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सातवाँ फेरा -09 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
हर लड़की के जीवन में वो पल आता है, जब उसे जीवन साथी को चुनना होता है और निर्णय करना बेहद मुश्किल होता है। उमा के सामने भी यही एक बड़ा प्रश्‍न था कि सामने विकल्‍पों की कमी नहीं थी, लेकिन किसे अपना जीवन साथी चुनें? जहां जय के पास प्‍यार देने के लिए अलावा और कुछ नहीं था, वहीं शंकर था जो बिजनेसमैन था और उसके पास शानो-शौकत, दौलत बेशुमार थी। उमा किसे अपना जीवन साथी चुनेगी? उमा की कसौटी पर कौन खरा उतरेगा जय या शंकर? जानने के लिए सुनें पूरी कहानी।
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भाग हो करेंगे । माथे से पसीना पहुंचा । कितना बुरा मौसम था । कयामत की गर्मी पड रही थी । दिनभर आंधी और धूल धक्कड का जो रहता हूँ पेडों के पत्ते सूख गए थे । हरियाली का कहीं नामोनिशान नहीं था । उसने सोचा लोग शादी के लिए ऐसा नीरज मौसम क्यों चुनते हैं? ऐसा सोचने का भी कारण था क्योंकि उसी तार द्वारा पता चला था कि शीला की शादी पंद्रह जून को तय हुई थी । उस की शादी झांसी के डॉक्टर से हो रही थी । एक अन्य स्थान से भी शादी का निमंत्रण मिला था । वह शीला की शादी में ना जाकर दूसरी में जाना चाहता था । मगर प्रमिला जिद्द कर रही थी । बाद भी ठीक की । उसकी न जाने से प्रमिला के पिता क्या सोचते हैं । सभी दामाद तो वहाँ मौजूद होंगे । ऐसे में उन का न होना सभी को खटकता । प्रमिला को नाते रिश्तेदारों की जली कटी अलग से सुननी पडती । अंतर भी करें । मान गया । उसने मन मजबूत कर तैयारी की और परिवार को लेकर वाराणसी रवाना हो गया । वाराणसी अनूखा शहर है । आधा भाग तंग गलियों और ऊंची ऊंची बिल्डिंगों से घिरा है । दूसरा भाग बडा ही विचित्र है । उसे देखकर शमशान घाट का एहसास होता है । शहर में जगह जगह मंदिर बने हुए हैं । उनमें सादा घंटों का शो रहता है । गलियों में आवारा सांड रहा । चलने वालों से छेडखानी करते हैं और आते जाते वृक्षों को टक्कर मारते हैं । सडकों पर भारी भीड रहती है । सीधा चलना मुश्किल हो जाता है । यहाँ नेकी, बदी और पाप पुण्य में गहरा तालमेल मंदिरों के पीछे अय्याशी के अड्डे हैं । वाराणसी का पान भी कुछ कम मशहूर नहीं । रेशमी गाडियां और लकडी के खिलौने यहाँ की विशेषता हैं । लेकिन वाराणसी के घाटों का जवाब नहीं । उन के किनारे किनारे पुराने जमाने की ऊंची हवेलियां और धर्मशालाएं बनी है । नीचे सीढियों का सिलसिला दूर तक चला जाता है । वे स्टेशन पर उतर पडेंगे । सामान लिख ऊपर रखा और शहर की तरफ रवाना हो गए । घर पहुंचकर करें नहाया और उसके कपडे बदले आंगन में केले की वेदी बनाई गई थी । स्त्रियां रंगबिरंगी साडिया पहने इधर उधर घूम रही थी । घर में खूब चहल पहल थी । शीला वेदी के नीचे बैठी थी । उसकी आगे चुकी थी और जहरा उदास था । उसके चारों तरफ बैठी स्त्रियां उसे उबटन माल रही थी । कुछ एक उसे मेहंदी लगा रही थी । लडकियाँ आकर प्यार से शीला के चेहरे को देखती और मुस्कुराती । फिर शीला को रन दार कीमती साडी बांधी गई । बालों में फूल होते गए और अंदर कमरे में ले जाया गया । कमरा जवान और वो थोडी औरतो