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सभ्यता की ओर: चतुर्थ परिच्छेद भाग 7 in Hindi

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321 Listens
AuthorNitin
सभ्यता की ओर Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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चतुर परिच्छेद बहुत साहब तीन चार दिन में अपनी पुस्तकों को भेजने का कार्य समाप्त कर और शेष पुस्तकों का स्टोक अभी पूना नए भेजने के लिए कह सुंदर पूरा लोट आया । होना पहुंच अपने कार्यालय को समझाते हुए । अगले दिन वह अपने बम्बई जाने का निर्णय बताने के लिए विशेष बॉल के पास गया । मिसिस बोलने पूछा, कहाँ गए थे सुंदर मैं तुम्हारे घर पर गई थी, जो मदद क्या कुछ काम था? हाँ, तुम से बहुत कुछ विचार करना था । यहाँ एक नई परिस्थिति उत्पन्न हो गई है । क्या बात है? नौकरी छोड दी है क्या? हाँ, कैसे जाना? तुमने लगभग एक माह हुआ । जब मैं पिछली बार मिलने आया था तो स्कूल का मैनेजर मिस्टर फॅस थित था । मैंने देखा था कि वह एक विचित्र ढंग से आप की ओर देख रहा है । मेरा अनुमान था कि आप से प्रेम करने लगा है । आप विवादों करेंगे नहीं और इससे आपका उस मैनेजर के अधीन कार्य करना कठिन हो जाएगा । सुंदर तुमने ठीक समझा है । पहले तो मुझे घूर घूरकर ही देखा करता था । कुछ दिनों से वह मेरा अपमान करने पर तुला हुआ प्रतीत होता है । एक दिन मेरी उस से बात हो गई है तो मुझ पर बलात्कार करने के लिए आया प्रतीत होता था । फिर न जाने उसके मन में क्या विचार आया कि मुझे तुमसे अनुचित संबंध रखने का आरोप लगाने लगा । अंत में बोला कि मैं उस से भी संबंध बना लो, अन्यथा मेरे विरुद्ध आरोप लगाकर मुझे बदलाव कर स्कूल से निकलवा देगा । और फिर लार्ड डिश अब को कहकर मुझे धर्म चिप घोषित करा देगा । मैंने उसे एक सप्ताह का समय मांगा है । मैं तो उसी दिन ही यह स्थान छोड तुम्हारे साथ रहने के लिए गई थी । परंतु तुम वहाँ थे नहीं । मैं नित्य जाकर पता करती रहती थी । ईश्वर का धन्यवाद है कि तुम समय रहते ही आ गए हो, अन्यथा तो तुम्हारे घर का ताला तोडकर । मैं वहाँ घुसकर रहने का विचार कर रही थी । अब तुम आ गए हो और मैं त्यागपत्र देकर यहाँ से तुरंत चली जाना चाहती हूँ । मैं जानती हूँ कि तुम्हारी आर्थिक दर्शा अभी बहुत अच्छी नहीं है । इस पर भी मैं तुम्हारे का रेलेवे चपरासी का काम तो कर ही सकती हूँ । आशा करती हूँ कि आपने बहुजन भर के दाम का काम कर दिया । करूंगी मदर मैं परमात्मा पर आगाध विश्वास रखता हूँ । इससे अपनी आत्म की प्रेरणा का अनुसरण करता हुआ शेष परमात्मा के अधीन छोड देता हूँ । आपको यहाँ से कब छुट्टी होने वाली है । मैनेजर में कह दिया है कि जब चाहूँ यहाँ से जा सकती हूँ तो ऐसा करिए । कल यहाँ से सामान उठवाकर मेरे घर चली चली । शेष वहाँ पर विचार कर लिया जाएगा । मिसेज बॉल जिसमें में सुंदर का मुख्य देखती रह गई । इस पर सुंदर ने अपने भावी जीवन के कार्यक्रम के विषय में बताते हुए कहा मैं मुंबई जाकर रहने का निर्णय कराया हूँ । ये हैं कारोबार भी वही ले जा रहा हूँ । मैं तो एक दो दिन