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भारत पांच गए बिस्तर पर पडा बेचैनी से करवटें बदल रहा था । नील की गोलियों का अभी तक कुछ असर नहीं हुआ था । उसने दुखी मन से सोचा । दौलत इंसानों को मिलावटी भी हैं और जुडा भी कर देती है । ये कागज के रंगीन टुकडे ये चमक दे फॅस की तरह उन्हें ही जगह लेते हैं जो उनको पैदा करते हैं । ये सिक्के अद्भुत रासायनिक प्रतिक्रिया की तरह अपनी ईगो, प्यार और नफरत, युद्ध और शांति, खुशी और काम में बदलते रहते हैं । उसे लगा कि कुछ गलत किया । उसे एकदम अकेला आने की बजाय उमा के साथ बाहर आना चाहिए था । आखिर उसके हकीकत देखी ली । सिर्फ एक मामूली सी गलत फैमी ने उन्हें ज्यादा कर दिया हूँ । लेकिन वो मैंने उस पर विश्वास क्यों किया था? क्या इसीलिए की वो धनवान नहीं है? उसका कोई सामाजिक स्थान नहीं है । अमीर आदमियों की बातों पर तो कोई विश्वास नहीं करता हूँ । क्लबों में युवा खेलते हैं, गरीबों के मुझसे रोटी का टुकडा छीन लेते हैं, रियो का शीलभंग करते हैं लेकिन फिर भी प्रशंसा की पात्र होते हैं । अगर करीब से मामूली सी भूल भी हो जाए तो उसे पकडकर जेल में डाल दिया जाता है । इंसाफ की खूबियों की कौन परवाह करता है । बहुत बिहार, जय मुस्कुराया बिहार एक रहस्य मैं वस्तु है इसलिए विचार कोने प्रेमी पागल और कवि को एक सा बताया है । उसकी उमा को चाहता हूँ और जवाब में तुमने उसे तुरंत नौकरी तलाश करने की आ गया । दे दी । सचिव प्रेमियों को तो सादा धनहीन चरित्र किया गया है । वे एक दूसरे को प्यार के अलावा और कुछ भेज नहीं दे सकते हैं । लेकिन वास्तविक जीवन में तो प्यार बडे बडे व्यापारियों, ऊंचे सरकारी अफसरों और अमीरों के लिए सीमित हो कर रहे ज्यादा है । उसने सोचा था कि उमस वर्धा भी होगी तो धन की पुजारी नहीं हो सकती, लेकिन यह उसका भ्रम था । जैन अंधेरे में अपनी उंगलियों को आपस में हुआ । फिर उसके मन में एक सवाल उठाने की क्या वो से दोबारा देख सकेगा? इस बारे में उसे शक था । जो कुछ हो चुका है उसके बाद तो यही एक रास्ता बचा है कि उसे तब तक उमा से नहीं मिलना चाहिए जब तक कि वह दूसरे लोगों की तरह उसे जीवन की सुरक्षा और बैंक बैलेंस नहीं दे सकता हूँ । जैसे ही उसने अपने मन में निश्चय किया, उसे हर वस्तु निर्जीव और सुनी सुनी सी प्रतीत होने लगी उससे मत लोग । उससे मतलब लगता है कि ये शब्द उसके कानों में आकर टक रह रहे हैं । उसे कभी नहीं मिलता होगी । शायद कभी नहीं लगा की दीवार पर लगी घडी की टिक टिक घर पर तेज होती जा रही है । रात गहरी और खामोश थी । उसने उठकर घडी के पेंडुलम को रोक दिया । कमरा कालकोठरी की तरह हो गया वो सो नहीं सका । घूमती नदी नगर में सात की तरह बाल खाती हुई बहती है । पूरी के नीचे से गुजरती हुई घाटों से टकराती पुराने मकानों को छूती ये मटमेले पानी के साथ वर्ष भर खामोशी से बहती रहती है । लेकिन जब आकाश में काले बादल छा जाते हैं और बारिश शुरू हो जाती है तो ही बहन कर राक्षसी का रूप धारण कर लेती है । इसकी तूफानी लहरें किनारों से टकराने लगती है और जो कुछ भी इसके मार्ग में आता है बाहर अगर ले जाती है उन्नीस सौ की घटना है कि इसलिए नगर के अधिकतर भाग को अपनी लबेद में ले लिया था । इस नगर के पुराने निवासी अभी तक उन दिनों की घबराहट