से भरा हुआ था । वे शीला को एक नजर देखने के लिए बेच एंड कमरे में दुल्हन के बाल रखती । ढोलक बचने लगी । ऑस्ट्रिया सुहाग गीतकार आने लगी । उनका स्वर बडा मीठा और कोमल था । करण संगीत लहरियों में आनंदित होता रहा । धीरे धीरे उसकी आंखे बंद होने लगी । वो सूफी पर लेट गया । सफर नहीं उसे थका दिया था । आज शीला दुल्हन बनी थी । करण को लगा वह से बहुत दूर चली गई है । कुछ देर बाद उसकी मुस्कुराहटों पर किसी और का अधिकार होगा । वो उसे भूल जाएगी । याद ऊपर अतीत का पर्दा पड जाएगा । संगीत की स्वर लहरियां उसके कानों में चुभने लगी । शीला स्त्रियों में गिरी थी, उससे बात तक करना कठिन था । वो तो उसके बारे में सिर्फ सोच सकता था । भरे करें भैया हाँ अब तक कहा कि शीला के भाई ने पूछा बारात आने वाली है । पापा चाहते कि आप स्टेशन पहुंचकर उसका स्वागत करें । कहाँ? क्यों नहीं आओ मेरे साथ? वो उठा हुआ बोला । वो दोनों बाहर निकले । कारों की एक लंबी कतार लगी थी । वे दोनों जिसका में बैठे उसे फूलों से सजाया गया था । वो कार्ड दूल्हे के लिए थे । वो स्टेशन पहुंचे । गाडी अभी नहीं आई थी । प्लेटफॉर्म पर भेड और शोर था । लोग सामान उठाए । इधर उधर भाग रहे थे । लाउड स्पीकर पर गाडी के आने की सूचना दी जा रही थी । मगर उसकी आवाज भीड के शोर में ठीक से नहीं सुनाई दे रही थी । सारे वातावरण में उमस और उकताहट ठंडे पानी की मशीन के सामने मुसाफिरों की एक लंबी कतार लगी थी । लोग पानी पी नहीं रहे थे बल्कि गले के अंदर उंडेल रहे थे । जैसी गाडी प्लेटफॉर्म पर आकर रुकी । भीड में भगदड मच गई । हर आदमी बौखलाया, साहब भागने लगा । लाल कमीज पहने कोहली इधर उधर भागने लगा । उसके सिरों पर भारी बिस्तर और सूटकेस रखे थे । खोचे वाले आवाजे लगा रहे थे । गर्म हुई बढिया मिठाई ठेलों पर सामान लादे स्कूली भीड को कुचलकर आगे बढना चाहते थे । लोग कुचल उछलकर अपने को बचा रहे थे । उधर रेल के डिब्बे खचाखच भरे हुए थे । तेल घरने को भी जगह नहीं थी । तीसरे दर्जे के डब्बों में लोग ठसाठस भरे थे । करण को मालूम नहीं था कि बयान किस डब्बे में हैं । वो बारी बारी सभी डब्बे को देखता आगे बढ रहा था । अचानक उसकी नजर एक डब्बे पर पडी । उसमें से बाराती उतर रहे थे । बच्चों के अलावा तीस चालीस पुरुष थे । करण ने एक फ्रॉड व्यक्ति के पास जाकर कहा, मेरा नाम करन है और ये संजय है । हम लडकी वालों की तरफ से आपको लेने आए हैं । ट्रॉट व्यक्ति दुल्हे का बाप था । उसके करण को धन्यवाद दिया और मेहनत में लगी धूल पूछते कहा इससे मिलो, ये मेरा सुनी है । सुरेश के मुस्कराकर हाथ मिला । उसके टेरील, इनकी बुलशिट और सफेद पतलून पहन रखी थी । उसके सिर के बाल बीचोबीच चित्र गए थे । सुरेश शीला का भावी पति था, करेंगे सोचा भलाई इसका और शीला का क्या? मैं क्या दोनों का जोडा अच्छा लगेगा करेंगे । आवाज देकर कुलियों को बुलाया । वे सामान उठाने लगे । करण सुरेश को साथ लेकर बाहर की तरफ बढा । बाहर आकर वो कार में बैठ गए । सुरेश ने कहा मैं पहली बार इस शहर में आया हूँ । चाहता हूँ कि घूम फिर कर इसे देखो । पर फुर्सत शायद ही मिले । हाँ, अबकी कहते हैं शादी की रस्में पूरी करने के बाद अब बहुत थक जाएंगे । करेंगे । जवाब