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हूँ । प्रथम परिच्छेद बहुत आठ यादव देव ओलंपिक प्रोत् मिल का मालिक था और बाइकुला में एक बहुत बडे मकान में रहता था । घर में छेड जी के परिवार के तो केवल तीन ही प्राणी थे सेठ साहब, उनकी धर्मपत्नी राधा और लडकी भावना । इसके अतिरिक्त यादव देव के भाई का एक लडका रतन लाल अपनी पत्नी सुमित्रा के साथ उसी घर में रहता था है । एक्साइज विभाग में एक उच्चाधिकारी था । अपने चाचा के मकान में बहुत स्थान होने के कारण बिना किराया दिए ही रहता था । रतन लाल का पिता अहमदाबाद में व्यापार करता था और अच्छा धनि आदमी था । इसके अतिरिक्त राधा का छोटा भाई मणीलाल भी उसी मकान में रहता था । मनी लाल की आयु लगभग बारह वर्ष की थी और भावना से दो श्रेणी आगे बडता था । दोनों ऍम स्कूल में पढते थे । वे दोनों प्राय मोटर में इकट्ठे ही स्कूल जाते और आते थे । यादव देव पूजा पाठ में बहुत विश्वास रखता था । वह तथा उसकी पत्नी प्रति रविवार मंदिर में जा पूजा पाठ का दाल दक्षिण दिया करते थे । धर्मोपदेश में उनकी भारी निष्ठा नहीं पूर्णिमा के दिन घर पर सत्यनारायण की कथा कराते थे और घर के तीनों प्राणी श्रद्धापूर्वक कथा का श्रवण करते थे । अब इनमें एक चौथा व्यक्ति सुंदर भी सम्मिलित हो गया । रतन लाल तथा मणीलाल इस कथा कीर्तन में रूचि नहीं रखते थे । वे खता के समय प्राय कहीं की सब जाया करते थे । सुंदर को केवल दो काम बताए गए थे । एक तो तीन व्यक्तियों के कमरों की सफाई करना । इन कमरों में अन्य लोगों का वर्जित हो गया था और दूसरा काम था बाजार से घर के लिए सोता लाना जो एक रसोइया था । मैं महाराज के नाम से पुकारा जाता था और सुंदर के आने से पूर्व वही रसद पानी का प्रबंध करता था । दस वर्ष से वेस्ट सेठ जी की नौकरी कर रहा था और इन दस वर्षों में एक दुबले पतले युवक से बढकर उन्होंने तीन मनका मोटा महाराज बन गया था । वह जब भी घर जाता था एक दो ट्रंक अन्य वस्तुओं तथा कपडों से बढकर साथ ले जाया करता था । इस वर्ष महाराज जब अपने घर जाने लगा तो सेठ जी को संदेह हो गया कि इस बार एक ट्रंक कुछ बडा और सादा से अधिक बाहरी है । छेड जीने पूछ लिया महाराज! बहुत कुछ ले जा रहे हो इस बार हाँ जी भगवान की कृपा से आप जैसे दयालु स्वामी जिसे विले हो तो से क्यों ना ट्रंक भारी हो जाएगा? महाराज तनिक देखा हो तो सही की हमारी दया की सीमा कहाँ तक पहुंची है? छेड जी गया तो एक असीन वस्तु है । इस की तो कोई सीमा बांधी ही नहीं जा सकती लीजिए । आपकी दया है तो फिर सब कुछ है । फिर आपको दिखाने में क्या संकोच हो सकता? महाराज नेट्रम खोला उसमें देश में और सूती साडिया थी । सोने चांदी के आभूषण थे और बच्चों के लिए खेलों ने भरे पडे थे । महाराज के अपने वस्त्र थे और फिर ट्रंक के एक कोने में एक एक तोले के सोने के पास टुकडे रखे हुए थे । महाराज को पचास रुपया मासिक मिलते थे और रोटी कपडा सेठ जी के घर से ही दिया जाता था । इस ट्रक में तो केवल सोना ही पांच सौ रुपये लगा था । सोना चांदी के आभूषण भी दो तीन सौ रुपये के थे । एक घडी थी जो सौ रुपये से कम मूल्य की नहीं होगी । सब कुछ मिलाकर एक सहस्त्र रुपये का सामान था छेड । यादव ने मुझे बुलाया और बोला महाराज हमारे अतिरिक्त क्या कहीं अन्यत्र भी कुछ काम करते हो? हाँ सर जी मैं एक छोटा सा व्यापार भी करता हूँ । तो तुम को भी मुंबई की हवा लग गई है । सेठ जी यहाँ रहते हुए दस वर्ष हो गए । अनेक निर्धनों को लखपति होते देखा है और लखपतियों को निर्धन होते हैं । मैं कई दुकानदारों के कमिशन एजेंट के रूप में कार्य करता हूँ । वो सत्य किस किस दुकानदार के एजेंटी करते हो और इसके लिए तो मैं समय कौन सा मिलता है । जब आप के लिए बाजार से सामान खरीदने जाता हूँ तो दुकानदार मुझको बिक्री पर दस प्रतिशत कमीशन देते हैं और लगभग एक रुपये गी । मैं उनकी मासिक बिक्री करा देता हूँ । तब तो ठीक है था । पिछले दस मार्च में तुमने कम से कम दस सहस्त्र रुपये की बिक्री करवाई है । ये संदूक की वस्तुएं कम से कम एक सहस्त्र रुपये के लगभग की तो है ही । हाँ जी, सब धन जो मैंने इन वस्तुओं पर न्याय क्या है, वह ग्यारह सौ तीस हो गया था । छेड यादव देर चुप कर रहा । उसने घर के लिए उस पूर्ण सामान का मूल्य उनका जो महाराज के द्वारा लाया गया था । पिछले वर्ष लगभग तेरह सौ रुपये का था । इससे सेट समझ गया कि महाराज उसके माल पर ही दुकानदार से दलाली लेता रहा है । महाराज के घर जाने से पहले ही सुंदर आ गया था और उसके पीछे वह माल खरीदकर लाने लगा । खाने पीने का सामान, एक पाठशाला के निर्धन विद्यार्थियों के लिए अन्य मासिक सदाव्रत के लिए अंदर भी चीनी इत्यादि, छोटा वोटा, कपडा और घर के लिए अन्य आवश्यक वस्तुएं सब मिल मिलाकर लगभग ग्यारह बारह सौ रुपए महीने का होता था । दस बारह दिन में ही सुंदर सब दुकानदरों से परिचित हो गया था और नियत भाव परमान लाने लगा था । मासिक बिल भुगतान करने जब रह गया तो दुकानदारों ने उसको बता दिया कि सेठ जी का पहला नौकर महाराज उनसे दस प्रतिशत कमीशन लेता था । सुंदर ने कहा, इस बार मैं कमीशन आप दिलों में ही काम कर दीजिए, ये है हम नहीं कर सकते । ऐसा करने पर आगे वाले नोकर बिल कमीशन कटवाकर बनवायेंगे और फिर अपना कमीशन उससे प्रथक मांगेंगे तो अलग दे दीजिए । महीने के पश्चात जब सुंदर ने छह थानी को हिसाब बताया और अपने कमीशन के एक सौ तीस रुपये भी साथ रख दिए तो जेठानी समझ नहीं सकी । सुंदर ने वे सब बातें जो दुकानदार के साथ हुई थी बता दी, किंतु इस पर भी जेठानी कुछ समझे नहीं । रात को सेठ जी घर आए ज्यादा ने सुन्दर की सारी बात उनको बताई तो खिलखिलाकर हंस पडे । राधा ने पूछा क्या बात है जी तुम्हारा तुलसी की माला जपने वाला जोर इतने रुपए उस काम में से चुरा लेता था जिसके लिए उसको हम वेतन देते थे । सत्य तो बहुत बेईमान था है हाँ, तभी तो फूल कर कुप्पा हुआ जाता था । आप सोल्जर को क्या वेतन दे रहे हैं? अब तुम ही बताओ क्या वेतन देना चाहिए? मेरे विचार में तो वह दो सौ रुपये मासिक का काम कर रहा है । जेठानी हंस पडी और बोली घर के लोकर को दो सौ रुपये मासिक वेतन और सरकारी पढे लिखे बाबू को एक सौ बीस रुपया । हाँ राधा सरकारी बाबुओं को आता ही क्या है? वे बेचारे नित्य लोग घंटे काम जो करते रहते हैं, केवल चक्की पीसते