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सभ्यता की ओर: तृतीय परिच्छेद भाग 3 in Hindi

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AuthorNitin
सभ्यता की ओर Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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तृतीय परिचय बहुत तीन यूनियन के मीटिंग के पश्चात डाॅ । सुंदर के साथ साथ चलता हुआ पूछने लगा बाबू! तुम्हें तो बोलने की अनुपम योग्यता है । कभी कभी हमारी मीटिंगों में चलकर भी तुम थोडी देर भाषण दे दिया करूँ कौन सी मीटिंग हमारी पार्टी की ओ कौनसी पार्टी है तुम्हारी कम्युनिस्ट पार्टी मुझको मोर बना रहे हो? करुँगा अब क्यों वोट बनाने वाली ऐसी कौन सी बात कही है मैंने मैंने कमी निगम का सिद्धांत और इतिहास पडा है । इससे मैं कहता हूँ कि विद्वान आदमी होता है जो दूसरों के होठ फडकते देख समझ जाए कि वह क्या कहना चाहता हूँ । एक मूर्खता तो तुमने मीटिंग में ही की मुझको चुप देख तो मैं पहले ही समझ जाना चाहिए था कि मैं यूनियन के अंदर सदस्यों की भांति अनपढ नहीं जो तुम्हारे अर्थहीन नारों के पीछे मरने के लिए तैयार हो जाता हूँ । तुम ने जब हाथ उठवाएं तो भी तुम को समझ जाना चाहिए था कि मैं प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हूँ । तुम ने मुझे विवस किया कि मैं विरोध का कारण बताऊँ । जब मैंने बताया तो तुम मेरी बात का उत्तर नहीं दे सके । यह जानते हुए भी कि मैं मालिक और लो कर की प्रत्यक्ष श्रेणिया नहीं मानता हूँ । किसी मालिक का अन्याय चरण उतना ही संभव समझता हूँ जितना किसी नौकर का अन्याय करना । मालिकों अथवा नौकरों के अन्याय चरों को रोकने का टंग वह नहीं जो कम्युनिस्टों के गुरु कार नॉक्स ने बताया है उसका उपाय है एक सुदृड न्याय नेस्ट, निष्पक्ष और महात्मा के न्याय से डरने वाली सरकार का निर्माण करना । ऐसी सरकार बनाने के लिए मनुष्य को विचार और कार्य करने में वो स्वतंत्रता देनी आवश्यक है । तभी एक व्यक्ति अथवा श्रेणी का नए रोका जा सकता है । सुंदर तो परीक्षा क्यों चलाते हो? तुम तो इतने योग्य हो किसी भी कारखानेदार से एक सहस्त्र महीना बेहतर पाओगे तो उन की वकालत बहुत ही योग्यता से कर सकते हो । और सो जाओ तो बहुत ही बोले हूँ । मैं स्वतंत्र रहना चाहता हूँ । इसी कारण मैं किसी की नौकरी नहीं करना चाहता हूँ । मैं किसी की वकालत करता हूँ तो इसलिए नहीं कि मैं किसी का नोकर हूँ अथवा किसी का नोकर बनना चाहता हूँ । मैं वर्तमान युग में सरमायादारों को भी उतना ही पार्टी मानता हूँ जितना मजदूर मजदूर का नाथ करने वाले मजदूर नेताओं को । दोनों एक ही भूमि की उपज है । दोनों परमात्मा के वास्तविक रूप को नये मानने वाले हैं । दोनों नास्तिक है । अतः दोनों को ही एक अधर्माचरण भागता है । सुंदर अपने घर की ओर जा रहा था । मुँह इस रहस्य में युवक के रहस्य जानने के लोग में साथ साथ चल रहा था । जब सुंदर ने परमात्मा को अपनी युक्ति में लाभ उठाया तो कृष्णराव खेल खिलाकर हस पडा । उसने कह दिया यह रिक्शा चलाने में आस्तिक अथवा नास्तिकवाद कहाँ से आ गया? जब मंदिर में जाया करो तो अपने पूरे जोर से उस बहरे को पुकार लिया करूँ, किंतु यहाँ हमारे समूह तो कम से कम इंसानों किसी बात करो । ऍम मंदिर तो मैं कभी गया ही नहीं । वहाँ जाने की मुझे कभी आवश्यकता अनुभव नहीं हूँ । इस पर भी मैं मानता हूँ कि इस ब्रह्मांड में कोई एक ऐसी शक्ति है जो सबको देखती है और सबके साथ न्याय होने के कारण रूप इस कारण मैं एक मजदूर होता हुआ भी अपनी न्याय बुद्धि को नहीं छोड दूँ । मैं जब भी कोई कार्य ऐसा करने लगता हूँ जो किसी दूसरे को हानि पहुंचाने वाला अथवा किसी दूसरे की स्वतंत्रता का हनन करने वाला हूँ तो परमशक्ति वानकी उपस् थिति को अनुभव का वैसा कार्य करने से रुक जाता हूँ । यदि मालिक अन्याय करते हैं तो इस कारण करते हैं कि उनके मन में ये है । विश्वास होता है कि उनके कामों को देखने वाला कोई नहीं है, भले ही राम नाम की माला फेरते हो । यदि उनके मन में परमात्मा के अस्तित्व पर विश्वास होता तो वह मजदूरों के हक को कभी नहीं चीन थे । सरकार की पुलिस फोर्स और कानून