दिया कार्य स्टार होटल के सामने रुकी । बारात को इसी होटल में ठहरने का इंतजाम किया गया था । करेंगे कहा आपको तैयार होने में कुछ वक्त लगेगा । तब तक मैं दूसरी तरफ का इंतजाम देखता हूँ । इतना कहकर उसे संजय को लिया और कार में बैठकर रवाना हो गया । वो बयान आने की सूचना देने चाहता था । घर में चहल पहल थी । सैकडों रंग बिरंगे बिजली के बल्ब रात के अंधेरे में खूब बाहर दिखा रहे थे । एक बडा सा लकडी का गेट बनाकर उसपर स्वागतम का बोर्ड लगवाया गया था । चारों तरफ कागज की झंडियां लगी थी । इस बीच करण सिंह जी को लेकर होटल पहुंचा । वहाँ सभी लोग तैयार थे । बराक चलने लगी । सबसे आगे फिल्मी धुनें बजाने वाला बैंक था । उसके पीछे कारों की लंबी कतार थी । जब घर कुछ दूर रह गया तो सभी कारों से उतर कर पैदल चलने लगे । उनकी आगे बैंड बच्चा चल रहा था । स्वागतम वाले गेट के पास पहुंचकर बारात रुकी । सबके घरों में फूलों के हार डाले गए । करंट सुरेश को लेकर शामियाने की तरफ बढा उपस् थित लोगों ने दूल्हे का स्वागत किया । अब शीला के पिता आगे बढे । वो हाथ बांधकर वेदी के पास बैठ गए । पण्डित मंत्रों का उच्चारण कर रहा था । पंडित सुरेश और उसके भावी ससुर के हाथों पर भूल पांच और चावल रखे । कुछ मंत्र पढे और हवन कुंड में डालने का संकेत क्या बैंड का बजना बंद हो गया? स्त्री या एक जगह खेती होकर स्वाहा गीत गाने लगी । शीला को अंदर से लाया गया । उसे लम्बा घूंघट निकाल कर रखा था । उसकी सही लिया । उसे पकडे चल रही थी । शीला के हाथों में ताजा फूलों का हार था । वो सुरेश के सामने जाकर रुकी । उससे अनमने भाव से हाथ ऊंचे किए और हार उसके गले में डाल दिया । सुरेश ने भी ऐसा ही किया । मेहमानों का तांता लगा था । उन्हें शामियाने के नीचे बैठाया गया । बे सैकडों की संख्या में थे । संजय और करंट उन्हें नमृता से बैठने को कह रहे थे । बैंड दोबारा बचने लगा । महमान मजे से खाने पीने लगे । जब मेहमान खा पीकर चले गए तो करण अंदर कमरे में गया । वहाँ शीला को सजाया जा रहा था । रात को फेरे होने थे । उसे सारी जांच जाता था क्योंकि फेरे सुबह खत्म होने थे । इस गहमागहमी और भाग दौड में करेंगे । ऐसा फंसा हुआ था कि उसे शीला से पल भर को बात करने का अवसर भी नहीं मिला था । वो तो अब किसी दूसरे की ही हो रही है । अब बात करने से क्या मिलेगा? ये विचार भी उसे शीला के साथ बात करने से रोक रहा था । तरह ने दूर से शीला को गुमसुम बैठा देखा । उसका आधा चेहरा घूंघट से छिपा था, जो लडकियों से घेरे बैठी थी । कपडे बदलने के लिए उठ कर चली गई । उसने शीला के चेहरे को देखा । वो दुल्हन के लिए बाजू में बडी आकर्षक लग रही थी । वो धीरे से बोली तो अब तक कहाँ थी? करेंगे? अनमनी भाव से कहा मैं तुम्हारे लिए एक पति का इंतजाम कर रहा था । तुम तो फिल्मों में दिखाई जाने वाली दुल्हन लग रही हूँ । तुम क्या बच्चों जैसी बातें करती हूँ । उससे नीची नजरों से कहा शीला खेला । उसकी कुछ एक सहेलियाँ भागते हुए कमरे में आॅखो घोलकर देखने लगी । अब उसने भी वहाँ रहना उचित ना समझा । उच्च चुपके से बाहर निकल गया । बराटी कुछ देर बाद वापस आकर खाने की मेजों पर बैठ गए थे । करें बाहर आकर खाने की थालिया