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सातवाँ फेरा -07 in Hindi

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429 Listens
AuthorSaransh Broadways
हर लड़की के जीवन में वो पल आता है, जब उसे जीवन साथी को चुनना होता है और निर्णय करना बेहद मुश्किल होता है। उमा के सामने भी यही एक बड़ा प्रश्‍न था कि सामने विकल्‍पों की कमी नहीं थी, लेकिन किसे अपना जीवन साथी चुनें? जहां जय के पास प्‍यार देने के लिए अलावा और कुछ नहीं था, वहीं शंकर था जो बिजनेसमैन था और उसके पास शानो-शौकत, दौलत बेशुमार थी। उमा किसे अपना जीवन साथी चुनेगी? उमा की कसौटी पर कौन खरा उतरेगा जय या शंकर? जानने के लिए सुनें पूरी कहानी।
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भाग साथ । आखिर उमा प्राण और जय दिलाई चले ही गए । हल्की नीली रोशनी फैली हुई थी । वो तीनों वहाँ बैठे और केसरा की मधुर ध्वनि सुन रहे थे । वो माता जहरा चमक रहा था और वो बहुत खुश थी । वह जय की सफलता पे मन ही मन झूम रही थी । हल्का हल्का फैला प्रकार है संगीत की स्वर लहरिया और साफ पोशाके पहने लोग । उमा चारों और मुंबई दृष्टि से देख रही थी । उसे हर एक लेना जानता प्रतीत हो रहा था । हसते चेहरे और मुस्कुराते होटों ने वातावरण में उत्साह भर दिया था । उमा अपने ख्यालों में इतनी हो चुकी थी कि वह दूर कोने में बैठे विमल को भी न देख सके । वो तीनों को गुस्से से देख रहा था । क्या ये भयानक सपना है? मीना के साथ बैठा विमल सोच रहा था । वास्तव में ये जय ही था जो पुलिस की वर्दी पहने बैठा था । वो ऊंचा और स्मार्ट नजर आ रहा था । विमल ने उमा के चलते चहरे को देखा और फिर जय को घूमने लगा तो ये निकम्मा अब पुलिस में जा घुसा । विमल मनी मान व्यंग से मुस्कुराया । हजरत पुलिस की खूब सेवा करेंगे । वो बढ बनाया आपने क्या कहा मीना ने उसकी और देखते हुए पूछा, आपकी सूरत से तो ऐसा लगता है जैसे कोई भूत दिखाई दे गया हूँ? भूत नहीं । एक दोस्त को देख रहा हूँ, जिससे में देखना भी नहीं चाहता था । उसने बियर के गिलास के गिर अपनी उंगलियां भी आते हुए कहा तो जय पुलिस अफसर बन गया है बेचारा सीधा साला इंसान, दिन में भी सपने देखने वाला, कभी जय और पुलिस की नौकरी । इस दुनिया में क्या क्या अनोखी बातें होती है? विमल क्रूज तिलमिलाया और उसने एक ही साथ में बीयर के पूरे गिलास को खाली कर दिया । सेटिंग अपनी फूली तो उन पर हाथ फेरा और तीखे स्वर में कहा मुझे अपनी रकम चाहिए बाबा । वकील साहब ने वादा किया था कि वह इसे दिसंबर तक लौटा देंगे तो उनसे पूछ सकती हूँ । दो महीने पहले भी चुके हैं । मैं सिर्फ दो हफ्ते और रह सकता हूँ । ज्यादा नहीं । उसने अपनी हथेली को यू गुबाया जैसे इस मामले में वो और कुछ नहीं सुनना चाहता हूँ । वीना उलझन में फंस गयी । वो राजेंद्रबाबू से इस विषय में चर्चा करके उनकी चिंताओं को बढाना नहीं चाहती थी । उनके स्वास्थ्य के लिए ये चर्चा हानिकारक सिद्ध हो सकती थी । उमा काम पर जाने लगी तो उसी माँ का उतरा हुआ चेहरा देखा हूँ । मम्मी मुझे बताओ तो सही । उसने कहा अगर आप इसी तरह चिंता करती रही तो एक दिन बीमार पड जायेंगे । फिर हमारा क्या होगा? उमर जानती थी कि उसकी बिहार की चिंता ने बाबू जी को खाद पकडा दी थी । वो बोली हूँ क्या आप मेरी वजह से चिंतित हैं? नहीं नहीं बेटी । रीना ने कहा ऐसी बात नहीं है जिस स्टेट से फाइल खरीदने के लिए कर्जा लिया था । वो अपनी रकम वापस मांग रहा है । वहाँ और इंतजार नहीं करना चाहता और मामले को अदालत में लिए जाने की धमकियां दे रहा है । न जाने वो क्या करेगा । अभी उसका कितना बताया है? लगभग बीस हजार बीस हजार तुमने आश्चर्य से कहा हाँ, सबसे बडी मुश्किल यह है कि सीट कहना नहीं चाहता हूँ । खैर कोई ना कोई रास्ता तलाश करूंगी, लेकिन मन ही मन बिना सोच रही हूँ । उसके पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है । उधर राजेंद्रबाबू से ठीक होकर दोबारा प्रैक्टिस शुरू करने की भी कोई संभावना नहीं थी । मियाद की समाप्ति परसेंट आया । वो आवेश में आकर चिल्लाने लगा । प्राण का मन हुआ कि उसकी तोंद पर एक जोर की ठोकर लगाई । मगर लाचारी में गुस्से को पीना पडा । वीणा ने अनु नियम विनय की लेकिन मोटा सीट गुस्से में धमकियाँ देता हूँ चला गया । उमा इस अपमान को सहन नहीं कर सकी । सीट का कर्ज तो किसी ना किसी तरह चुका नहीं चाहिए । कुछ सोचा उसने अपनी देवर गया लेकिन उन से उसे एक दो हजार मिल सकते थे । वो इतनी बडी रकम कहां सिलाई जे ट्रेनिंग के सिलसिले में बाहर था । फिर वो भी क्या ही कर सकता था । उसी शंकर का ख्याल आया । हाँ, संकर सही आदमी हैं । विक्टर वाली घटना के बाद वो नहीं आया था । लेकिन इससे कुछ फर्क नहीं पडता था । निश्चय ही वो कुछ ना कुछ करेगा । वो जितने उसके बारे में सोचती उतना ही आश्वस्त होती जाती है । शंकर उसे तबाह होते खामोशी से न देख सकेगा । जब उसे विक्टोरिया आपके स्थित शंकर के मकान के पास रिक्शा से उतरी । आकाश में काले बादल छाए थे । वह प्लान को पार करके आगे भाई और उसे बैल का बटन दबाया हूँ । थोडी देर के बाद शंकर ने दरवाजा खोला । वो उसे देख कर चकित रहेगा । अरे आप बडी खुशी हुई । उसे उमा को देखकर सुखद आश्चर्य हुआ । अंदर आइए अंदर जाकर उमा ने उसे अपने पिता की बीमारी और फार्म बेचने की बात बताई । वास्तव में मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है । उसने कहा मम्मी का जहरा चिंताओं ने डाक्टर डाला है और सीट रुकना नहीं चाहता हूँ । कर्ज कितना है? शंकर ने पूछा बीस हजार उमा ने बताया बीस हजार शंकर को आश्चर्य हुआ । ये तो बहुत बडी रकम है । तुम्हें कैसे समझ लिया कि मैं इसका प्रबंध कर सकता हूँ, लेकिन तो भी करना होगा । वो आवेश में बोली, मैं जानती हूँ कि तुम कर सकते हो तो मैं खुद ही मुझे बताया था कि तुम पिछले बरिश तीन लाख का फायदा हुआ है । मैं वादा करती हूँ कि तुम्हारा एक एक पैसा लौटा होंगी मगर कैसे है? शंकर मुस्कुराया दस हजार की पॉलिसी है जिसकी रकम शीघ्र ही मिल जाएगी । बाकी में काम करके चुका दूंगी । लेकिन तो भाई दहेज का क्या होगा? डी एस शंकर ने मुस्कुराते हुए कहा पॉलिसी तो तुम्हारी विवाह के लिए है । जानती हो ना? उमा अंदर ही अंदर क्रोन्ये बाल पडी मगर ये समय क्रोध करने हैं । उसने सोचा तो अभी इस बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं । उसने अपने पर काबू पाते हुए कहा कि मेरा निजी मामला है । शायद मुझे दहेज की जरूरत ना पडे शायद में शादी ही ना करूँ । खैर छोडो ये बताओ कि तुम मेरी सहायता कर सकती हूँ या नहीं तो