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सभ्यता की ओर: तृतीय परिच्छेद भाग 2 in Hindi

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AuthorNitin
सभ्यता की ओर Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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तृतीय परिच्छेद भाग दो इस प्रकार कार्य करते हुए दो वर्ष व्यतीत हो गई । इस समय तक उसका बॅाल दो सौ रुपये तक हो गया था और एक सहस्त्र देगी । उसने पुस्तके खरीदकर बदले थी, रिक्शा उसकी हो गई थी । इस काल में एक बात और हुई थी । साइकिल रिक्शा चालक यूनियन का वह सदस्य बन गया था है । सादा ही यूनियन की मीटिंग में नियमित रूप से जाने लगा था । यूनियन का मंत्री कृष्ण राव नामक एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण युवक था । मैं पढा लिखा और मार्क्सवाद का क्या था था? यूनियन के मीटिंग्स में वह रिक्शा साल को अपने ज्ञान का प्रसाद दिया करता था । सुंदर चुपचाप बिना अपनी सम्मति दिए मीटिंग्स में बैठा रहता था । यूनियन का झगडा ट्राय ठेकेदारों से होता था । उनके विरुद्ध वे नगर पालिका के अधिकारियों से मिलकर उनके लाइसेंस जब्त करवाले अथवा उनके रिक्शा ठीक रखने और सीधे चालकों को लाइसेंस देने के विषय में कहते थे आपने इन प्रियजनों में यूनियन के अधिकारी कुछ सीमा तक सफल भी होते जाते थे । इस पर भी कृष्ण लव वायलेंट के तार की भर्ती यूनियन को सदा तनाव की स्थिति में रखने में प्रयत्नशील रहता था । सुंदर ने यूनियन के प्रस्तावों का कभी विरोध नहीं किया था । इससे ऍम उसको एक मोर संरचित सदस्य के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं समझता था । एक दिन यूनियन में यह चर्चा चली की नगर के रिक्शा के ठेकेदारों ने भी अपनी यूनियन बना ली है । उसका नाम उन्होंने रिक्शा ऑनर्ज यूनियन रखा है । इससे वे रिक्शा साल को कि यूनियन की मांगों का विरोध करने का विचार करते थे । कृष्णराव इसको एक बहन कर साल समझता था । उसमें यूनियन में प्रस्ताव पस्थित किया कि अधिकारियों से मिलकर उनको इसकी बहन करता का परिचय कराया जाएगा और इस प्रकार इस यूनियन को असंवैधानिक घोषित करा दिया जाएगा । सुंदर आज दर्शन राव की नियुक्तियों को सुनकर वो मुस्कुरा रहा था । प्रस्ताव उपस् थित हुआ और स्वीकार कर लिया गया । सुंदर ने सादा की बात ही आज भी इस प्रस्ताव का कोई विरोध नहीं । क्या बहन तू मुँह चाहता था की सब लोग हाथ खडाकर प्रस्ताव का समर्थन करें । उसने कहा यह विषय अत्यावश्यक है । यह हमारे जीवन मरण के संघर्ष का श्री गणेश हमें इस बात को सहन नहीं कर सकेंगे कि खून चूसने वाले भी संगठित हो जाए । इस कारण आरंभ में ही इसका समूलनाश करने के लिए हम को अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए प्रण करना है । मैं चाहता हूँ कि सब सदस्य हाथ खडाकर इस प्रस्ताव का समर्थन करेंगे । सुन्दर अभी भी मुस्कुरा रहा था । सबने हाथ खडे किए परंतु सुंदर तब चुपचाप बैठा रहा । कृष्ण राव है देख रहा था । इससे उसके माथे पर क्योरी चढ गई । उसने कहा एक सदस्य है जो हमारे इस संघर्ष से थक रहना चाहता है । आपका अनुमान ठीक है । सुंदर ने उसके उत्तर में कह दिया क्यो, मैं इस विषय में किसी प्रकार की भी नियुक्ति करना नहीं चाहता हूँ और था दो मोर को अपने हित ईद का भी तुम्हें कोई ज्ञान नहीं है । मुझे सब ज्ञान और जानता हूँ । मेरा हित और अहित किसमें है? हम भी सुनना चाहते हैं तो सुनो । सुंदर ने खडे होकर कहा, मैं नहीं चाहता था कि कोई ऐसी बात करूँ जिससे आप लोगों के मन में अपने संगठन के प्रति संदेह उत्पन्न होने लगे । मैं अपना और अपने सहयोगियों का यह अधिकार समझता हूँ कि हम अपने हितों की रक्षा के लिए यूनियन बनाए, अधिकारियों से मिले, उनको अपने हितों की प्रेरणा देने के लिए वकील करें । साथ ही ये सब अधिका मैं दूसरों को भी देना चाहता हूँ । उनको भी अधिकार होना चाहिए कि वे अपनी यूनियन बनाए वकील करें । अधिकारियों से मिले और न्यायसंगत यतन द्वारा अपने हितों की रक्षा करें । इससे तो अनर्थ होने की संभावना है । कृष्ण गांव ने कहा, इससे हमारा उतना ही आनंद हो सकता है जितना हमारे संगठन से उनका हम क्या आनंद कर सकते हैं । यदि मैं क्रिशन राहुल जी के कथन को दोहरा हूँ तो हम मांग कर सकते हैं कि जो चालक जिस रिक्शा को चलता है वो रिक्शा उसकी ही हो जाएगा । यदि कृष्णराव जी की यह मांग स्वीकार कर ले जाए तो इससे तो अनर्थ हो जाएगा परन्तु हमारी इस मांग को स्वीकार नहीं किया जाएगा क्योंकि यह नैसर्गिक न्याय के विपरीत है । यह भारत के संविधान के भी विपरीत है । किसी प्रकार जब रिक्शा मालिकों की यूनियन कोई न्याय और संविधान के विरुद्ध मांग करेगी तो वह मानी नहीं जाएगी था । संगठन बनाने से नए हम अगर कर सकते हैं और नहीं कोई दूसरा कर सकेगा । किसी को भी संगठित होने का हमारे संविधान में अधिकार है, इस कारण मैं इसका विरोध नहीं कर सकता हूँ । तो आप जो रोड ठगों को भी अपना संगठन बनाने का अधिकार देते हैं, जब चोरी करेंगे तो कानून भंग करेंगे । हुआ जब चोरी करने के लिए वे संगठित होंगे तो कानून इसमें हस्तक्षेप करेगा, उससे पहले नहीं । रिक्शा का मालिक होना कोई चोरी नहीं है । अपनी वस्तु को किराए पर देना भी कोई चोरी अथवा ठगी नहीं है । इस कारण ऐसा कार्य करने वालों का संगठन भी जोर अथवा ठगों का संगठन नहीं कहा जा सकता हूँ । दो वर्ष चुप रहने वाला, मुद्दों की भारतीय यूनियन की कार्यवाही को सुनने वाला तथा मूर्ख लगने वाला सुन्दर जब बोला तो कृष्णराव निरुत्तर हो गया । उसने अपनी अंतिम चार जाली और कहा रूस में ऐसे संगठन की स्वीकृति नहीं है । मैं रूसी शासन का सदस्य नहीं हूं । वे जो कुछ करते हैं वह भी मुझे पसंद है । यह कैसे जान लिया? मैं तो मानव को स्वतंत्रता तथा शिक्षा से विचरण करने वाला प्राणी मानता हूँ । उसकी स्वतंत्रता पर मैं केवल एक प्रतिबंध चाहता हूँ । वह यह है कि वह किसी भी स्वतंत्रता का विरोध ना करें । इस पर कृष्ण राव ने कह दिया इससे तो और अगर तुम बच जाएगा संसार में इतनी चीना जब होती होगी कि नर रक्त की नदियाँ रहने लगेंगी । इस पर सुंदर ने का इस सरल चित कम पढे लिखे मजदूरी कर पेट भरने वाले बेचारों को दो खा मत दो सौ जाओ मैं पूछता हूँ बताओ ऐसा कौन सा काम है जो