उनके सामने रखने में और उनकी मदद करने लगा । दूसरे लोग भी उसका हाथ बता रहे थे । पीतल के बडे बडे बर्तनों से तरह तरह के पकवान निकालकर थालियों में परोसे गए तो खुशी खुशी उसे खाने लगे । डिनर के बाद बाराती सुरेश को फेरे की रस्म पूरी करने के लिए छोड कर चले गए । सजीव वे मंडप के नीचे शीला बैठी थी शीला ही होगी करेंगे या नाजा लगाया क्योंकि उसका बदल ऊपर से नीचे तक साढे से ढका हुआ था । उसके पास सुरेश बैठा हुआ था । उसका सांवले रंग का भारी भरकम शरीर बिजली के तेज प्रकाश में चमक रहा था । उसे घेरे हुए मित्रों और संबंधियों का एक झुंड राहत की नीतियां कर शादी की रसम देखने को बैठा था । पुरोहित ऊंचे स्वर में विवाह संस्कार संबंधी श्लोक पड रहा था । ऊपर आकाश के सितारे और सामने दीदी की लपटी और इधर उधर बैठे हुए लोग उनके इस मिलन के साक्षी थी । नीले आकाश और अग्नि से अधिक पवित्र गवाह और कौन हो सकता है ये दो ही तो हमारे अंतिम साथी है । करंट कोइ संस्कार की विधि पर कुछ उत्तेजना से महसूस हुई ये मिलन विवाह का ये बंधन व्यक्ति को इतना छोटा बना देता है कि जैसे सूर्य की रोशनी की आगे की आप उसे पता होता कि जिस लडकी के साथ वो अपनी जीवन की सारी आशाएं बांध रहा है वो किसी दिन पढाई हो जाएगी । करेंट खुद भी तो शादी के बंधन में बन चुका था । जब दोनों के साथ फेरे हो चुके तो उसे लगा कि गर्मी से उसकी सास फट रही है । वह मंडप से बाहर निकल आया । बाहर आ ठंडी थी । बिजली के बल्बों की तेज रोशनी में लोन की हरी घास चमक रही थी । एक और चारपाइयों पर लेते बच्चे गहरी नींद हो रहे थे । वो बाहर खुले आसमान के नीचे लेटकर खामोश सितारों को निहारता रहा तो खोई हुई की तलाश क्यों कर रहे हो? कहाँ पाओगे तुम उसे? एक शाम जब करंट कोर्ट से लौटा तो पर मेरा ने उससे पूछ लिया । प्रमिला के मन में पति के प्रति गहरी श्रद्धा दी । उसने करन की किसी बात में कभी दखल नहीं दिया । पोर्से अपनी मर्जी से रहने दे दी थी । उसने कभी किसी काम के लिए रोका, ना कभी किसी बात के लिए नहीं । कुछ भी तो नहीं खोज रहा करें । झूठ बोल गया । उसकी बदली सच्चाई जानती थी । वह अंधी तो भी नहीं । वो चुप रहती थी तो सिर्फ इसलिए कि वह सब कुछ मौन रहकर सही लेती थी । अगर तू शीला की बात सोच रहे हो तो उसकी आवाज दब गई । हाँ, अगर तू शीला की बात सोच रहे हो, वो फॅमिली बोलने लगी तो वह सुरेश के साथ नहीं आ रही है । लोग की पढ लो उसने उसे तार दे दिया । ये तार अभी अभी आया था । वह ध्यान से एक रन के जहरी की ओर देखती रही । अब उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर गई । करन का चेहरा थर्मामीटर के पारी की तरह उसके मन के भावों के उतार चढाव को प्रकट कर देता था । ऍम आ रहे हैं वो फॅसे बोला अब कार तैयार कर लूँ नमस्ते भाई साहब उम्मीद है कि मेरा तार आपको समय से मिल गया होगा । सुरेश ने गाडी से उतरते हुए कहा अब नमस्ते भाभी आप तो कुछ कमजोर दिखाई दे रही है तब तो ठीक है ना । करंट की आंखे उस एयर कंडीशन कोच पर टिकी थी जिससे शीला उतर रही थी । उसका चेहरा देते ही एक्शन के लिए उसकी सांस जहाँ थी वही ठहर गई । वो और दिनों से कई ज्यादा खूबसूरत लग रही थी । यू लग रहा था जैसे उसका पहला शरीर एक