कुछ लेने के स्वर में तो बात नहीं कर रही हूँ । शंकर क्या की चमक उठी तो तो मांग के स्वर में बात कर रही हूँ । उमा तो बिल्कुल वैसी ही रही तो हर काम को अपनी मर्जी से कहना चाहती हूँ तुम आॅइल में लाई मैंने सोचा था कि तुम तो वो हकलाने लगे । हाँ मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ लेकिन शायद है । उमर जाने को भी तो शंकर बोला को और मेरी शर्त सुनो मैं तुम्हें रुपये दूंगा और तुम वादा करूँ कि तुम मुझसे शादी करोगी? मैंने जो में हमेशा जहाँ है सच तो नहीं जानती मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ । मैं सारा कर चुका दूंगा भी । हम हनीमून मनाने कश्मीर चलेंगे । उन्होंने गुस्से से अपनी हाँ झटके । उसी हमने पर्स उठाया और बाहर निकल आएगा । उसका चेहरा क्रोध से तब रहा था । लोन में से गुजरते हुए उसने सोचा इंसान इतना नीचे भी हो सकता है । क्या वो बीच कुर्सी है जिसे रूपये के बदले खरीदा जा सकता है? विवाह दासता है मगर ये तो उससे भी नीचे बात है, सेट नहीं जब देखा के सारे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए हैं तो उसने अंतिम तीन चलाया । एक सुबह जब भी ना उदास मंत्री बरामदे में थी तो उसी एक अदालती सम्मन मिला । बीना ने कागज पर हस्ताक्षर की और समय को लेकर पढा । क्लेम सही था इसलिए मुकदमा लडने का कोई प्रश्न पैदा ना होता था । उसने सोचा अगर समय पर कर्ज नहीं चुकाया जाता तो मकान की नीलामी हो जाएगी और वह गलियों में ठोकरे खाते भेजेंगे । उसने घर के सारे जेवरों को इकट्ठा किया । दुकानदार से कीमत पूछे मुश्किल से दो हजार आठ हजार के लगभग पॉलिसी का भी मिल सकता था । मगर जब काम फिर भी कम रहती । सोचते सोचते वीना के चेहरे का रंग पीला पड गया । उमा भी परेशान थी । उसी कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था । दिन गुजर रहे थे और भुगतान की तारीख निकट आ रही थी । एक शाम जब उमा बहुत परेशान थी, उसने विमल से दफ्तर में मिलने का फैसला किया । उसने सोचा ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि वह मना कर देगा पर मिलना तो चाहिए । शायद वो सहायता कर सके । रिक्शे में जाते हुए उसकी मस्तिष्क में विचारों की तूफान उमड रहे थे । कई बार उसने सोचा कि वापस लौट जाएगा । लेकिन परिवार की इज्जत, उसकी रक्षा का सवाल बाबू जी की मानहानि की कल्पना करके वो सिहर उठे । रिक्शा इंटरनॅशनल केमिकल वो उसके सामने जाकर रुका । वह धरती दिल से नीचे उतरी और रिक्शेवाले से बोला मुझे थोडी देर लगेगी तो यहीं चेहरों डॉक्टर के सामने का भाग सोना पडा था । एक खाली दिल्ली ने उसका रास्ता काटा । वो डरी काल बेल के नीचे गति पर लिख कर डाला गया था । ये काम नहीं करती । उसे चपरासी को तलाश करना चाहा मगर उसे आस पास कोई दिखाई नहीं पडा । चारों और कब्रिस्तान जैसे खामोशी छाई हुई थी । उमा बरामदे में से गुजरकर जाए । तरफ वाले कमरे में चली आई । एक मेज पर टाइपराइटर रखा था । सहसा उसे सामने वाले कमरे पर पडे पर्दे को देखा । पर्दा जरा सा हिला और उमस तब रह गई । दिवाली एक लडकी को अपने बाजू में जकडी खडा था । उमा ने सोचा कि वह भाग जाए मगर उसके पांव जम से गए थे । उसके लिए पीछे हटना भी उतना ही कठिन हो गया था जितना कि आगे बढना । फिर अगर किसी ने उसे लौटे देख लिया