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द्वितीय परिच्छेद बहुत तीन बाद महाराज ने ही चलाई थी । पिछले छह वर्ष से मस्जिद के तू है कि भारतीय दोबारा हो रहा था । उसे वेतन तो मिलता था परंतु उतने से उसका बनता कुछ नहीं था । ऊपर की आय का लडका लगा तो अब उसके बिना उसकी नींद हराम हो रही थी । एक दिन यह तो घटना से एक माह पहले की बात थी । महाराज ने मणीलाल को भावना की ओर लाल सपोर्ट दस्ती बात करते देखा तो छिद्र को देख उसके द्वारा अपने कार्य की सिद्धि की बात विचार करने लगा । उसी दिन उसने समय पागर मणीलाल से एकांत में बात कर दी । उसने कहा बाबू मणीलाल, मैं घर का पुराना लो करूँ । इस कारण घर की मान प्रतिष्ठा की चिंता करता रहता हूँ । अब बात को सीमापार लगती दिखाई दे रही है । इस कारण कहने का साहस कर रहा हूँ । मणीलाल ने पूछ लिया कहो ना क्या कहना चाहते हो भैया, यह सुंदर और भावना का मेलजोल घर के सब नौकरों को भला प्रतीत नहीं हो रहा । क्या खराबी मालूम हो रही है उसमें? युवा लडकी और लडके का मेलजोल भला नहीं समझा जाता तुमने उनमें किसी प्रकार की खराबी देखी है भैया हम लोग कर लोग उधर दस्ती भी नहीं कर सकते । इस पर भी हम मनुष्य है और हम भी जवान रह चुके हैं । इस कारण ऐसी स्थिति में जो स्वभाविक बात हो सकती है वह समझते हैं । मणि लाल ने उसे तो यही कहा । महाराज निराधार बातें नहीं की जाती हैं । अपने से बडों की बात परस्पर नहीं करते । महाराष्ट्र निराश हो चला गया परंतु मणीलाल के मन में चिंतन का विषय छोड गया है । यह समझे हुए था की उस की बहन ने उसे घर में इसी कारण रखा हुआ है की उसे गोद लेकर पूर्ण संपत्ति का मालिक बना देगी । परंतु गोद लेने की रसम होने में ही नहीं आती थी । अब महाराज के कहने का प्रभाव उसके मन में ये है वहाँ की यदि भावना से विवाह हो जाए तब तो गोद लेने की रसम की आवश्यकता ही नहीं रहेगी । तब स्वाभाविक रूप से भावना ही संपत्ति के स्वामी होगी और उसका पति होने से संपत्ति का भोग कर सकेगा । इस विचार से मैं अगले दिन ही कॉलेज से जल्दी लौट आया और बहन को अकेला देख उसके पास जा पहुंचा । उसने कहा, बहन मैं एक बार जानना चाहता हूँ, आप पूछो मैं यह समझा था कि तुम मुझे एक दिन गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी बना होगी । छेडछाड के मन में यह बात थी, परंतु उसने मनी लाल को यह कभी बताई नहीं थी । इस कारण उसने जिसमें प्रकट करते हुए कहा, किसी ने तुमको मोर बनाया है, मूर्ख नहीं बहन, यह मुझे अपने आप ही समझ आया था तो तुम स्वयं ही मोरक् बन रहे थे । देखो मैं बिना सेट जी की इच्छा के किसी को गोद ले नहीं सकती । सेठ जी ने पूर्ण संपत्ति भावना को देने का विचार किया हुआ है, पर बहन, लडकी व्यापार कैसे करेगी? उसका घरवाला सब काम करेगा । मैं यदि भावना से विवाह कर लो तो मैं मालिक बन जाऊंगा क्या? पर कैसे विवाह कर लोगे, यह मैं उससे निश्चय करूंगा । मणीलाल ने समझा था की वह भावना की वासना को भडकाकर, उससे विवाह की स्वीकृति ले लेगा और फिर काम बन जाएगा । इसी विचार से उसने भावना को साथ लेकर जो हूँ कि शहर के लिए जाने की योजना बनाई थी । अपनी योजना में सफल हो । वह भावना से बदला लेने की बात विचार करने लगा । उसने रतन लाल से महाराज वाली बात कह दी । उस ने कह दिया, भैया रतन लाल, यह सुंदर भावना से बहुत हेलमेल रखने लगता है । रतन लाल ने मुस्कुराते हुए पूछा तुमको यह पूरा किसलिए लगने लगा है? मैं स्वयं अपने लिए यतन करना चाहता हूँ की इस बात का यतन करना चाहते हो भावना से विवाह का, पर तुम तो उसके मामा हो । भांजी तो बेटी के समान होती है भैया यह सब गए जमाने की बातें हैं । आज नई पीढी के लोग इस प्रकार के पूर्वग्रहों से मुक्त हो चुके हैं । ठीक है परंतु चाचा और चाची तो नई पीढी के लोग नहीं है । तुम कहीं ओर ध्यान करो यहाँ तुम्हारा विवाह ठीक नहीं । मणीलाल अजीत और निराश हो अपने कमरे में जब कोई ओर योजना विचार करने लगा परंतु रतन लाल का इसमें एक अपना स्वास्थ्य था । वह भी सुन्दर की घर में बढ रही प्रतिष्ठा से संतुष्ट नहीं था । उसके मन में एक अन्य योजना थी । वह भी अपने चाचा की संपत्ति पर वक्त जबरदस्ती रखता था । पहले तो है अपने किसी लडके के होने की प्रतीक्षा में था । उसका विचार था कि लडके को चाचा चाची की गोद में देकर स्वयं संपत्ति का स्वामी हो जाएगा परंतु उसे अपने घर में संतान की प्रतीक्षा करते छह वर्ष से ऊपर हो चुके थे । बहुत से डॉक्टरों की सहायता भी ली जा रही थी । परंतु सफलता मिल नहीं रही थी । अब उसकी पत्नी सुमित्रा ने एक अन्य योजना उपस् थित कर दी थी । उसने सुझाव दिया कि उसके भाई की सगाई भावना से हो जाए तो संपत्ति का वास्तविक स्वामित्व हमारा ही हो जाएगा । यह बात अभी रतन लाल के मन में ही थी कि मणीलाल ने उप बाद आकर कही । इससे रतन लाल को संदेह हो गया कि कहीं मैं पीछे ही न रह जाए और चाची अपनी बेटी अपने भाई को ही देने की बात पक्की न कर देंगे । इस कारण उसने अगले दिन ही सेठ जी से अपने साले का प्रस्ताव कर दिया । सेठ जी ने सहर सभाओं से ही कह दिया, भावना अभी भी वहाँ के योग्य नहीं हुई । मैं समझता हूँ कि उसे कम से कम बी ए तक की पढाई करनी ही है । पर चाचा जी दब तक यदि सुन्दर से अनुचित संबंध बन गया तो नहीं बनेगा । रतन लाल चुप कर रहा हूँ परन्तु उसने समय बागर चाची से सुंदर और भावना के विषय में संदेह बता दिया । किसी बात पर सेठानी ने पति से कहा था कि सुंदर ने भावना से संबंध बना लिया है । किसी पर सेठ जी ने सुन्दर की देख रेख तीव्र कर दी थी । इस दिन खाने के समय घटना ने बात को एक किनारे पर पहुंचा दिया था हूँ ।
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