नई युवा अप्सरा की दे हमें बदल गया हूँ उसकी जिसमें का एक एक उभार जीनी साडी में से झांक रहा था । तंग ब्लाउज में बंधे हुए उसके उन्नत उरोजों का उभार निगाहें बांधे दे रहा था । उसके चेहरे क्या भाई आज दोगुनी होती लगती थी, उसकी नहीं । विधायक करन के दिल में पेट गई । ये एक नई शिला की तो शीला से बिल्कुल अलग जो उसने आज से पहले देखी थी । जिस ढंग से उसने नमस्ते किया था उसने करन समझ गया कि नया पन केवल बदन में ही नहीं, डीटर तक समाया हुआ है । आज वो भेदभरी नजरों से उसकी और छिप छिप कर नहीं देख रही थी । वो उससे आंखें मिलने की कोशिश करता तो वह अपनी निगाहें भेज लेती । ऐसा लग रहा था मानो वे अतीत के दिनों से अलग किसी नई दुनिया में मिल रहे हो । सुरेश स्कूली उसे सामान उठाने में व्यस्त था । वह करण और भावी को प्रभावित करना चाहता था । जब एक गोली ने एक छोटा सा अटेची के जी से वो खुद उठा सकता था । नीचे उतारा तो उसने कोहली को एक रुपया बक्शीश दे दिया । कोहली ने झुककर सलाम किया । जब करण अपनी फट फट करती, फोर्ड को घुमाकर उनके सामने लाया तो सुरेश ने कुछ ऐसी निगाहों से उनकी और देखा किसी कह रहा हूँ अच्छा तो ये गाडी है कि भाई हमें तो इसमें बैठने की आदत नहीं है लेकिन चलो आज इसी झगडे में से ही शीला तो प्रमिला के साथ कप लडाने लगी । करन गंभीर चेहरा बनाते हुए उदास बैठा रहा । तुम्हारी मेडिकल प्रैक्टिस कैसी चल रही है? घर पहुंचने पर उसे सुरेश से पूछा, अच्छी चल रही हैं । सुरेश ने उत्तर दिया, दो चार लाख रुपये बना लिया है । अब तक । सुरेश ने दो चार लाख कुछ ऐसे लापरवाही से कहा जैसे दो चार रुपये की बात हो । करण उसकी इस बात से बहुत प्रभावित हो गया था । अच्छा हुआ तो वहाँ गए करें । बोला, कुछ दिन मौज में कटेंगे । दो चार फिल्में देखेंगे । मैंने तो बहुत से कोई पिक्चर नहीं देखी । मुझे तो इसमें बहुत मजा आता है । भाई साहब सुरेश बोला, लेकिन कल मुझे डेली जाना है । वहाँ एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस मुझे उसमें भाग लेना है । बहुत अफसोस की बात है । करण बोला, मनी मन खुश हो रहा था कि सुरेश की अनुपस्थिति में दो चार दिन शीला के साथ अकेले रहने को मिलेंगे । डिनर टेबल पर करण ने उनके हनीमून ट्रिप के बारे में पूछ कर शीला को छीनने की कोशिश की तो तुम लोग कश्मीर गए थे । उसने शीला से कुछ शिकायत भरे लहजे में कहा, हाँ, कश्मीर गए थे, लेकिन इसमें ऐसी क्या खास बात है? शीला ने करन के व्यंग की उपेक्षा करते हुए कहा, नहीं, इसे खास तो कुछ नहीं । उससे बाद पूरी की । लेकिन अक्सर नई दुल्हनें घर पर ही रहती है । नरेंद्र को दो चार गीत गाकर सुनाती है । हो सकता है ऐसा करती हूँ । लेकिन मेरा विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति जहाँ चाहे वहाँ जाने के लिए आजाद हैं । शीला ने उपेक्षा से कहा, अच्छा भावी जी । सुरेश बोला आज देने के बाद दो चार गीत हो ही जायेंगे । हाँ, ये ख्याल अच्छा है । प्रमिला चाहिए आज पूरनमासी है । चलो कोटियार्ड में चलकर बैठे भींगा उसे नौकर को आवाज बाहर चटाई । बिछाओ वे सब चांदनी में चटाई पर बैठ गए । प्रेमिला तबले को कसकर उसपे थाप देने लगी । कुछ देर सभी चुप रहे । वहाँ एक