में ही यहाँ से चला जाऊंगा । यदि आप मेरे काम की देखभाल करेंगे तो कारोबार योग्य वहाँ स्थान मिलते ही आप को भी वहां बुला लूंगा । मेरे इस व्यवसाय में जितना प्रकाशन का भाग है, मैं आप ले लीजिएगा । यदि इससे भी निर्वाण हो सका तो बम्बई में और भी प्रबंध हो जाएगा । मुंबई घूमना की अपेक्षा महंगा स्थान हम दोनों का निर्वाह वहाँ पर इस व्यवसाय से हो सकेगा क्या? इस पर सुंदर ने सेट यादव जी से अपने संबंध की पूर्ण घटना सुना दी । साथ ही भविष्य में बनने वाले संबंध का वर्णन कर दिया । माॅल इससे बहुत ही प्रसन्न हुई । उसने कहा तब तो ठीक है । यह तो हम पर प्रभु की कृपा दृष्टि का सूचक है । इसके पश्चात अगले दो दिन बम्बई जाने की तैयारी में और मिसेज बॉल को व्यवसाय की कुछ बातें समझाने में व्यतीत हो गए हैं । सुंदर ने मिसेज बोल को अपने बैंक का अकाउंट ऑपरेट करने का अधिकार दे दिया । साथ ही उसको छोडो आने पर माल भेजने के विषय में सब समझा दिया । तीन दिन में मैं मुंबई जा पहुंचा । निःशेष बोल अब उसके घर में जाकर रहने और उसके कारोबार की देखभाल करने लगी । मुंबई में सुंदर की प्रतीक्षा की जा रही थी । मैं सेम सेठ जी के मकान में रहने लगा और मिल में लेबर वेलफेयर ऑफिसर का कार्य संभालने लगा । पहले दिन उसने सेठ जी को मिसिज बोल के विषय में और अपने उससे संबंध के विषय में बताकर अपना प्रकाशन कार्य उसके आदेश छोड आने की बातें बता दी । सुंदर ने बताया वे मुझसे माँ का साथ नहीं रखती है । जब प्रकाशन विभाग के लिए बम्बई में स्थान मिल जाएगा तो वह यहाँ आकर उस व्यवसाय की देखभाल करेंगे । अच्छी बात है यदि वे तुम्हारी माँ तुल्य है तो उनके लिए भी इस घर में स्थान बनाना होगा । इस विषय में भी मैं किसी अन्य के आधीन होने वाला हूँ । मैं समझता हूँ कि उस की इच्छा ही सर्वोपरि मानी जानी चाहिए । यह तो होगा ही । मैं समझता हूँ की भावना को इससे सुख ही मिलेगा । यदि वह उसकी सास का स्थान ले सके तब इस अभाव की पूर्ति भी हो जाएगी । मिल का कार्य इतना सुगम नहीं था जितना सुंदर समझता था । एक और उसको कर्मचारी यूनियन के अधिकारियों से संबंध बनाना था और दूसरी ओर लेबर विभाग के सरकारी अधिकारियों से पहले ही दिन कर्मचारी यूनियन के मंत्री बहुत लंबी थोडी बातें हुई । यूनियन के मंत्री का कहना था, आप हमारे कार्यों में हस्तक्षेप करेंगे तो झगडा होगा । क्या काम है आपका मिल में काम करने वाले छोटे दर्जे के कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना और ऊंचे दर्जे के कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना क्यों नहीं नहीं, वह हमारा काम नहीं है तो वे नौकर नहीं है । क्या यह है बात नहीं । वे इतना वेतन पाते हैं कि उनको रक्षा की आवश्यकता ही नहीं । क्या वे नौकरी से निकाले नहीं जा सकते हैं? हमारा उनसे संबंध नहीं है । वे अपने विषय में स्वयं सोचकर प्रबंध करने की योग्यता रखते हैं । देखिए, आपकी जो इच्छा हो करिए, मैं आपको विवस नहीं करता हूँ की आप किसको अपनी संस्था का सदस्य बनाएगा और किसको नहीं परन्तु मैं यहाँ पर काम करने वाले नौकरों के ही तो और उनकी भलाई