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हाँ और ये नहीं मत ऍम । एक साथ बहुत सारे काम निपटाने के चक्कर में मनोयोग से कोई कार्य पूरा नहीं हो पाता । आधा अधूरा कार्य छोडकर दूसरे कार्यों की ओर दौडने लगता है । यहीं से श्रम समय की बर्बादी प्रारंभ है तथा मन में खीज उत्पन्न होती है । विचार और कार्य सीमित एवं संतुलित कर लेने से श्रम और शक्ति का अब गए रुक जाता है और व्यक्ति सफलता के सोपान ऊपर चढ जाता है । कोई भी काम करते समय अपने मन को उस भावों से और संस्कारों से ओतप्रोत रखना ही सांसारिक जीवन में सफलता का मूल मन कर रहे हैं । हम जहाँ रह रहे हैं उसे नहीं बदल सकते हैं और अपने आप को बदलकर हर स्थिति में आनंद ले सकते हैं । आर्यना हिम्मत