अजीब सी खामोशी थी । चलो शीला प्रमिला बोली तुम शुरू करो कौनसा गीत गांव दीदी । शीला घबराई हुई बोली मुझे तो याद ही नहीं रहा । अरे कोई भी गांव चलो वही सही वो चंद कल जो आना भाई, जहाँ तक मेरा ख्याल है मेरे लिए सभी की एक से हैं । मुझे तो संगीत से कोई रूचि नहीं । अगर सुनना ही पडे तो सुन लेंगे करने । शीला को घूमते हुए कहा शीला का जहरा गुस्से से लाल हो गया । उसके अपना मूठभेड लिया और गाने से इंकार कर दिया । ये क्या कर दिया आपने? प्रमिला बोली बिचारी को चिढा दिया । चलो शिला गांव । उनकी बात का बुरा मत मानो । लेकिन शीला नहीं मानी । उसके आगे भी गए । वो तो नाराज हो गई हैं । करेंगे । माफी मांगने के अंदाज में कहा । और इससे पहले कोई ये समझ सकता कि वह क्या करने वाला है । उसने झुककर शीला के पहुंच बोलिए । शीला के चेहरे पर हल्का गुलाबी रंग बिखर गया तो तुमने भाई साहब को अपने पांव छूने दी । सुरेश ने कुछ इस अंदाज से से हिलाया जैसे उसे अच्छा नहीं लगा हूँ । सिलाई से और भी घबरा गई । अब अच्छा अच्छा । अब चुप हो जाइए । गी तो असली प्रमिला ने बिजली बात बनाते हुए कहा । चीला चीज की एक बार खा जाने वाली निगाहों से करेंगे और देखा और फिर प्रमिला की ठाक से सुर मिलाकर गाने लगी । वो चंद कल जो आना शीला का मधुर, कोमल, स्वर्ग चांदनी रात के सन्नाटे में तैरने लगा । सात । तबले की मीठी खनक जादू जग रही थी, करेंगे बहुत खुश था । वो खामोश होकर चांदनी में चमक रहे शीला के चेहरे की और देखता रहा । वो खुश था कि उसने शीला का क्रोध ठंडा कर दिया । अपमानित होने के बावजूद भी बहुत खुश था । गुस्से में शीला और दिनों की तुलना में अधिक अच्छा गा रही थी । उसकी निगाहें शीला की आंखों पर जमी हुई थी । मस्ती में झूमता वह । वो उसके मधुर स्वर का रिस्पांड कर रहा था । उस रात करन को नींद नहीं आई । रात भर बिस्तर पर करवटें बदलता हुआ । वो पास वाले कमरे में लेते । सुरेश और शीला की खुसपुसाहट टी सुनने की कोशिश करता रहा । कपडों की हलकी सरसराहट, चारपाई की चरमराहट चुनकर उसके मन में अनेक चित्र उभर आते थे । उसका बदन एशिया से चलने लगता था और उसकी नसे फटने को हो जाती । सुबह जब बिस्तर से उठा तो उसकी आखिल लाल हो रही थी । सुरेश सुबह दिल्ली चला गया । करन की उम्मीद थके हुए चेहरे को देखकर शीला ने पूछा, तब से ही है ना? जीजा जी अब थके हुए लग रहे हैं । हाँ, अब कुछ थकावट है । करन बोला पारसी कमरे में जात भर खुसपुसाहट होती रही तो नींद कैसे आ सकती है? मैं तो जीजा जी पहुॅचकर हुई थी । शायद आप अपनी कल्पनाओं में खुसपुसाहट सुनते रहे होंगे । शीला ने तीखे स्वर में कहा उस रात करेंगे, गहरी नींद हुआ । रात लगभग दो बजे उसकी नींद खुली तो उसने सुनरहाई में से एक गिलास पानी उंडेलकर दिया । आसमान में सितारे जगमगा रहे थे । वो फिर बिस्तर पर लेट गया लेकिन नींद नहीं आई । उसने अपनी चारों और देखा । सभी चुप चाप सो रहे थे । करेंगे । चुपके से उठकर शीला के कमरे का दरवाजा खोला । बाहें फैलाए गहरी नहीं हो रही थी । वो उसकी चारपाई के पास बैठ गया और अपनी उंगलियों से धीरे धीरे उसका माता सहलाने लगा । उसके गाल ऊपर उंगलिया फेरी और फिर उसकी होटों को सहन आने लगा । वो चौक कर उठे