तो वह समझेगा । उमर जासूसी करने आई थी इसलिए उसने यही फैसला किया की कुछ देर तक वही खडे होकर इंतजार करेंगे । वो उस लडकी के बारे में जानने की इच्छुक थी । लिहाजा उसे साहस बटोरा और थोडा सा फायदा उठाकर भीतर झांका । लडकी का चेहरा जाना पहचाना सा लगा । उमा को लगा कि अंदर बैठी लडकी को कहीं ना कहीं देखा है । अचानक उसे याद आया । इस लडकी को उसने शहीद स्मारक के पास देखा था । वो विमल की सिक्योरिटी मीना कुमारी देखा । विमल ने धीरे धीरे मीना के बालों में उंगलियां पहली और उसके वोटों का चुम्बन लिया । उमा का मुख्य लज्जा से लाल हो गया । वो मंत्र मुग्ध खडी उन्हें देखती रही । तभी दोनों पांच वाले कमरे में चले गए और दरवाजा बिना आवाज किए बंद हो गया । उमा की जान में जान आई । अब तक तो सांस रोके । सबकुछ देखती रहेगी । उस लिए पर्दा बराबर किया और आहिस्ता से बाहर निकल आई । स्थान पहले की तरह सुनसान था । एक गायक घास चल रही थी । मीन गेट खुला था । सिर्फ दिल्ली कहीं गायब हो गई थी तो तेजी से कदम उठाते हुए रिक्शे के पास पहुंची और उसे वापस चलने को कहा । उसने सोचा अच्छा हुआ वो ठीक समय पर बाहर निकल आएगा । अब वो कभी नहीं आएगी । कभी नहीं । विमल के प्रति उसका हिंदी ढंग से भराया । उमा की सब कोशिशें नाकाम हो चुकी थी । कोई रास्ता बाकी ना बच्चा था । वो जितना अधिक इस समस्या के संबंध में सोचती उतना ही अपने को असहाय पार्टी रिक्शा में बैठे हुए उसने स्वयं से प्रश्न किया आपने क्या करूँ? जहन ट्रेनिंग पूरी कर ली । रूप से उस कारण पक गया था और वो दुबला दिखाई देता था । अब आप पूरे पुलिस ऑफिसर नजर आती हूँ । उसे देखते ही प्राण बोला लेकिन आपको मुझे भी रखनी चाहिए उमा भेजकर हसी तुम क्यों हस रही हो? प्राण ने पूछा मुझे रखते से कोई मजाक थोडी बन जाता है । मैं भी रख सकता हूँ । उमा पहले से भी अधिक तेजी के साथ ऐसी मैं इन की मुझे रखे जाने की कल्पना भी नहीं कर सकती । तो माने जय की और संकेत करते हुए कहा ये जॉनी वॉकर नजर आएंगे । इंतजार करो जब तक कि मैं शादी करके बूढा नहीं हो जाता । जय बोला तब में गाडी भी रखूंगा । डाॅ । उमा खिलखिलाकर हंस पडी तो हिम्मत नगर सकोगे । अगर मैं सहसा उसे महसूस हुआ कि वो क्या कहने जारी है और लज्जा से उसका चेहरा लाल हो गया? नहीं मैं तब भी नहीं रखूंगा । जने मौके का फायदा उठाते हुए उसे तंग करना चाहा और वह तीनों हस पडेगी । प्राण होते हुए कहा मुझे तो कुछ जरूरी काम से जाना है । आप बैठे उसे स्कूटर स्टार्ट किया और हवा हो गया हूँ । उमा बोली जहाँ मुझे तुमसे कुछ कहना है एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात बोलो । जय ने कहा और फिर सोफे पर बैठ गया । पापा बीमार हो गए और फारम बेचना पडा । उनकी हालत तो जानती हूँ । ना जाने वो कब तक ठीक हूँ, विश्वास रखो सब कुछ ठीक हो जाएगा । हाँ मुझे विश्वास है मगर चिंता की बात उनकी बीमारी नहीं बल्कि कर्जा है । कर्जा कैसा कैसा? जैन ने आश्चर्य से पूछा । पापा ने फारम के लिए कर्जा लिया था तो मैं तो मालूम है की उसे पीसी पर भी कुछ ज्यादा ना मिल सका और कर्ज ना चुका है जा सका । सेट अब अदालत से डिग्री ले आया है । डिग्री जी मैंने कहा इसका मतलब है कि लडा नहीं जा सकता हूँ लेकिन तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ और तुम बाहर गए हुए थे । मैं तुम्हें पत्र कहाँ लिखती । फिर मैंने सोचा था कि शायद कोई रह निकल आएगा । अब या तो सीट को रकम लौटाई जाए नहीं तो तुम जानती हूँ । पापा इस सदमे को सहन नहीं कर सकेंगे । उसमें भर्राए स्वर में कहा जाए तो कुछ करो । मैं तो बहुत परेशान हूँ । जैन हल्के से उसका हाथ दबाया और गालों पर बहते आंसू को पूछा तुम चिंता मत करूँ क्या? मैं तो में गलियों में भटकती देख सकता हूँ क्या? मैं तो में बर्बाद होने दूंगा । लेकिन अभी कुछ दिन पहले तो बताना चाहिए था रुपया देने की आखिरी तारीख कौनसी है । आज से चौदह दिन बाद उमा ने अभी आंकी पहुंची तो उनसे गृह मत करूँ । मैं सब इंतजाम कर दूंगा । अच्छा अब जरा मुस्कुराओ तो सही और तभी घुमा के होटों पर मीठी मुस्कान खेल गई । जे खाट पर लेटा छत की और टकटकी लगाए देख रहा था । गांव से आने के बाद उसके पिता ने ये मकान बनवाया था । तब इसका कोई खास मूल्य नहीं था । मगर अब कीमतें चढ गयी थी । अब इसका दाम पचास हजार से कम नहीं था । जय के पिता साधु प्रकृति देते सुबह उठकर पूजा करते हैं तथा रामायण और गीता का पाठ उनके जीवन का एक अटूट अंग बन चुका था । जय को उनकी पूजा विधि अब तक याद थी । संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण पार्टी दंडवत प्रणाम टी का रूप और फूलों की सुगंध जय अभी तक नहीं बोला था । उसके पिता की मृत्यु फिर गति रुक जाने से हुई थी । वो अभी बच्चा ही था जब उसकी माँ का स्वर्गवास हो गया था । इसीलिए पिता की मौत के बाद जय का पालन पोषण अत्यंत इसने से किया गया था । उसकी जो भी इच्छा होती उसी समय पूरी कर दी जाती है । जैसे लोगों से मौत की चर्चा अक्सर हुई थी मगर उसके मन पर कभी बुरा प्रभाव ना पडा था । जब लोग होती तो उसका मन हसने को करता । लेकिन जब जहाँ ने पिता की लाश को देखा तब उसे जीवन के एक भयानक सत्य का अनुभव हुआ । जीवन की नश्वरता जय के सामने स्पष्ट हो गई थी । ये मकान उसके स्वर्गीय पिता की यादगार था । उन्होंने इसे बडी मन से बनवाया था । जैनी टुकडे प्लस्तर टूटे फर्श पर रोगन हीन दरवाजों और खिडकियों को देखा । उसके भीतर से एक आह निकली पिता की तरफ उसे भी इस पुराने मकान से गहरा लगाव था । नींद से उसकी आंखें भारी हो रही थी लेकिन वह सोना सका । वह काफी रात गए तक जाता रहा । चौदह दिन के अंदर अंदर इतनी बडी रकम का इंतजाम करना था । दो चार हजार तो आसानी से घंटे किए जा सकते थे, मगर बीस हजार का प्रबंध करना कोई मामूली बात ना दी । इसके अलावा वक्त भी बहुत कम था । उसने तमाम दोस्तों के बारे में सोचा, लेकिन उसे किसी से आशा थी शंकर मदद कर सकता था, मगर उसने अभी तक पहले वाला कर जीना चुकाया था । फिर विक्टर वाली घटना ने दो उन दोनों के बीच गहरी दरार डाल दी थी । जैन विमल के बारे में सोचा विमल इस रकम का प्रबंध कर सकता था । जय का मन तो नहीं करता था कि वह विमल से कहे, मगर कोई दूसरी रहा नहीं सुनाई पडती थी । इसलिए जैन ने दिमाग से मिलने का निश्चय कर लिया । उसने सोचा उमा के प्यार के लिए ये कोई बनी तो देने ही पडेगी । कुछ जिस समय विमल के दफ्तर पहुंचा, आकाश में काले काले बादल छाए हुए थे और हवा बिलकुल बंद थी । मीना टाइप कर रही थी । उसने एक उचटती नजर जयपर डाली । आखिर ये नए नए आने वाले बहुत से चाहते । क्या