और कष्टों को नहीं भुला पाए हैं । इस वर्ष बारिश ज्यादा न होने से सूखा पडने का भय था लेकिन सहसा बीच अगस्त में जोरो ही बारिश हो गई । सीतापुरा जिले में जहां से होकर गोमती बहती है, वर्ष का जोर था । लखनऊ में नदी का पानी चढता रहा और उसने स्टेडियम को अपनी लपेट में ले लिया । लोगों ने पानी को रोकना चाहा लेकिन जल्द ही ये महसूस किया जाने लगा कि पुलिस को खतरा है । नदी के पास स्थित यूनिवर्सिटी और सरकारी दफ्तर बंद हो गए । पानी के उतरने का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता था । उधर तमाशा देखने वालों का जमघट था । इस तरह की भयंकर बाढ लखनऊ वालों के लिए एक नई बात थी । जब ये समाचार नगर में फैला कि पानी स्टेडियम को पार करके हजरतगंज की और बढ रहा है तो लोगों की भीड इस बाढ को देखने के लिए उमड पडी । नफीस लिबास पहने लोग गली बाजारों में ऐसे घूम रहे थे जैसे पिकनिक मना रहे हूँ । उनके तमाशाई बनकर इधर उधर घूमने से बाढ की रोकथाम संबंधी प्रयासों में अडचन पड रही थी और यातायात में रुकावट पैदा हो गयी थी । खोमचे वाले सौदा बेचने के लिए शोर मचा रहे थे । लोग खुश खुश कारों में चलाते हुए निकल जाते थे । कुछ लोग गली बाजारों में बाढ पीडितों के फोटो लेते भेज रहे थे । इसी बीच एक बहन करता भाई आ गई । नगर की रक्षा करने वाले बटलर बांध में पहले तो सुराग हुआ फिर वो टूटकर बह गया । पानी का एक रेल आया और सामने की हर चीज को बहुत ले गया । हजारों लोग बेघर हो गए और हजारों पानी में गिर गए । पानी में डूबे मकानों की छतों पर बैठे हुए वह परेशानी में रातें गुजार रहे थे । नगर अलग अलग भागों में बढ गया था । जहाँ जहाँ भी में लगा दिए गए थे जन सेवा दल भी कार्य करने लगे थे । बाढग्रस्त क्षेत्रों में खाद सामग्री पहुंचाने और लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टरों की सहायता ली जा रही थी । करण को डालीगंज में तैनात किया गया था । वो इलाका बाढग्रस्त था । सिटी स्टेशन से गाडी में ही वहां पहुंचा जा सकता था । उसने गैरेज पुरानी फोड गाडी निकाली । उसी साफ करवाया रेडियेटर पानी से भरवाया और नौकरों से धक्का लगाने को कहा । फोर्ड में धर की आवाज की और चल पडी । उसने कार स्टेशन पर छोड दी । स्टेशन से डालीगंज की दूरी मुश्किल से तीन मेल होगी लेकिन इस मसले को तय करने में है गाडी में पांच घंटे लगाए । कारण ये था कि रेल के तंग पुल दर्शकों से भरे पडे थे । वे रेल के सहारे रास्ते पर चीटियों की तरफ फैले हुए थे । रास्ता साफ करने में घंटों लग गए । इसके अलावा जिन छात्रों के स्कूल और कॉलेज बाढ के कारण बंद हो गए थे वो गाडी में बैठकर बाढ देखने के लिए पहुंच जाते थे । जैसे ही गाडी चलती वह जंजीर खींचकर उसे रोक देते हैं । सारे रास्ते में पानी काली जाल की तरफ फैला हुआ था । मकान, गालियाँ और बिजली के खंबे इस जाल में फंस कर रह गए थे । दूरी से लो ही का पूर्व टूटा नजर आ रहा था । उसका कुछ भाग रह गया था । एक नई कार उससे टकराई थी और अब उसके किनारे फंसी पडी थी पानी । कार परसिर होकर बहने लगा था । पुल के बीच के हिस्से से नदी का पानी मुश्किल से दो फुट नीचे था और बहुत तेजी से बढ रहा था । करें जब डालीगंज पहुंचा वहाँ की स्थिति बहुत खराब थी । मार्ग के दोनों और जल्दी में बनाए गए शरण