा की खबरें पढ सकता हूँ । उसने मन में सोचा उसके पास जो पिछली रात देर से घर आए थे अभी अभी मॉर्निंग वॉक से लौटकर उसके पास आ गए थे रिजर्व के बारे में और कोई बात नहीं करना चाहता बेटा बस उसको पीछे छोडो एक छोटा ब्रेक लोग और फिर से तैयारी में लग जाऊँ । उन्होंने कहा विश्व में तीसरे पन्ने पर छपे दीपिका पादुकोण की तस्वीर से आगे हटाए बिना सिर हिला दिया । प्रभाकर का फोन आया था । हो सकता है हरी ने प्रीलिम्स पास कर लिए हैं । उनके घर में उसके पापा सिर केवल कूद रहे हैं जब की हरी कलाबाजियां खा रहा है । विष्णु के पापा ने कहा हाँ हाँ, मुझे इसी बात की उम्मीद थी । हरीके फेसबुक स्टेटस पर लिखा है दुनिया को जीतने के रास्ते की और विष्णु अपने फोन की ओर इशारा करते हुए हजार माँ मैं बाहर जा रहा हूँ । लंच के लिए घर नहीं आऊंगा । विष्णु सुबह उठने के बाद से तीन हजार पांच सौ बत्तीस बार अपना फोन चेक करते हुए चिल्लाया । फिर वहाँ तैयार होकर फिल्म देखने चला गया । एक नया संदेश प्राप्त हुआ है । फिल्म के बीच में विष्णु के फोन ने भी किया । उसने पॉपकॉर्न में डूबी उंगलियों से संदेश खोला । समय चाहिए सोचने के लिए आकलन करने के लिए । चलो । हम एक महीने के लिए एक दूसरे से दूर रहते हैं । फिर अपने भावनाओं के आधार पर फैसला करेंगे । मैसेज में लिखा था, वो वहाँ फिर शुरू हो गई । विष्णु ने राहतभरी एक बार फिर उस रात विष्णु के पास सोचने के लिए बहुत कुछ था । उसकी नजर पास के एक साइन बोर्ड पर लगे विज्ञापन में अंकित शब्दों पर पडी, जिसमें लिखा था, कभी भी एक ही काम बार बार करके अलग परिणाम की अपेक्षा न करें । विष्णु का लगा जैसे वे शब्द उसके लिए ही लिखे गए थे । बात विषय की है । मैंने गलती कर दी । मुझे इस परीक्षा के लिए वैकल्पिक विषय के रूप में मैकेनिकल इंजीनियरिंग नहीं लेना चाहिए थी । अंत में उसने निष्कर्ष निकाला । विष्णु के दिमाग का दूसरा हिस्सा शालिनी के बारे में सोच रहा था । बाहर से विष्णु को पूरा विश्वास था कि शालिनी उसके प्यार का जवाब प्यार से ही रहेगी । आखिरकार दोनों स्कूल के समय से अच्छे दोस्त थे, लेकिन अंदर ही अंदर उसे यह देखा था कि जरूरी नहीं यहाँ फॅमिली को उसके पक्ष में फैसला लेने के लिए प्रेरित करें, बल्कि वहाँ तो बिल्कुल इसका उल्टा करेगी । वहाँ ऐसी है, उसने सोचा, वैसे भी वह खुश था कि उसने अपने कैरियर के संदर्भ में अपने मम्मा पापा को और अपने व्यक्तिगत भावनाओं के बारे में अपने दोस्त को साफ साफ बता दिया था और वहाँ जोर जोर से खर्राटे भरते हुए हो गया । विष्णु ने अगले कुछ दिन अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने में और हाल ही में रिलीज हुई सभी नई फिल्में देखने में बिताये और अपनी परीक्षा की तैयारियों से पूरी तरह से दिमाग हटा लिया । दो हफ्ते कुछ न करने के बाद उसे एहसास हुआ कि कुछ न करना दुनिया का सबसे कठिन काम था, तो उसने अपने किताबें वापस स्टडी लेवल पर रखने शुरू कर दी । उसे लगा कि काम पर लौटने का समय आ गया था । उसे महसूस हुआ कि उसने इस बार परीक्षा से पहले ज्यादा अभ्यास और माँ टेस्ट नहीं लिए थे और वहाँ मुख्यतः अपनी स्वयं की तैयारी पर निर्भर रहा था । उसने परीक्षा के लिए किसी कोचिंग क्लास में दाखिला नहीं लिया था लेकिन अब उसने कोचिंग की गाडी में सवार होने का फैसला कर लिया ।