है वह मन ही मन पर पढाई मीना इस मिलने वालों से तंग आ चुकी थी । वो उसकी तरफ जरूरत से ज्यादा घोलकर देखते और उससे उलटे सीधे सवाल कर दे दिए । जय के सीधे साधे कुर्ते और पजामे को देखकर वो जल गई । इस बात में मीना को खिला कर दिया कि जय साइकल पर आया था । उसे गरीबी और गरीब दोनों से सख्त नफरत थी । गरीबों को किसी ऐसे गहरे अन्य कोई में रहना चाहिए जहाँ से उनकी शक्लें नजर ना आए । वो सिर्फ इसी ढंग से सोचती थी । फरमाई मीना ने उसे उपेक्षा से देखते हुए पूछा हूँ, आप क्या चाहते हैं? जैन ने मीना की इस अजीब सी आवाज को सुना । उसी का मानव वो शत्रु की सीमा में दाखिल हो गया । वो नम्रता से बोला मैं डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूँ । मेरा नाम जाए हैं । मैं विमल से मिलना चाहता हूँ । वो मेरे पुराने दोस्तों में से एक है । मीना ने सोचा हाँ, ये दूसरी बात है । बॉस के दोस्तों का यहाँ हर वक्त स्वागत है । मगर वो सोच भी नहीं आ सकती थी कि बॉस के ऐसे दोस्त भी हो सकते हैं । उससे कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए हिचकिचाहट भरे स्वर में कहा, अब आप तस्वीर रखी मैं जाकर मालूम करती हूँ । हो सकता है वो आपसे मिल सके । वो अंदर चली गई और जय इंतजार करने लगा । जय कि विमल से कोई गहरी आत्मीयता नहीं थी । विमल भी जय को कोई खास महत्व नहीं देता था । मैंने सोचा चाहे उसे विमल के सामने गिडगिडाना ही क्यों ना पडे लेकिन वह बीस हजार रुपये हासिल कर के ही रहेगा क्योंकि वो उसके प्रिय उमा की जिंदगी का सवाल था । मीना नहीं लौट कर कहा आप अंदर जा सकते हैं, दरवाजे पे पडे हल्के रंगीन रेशमी पर्दे को हटाकर जो धीरे धीरे कमरे के अंदर दाखिल हुआ वो ऍम तो आज इधर कैसे भूल बडी विमल ने हाथ आगे बढाया । सूरज पूर्व की बजह पश्चिम से भी निकल सकता है । मैं तो सुना था की तुम गांव में रहने लगे हूँ और शहर लौटने का इरादा छोड दिया है । अब कुछ दिनों के लिए गया था जय बोला घूमने भेजने विमल जैसा मैं तो समझता था कि लखनऊ तुम्हारे लिए घूमने फिरने की जगह है क्योंकि मैं तो में खाली गांव का ही समझता हूँ हूँ । विमल का स्वर्ग यंग से भरा था तो यहाँ से गए मगर किसी की जुदाई को बर्दाश्त ना कर सके और जल्दी लौट आए । वो ही कह रहा हूँ ना जैको विमल कर रहे वाले मित्रतापूर्ण लगा वो धीमी से मुस्कुराया और बोला ये ठीक है । गांव में पैदा हुआ था, लेकिन अब तो खाली लखनऊ भी बन चुका हूँ । यही वजह है कि ज्यादा ऐसा में लखनऊ से बाहर नहीं रह सका । ठीक है तुम अपनी हूँ । लगता है कि तुम्हारा बिजनेस कूद चमक उठा है । कमाल है तो मैं अकेली ही सब कुछ करते हो । विमल को ये चापलूसी अच्छी लगी । उसकी आंखों से दुश्मनी का भाव पल भर को खत्म हो गया । बोला काम के मामले में मैं सिर्फ अपने पर ही भरोसा करता हूँ । ये है दी अच्छा लोग इतने धोखेबाज हो गए हैं कि किसी पर आज के जमाने में की नहीं किया जा सकता है । मौका मुनासिब समझते हुए मैंने कहा मैं तुम्हें तकलीफ देने आया हूँ । मुझे फोरेन कुछ रुपया चाहिए । कर्ज के तौर पर तो मैं बहुत जल्दी ही वापस कर दूंगा हूँ । कितना पचास सौ ज्यादा भी दे सकता हूँ । वापस करने की जरूरत नहीं । मैं ये रकम दान खाते में डाल दूंगा । विमल के शब्दों से जय के दिल पर गहरी चोट लगी । वो चुप