स्थलों में बेघर लोग पढे थे । अधिकांश मकान बिना छट चुके थे और थी और बच्चे ऐसा हैं से पढे थे । वापसी पर करण और उसके साथ ही एक ऐसे इंजन पर आए जो लूज शटिंग कर रहा था । स्थिति की बहन करता ने करन को बडी चोट पहुंचाएगी । वो निराश हो उठा । घर पहुंचने पर वो काफी देर तक बैठा शराब पीता रहा । कुछ समय बाद उसने अपने को ठीक अनुभव किया । उसने बिना सोडा मिलाएं काफी शराब पी और होठों पर जवान फेरता रहा । फिर वह खुद अपने से ही कहने लगा उन को ठीक रखने के लिए । पहुँच का जवाब ओवर ढेड में चल रही थी जैसे कोई सपना देख रही हूँ । उसके बाल बिखर गए थे । सोना सकने के कारण उसकी आंखें लाल हो गई थी । वो दुखी और बेचे थी । दिमक जिसे उन्होंने शरीफ समझा था । धोखेबाज और धूर्त निकला । वो सोचने लगी जो लोग अधिक मुस्कुराते हैं ऐसे ही होते हैं । वो अपने से ही पूछने लगी छह कहाँ होगा, क्या कर रहा हूँ । उसे लगा वो उसके सामने खडी हैं और अपनी गलती के लिए माफी मांग रही है । लेकिन अब तो काफी देर हो चुकी थी । उसी जय के अंतिम शब्द दिया जाए । उसने कहा था मैं चाहता हूँ सदासुखी हूँ । लेकिन अब तो सुख का सवाल ही पैदा नहीं होता था । हालांकि हल्का हल्का अंधेरा फैले लिखा था लेकिन प्रकाश के देखा गायब ही हुई थी । लोग वापस जाने लगे थे । पानी उतर रहा था और अब कुछ खास देखने लायक नहीं रह गया था । मंकी ब्रिज की तरफ घूम गई । वहाँ इस समय आस पास कोई नहीं था । पानी अभी तक बहन कर शोर करता हुआ बह रहा था और बल्बों की रोशनी बहते पानी पर चमक रही थी । सीलन तथा घास बात की गंद उसके नथुनों में घुस गए । तुमने जय के साथ बिताए । बचपन के सुख दुश्मनों की कल्पना की । जब उसके पिता अपने मकान बनवा रहे थे, रीत है हाथ में डलवा दी गई थी । उसे याद आया वो दोनों उस पर बैठ जाते थे । उनकी टांगे रेट में धंसकर शीतलता का अनुभव कर दी । कॉरपोरेट के घरोंदे बनाते रहते ये एक तरफ से बनाना शुरू करता और वह दूसरी ओर से और जब उन की सीमाएं आपस में मिल जाती है तो एक दूसरे का हाथ पकडकर विजय भावना से झूम उठते थे । उमा ने बचपन के उन स्वर एकदम दिनों की कल्पना की और एक लंबी सास भरी । अब उसके लिए कौन चिंतित होगा जबकि उसने खुद ही खतरनाक कदम उठा लिया है । शायद उसके माँ बाप चिंतित हूँ लेकिन वो थोडे ही समय के लिए चिंतित होंगे । संचार परिवर्तनशील है । केवल दुखी अटल है । अब क्या होगा इसका विचार करके वो भी ठीक ठीक । क्या इसके बाद उसे हमेशा हमेशा के लिए शांति मिल जाएगी? क्या मूर्खताओं से भरा जीवन दोहराया जाएगा? उससे बहुत से ही सवाल किया । आखिर वो डूब कर मरना ही क्यों चाहती है? उसके सामने एक दृश्य होंगा । एक बार उसे करने की कोशिश की थी और मूवी भरा पानी निकल गई थी । उसकी सांसे टूट रही थी । किसी ने उसकी सांसों से बनते बुलबुलों की सतह पर देखा था । तब उसने उसे बाजू से पकडकर खींचा था और बचा लिया था । पानी उसकी नाक से बहरा था और वो तालाब के किनारे पर पडी थी । तब उस दिन ना करने की कसम खाई थी । एक सिरहन उसके शरीर में फैल गई । उसने सोचा डूबकर मरना बहुत बुरा है और उसने एक लंबी साथ ही ये सोचकर उसे खुशी हुई कि वह अभी जीवित है । पुल के नीचे उतरते हुए वो पांव ऐसे उठा रही थी जैसे सपना देख रही हूँ । पानी का बहाव बहन कर हो गया था और