हैं और ये है क्या करता है? तभी रात के समय देखा करो कि वह क्या क्या करता है, क्या क्या करता है । वह जब यहाँ आया था तो हिंदी का एक अक्षर नहीं जानता था । अंग्रेजी की पहली किताब पडता था । उसको आए डेढ माह हो गया है । इस काल में हिंदी की तीसरी पुस्तक पडने लग गया है और अंग्रेजी की दूसरी कहाँ से और कब पडता है । वह भावना से पडता है और रात को पार्ट याद करता है । तब तो वह बहुत अच्छा लडका है वहाँ पर मैं चाहता हूँ कि उसका वेतन तो पचास रुपए ही ठीक होगा और उसके कमीशन का रुपया तो पृथक बैंक में जमा करा दिया करो, किसी समय उसको दे देंगे । इस बार महाराज पाचक छुट्टी समाप्त हो जाने पर लोटा तो उसको रसोई बनाने का काम तो दिया गया परंतु बाजार से सामान खरीदने का काम सुन्दर से ही लिया जाता रहा । इस पर तो महाराज दुबला पडने लगा । मैं संतुष्ट और सुन्दर से झगडा भी करता दिखाई देने लगा । महाराज को सुंदर के विरुद्ध आरोप लगाने का कोई बहाना नहीं मिल रहा था । उसकी लगभग सौ सवा सौ रुपए महीने की ऊपर की आए सुंदर के कारण समाप्त हो गई थी । एक दिन उसने सुंदर को कमीशन लेने के अपराध से सावधानी जी की दृष्टि में पतित करने के लिए कह दिया । माजी यह सुंदर अच्छा लडका नहीं है । अच्छा जेठानी जीने जिसमें मैं पूछा क्या खराबी की है उसने? ये है बहन भावना के कमरे में घुसा रहता है । मुझे याद है वह उससे पढा करता है । मांझी ये ठीक नहीं हो रहा । देखो महाराज, तुम अपना काम देखो । तुम को दूसरों की निंदा अथवा प्रशंसा करने की आवश्यकता नहीं है । मैं जानती हूँ वह वहाँ क्या करता है । इस प्रयास में विफल हो । मैं एक दिन सुन्दर से साठगांठ करने लगा । उसने कमीशन का एक भाग लेने का यतन करने लगा । उसने कहा सुंदर भैया तुमको दुकानदर सामान पर कमीशन नहीं देता देता है । सुंदर ने कह दिया कितनी बन जाती है । आजकल तो पौने दो सौ रुपया मासिक तक हो जाती है और वह कहाँ रखते हो इसलिए पूछ रहे वो पंडित उसमें मेरा भाग भी तो है । तुम्हारा वाक्यों और कैसे बनता है? मैंने ही यह प्रथा चलाई थी । इस कारण इस में मैं भी भागीदार होंगे । पर मैं तो उसे सेठ जी का हक मानता हूँ और प्रतिमास सब रकम सेठानी जी के पास जमा करा देता हूँ । उनके पास क्यों वस्तुओं का दाम दे देती है? और उन पर कमीशन भी तो उन्हीं को मिलनी चाहिए । अब सुंदर ये है बात नहीं, ये बाजार में माल खरीदने जाए तो उनको कमीशन नहीं मिलेगी । यह तो नौकरों का भाग है । नहीं महाराज, मैं ऐसा नहीं मानता हूँ । है जिनका भाग है उनको दे देता हूँ । देखो मारा मुझे कुछ झगडा किया तो मैं यह सब बात माताजी के सामने शहद होगा और फिर लोकरी से निकाल दिए जाओगे । महाराज यहाँ से भी निराश हुआ तो रतनलाल के पास पहुंचे । उसने उसे सुंदर के विरुद्ध भडकाने का यह शुरू की है परंतु रतन लाल को अपने स्वार्थ की हानि नहीं पहुंचती थी । इस कारण उसने बात डाल दी । महाराज इस सुंदर का कांटा निकालने के लिए जब सब प्रकार के ज्ञान तनकर है सफल हो चुका तो भगवान से नित्य प्रार्थना करने लगा कि वह सुंदर को अपने घर बुलाने हूँ हूँ हूँ ।
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