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द्वितीय परिच्छेद भाग बहुत सुन्दर रात भर विचार करने के पश्चात भी अपने निर्णय को बदल नहीं सका । वह मन में सोचता था कि यदि उसके परिवार का सहयोग भावना से हैं तो उसके घर छोड कर चले जाने पर भी हो जाएगा । साथ ही वह समझता था कि घर के नीच नौकर से सेट का दामाद बनने में बहुत अंतर है । इतनी ऊंचाई पर यदि एक ही छलांग में चढने का यह काम करेगा तो अवश्य गिरकर अंग भंग कर लेगा । पहले उस को स्वतंत्र रूप में किसी मान युक्त स्थिति पर पहुंचना चाहिए । तब यदि कोई भावना जैसी लडकी उससे विवाह की बात करें तो ये है प्रस्ताव विचार नहीं हो सकता है । जब भावना अपने भाव प्रकट कर उसके कमरे में से चली गई तो उसने सेठ जी का पत्र जेब से निकाला और नीचे हस्ताक्षर कर उसे एक बार को मैं बडा और पत्र के नीचे है और लिख दिया की मुझे भावना ने बताया है कि आप मुझ पर कितने दयालु हैं कि मुझको अपने परिवार में सम्मिलित करने का विचार रखते हैं । मैं स्वयं को इतनी बडी दया का पात्र नहीं समझता हूँ । अंग्रेजी की कहावत है डिजर्व बिफोर डिजायर अर्थात किसी वस्तु को पाने से पूर्व उसको प्राप्त करने की योग्यता ग्रहण करूँ । वह योग्यता मैं अभी स्वयं में नहीं देख पाता । इतना लिख उसने एक पत्र भावना को बिल्ली की दिया । दोनों पत्रों को बंद कर उसने समय देखा । लगता है कि चार बज रहे थे । वह शौचादि से निवृत्त हो दोनों पत्र लेकर अपने कमरे को बंद कर बाहर निकल आया । रसोई घर में गया तो बैरा अपने लिए चाय बना रहा था । उसने मेरे को पत्र देकर कहा यह पत्र भावना बहन को दे देना । मेरे ने इतने प्लाॅट उसको जाने के लिए तैयार देखा तो पूछ लिया तुम कहाँ जा रहे हो? सेठ जी किसी काम से मुझे पूना भेज रहे हैं । देहरा अभी उसकी बात पर विचार ही कर रहा था की सुंदर वहाँ से चला आया । घर के नीचे फाटक परसो केदार बैठा रामायण की चौपाई गा रहा था । उसने चौकीदार से कहा भैया, यह पत्र सेठ जी को दे देना । इस समय में पूजा कर रहे हैं । नहीं तो मैं स्वयं ही दे देता है । तुम कहाँ जा रहे हो? सुंदर किसी काम से पूना जा रहा हूँ । वहाँ से निकलकर सुंदर मैरिन ड्राइव की ओर सनपडा अभी बस इत्यादि नहीं चल रही थी । सडकों पर चलने फिरने वाले भी अभी अपने घरों से नहीं निकले थे । पटरी पर सोने वाले दिन निकलने की प्रतीक्षा में करवट बदल रहे थे । बम्बई के ऊंचे नीचे मकान रात गाल के घुस । मुझे प्रकाश में सुनसान बूथों के सवाल खडे दिखाई दे रहे थे । सुंदर इस विशालनगर के लाखों लोगों के बीच स्वयं को सर्वथा के ना पा रहा था । वह चला जा रहा था और कोई उसकी ओर देख भी नहीं रहा था । एक ने देखा रहा था पुलिस वाला मैरिन ड्राइव पर पहुंच वह समुद्र की ओर बनी । मुंडेर के समीप जाकर उस दोनों ने प्रकाश में सागर में हो रही उथल बुधन को देखने के लिए खडा हो गया । वहाँ अभी विचार कर रहा था की एक पैसा भी लेकर वह चला नहीं । अब निर्वास किस प्रकार किया जाए । नहीं जाने उसको कब और किस प्रकार का काम मिले तब तक रहेगा । कहा और क्या खाएगा वह अभी एक भी पशुओं का हाल नहीं सोच सकता था कि पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा । उसने चौकर घूम कर देखा तो पीछे