उसके पावों को छोडने लगा था । उसने नीचे देखा और अपने एरिया को मजबूत किया । सहसा उसके सारे शरीर में ए ठंड ही फैल गई । उसके सामने एक नंगी लडकी का मृत शरीर ते रहा था । नारियल के देशों की भांति उसके बाद से ऐसी चिपकी थी । उसकी छातियों पर मृत्यु की पीडा छाई हुई थी । उमा वापस बडी वो लडकी की भर्ती नहीं होना चाहती हूँ । वो उसकी तरह नग्न अवस्था में न बह सकेगी । वो जल्दी जल्दी कदम उठाती हुई ऊपर चढने लगी । उसे सुख की सांस दीपक जान की तरह चमक रहे थे । उसके हो धीरे से हिले मानो कह रहे हो जीवित रहना ज्यादा अच्छा है । दूसरी तरफ एक जोडा एक दूसरे की हथेलिया पकडे खडा था । दोनों एक दूसरे में पूरी तरह से खोले हुए थे । उमा ने उन पर एक उच्च टी ने कहाँ डाली और जल्दी से सडक पार कर गई । हाँ, जीवित रहना ज्यादा अच्छा है । उसने मन ही मन सोचा बहते पानी पर उस लगी लडकी की तरह रहने के बजाय जीना बेहतर है । दिवाली का उत्सव उमा को विशेष लिया था । डीपों का ये उत्सव उसे रोमांचित कर देता था । परंपरा के अनुसार ये पर्व राक्षस राजा रावण पर जाम की विजय तथा अयोध्या को उनकी वापसी की खुशी में मनाया जाता है । निश्चित ही विजेता के स्वागत का ये ढंग बहुत रोका है । अंधेरे में झिलमिलाती दीपों की पंक्तियां अनेक जुगनुओं की तरह रखती है । बिजली का प्रकाश उनका मुकाबला नहीं कर सकता हूँ । छोटे छोटे डीपो से सौन्दर्य आपसी मिली मिला तथा सुख की भावना का बोर्ड होता है । लगता है माना दिवसी का गहरे हो यात्री घर तुम्हारा स्वागत करता है । डीप आनंद में परिवार के प्रतीक है, देते हैं तो आनंद प्रकाश कीर्ति तथ्य जीवन की चिर नवीनता के प्रतीक है । वेदान्त के इस कथन की याद दिलाते हैं सौ साल जीवित रहना चाहते हो तो मुस्कुराते रहो । ये उच्चत इसी बात की सूचना भी देता है कि शरद ऋतु आ रही है । दिन सुहावनी हो गए हैं । पौधों ने हरे पत्तों के साथ खेलना शुरू कर दिया है । बनक्शा के मनहर कोमल फूल खेल पडे हैं । उमा ने आंगन में थोडी सी जगह साहब की फिर उसे गाय के गोबर से पोत दिया और उस पर मिट्टी से लक्ष्मी और गणेश की आकृतियां बना दी । राजेन्द्र बाबू और उनकी पत्नी वीना एक साथ पूजा करने के लिए बैठ गए । उमर वीणा ने उनके माथे पर तिलक लगाया प्राण ऍम तुम कहाँ हूँ कम से कम आज के दिन तो किताब छोडकर पूजा में शामिल हो जाओ । प्राण उमा का भाई था । खेती का काम करता था और दिवाली के अवसर पर घर आया हुआ था । प्राण सीधा साधा युवक था । उसके गाल पर एक काला निशान था । बचपन में जल जाने की वजह से ये निशान पड गया था । जासूसी उपन्यासों में उसकी गहरी दिलचस्पी थी । जब भी उसे समय मिलता वो जासूसी उपन्यास लेकर बैठ जाता । पिता की आवाज सुनकर उसने उपन्यास के उन पन्ने का कोना मोडा और आंगन की तरफ चल दिया । दीए जलाकर गोल्ड हाल में सजाए जा चुके थे । उसी में से उठाकर उन्हें मुंडेरों पर कतार में लगाया जा रहा था । जी जी, मुझे भी फुलझडी दो अनिल से लाया । हमारे डब्बे में से फुलझडी निकालकर चलाई । जब उसकी चिंगारियां सितारों की तरह धरती पर गिरने लगी तो अनिल खुशी से नाच उठा । उमा का चचेरा भाई अपने चार बच्चों के साथ आया था । बच्चों की उछल कूद तथा खेल तमाशे से सारा वातावरण गूंज उठा था । डी । ए जलाकर यथास्थान सजा दिए गए थे । हर