अनर्थकारी हो परन्तु किसी दूसरे की स्वतंत्रता हनन नहीं करता हूँ । बताओ मैं तुमको चैलेन्ज करता हूँ है कोई ऐसा काम ऍम राव विचार करने लगा । उसको सुब देख यूनियन के अन्य सदस्य उसका मुख देखने लगे । इसपर सुंदर ने अपनी बात कह दी रिक्शा ओनर्स की अपनी यूनियन बनाना किसी भी दूसरे की किसी भी प्रकार से स्वतंत्रता नहीं । चिंता इस कारण उसके बनाने में मुझ को कोई आपत्ति नहीं है । जब यूनियन किसी प्रकार की कोई ऐसी बात करेगी जो हमारी अथवा किसी अन्य की स्वतंत्रता छीनना चाहेगी तो मैं आपको कहूंगा की उनकी इस बात का विरोध किया जाए । इस पर कृष्णराव बोला बात यह है कि हमारी सरकार सरमायादारों की सरकार है जिससे हम नहीं चाहते की सरमायादारों की यूनियन बने जिससे सरकार को हम पर अन्याय करने का बहाना मिल जाएगा । फिर वही धोखाधडी की बात भारत में सरमायेदारों की सरकार नहीं है । यह भारत के रहने वालों की सरकार है । प्रत्येक इक्कीस वर्ष से बडी आयु वाले को सरकार बनाने में राय देने का पूरा अधिकार है । इस कारण जो भी सरकार बनती है रहै । भारत में रहने वाले प्रत्येक मनुष्य की सरकार है । यदि वहाँ कम्युनिस्ट सरकार नहीं तो वह इसलिए कि जनसाधारण कम्युनिस्ट नहीं, पहले उनमें प्रचार करो । मुँह समझ गया कि सुंदर को जैसा समझता था, वैसा नहीं है । इस कारण उसने नीति से काम लेने की सोची और बोला, अच्छा छोडो इस बहस को क्या मैं यह समझो कि यह प्रस्ताव निर्विरोध स्वीकार हो गया है? इस पर एक साला कहने लगा नहीं साहब, अब हमको सुंदर वालों से कुछ और पूछना है । हम उनकी स्पष्ट सम्मति चाहते हैं कि वे क्यों इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं है । कृष्णराव नहीं चाहता था कि सुंदर को कुछ और अधिक कहने का अवसर दिया जाए तो उसने कहा, सुंदर बाबू को जो कुछ कहना था, मैं कह चुके हैं । इस पर एक अन्य साला कहने लगा, हम सुन्दर बाबू से पूछते हैं कि क्या वह और कुछ नहीं कहना चाहते हैं? विवस सोनावने सुंदर की ओर देखा तो संदर्भ पुणे उठकर कहने लगा, साथ ही हो, मैं यह समझता हूँ के रिक्शा के मालिकों की यूनियन बनने से हम को कुछ भी हानि नहीं होगी । हाँ, यदि हम कुछ बुद्धि से कम लेंगे तो इससे लाभ हो सकता है । कितने ही रिक्शा चलाने वाले रिक्शा के मालिक भी है, वे सब उनकी यूनियन के भी सदस्य बन सकते हैं । मैं स्वयं ऐसा ही करने जा रहा हूँ । मेरे साथ आप में से वे व्यक्ति जो मालिक और साल लग दोनों है उस यूनियन के सदस्य बन जाएगा । इस स्थिति में हम उनको किसी प्रकार का भी अन्याय करने से सफलता के साथ रोक सकेंगे । साथ ही हो मैं मालिक और नौकर में कोई ऐसी रेखा नहीं मानता जो पार नये की जा सके । अनेको लोकर मालिक हो गए हैं । इस कारण हम भी मालिक हो सकते हैं । उनके विरुद्ध कारण गहना करना अपनी उन्नति की निंदा करना है । इसके पश्चात डाॅ को अपना प्रस्ताव स्वीकार कराना कठिन हो गया । सवा विसर्जित हो गई हूँ हूँ ।

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सभ्यता की ओर Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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