रहा क्योंकि वो स्थिति अपने अनुकूल बनाना चाहता था । किसी तरह उसने कहा नहीं, मुझे इतना नहीं ज्यादा चाहिए बीस हजार तीस हजार । विमल ने आश्चर्य से कहा तुम्हारा दिमाग तो ठीक है इतनी बडी रकम दो तुम अपनी दस साला मुलाजम मत बिना करवा सक होगी । तुम लडकी तो नहीं हो जिसे आपने दहेज के लिए इतना रुपया चाहिए क्या? नौकरी छोड कर तुम्ही कोई बिजनेस शुरू करना चाहती हूँ? नहीं नहीं वास्तव में मुझे रकम किसी की मदद के लिए चाहिए तो राजेंद्रबाबू को तो जानते ही हूँ । वो लखनऊ का शिकार है । उनका परिवार मुश्किल में फंस गया है । उन्हें रूपये किसी का कर्ज चुकाने के लिए चाहिए । अदालत में उनके खिलाफ डिग्री दे दी है । अब तक विमल हसी मजाक में बाढ डालने की कोशिश कर रहा था लेकिन राजेंद्र बाबू का नाम सुनकर उसके तन बदन में आग लग गयी । वो गुस्से में चिल्लाकर बोला क्या तो मुझे बेवकूफ समझते हो जो इतनी बडी रकम उधार देखो जब तक तुम अपना मकान नब्बे चालू ये रकम कैसे वापस कर सकते हो? मैं तुम्हें बीस हजार दे दूं और तो मौके का फायदा उठाते हुए राजेंद्रबाबू की लडकी से शादी कर लोग मेरी रकम मारी जाए और ऍम अगर राजेंद्रबाबू को रुपयों की जरूरत थी तो उन्होंने क्यों भेजा? वो खुद एक वकील है । अपना केस अच्छे ढंग से पेश कर सकते थे । ये खडा हो गया । अब तक उसने अपने पर काबू रखा था । लेकिन अब असंभव था । ठीक है मैं चला हूँ लेकिन इसलिए तुम्हें अफसोस करना पडेगा तो में उमा का अपमान करने का कोई हक नहीं । जिस दिन मेरा हाथ तुम्हारी गर्दन पर पड गया तो मैं दिन में तारे नजर आ जाएंगे तो दौलत को सब कुछ समझते हूँ । मैं तुम्हें बताऊंगा कि सच्चाई इसके प्रतिकूल है । जैनब नृत्य विमल को देखा और कमरे से निकल गया । विमल जाते हुए जय को यू देखा । जैसे वो उसकी हस्ती को मिटाने पर तुम गया हो । उसकी आंखों में नफरत झलक रही थी । बात हुई थी । मीना ने शोर सुनकर कमरे में आते हुए पूछा कुछ नहीं जो आदमी अभी भी मिलने आया था उसने मुझे गुस्सा दिला दिया । खाना रहेगा वो बुरी सुंदर है । पुलिस सिर्फ मीना को आश्चर्य हुआ लेकिन मुझे तो एक देहाती दिखाई देता था । डी एस देहाती तो वो है ही । तुम भी लोगों को पहचानने में चतुर हूँ । वो एक गांव में पैदा हुआ । वकील राजेंद्रबाबू के मकान पे मेरी उससे मुलाकात हो गई । दोबारा आए तो तुम उसे धक्के मार मारकर बाहर निकाल देना । क्यों नहीं वो इसी का हत्या है जाता है । विमल उसको अपने कई खींच कर उसकी पीठ पर हाथ फेरा और जय गुस्से में भरा घर लौटा । उसे विमल से रुपये मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी । विमल व्यापार में काफी रुपया कमाया था । वो चाहता तो जय की मदद कर सकता था लेकिन उसे रूपये न देकर उसके मकान का जिक्र किया था । उसने तो अभी तक मकान के बारे में सोचा ही ना था । उसके पिता ने वसीहत में साफ लिखा था कि जब तो कोई खास जरूरत ना पडे, मकान न बेचा जाएगा । खुद जय को भी मकान से विशेष लगा था । उसकी ईजी उसे प्यार था । वो उसके स्वर्गीय पिता की आखिरी यादगार थी । नहीं वो इसे हरगिज ना बेचेगा । सारे जाते अंतर धवन में ही गुजर गई । पिछले पहर उसकी आप थोडी देर के लिए लगी । पनीर में भी उसे मकान के सब के आते रहे । उसे लगा कि मकान में भयानक आग लग गयी है जिसमें उसका रेडियो