कमरे में एक एक दिया रख दिया गया । बच्चे पटाखों के लिए शोर मचा रहे थे कि एक अनार जलाऊं अनिल बोला और हवाई और चरखी जब एक साथ चलाए उमा पटाखों को लेकर बाहर आ गई । बच्चों ने उन्हें ले लिया और शोर मचा देवी चलाने लगे । ऍम उन सब ने शोर क्या? अनाज चला तो उस की रंग बिरंगी चिंगारियां ऊंची उतने लगी । इसके बाद रोशनी का दायरा बनाती हुई चरकी चलने लगी । हवाई अपने पीछे आपकी एक लकीर छोडती हुई आकाश की ओर भाग रही थी । उनमें लगा सूट जलता और प्रकाश फैल जाता । तभी बच्चे खुश बुजुर्ग करने लगे कि अब ऍम चलेगा । इसी वक्त कानों के बढते फाडने वाला धमाका हुआ । ऍम और बच्चे खुशी से नाचने लगे । फॅमिली देखने चलेगा । तुमने पूछा । सबने कहा हम चलेंगे, हम चलेंगे । अच्छा तो देखिए पहले कौन तैयार होता है तो मैंने कहा ऍम । उसने कहा कपडे पहनो, हम रोशनी देखने जा रहे हैं । शहर में रौशनी और रंगों का तूफान आया हुआ था । मकानों पर जलते पंक्तिबद्ध अनगिनत डीपो ने उन्हें परियों के महल बना दिया था । चारों और से पटाखों की फटने की आवाज आ रही थी । दुकानों पर जलते रंग बिरंगे बाल अच्छे लग रहे थे । सडकों पर बेटी दहशत भीड थी । बहुत सारे जो खडी थी वे लंबी जलूस का एक हिस्सा नजर आती थी । वो थोडी दूर चलती और फिर रुक जाती । दर्शकों की भीड रास्ता रोकी हुई थी । बच्चे खुशी से घूमते हुए रोशनी के दायरों तथा प्रकाश स्तंभों को निहार रहे थे तो वहाँ के लिए साइकल समारोह तथा पैदल चलने वालों की भीड में से बाहर निकाल कितना मुश्किल हो गया था । वो शहीद स्मारक के पास कार खडी करके उत्तर पडी और पार्क में गई ताकि नदी के पानी में पढते रोशनियों के प्रतिबिंब देख सके । बच्चे खुशी खुशी संगमर्मर के बने हाथियों पर चढ गए । बच्चों को एक साथ रखने की उमा की कोशिश नाकाम हो गई । एक का एक उमा उठ खडी हुई । तभी कुछ दूरी पर उसने विमल फरमीना को देखा । वे एक दूसरे की बाहों में बाहें डाल घूम रहे थे । मीना मुस्कुराती हुई विमल को देख रही थी । उमा उसके हाव भाव को देखकर ताज्जुब में पड गई । उसने हल्के पीले रंग का जूस ब्लाॅक पहना हुआ था । उसके होठों पर गहरी लिप्स्टिक लगी हुई थी । उसके बाल कटे हुए थे और कुछ आगे को मुझे हुए थे । नजदीक आती जा रहे थे । उमा ने बच्चे को इकट्ठा किया और जल्दी से पार्क के बाहर निकल गई । उसे दुख हुआ कि वो विमल को आज तक समझ क्यों नहीं सकी । उसने विमल को शरीफ समझाता हूँ लेकिन वो चरित्र ही दुष्ट, मक्कार और विश्वासघाती निकला । वो किस मुश्किल से बच पाई थी । ये सब खयाल आते ही उसके शरीर में एक कपकपी सी दौड गई । जब घर लौटी दिए बुझने लगे थे । उसने झिलमिलाती रोशनी में इधर उधर देखा और उसे खयाल आया कि पिछले दिवाली में न चाहते हुए शोलों के सामने वो जय के साथ खडी थी । उन दोनों ने अपने हाथ एक जलते हुए दिए पटक दिए थे और फिर वो एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा पडी थी । हम प्रकाश बंद पड रहा था और अंधेरा फिर से पहनने लगा था । उसके भीतर भी अंधकार छा गया था । वो दुखी और अकेली थी । जैसी एक जलता हुआ दीपक बुझा वो बुदबुदाई तो है ही है । उस तक के परसिर रखा और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे । वो जलते हुए दीपों को के बारे में भी ना सोच सकी । जय नीम के पेड करले