का ध्यान रखने के लिए नियुक्त हुआ हूँ । इस कारण यदि आप ऊंचे दर्जे के नौकरों को अपनी यूनियन में संबंधित करना नहीं चाहते तो मैं उनको अपनी एक पृथक यूनियर बनाने के लिए कहूँगा । जब उनकी यूनियन बन गई तो उस को भी मान्यता मिलेगी और दोनों यूनियनों का समान अधिकार हो जाएगा । इस प्रकार सुंदर ने उसी दिन मैनेजर, इंजीनियर, क्लर्क इत्यादि को बुलाकर उनकी एक पृथक यूनियन बनाने का प्रस्ताव कर दिया । इसी समय हाईकोर्ट का निर्णय भी सुना दिया गया । न्यायाधीशों ने अपने निर्णय में लिखा था साल से बोर्ड के निर्णय को दोनों पक्षों ने मान लिया था परन्तु पीछे यूनियन की ओर से अपील की गई । इस पर मिल के मालिकों की ओर से यह प्रार्थना की गई की जब साल से के निर्णय को एक पक्ष नहीं मानता हूँ तो दूसरे पक्ष को भी उसके विरुद्ध अपील की स्वीकृति दी जाएगी । यहाँ सर्वथा युक्तियुक्त थी । अतः साल से बोर्ड के पूर्ण निर्णय पर उनको अवलोकन की स्वीकृति दे दी गई । दोनों पक्षों के झगडे के आदि और अंत पर बहस हुई । दोनों पक्षों को सुनकर जजों को साल से बोर्ड के निर्णय पर जिसमें हुआ साल सी बोर्ड ने सुलह कराने वाले बोर्ड का काम किया था । किंतु दोनों बोर्डों के कार्य भिन्न भिन्न थे । जब सुलह कराने वाला बोर्ड सोलह नहीं करा सका तो फिर साल से बोर्ड का करते हो गया था की न्याय और कानून के आधार पर निर्णय देता । उसका काम सुलह और लेन देन की बात करने का नहीं था । साल सी बोर्ड न्यायकर्ता था, सुलह करता नहीं । फैसले में यह कहा गया । साल से बोर्ड ने यह मानना है कि हडताल नियमित थी । यदि नियमित थी तो हडताल के समय का कुछ भी वेतन दिलवाला अन्याय संगत है । यदि साल से बोर्ड कर्मचारियों पर दया करने का विचार रखता था तो उसको यह मामला उन्हें सुलह कराने वाले बोर्ड के पास भेज देना चाहिए था । न्यायकर्ता दया करता नहीं हो सकता । दया करना राष्ट्रपति का कार्य है, एक न्यायालय का नहीं । लेबर नियमों में दया और नीति, लाभ और हानि इत्यादि का विचार करने का अधिकार सुलह कराने वाले बोर्ड को है, साल से बोर्ड को नहीं । साल से बोर्ड का निर्णय की हडताल के तीन वास का वेतन कर्मचारियों को दिया जाए किसी कानूनी आधार पर नहीं है । अतः हमारा यह निर्णय है की हडताल के दिनों का वेतन कर्मचारियों को जो काम से अनुपस्थित थे, नहीं दिया जाना चाहिए । जो वेतन साल से बोर्ड के वैज्ञानिक आज्ञा से कर्मचारियों को मिला है उसको वापस पाने के लिए मालिकों को कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है । कर्मचारियों की नौकरी उस दिन से छूट गई समझी जाएगी जिस दिन मालिकों के काम पर आने के लिए नोटिस की तिथि समाप्त होती है । यूनियन का मंत्री कह रहा था कि हाईकोर्ट के निर्णय की अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने करनी चाहिए । इस पर लेबर ऑफिसर का कहना था की उस अवस्था में मालिक किसी प्रकार की भी रियायत करने को तैयार नहीं होंगे । परिणाम क्या हुआ की पुरानी यूनियन के अधिकांश सदस्य नवीन यूनियन में सम्मिलित हो गई । पुरानी यूनियन में केवल वही लोग रह गए जो कम्युनिस्ट पार्टी