पुलिस वाले को खडा पाया । सुंदर ने प्रश्न भरी दृष्टि से उसकी और देखा तो पुलिस मैंने पूछा यहाँ क्या कर रहे हो । दिल और दिमाग की सुस्ती निकाल रहा हूँ । तुम जोर मालूम होते हो । तलाशी दो नहीं दो दो सुंदर में इस प्रकार कहे जाने को मजाक समझा था परंतु कम गया । जब उसने कहा तो तुम को पकडकर थाने ले जाऊंगा । इसपर सुंदर को क्रोध चढाया और उसने कहा तो ले चलो पुलिस । मैंने उसे वहाँ से पकडकर कहा चलो चलो क्यों ले चलना चाहते हो तो ले चलो पुलिस मैंने जेब से सीटे निकाल बजानी आरंभ कर दी । पटरी पर सोये लोग जाग बडे दूर से दो और कांस्टेबल सीटी की आवाज सुन भागते हुए आए । उन्होंने पूछा क्या हुआ है? यह जोर है तो ले चलो । थाने अपने आप चल नहीं रहा है । अब सुंदर की समझ में आया कि यह तो व्यर्थ में ही बवाल खडा हो गया है । उसमें शांति से पूछा तुम यह किस प्रकार कहते हो कि मैं चोर हूं तो तो ऐसे समय में यहाँ क्या कर रहे हो? भाई दिन चढाया है घर से घूमने निकला हूँ, कहाँ रहते हो? इस प्रश्न से तो सुंदर घबराया वेस्टेड जी का पता देना नहीं चाहता था । इस कारण चुप कर रहा । इस पर दो नए आए सिपाहियों ने भी सुंदर का हाथ पकड लिया और एक उसकी गर्दन पर हाथ रखा । उसे धकेलने लगा । सुंदर गाँव थाने में ले आए और वहाँ पे अगर उसके हाथों में रस्सा बंदा उसको लोहे की सलाखों वाले कमरे में धकेल दिया गया । कमरे में चार पांच बोर भी बंदी थी । कमरे के कोने में एक पेशाब कर रहा था । कमरे में पेशाब की दुर्गंध भरी हुई थी । सुन्दर अभी भी विचार कर रहा था कि सेठ जी का पता बताये अथवा नहीं । किसी भी सिपाही ने दरवाजा बंद किया और दफ्तर में रिपोर्ट लिखाने चला गया । दिन के ग्यारह बजे हवालात का दरवाजा खुला और उसको अन्य बंदियों के साथ निकालकर थानेदार के सामने उपस् थित किया गया । सुंदर सबसे पीछे खडा था और सब बंदियों से पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर सुन रहा था एक आपका काना और दे दे मुख्य वाला व्यक्ति सबसे आगे था । उसको देखकर थानेदार मुस्कुराया, बंदी भी खिलखिलाकर हंस पडा । हस्ते समय उसका मुख्य अतिथि भयंकर दिखाई देता था तो तुम घर पर आराम से नहीं बैठ सकते । थानेदार ने पूछा वो जूते घर वाले घर बैठने दे तो बैठो क्या कहती है वह पांच रूपया रोज मांगती है । बताइए मैं कहाँ से दो वो पटवर्धन? उसने सिपाही को आवाज दी और कहा इसको दलेल दो एक हस्त पुष्ट सिपाही आगे बडा बंदी को पकडकर सात के कमरे में ले गया । थानेदार ने दूसरे बंदी को देखकर पूछा क्या नाम है शेरा पांच सौ का मुचलका भरो अब तीसरा आदमी आया । थानेदार ने उसको देख माते पर चोरी चढाकर पूछा तो फिर आ गए हो । वो जोर जबरदस्ती पकड लिया गया हूँ । मैं तो सादा खिदमत के लिए हाजी रहता होगा । अच्छा इस साथ वाले कमरे में चले जाओ । इस प्रकार तीन चार और बंदियों का निपटारा कर सुंदर की बारी आई । उसको देख थानेदार ने सिपाई से कहा ये है तो कोई नया पक्षी दिखाई देता है । हाँ हुजूर क्यों पकडे गए हो? उस ने सुन्दर से पूछा नहीं जानता साहब, इसकी रिपोर्ट लाओ । उसने सिपाही से का पुलिस वाला दफ्तर से एक रजिस्टर उठा लाया । उसमें लिखा था सुन्दर पुत्र साधु रहने वाला गढवाल का मरीन ड्राइव पर संदेहात्मक स्थिति