खामोश बैठा था । उसके चारों और विस्तृत भूरे रंग के समापन छोटे हुए । खेत पहले थे, खरीफ की फसल के लिए बीच पडने वाले थे । दूर कच्चे मकानों का समूह नजर आ रहा था । उन पर रूस की छत पे पडी थी । जय का पुराना मकान पक्की ईटों का बना हुआ था । ऐसा मालूम पडता था कि मकान मालिक के पास पैसे की कमी बढ गई और उसने उसे अधूरा ही छोड दिया । मकान में एक कमरा बैठक और बरामदा था । बैठक में एक लकडी का तक पढा था जिस पर दरी बिछाकर सफेद चादर फैला दी गई थी । पांसी में किसी जानवर की खाल का एक गोल तकिया रखा था । दोनों और दीवारों पर लकडी के फ्रेम में जडी तस्वीरें लटक रही थी । एक तस्वीर में हनुमान को हथेली पर पहाड उठाये हुए ऊर्जा दिखाया गया था । दूसरी तस्वीर कृष्णा की थी । कृष्ण बांसूरी बचा रहे थे । एक गोपी ने पानी का मटका उठा रखा था और थोडी फैसले पर एक गाय घास पर बैठे घूम रही थी । दीवार में बनी एक अलमारी में पुस्तक की बडी थी । सारे गांव में थोडे से ही पक्के मकान थे । गलियाँ बच्ची थी चार कोई थी जिनमें से केवल दो में पक्की ईंटें लगी थी । गांव के निवासी इन्ही कुओं से पानी खींचते थे । स्त्रियां ऊपर से नीचे तक कपडे पहने हुए इन कुओं पर घाटी पानी बढते ही कपडे उनके शरीर से चिपक जाते गन्दा पानी छोटी सी नाली में से बेहतर है । एक गड्ढे में इकट्ठा होता रहता हूँ और उस गड्ढे में मक्खियाँ और मच्छर भिनभिनाते रहते । मकान मिट्टी के बनी थी जो अंदर से लीप पोतकर साफ कर दिए गए थे । मकानों में प्रायर एक या दो कमरे ही थे । उनके सामने खुला आंगन था । मिट्टी के बडे बडी मटकों में अनाज भरकर कोनों में रख दिया जाता हूँ । कमरे में अंधेरा रहता और वो ठंडी होते हैं । दरवाजे मजबूत लकडी की बनी थी और उनमें लोहे के कूंडे जड दिए गए थे । घर के पीछे कूडा कर्कट और महिला निकलने का रास्ता बना दिया गया था । महिला एक खुले गड्डी में जाकर एक घंटा होता रहता हूँ । केवल एक डिस्पेंसरी थी जहाँ से जय के गांव वाले दवा लेते हैं लेकिन वो भी गांव से छह मील दूर थी । एकमात्र सवारी थी बैलगाडी या एक का अंधेरा हो जाने के बाद वहाँ जाना ना सिर्फ कठिन नहीं था बल्कि खतरनाक भी कुछ दिन पहले की बात है । एक डॉक्टर रोगी को देखने जा रहा था कि उसे रास्ते में लूट लिया था । वह जेब के सब रुपए और घडी से हाँ दो बैठा हूँ । इसलिए लोग तभी डिस्पेंसरी जाते जब उनकी स्थिति शोचनीय हो जाती है । डिस्पेंसरी में एक दर्जन बोतले मिक्सचर की थी । वहाँ रोगियों के लेने के लिए एक पुरानी मेज पडी थी । दवा की कुछ शीर्ष थी और उनमें भरी दवा की दिए जाने की अवधि निकल चुकी थी । अधिकांश ग्राम अपनी चिकित्सा खुद ही अपने देसी तरीके से करते । पत्ते नींबू था और यहाँ तक कि गाय का गोबर भी लोगों में इस्तेमाल किया जाता । जडी बूटियों को भी काम में लाया जाता । बारिश के दिनों में गलियाँ पानी से भर जाती और चलना दुभर हो जाता है । कई बार तो केवल पानी में ही चलना पडता जैनी हुई मन से एक दिन का थोडा और उमा के बारे में सोचने लगा । ऐसा लग रहा था मानो को उमर से कल ही जुडा हुआ हो । जो कुछ हुआ वो इतनी जल्दी में हुआ था कि उसे ये सब एक सपना साला का उसने दिवाली गांव में ही चुप चाप अकेले मनाई थी । ना कोई धूमधाम और न कोई खुशी उसे कुछ एक दिये जलाकर दरवाजे