के भी सदस्य इन सब प्रकार की बातों में छह मास लगे । सुंदर के निरंतर एक दिशा में काम करने का परिणाम क्या हुआ कि यूनियन बन गई जिसमें मैनेजर से लेकर भंगी तक सब सम्मिलित तो इसमें कुछ पढे लिखे, समझदार और संपन्न व्यक्तियों के आ जाने से यूनियने एक विचारशील संस्था बन गई । इस अवधि में पारिवारिक परिवर्तन भी हो रहे थे । सेट यादव जी ने अपनी लडकी भावना का विवाह अपनी मिलके वेलफेयर ऑफिसर सुंदरलाल के साथ कर दिया । मुँह बॉल जो वासंती देवी के नाम से विख्यात थी, सुंदरलाल की माँ समझी जाती थी । मेंहदी सेठ जी के घर में ही रहती थी और फोर्टी एरिया में एक गोदाम लेकर उसमें प्रकाशन का कार्य करती थी । सुन्दर की तो वर्ष में एक दो पुस्तकें ही तैयार होती थी परन्तु वासंती देव ने अपने प्रबंध से प्रकाशन कार्य को बहुत उन्नति दी । छः मास में ही उस विभाग में आठ नई पुस्तकें प्रकाशित हो गई थी । जब सुंदर और भावना का विवाह हो गया तो सेठ और सेठानी तीर्थ यात्रा के लिए चल पडे । उनका यह निश्चय था कि वे पांच से मिल नित्य पैदल चलकर यात्रा करेंगे । उनका अनुमान था कि देश के सब तीर्थ स्थानों की यात्रा में तीन वर्ष लग जाएंगे । एक दिन सुंदर अपनी पत्नी भावना और माँ वासंती देवी को अपने बाल्या का और बाबा तथा फूफा फूफी की बातें सुना रहा था । इस पर वासंती देवी ने पूछा, सुंदर क्या तुम्हारा अपने जन्म भूमि और फूफा फूफी को देखने के लिए मन नहीं करता हूँ । वहाँ करता तो है परन्तु मैं हम को उस तैरने वाले की भर्ती पाता हूँ जो नदी की मजेदार में पढ रहे पॉवर में फस गया हूँ । मैं भवर से निकलना चाहता हूँ परन्तु भवर मुझको परिधि से बाहर नहीं निकलने देता हूँ । इस पर वासंती देवी ने कहा मेरी तो इच्छा है कि दो सप्ताह की छुट्टी लेकर यहाँ से चले हवाई जहाज से दिल्ली वहाँ से मोटर में अल्मोडा, अल्मोडा से गोरों पर अपने अपने गांवों को वहाँ एक एक दिन रहकर दो सप्ताह तक नोट आएंगे । वासंती देवी के इस कार्यक्रम से तो भावना ने इस यात्रा में विशेष रुचि लेना प्रारंभ कर दी । उसने अपने पति से कुछ अधिक पूछताछ किए बिना तैयारी कर दी । एक मोटर ड्राइवर के साथ पहले ही दिल्ली भेज दी और निश्चित तिथि को जिसकी सूचना सुंदर को एक सप्ताह पहले दी गई थी । सब लोग प्रात पांच बजे के हवाई जहाज से चलकर आठ बजे दिल्ली पहुँच गए । वहाँ रहता का अल्पहार ने मोटर में जो उनके लिए एयर ड्रम पर बहुत ही हुई थी । सवार हो रात में नैनीताल पहुंच गए । वहाँ आराम कर अगले दिन मध्यान तक अल्मोडा और वहाँ से घोडे कर वे लोग कैलाश के मार्ग पर जा पहुंचे । पहले वासंती का गांव आया । वहाँ तो वासंती की जान पहचान का कोई व्यक्ति नहीं था । उसको घर छोडे । पच्चीस वर्ष से ऊपर हो चुके थे । उसके गांव में दिनभर आराम करके वे आगे बढे । उसी दिन साईका वे उस स्थान पर पहुंचे जहाँ सुंदर के फूफा की कुटिया को खुद डंडी जाते थे । पगडंडी अभी अभी बनी थी उस स्थल पर जहाँ से पगडंडी आरंभ होती है । अस्त होते सूर्य के प्रकाश में दो व्यक्ति खडे अल्मोडा की ओर देख रहे थे । इनमें एक पुरुष था दूसरी स्त्री एक पहाडी मोड के घुमाव पर ये