सुपर से तथा दूसरी वस्तुएं जलकर राख हो गई है । अचानक उस क्या खुल गयी? वो बिस्तर पर उठ कर बैठ गया । सुबह के पांच बज रहे थे । पडोस में कोई गांव गांव कर रहे थे । उसकी नजर दीवार पर लटके कैलेंडर पर पडी । केवल दस दिन बाकी थे । इसी बीच कर्ज चुकाना था । उमा के मिलने पर जाने का कोई उम्मीद नजर नहीं आती । विमल ने भी इंकार कर दिया तो समझ में नहीं आता कि क्या करूँ । उमा खुद परेशान थी । यदि भी उस दिन वह विमल से मिले बिना लौट आई थी । लेकिन वहाँ पर जाने का उद्देश्य तो रकम का इंतजाम करना ही था । अब तो वो भी उम्मीद खत्म हो चुकी थी । उसकी आंखों में आंसू तैरने लगे । वो टूट इस्वर में बोली तो कोई रास्ता जरूर निकालो । वह लगने लगी । मम्मी बेहद परेशान है । वो सारी सारी रात चाहती रहती है । उससे ये सब नहीं देखा जाता है । उमा ने अपना चेहरा दोनों हथेलियों में छिपा लिया । वो काम के बोझ से टूट चुकी थी । ये अनमने भाव से उसके सामने बैठा सोच रहा था । उमा क्या करेगी? अपने बूढे बीमार बाप को कहाँ जाएगी? कानून किसी का लिहाज नहीं करता हूँ । वो तो एक मशीन की तरह है । इसके लिए सब बराबर है । कानून की मोटी मोटी पुस्तके, जजों की कठोर चेहरे और झूठ की छाया में सनी वकीलों की बातें । यही आज के कानून कर रूप रह गया है । माँ की गोमती चीखते हुए बच्चे को छीन लिया जाता है । किसी को किसी के दर्ज से मतलब ही क्या है? जमीन को राजेंद्रबाबू की बीमारी और उमा के आवासों से भला क्या सरोकार हो सकता है? सहजा उसके सामने अतीत का एक चित्र उभरा वाराणसी के घाटों पर खडा था । सामने एक चिता चल रही थी जी मैंने सोचा ये है इंसान की आखिरी मंदिर । हर चीज नश्वर है । हमारा शरीर, हमारा मकान, हमारी संपत्ति सब एक दिन रात हो जाएंगे । फिर लगाव और अभिमान किसी और जय का जहरा प्रसन्नता से चमक उठा वो उमा की तरफ देखकर बोला टिकट मत करूँ, एक हफ्ते के अंदर तुम्हे रुपया मिल जाएगा । मैंने रास्ता ढूंढ निकाला है । बस अब खुश हो जाओ तो कैसे इंतजाम करोगी । तुमने संदेह के स्वर में पूछा तुम देखती जाओ ये राज की बात है तो तुम कुछ गलत काम मत करना । उस ने चिंतित स्वर में कहा जाए बोला अब चिंता छोडो बस ऍम । जय के शब्दों ने उमा को धीरज बंधाया । उसने अपने आप सुपोर्ट डाले । लगा की निराशा के बादल छंट गए हैं और आशा का सूर्य निकल आया है उसे जयपुर पूरा पूरा भरोसा था । वो हमेशा अपने वादे को निभाता रहा है । उमा मुस्कुराने लगी । जय की ईमानदारी और सच्चाई पर शक नहीं किया जा सकता था । उसने जिन लोगों को अच्छा समझा वे दूर देखे और जिनको नफरत से देखा वे पूजा की योग्य साबित हुए थे ।

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हर लड़की के जीवन में वो पल आता है, जब उसे जीवन साथी को चुनना होता है और निर्णय करना बेहद मुश्किल होता है। उमा के सामने भी यही एक बड़ा प्रश्‍न था कि सामने विकल्‍पों की कमी नहीं थी, लेकिन किसे अपना जीवन साथी चुनें? जहां जय के पास प्‍यार देने के लिए अलावा और कुछ नहीं था, वहीं शंकर था जो बिजनेसमैन था और उसके पास शानो-शौकत, दौलत बेशुमार थी। उमा किसे अपना जीवन साथी चुनेगी? उमा की कसौटी पर कौन खरा उतरेगा जय या शंकर? जानने के लिए सुनें पूरी कहानी।
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