के बाहर रख दिये थे । एक दीया जलाकर वो हनुमान की तस्वीर के नीचे इस आशा से रखा है कि उनके आशीर्वाद से उसके विचार उमा तक पहुंच जाएंगे । सहसा उसे ख्याल आया कि हनुमान दो बाल ब्रह्मचारी समझे जाते हैं । उन्हें प्यार की क्या परवाह, वो किसी ऐसी मनोकामना की पूर्ति क्यों करेंगे? उसके एक अन्य दीया जलाकर कृष्ण और गोबी की तस्वीर के नीचे रख दिया । उसने सोचा गोकुल और वृन्दावन की ये देखता ग्वालिनों को चकमा देने वाली ये कृष्ण भगवान हो सकता है । कुछ कृपा कर दी क्या किया की तेज आवाज सुनकर वह दिवास्वप्न इसी जान उठा । एक काले रंग का आदमी बहनों को हाथ रहा था । बैलों की चाल धीमी हो जाती है तो वो उनके चाबूक मारता और कभी कभी उनकी पूछ भी मरोड देता । मिट्टी के ढेरों पर धीरे धीरे चलता हुआ पाटला धरती को समर्थन कर रहा था । खेत के कोने पर एक स्त्री बैठी बच्चे को दूध पिला रही थी । उसे धोती से अपनी छाती को ढांप रखा था । दूसरा बच्चा खेत में भाग रहा था और वो मिट्टी के ढेले को उठाकर इधर उधर कुछ चल रहा था । समय के साथ गांव नहीं बदले थे । जहाँ जहाँ कच्चे मकानों के बीच एक आद पक्का मकान बन गया था और समय समय पर एक गाडी देश भक्ति के रिकॉर्ड बजाती घूम जाती थी । लेकिन जैसे परिवर्तन की जरूरत थी वो नहीं आया था । सदियों पुराने हल्के पीछे किसान आज भी चल रहा था । आज भी वो पहले की तरह बीच भी खेलता था । उसकी दूती मिली थी । उस की बंडी फटी हुई थी । अभी तक गालियाँ गंदी थी । गंदगी के ढेर इधर उधर पडे रहते हैं । स्त्रियों के कपडों पर पे बिन लगे होते और बच्चे नंगे पांव घूमते रहते । शाम होते ही जय जल्दी आग के सामने बैठ जाता और गांव वालों की बातें सुनता पंजो भाई, तीन शाम जल्दी आपके सामने बैठे । गांव के मुख्य ने कहा तुम इस बार वोट किसी दोगे । पाँच चुकी आंखों में अनिश्चित अभाव था तो बोला मैंने अभी इस बारे में नहीं सोचा । फिर इससे फर्क क्या पडता है? पिछली बार दो को दिया था और उससे पहले बैलों की जोडी को मगर मुझे के अलावा हुआ । जय ने बताना चाहा कि केवल वोट देकर व्यक्तिगत सुविधाएं हासिल नहीं कर सकते हैं के निशान तो अलग अलग पार्टियों के चिन्हे भैया । पंचू ने कहा मैं ज्यादा नहीं जानता मगर इस गांव में रहते हुए लगभग सौ बरस होने को आए हैं और अब तक मैंने गांवों से लेने की आवाज ही सुनी है । देता हमें कोई नहीं । पहले साहब लोग लडाई के लिए चलना मानते थे । अब बचत योजना और दस साल योजना का नाम सुनाई देता है लेकिन क्या तुम दोनों में फर्क नहीं देखते । जैनिक गम्भीरता से पूछा । अंग्रेज एक ऐसे युद्ध के लिए धन मांगते थे, जिसमें हमारी दिलचस्पी नहीं की । लेकिन ये योजनाएं तो हमारी अपनी भलाई के लिए हैं । पाँच उसे झटक कर बोला इनसे हमारी क्या भलाई हुई है? पुराने जमाने में डाकू एक सिपाही तक से डरते थे । मगर अब अब तो सरकारी लोगों को भी लूटा तथा कत्ल किया जाता है । मुख्य ने बीडी निकली मैं तो जिसकी लाठी उसकी बहस में विश्वास करता हूँ । उसने कहा इसलिए मैं हमेशा बैल वाले डब्बे में वो डालता हूँ । मैं तो बस इतना जानता हूँ कि ये गांधी बाबा की पार्टी है । मगर अब जमाना बदल चुका है । जैन अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, अंग्रेजीराज में तो हर आदमी डरा डरा सा रहता था । किसी