दोनों खडे उसी ओर जिधर से आ रहे थे, देखते दिखाई दिए । सुंदर को इस स्थल की भली भारतीय पहचान थी । वह पहाड पर के तीनों को पहचानता चला जाता था । उसका विचार था की पगडंडी को ढूंढने से कस्ट होगा और वह पगडंडी प्रयोग ने आने के कारण प्राइम मिट्टी गई हूँ । जब उसने एक स्त्री पुरुष को वहाँ खडे देखा तो उसको संदेह हुआ कि कहीं पे, उसके फूफा फूफी हो । उसने घोडा खडा कर दिया । इस पर साथ रहने वालों ने भी घोडे रोक दिए । दे भी पगडंडी के स्थान से आधे फरलांग के अंतर पर थे । सुंदर ने ध्यान से देखा तो उसको अपना संदेह ठीक प्रतीत हुआ । पुरुष मिला फटाक परन्तु आईएनए की वर्दी वाला कोट पहने हुए था । सुंदर ने वासंती देवी से कहा हूँ हाँ देखो वे मेरे संबंधी प्रतीत होते हैं परन्तु ये यहाँ क्या कर रहे हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारी प्रतीक्षा हो रही है । मेरी क्या है? कैसे हो सकता है? सुंदर ने घोडे को तेज कर दिया । इस पर भावना और वासंती देवी ने भी गोडे तेज कर दिए । दोनों पहाडी इन गोडो वाता देख उत्सुकता से इन की ओर देखने लगे थे । ये समझ रहे थे कि ये कोई यात्री है । कदाचित रात को वहीं डेरा लगाएंगे । वे मन में विचार कर रहे थे कि इनकी वे क्या सेवा कर सकेंगे । इस समय तक वे गोड सवाल उन के समीप आकर खडे हो गए । अब तक सुंदर ने उनको पहचान लिया था इसलिए बारह वर्ष में वे बहुत बोले और दुबले हो चुके थे । दोनों के बाद सर था शहीद हो चुके थे । मुख पर जूरियां पड गई थी । कपडे तो फटे पुराने धेहि सुंदर में थोडे से उतरते हुए आवाज दी बुआ बुआ मैं हूँ । सुंदर आवाज सुनकर दोनों उसकी ओर लपके दे । उसको पुकारने का यत्रों कर रहे थे । परंतु मुख से आवाज नहीं निकल रही थी । सुंदर ने आगे बढकर फूफा और बुआ के चरण स्पर्श कि परन्तु उन्होंने उसको उठाकर गले से लगा दिया । तीनों बिना कुछ बोले बार बार गले मिलते थे । उनकी आंखों से सतत आंसू बह रहे थे । इस समय तक वासंती और भावना भी घोडों से उतर समीप खडी इस क्रेमिलन के दृश्य को देख रही थी । सुंदर के फूफा और गोवा वहीं पगडंडी पर बैठ गए और सुंदर को आपने समीर बैठा प्यार देकर पूछने लगे तो कहाँ गए थे बेटा? इस समय सुंदर ने अपनी पत्नी का परिचय कराना उचित समझा । उसने कहा बुआ यह देखो तुम्हारा बहु है ना । भावना अभी तक खडी थी । इस कारण सुंदर की बुआ उन्हें खडी हो । बहु को समीप खुला उसके मुख पर देखने लगी । भावना इस निरीक्षण से बचने के लिए जो कर चरण स्पर्श करने लगी । सुंदर की बुआ ने उसको उठाकर सिर पर हाथ रखकर प्यार देते हुए कहा दे टी आंखों में आंसू होने से भली प्रकार दिखाई नहीं दे रहा था । किसी से समीर से देखने लगी थी कि सुंदर की बहु कैसी है । सुंदर बहुत वो बहुत सुन्दर ले आए हो, कहाँ से लाए हो इसका कुछ उत्तर न देते । सुंदर ने कहा बुआ उधर देखो ये है मेरी माँ है बीज राओ बहन तुम को भी देखो । वासंती ने इस पर हाथ जोडकर परिणाम कर दिया । हुआ अब नीचे चले हम सब घर में ठहरेंगे । आओ बेटा सोमेर स्वागत करते हुए कहा । सुमेर ने बताया सुंदर जिस दिन से तुम गए हो हम तुम्हारे लोट आने की आशा लगाए हुए