में पकडा गया । थानेदार रिपोर्ट पर माथे पर चोरी चडा पुलिस वाले से बोला हराम यह भी नहीं जानते की रिपोर्ट किस प्रकार लिखी जाती है । पुलिस मान सम्मान नियुक्त मुद्रा में सामने खडा रहा । इस पर थानेदार ने कुछ विचार कर सुन्दर से पूछा कोई वाक सियत दे सकते हो । इस पर सुंदर अपने सेट का नाम बताने के लिए विवश हो गया । थानेदार ने उसी समय सेठ को टेलीफोन कर पूछा सेट यादव देव जी है क्या मैं बोल रहा हूँ आप किसी सुन्दर नाम के व्यक्ति को जानते हैं आप क्या हुआ है उसको? यह संदेहात्मक रूप में मैरिन ड्राइव पर घूमता हुआ पकडा गया है । मैं ऐसी पांडे ऐसा तो बोल रहा हूँ । देखिए वहाँ हमारा विश्वस्त कर्मचारी है । हम उस को प्रातः काल से ही ढूंढ रही है । उसे छोड दीजिए । मैं अपना एक आदमी भेजता हूँ । आप उसको उसके साथ कर दीजिएगा । थानेदार ने सुन्दर को का सामने बेंच पर बैठ जाओ । सुंदर के हाथ का रस्सा खोल दिया गया है । बैंक पर बैठ गया । उसका विचार था कि सेट जिसे हम आएंगे तो उसको समझा बुझाकर वापस ले जाएंगे । रहे वन में विचार कर ही रहा था की किस प्रकार उनसे छुट्टी मांगेगा । उसको सेठ जी के घर से निकलते ही पकडे जाने पर बहुत लग जा लग रही थी और वह कोई उपाय नहीं सोच पा रहा था । आज के अनुभव के पश्चात वह यह भी नहीं समझ सका की जेब में बिना एक भी पैसे के मैं निर्वाण किस प्रकार कर सकेगा । लगभग आधे घंटे की प्रतीक्षा के बस याद एक बडा व्यवस्था का व्यक्ति धोती कुर्ता कोर्ट काली टोपी तथा चप्पल डाले हुए थाने में आया और जेब में से एक पत्र निकालकर थानेदार को देते हुए उसने कहा मुझे यादव देश जी ने भेजा है तो वो आपका आदमी बैठा है । मैं आदमी सुंदर के पास बैलेंस पर आया और बोला तो तुम ही सुंदर हूँ । चलो मुझे सेठ जी ने भेजा है । सुंदर समझ गया कि सेठ जी ने मिलकर कोई कर्मचारी भेजा है । मैं उठकर उस व्यक्ति के साथ चल पडा । थाने से निकलते हुए उस आदमी ने पूछा तुम तो होना जा रहे थे । सुंदर ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया । थाने के बाहर सेठ जी की गाडी खडी थी । उस आदमी ने मोटर के पास खडे होकर कहा मेरा ना मोहनदास गांधी है छेड । जी ने कहा कि तुम्हारे वेतन के हिसाब में ये रुपया जमा है तो मैं इन को रख लो । इतना मोहन दास ने नोटों का एक बंडल आपने पोर्टमेन टू में से निकालकर सुंदर के हाथ में देते हुए कहा इनको भीतर की किसी जेब में रख लोग और बोलो । सेठ जी का कहना है कि तुम पूना चले जाओ, वहाँ कोई काम मिल जाएगा और कभी किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो उनको लेकिन देना अच्छा, अब तुम जाओ । बिना गिने ही सुंदर ने लोटों का बण्डल अपनी जेब में रख लिया और रेलवे स्टेशन जानने के लिए एक गाडी कर उसमें सवार हो गया रहे । अभी गाडी में बैठा ही था कि थाने के दरवाजे पर खडा एक अन्य व्यक्ति जो पोलियो कैसे कपडे पहना हुआ था एक अन्य गाडी में बैठ सुंदर की गाडी के पीछे पीछे चल पडा मोहनदास जब मिल में बहुत तो सेट ने पूछा क्या करके आए हो उस को छोडा करो गया दे उसको पूना का रास्ता दिखा आया हूँ और माधव रहे भी दूसरी गाडी में बैठकर उसके पीछे चल दिया है । ठीक है अब
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