की हिम्मत नहीं थी कि एक शब्द भी जबान से निकाल सके । अकेले में लोग शिकायत जरूर करते थे, लेकिन आज हम कहने सुनने के लिए पूरी तरह से आजाद है । इससे काफी फायदा हुआ है । पंचू ने कहा इस कांस्य सुनना और उसका निकाल देना सबसे बुरी बात है । इससे अच्छा तो ये है कि आदमी सुने ही ना पंचभाई । ठीक कहते हैं एक मोटे ताजे नौ । जवान ने कहा एक जमाना था कि यहाँ उठाने में मजदूर मिल जाता था । मगर अब तो दो रुपये भी कम है । हाँ और क्या पाँच ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया । अभी उसी दिन की बात है । पांडे जी ने मुझे बताया कि वह ढाई रुपये तक देने को तैयार थे, लेकिन कोई नहीं आया । हाँ, पाँच चुकी समर्थन से खुश होकर नौ जवान बोला मेरे समझ में नहीं आता कि ये लोग क्यों हम पर इन ट्रैक्टरों को तोड रहे हैं । इनके लिए तो सबसे अच्छी जगह अजायबघर है । अगले मंदी का रास्ता तो यही है कि भूमि को उसी तरह जोडते जिस तरह हमारे बुजुर्ग जून देते थे । तुमने मेरे मूंग की बात कह दी । पाँच चुनने नौजवान की ओर देखते हुए कहा, तंग लिबास पहनकर हमारे घरों में आने वाली औरतों को तो देखो । उन्हें बात करने के सिवा कोई काम ही नहीं । ना वो गेहूँ पटक सकती है, न चक्की चलाकर आता पी सकती है और न ही इसलिए टूटने की उन्हें समझ । इस पर भी वो हमारी औरतों के सुधार की बातें करती हैं । इनसे तो भगवान ही बचाए । अगर कही उन्होंने हमारी औरतों को भी अपना जैसा बना दिया तो हमें बैरागी बनकर घास फूस पर जीवित रहना पडेगा । कन्हाई भाई ये हमारी और तो को बर्बाद कर रही हैं । ये कहकर की भाई मुझे तो कहते हुए भी शर्म आती है । ये कहती की हालत कम पैदा करो । क्या ये मुट्टी पर छोकरी ईश्वर के नियमों को बदल सकती हैं क्या? खूब कहा पंचभाई । मुख्य ने हुक्का अपनी तरफ खींचते हुए कहा कुछ भी हो हमें अपनी औरतों को बचाना चाहिए । ये सब शहरी लोगों के लिए ही अच्छा है । हम गांव वालों के लिए नहीं, दो अलग अलग संसार थे । शहर के स्तर को गांव में लागू करना, मूर्खता दी । गांव वाले परिवर्तन के विरोधी थे । उन्होंने तो हजारों आदि के लिए बढाई का सहारा लिया था और वही उनके लिए सबकुछ था । गांव के भलाई के लिए अमल में लाई जाने वाली हर योजना के प्रति उनके मन में शंका थी । जय मानने को तैयार नहीं था कि गांवों में कोई सुधार नहीं हुआ । बहुत से गांवों में बिजली पहुंच गई थी और वहाँ स्कूल तथा कॉलेज खुल गए थे । अनेक ग्रामवासी ऊंची ऊंची सरकारी नौकरियाँ कर रहे थे या उनका अपना व्यवसाय था । इस प्रकार गांव की दशा में परिवर्तन तो आया था, लेकिन उसे देखने के लिए सचेत दृष्टि की जरूरत थी । पाँच चुनने मुखिया को कोहनी मारी । इसे देखा तो उस बताया ये जिससे शादी करना चाहता है उसे ताक रहा है । अरे नहीं । मुखिया ने कहा ये तो बाहर से कोई छोकरी लाएगा तो बाहर क्या ख्याल है? कढाई मगर कन्हाई ने सुना नहीं वो सपनों में खोया था और नजर से ओझल होती लडकियों को देख रहा था । शहर में उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं था । उस की दृष्टि तो तो उस लडकी पर जमीन थी जिसमें गले में मोतियों की माला पहन रखी थी और जो उसे देख कर उसके बगल से गुजरते समय लाज से मुस्कुराई थी ।
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