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तृतीय परिच्छेद भाग आठ अब उसको पाठकों के पत्र आने लगे थे । कई लिखने वाले उसकी प्रशंसा करते थे । कई अनेक अनेक विषयों पर उससे प्रश्न पूछते थे । कुछ ऐसे लिखने वाले भी थे जो उसकी कहानी के परिणाम से बॅायकॅाट करते थे । एक दिन बहुत ही बढिया लिफाफे में एक पत्र आया । लिफाफा खोलने पर बहुत ही सुंदर कागज पर बढिया सुलेख में पत्र लिखा हुआ मिला । सुंदर ने पत्र पडने से पहले भेजने वाले का नाम वो पता देखा यह सब देख वैसा तब रह गया पत्र भावना का लिखा हुआ था पता सेट यादव देव जी का था । कितनी देर तक वह यह विचार करता रहा की भावना उसको पहचान गई है अथवा नहीं इसका निर्णय तो पत्र पडने से ही हो सकता है और वह पत्र पडने में जिस जगह अनुभव कर रहा था वह विचार करता था कि यदि उसके पिता को यह ज्ञान हो गया कि लेखक सुंदर उनका नोकर सुंदर है तब मैं क्या करेंगे? उसने पत्र पढा लिखा था चढा साल छिपा नहीं रह सकता । उस की शीतलता, सुंदरता और सफलता सबको अनुभव होती है । जो आंखें नहीं रखते वे भी अनुभव करते हैं कि किसी प्रकार का दस संसाद उनके शरीर में हो रहा है । यही बात एक प्रतिभाशाली लेकर की है । यह तो निर्जीव चंद की भर्ती अपनी कुमुदनी का प्रसार करता है । मैं नहीं जानता कि किस किस के हर देश को कम बाडों से दीन रहा अथवा किस किस के विरह जनहित संताप को सुरभित कमल दलों की भर्ती शांत कर रहा हूँ । अनेको पाठक ऐसे भी है जो अज्ञानतावश नहीं जानते की उनमें रस का संचार भी चंद रुपये लेखक की को मोदी देती है । कई पाठक बालक की भर्ती उस साल को पकडने के लिए उछल कूद मचाने लगते हैं परंतु पकट पाना तो दूर उस दूरी में जिस पर वह रहता है कुछ कर सकना भी उसके लिए संभव नहीं होता हूँ । इस पर भी बालक हाथ बडा वो छोड जाने का यत्न करता रहता है । एक बात तो है पहचान की को मोदी है जो उस बालक के मन में बहुत उत्पन्न करती है । आपकी द्वितीय पुस्तक तो पहले से भी अधिक रूचि कर लगी कदाचित चंद की एक कला बढ गई है । इन बढती कलाओं को देख कर तो पूर्ण चंद्र की कला देखने की लालसा जाग्रत हो । ठीक है उतरोत्तर बडती कलाओं में सुंदर लेखक को देखने के लिए कुछ सकता से प्रतीक्षा करती रहती हैं । आप आगामी काला में कब युक्त होने वाले हैं? मुझे पूर्ण कल आयुक्त चंद्र को देखने की लालसा मन में भर रही है । वहाँ कला विहीन चंद्र कहाँ था और कैसे कल आयुक्त होने लगा है । जानने की इच्छा जाग पडी है । लेखक होते हैं अपना इतिहास जिज्ञासा को लिखने की कृपा करें । मैंने आपकी पुस्तकों को इतना पसंद किया है कि मैं अपनी बीसीओ सखियों को उन्हें उपहार के रूप में देख चुकी हो । मेरी प्रार्थना है कि पत्रों तार आवश्यक । वास्तव में उत्तर में एक ही बात तो जानने की इच्छा व्यक्त की है और वह है आपका संक्षिप् जीवन परिचय । उसमें इसका विशेष रूप से उल्लेख हो कि आप लेखक किस प्रकार बने । पत्र लिखने वाली भी बहुत उच्च अभिलाषाएं रखती है और एक सफल लेखक से प्रोत्साहन पाना चाहती है । भावना सुंदर को विश्वास हो रहा था की भावना के मन में अभी निश्चित नहीं है कि यह वही सुन्दर है जो उस से अंग्रेजी और हिंदी पडता रहा है । उस को संदेह तो अवश्य हुआ है । वह विचार करता था कि उसके अज्ञातवास का काल समाप्त हुआ है अथवा नहीं । इस समय उसकी तीसरी पुस्तक ड्रेस में थी मिसेज बोलने पढकर निर्णय दे दिया था कि वह पिछले दो पुस्तकों से भी बढकर है । इससे मैं यह समझने लगा था की अब है स्वतंत्र मानवयुक्त जीवन व्यतीत करने के योग्य हो गया है । अब गतल बाबू को उसके साथ बैठकर खाना खाने में अपमानित होने का कोई कारण नहीं रहे गए हैं और मैं स्वयं भी सेठ जी से हाथ मिलाने में किसी प्रकार के संकोच का कारण नहीं देखता था । इस पर भी यदि सेठ जी के परिवार के लोग उससे घृणा करें तो उसके लिए चिंता का विषय नहीं है । मैं अपनी दुनिया सर था, प्रथक बना रहा है और वह सुंदर बन रही है । उसको एक माँ मिल गई थी । अब बीवी भी मिल जाएगी । इतना विचार कर उसने से हम को छिपाकर रखने में कोई कारण नहीं समझा । उसने भावना के पत्र का उत्तर देते हुए लिखा हूँ श्री भावना देवी जी । यह जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई कि आपने मेरी दो पुस्तकें बडी और पसंद की है । इससे मेरा साहस कई गुना बढ गया है । मेरी तीसरी पुस्तक नवजीवन मुद्रण के लिए चली गई है । आशा करता हूँ की वह अगले मास आपके हाथ में होगी । रहा आपके प्रश्न का उत्तर एक ग्यारह वर्ष का बालक अल्मोडा के बस के अड्डे पर खडा सेट यादव देव विक्रम जी द्वारा नौकर रखा गया । छेड जी उसे बम्बई ले आए । नौकरी करता हुआ वो सेठ जी की लडकी से पडता भी रहा । शेष तो आप जानती है आपकी शिक्षा के फलस्वरूप भगवान की असीम कृपा से वह सुंदर और लेखक हो गया है । यह लेखनकार्य कब पूर्णता को प्राप्त होगा? कहना कठिन पूरा होता तो भगवान का गुण है । उसको कदाचित इस जन्म में प्राप्त करना कठिन होगा । आशा है आप की माता जी तथा पिताजी स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे । उन दोनों आदमियों को मेरा करबद्ध परिणाम कह देना । मैंने उनका अन्य खाया है और उनकी सुगत छाया के नीचे पलकर मैंने अद्भुत उन्नति की है । इसके लिए मैं सादा उनका आभारी रहूंगा । यदि मोदी जैसा तो उस व्यक्ति कभी उनकी कोई सेवा कर सका तो मुझको अति प्रसन्नता हूँ । भाव दिए सुंदर हूँ ।
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