बैठे । रात की हल्की रोशनी में उसकी आंखें चमक उठीं । उसने गुस्से से करन की ओर देखा । उसके चेहरे पर ग्रहण का भाव था । करन कुछ कह नहीं सकता । वो कदम पीछे हटाते हुए बोला अब सोच रहा हूँ मैं तुम्हारी नींद में खलल डाल दिया गया । वो तेजी से बीच के दरवाजे से निकलकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया । अब सब कुछ खत्म हो गया । अब वो हमेशा मुझे घना करेगी । मुझे अपने आप पर संयम रखना चाहिए । मुझे उस से दूर रहना चाहिए । मुझे उस से बोलना भी नहीं चाहिए । उसका मन पश्चताप से भरा है । उसने उठकर बीच का दरवाजा जोर से बंद कर दिया । शीला को यह दिखाने के लिए कि अब वो उस से अपने संबंध तोड चुका है । उसे नींद आएगी । लेकिन फॅमिली सुबह करण ने शीला से निगाहें मिलने की कोशिश की लेकिन उसने उसकी और देखा तक नहीं है । वो ना उससे बोली ना उस की ओर एक बार भी मुस्कुराकर देखा । उसके चेहरे पर गुस्से की लाली छाई रहती करेंगे । इसी यही अनुमान लगा सकता कि शीला ने उसे माफ नहीं किया है । वो उसे बात करने की कोशिश करता तो उठ कर चली जाती है । वो कुछ कहना चाहता तो वह पांच कार्ड देती । कुछ मजाक करता तो मुस्कुराने की बजाय मूड बनाने लगती । धीरे धीरे उनके संबंध फिर पहले जैसे ही हो गए लेकिन उनके बीच दीवार सी बराबर बनी रही । वह पहले की तरह उसकी परवाह नहीं करती थी । करण को इसे बहुत दुःख हुआ । वो कभी सोच भी नहीं सकता था कि वह इतनी जल्दी इतनी बदल सकती है । उस की हर बात अब उसी छुप जाती थी । जो बातें आम तौर पर कोई मतलब नहीं रखती थी । देवी उसके मन पर गहरी चोट कर जाती है । वो जब डिनर टेबल पर उसे दूर बैठे और हमेशा अभी चुराने की कोशिश कर दी है तो उसे बहुत दुख होता था । फिर मुख्य थी, उससे खींचने की कोशिश करता, उससे दूर रहता । कभी कभी उसे अपनी इस तरह के व्यवहार की बेहूदगी का ख्याल आता तो वो भी सहज होने का प्रयत्न करता । वे दोनों इसी तरह दिन बिता दे रहे छोटे बच्चों की तरह झगडते हुए शनशाइन में बदलते भावों के अनुसार बदलती हुए जब कभी से दोनों के लिए होते तो उससे पिछले दिनों के प्यार के बारे में प्रश्न पूछता । लेकिन उस राहत की बात के बारे में वो कभी कुछ कह नहीं सका और आके में उच्च जब उसी घूमता रहता फिर वो दूसरी के अंदाज में कुछ कहता ये देखने के लिए की उसके मन में अभी भी उसके लिए कुछ जगह है क्या नहीं लेकिन उसकी सारी कोशिशें बेकार हो जाती है । उसे लगता है कि उसके मन में अब उसके लिए कोई जगह नहीं रह गई है । उसके मन में फिर वहीं पुरानी कडवाहट भर आती

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हर लड़की के जीवन में वो पल आता है, जब उसे जीवन साथी को चुनना होता है और निर्णय करना बेहद मुश्किल होता है। उमा के सामने भी यही एक बड़ा प्रश्‍न था कि सामने विकल्‍पों की कमी नहीं थी, लेकिन किसे अपना जीवन साथी चुनें? जहां जय के पास प्‍यार देने के लिए अलावा और कुछ नहीं था, वहीं शंकर था जो बिजनेसमैन था और उसके पास शानो-शौकत, दौलत बेशुमार थी। उमा किसे अपना जीवन साथी चुनेगी? उमा की कसौटी पर कौन खरा उतरेगा जय या शंकर? जानने के लिए सुनें पूरी कहानी।
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