का धोखा दिया जा सकता है । परन्तु परमात्मा जो सर्वव्यापक सर्वान् तो यानी सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है, उसको धोखा देना कठिन । इसी प्रकार मजदूर नेता बोले वाले मजदूरों को झूठ बोल कर अपने वाक जाल में फंसाकर उनसे अन्याय करते हैं तो इस कारण कि वे समझते हैं कि मनुष्य अल्पज्ञ है, उस को धोखा देकर वे अपनी नेतागिरी कायम रख सकते हैं । यदि उनके मन में परमात्मा पर विश्वास होता तो वह ऐसा करने से डरते और वैसा कुछ नहीं कर सकते जैसा रूस के नेताओं ने हंगरी के लाखों बोले वाले लोगों को मोदी के घात उतराकर क्या क्या अपराधियों को दंड नहीं दिया जाना चाहिए? ये अपराधी थे क्या किस के विरुद्ध अपराध किया था? उन्होंने हंगरी की नियमित सरकार को उलट दिया था उन्होंने, किंतु रूस की सरकार को तो नहीं उल्टा था मैं यह है नियमित सरकार फॅस को दंड नहीं देना चाहती थी । बन्टू रूसी सेना और हवाईजहाजों ने साठ हजार हंगरी के रहने वालों की हत्या का डाली सुंदर तुम नहीं समझ सकते हैं इतनी दूर बैठे कैसे तुम जान सकते हो कि कौन दोषी था और वो नहीं ठीक है परंतु तो इतनी दूर बैठे वह सब कैसे जानते हो जो मैं नहीं जान सकता हूँ वहाँ पर गए लोगों के व्यक्तव्य पडने से पता चलता है मैं वहाँ के रूसी अत्याचार से बस का तथा भाग कर आए निर्वासितों के वक्तव्य पढकर कह रहा हूँ तो हम दोनों गलत हो सकते हैं । ठीक है इस बात को मानकर आज से जी और रूस के उदाहरण मत दिया करो । उन दोनों देशों ने बहुत उन्नति की है । किस बात में? विज्ञान में, विज्ञान से क्या करोगे? जब मानवों में मानवता ही नहीं रही वहाँ सब इतने ध्यान दीप है कि अपने मन की बात भी नहीं कह सकते । ब्लॅक की बात तो बहुत पुरानी हो गई । इस समय सुंदर लाल का घर आ गया था । एक आहते में कोई दो मंजिले मकान थे । छोटे छोटे करते डंटी और रसोई गाना साथ थे । एक ऊपर की मंजिल वाला मकान सुंदर ने लिया हुआ था । सुंदर ने एक कमरे में सोने के लिए एक लकडी की चौकी और उस पर एक चटाई बिछाई रखी थी । किसी कमरे में दीवार के साथ फूटी गड्डी थी जिसपर उसकी होती और अंगोछा तथा रिक्शा चलाने के समय के कपडे टंगे हुए थे । ताकत के पास एक छोटी सी चौकी थी जिस पर एक छोटा सा लोगों का सन दूध । उसमें मैं अपने कपडे रखता था । इस कमरे के साथ एक ओर कमरा था जिसमें लकडी के रैंक बने थे । उसमें पुस्तके तथा पडे हुए समाचारपत्र रखे थे । रैप के आगे भूमि पर एक लडाई भी चीज थी । चटाई पर एक देश था जिस पर लिखने का सवाल रखा था । सुन्दर कृष्ण गांव को अपने घर पर ले गया ऍम उसका पुस्तकालय देखने लगा । काॅल्स ऍम चले एक गाल डॅालर्स दयानंद शंकर विवेकानन्द था । ॅ लिखी पुस्तकें वहाँ भरी बडी थी । महाभारत, रामायण, उपनिषद इत्यादि ग्रंथ भी थे । यूरोप के बहुत से देशों के इतिहास के साथ साथ भारत के इतिहास के बीच कई ग्राॅस पुस्तकालय में विद्यमान थे । रैड पुस्तकों से ठसाठस भरे हुए थे । कृष्ण राव ने एक्स ले की एक पुस्तक निकली है और खोलकर देखने लगा स्थान स्थान पर उस तक में चिन्नी लगे हुए थे । जब ऍम उसके देखने लगा तो सुंदर रसोई घर में गया । वो स्टोव जलाकर चाहे बनाने लगा । कृष्णराव देख रहा था कि वह एक अति विद्वान परन्तु सादा जीवन व्यतीत करने वाले युवक के घर में आ गया है । स्थान अत्यंत ही साफ सुथरा परन्तु फर्नीचर रहित था । घर में बिजली तो लगी थी परंतु अन्य सूख सामग्री नहीं थी । जब सुंदर दो ख्यालों में चाय और विस्फोट लाया तो फॅमिली इसमें से उसका मुख देखता रह गया । उसने चाय का एक प्याला उसके हाथ से लेकर चटाई पर बैठते हुए कहा मैं नहीं जानता था कि तुम इतने पढे लिखे युवकों, वह एक सरमायादारों समाज को लानत है कि तुम जैसा विद्वान व्यक्ति रिक्शा चलाकर अपना पेट भरता है और मैं यदि किसी कम्युनिस्ट देश में होता तो आज से बहुत पहले किसी कल स्टेशन कैंप में जीवन दान कर चुका होता । तो फॅमिली देशों में ही संभव है कि एक विद्वान शिक्षा से पडता लिखता और बोलता है । रिक्शा चलाना कोई बुरी बात नहीं है । बुरी बात है अपनी आत्मा को बेचना जहाँ मैं नहीं कर रहा हूँ हूँ ।

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