थे । ये गोरे ईसाई आपने धन और वाकचातुर्य से ऐसा मोजा डालते हैं कि वहाँ फसा व्यक्ति फिर निकल नहीं सकता है । परंतु मेरा विश्वास था कि हमारा सुंदर इतना बुद्धू नहीं होगा और आखिर भगवान में हमारी प्रार्थना सोने ही ली । हम नित्य साइकल उस मुख्यमार्ग पर जाते थे और कितनी ही देर खडे हो तुम्हारी प्रतीक्षा किया करते थे । युग बीत गया है बेटा ऐसा करते हुए परंतु उस प्रभु को धन्यवाद है कि तुम हमको भूले नहीं, तुम आ गए हो । अब हम प्रभु के घर जाने की सोचेंगे । तुम्हारी प्रतीक्षा थी वह पूर्ण हुई । उस रात को कोई नहीं सोया । सब सोम और उसकी पत्नी की इसने मेरी वाणी सुनते रहे । सुंदर ने भी अपनी बारह वर्ष की पूर्ण का था सुना दी । कुटियां बहुत मजबूत बनी थी । सुमेर में अपने संसार के ज्ञान से उसको टिया में कुछ सुधार ही किया था । सब के लिए भूमि पर बिस्तर लगा दिए थे । परंतु किसी को सोने में रूचि नहीं । चांदनी रात थी । भावना और वासंती फुटिया से बाहर एक पत्थर पर बैठ जानने के प्रकाश में उस पहाडी स्थान की सोवा देखती रही हैं । सूर्य की लालिमा दिखाई देने लगी थी । भीतर तीनों बातें करते करते चुप हो गए थे । वे बैठे बैठे ही सो रहे थे । भावना और वासंती अब भीतर आई और कम्बल ओढ हो गए । सुंदर की उत्कट इच्छा थी कि वह अपनी बुआ और फूफा को बम्बई ले चले परन्तु वे दोनों जाने के लिए तैयार नहीं हुए । उनका एक ही उत्तर था अब हमारा अंतकाल समीर है । बेटा हमें शांति से यही मरने दो, तुम जाओ जब तुम अगली बार यहाँ होगे तो तो मैं यहाँ हमारे स्थान पर हमारे कंकाल ही पडे मिलेंगे । तीन रात वहाँ रहकर मुंबई से आई मंडली लोट गई जाने से पूर कपडे, कंबल और अन्य सूप सुविधा का सवाल जो कुछ भी वे रखते थे और उनके काम किए थे, दे गए जाने से पूर्व सुंदर ने कहा, फूफा, मैं एक वर्ष के पश्चात ठहराऊंगा । जब तक अपने मन को मुंबई चलने के लिए तैयार कर रखना है, मैं तब आपको साथ ही ले चलूँगा । सुमेर ने कहा सुंदर भगवान तुम्हारा वाला करें । अपने जैसे ही बाल बच्चों के पिता बन दीर्घ जीवन व्यतीत करो । अब यहाँ आना हम नहीं मिलेंगे । लोटते समय भावना ने अपना अनुमान बता दिया । उसने कहा ऐसा प्रतीत होता है कि आपके फूफा और बुआ को मैं भली प्रतीत नहीं हूँ । नहीं भावना । कल नदी के किनारे बैठे बैठे बुआ ने कहा था सुंदर तो इतने बडे आदमी हो गए हो कि हम जंगली जो खाने का ढंग जानते हैं । मैं पहनने का तुम्हारे साथ आकर तुमको लज्जित करना नहीं चाहते । तुम जाओ और सुप से अपना जीवन यापन करूँ । ये अपने को ऐसा सब समझते हैं । वासंती ने पूछ लिया, मैं इसके विपरीत ही समझ रही थी । हम नगर निवासी, धन और भोगविलास के पीछे भागने वाले उनसे कहीं अधिक है, सब है । ये निर्धन कहे जा सकते हैं । परन्तु ऐसा तो है नहीं । देखो सुंदर । उन्होंने इन तीन दिनों में एक दिन भी नहीं पूछा कि तुम ईसाई हो गए हो अथवा हिंदू ही हो । वे तुम को अपना भतीजा मातृ समझते तथा मानते रहे हैं । भावना ने बताया, आपकी फूफी मुझसे कल कह रही थी बेटी सुंदर को प्रसन्न रखना । हम तो इस देखभाल का प्रतिकार तुमको दे नहीं सकेंगे परंतु भगवान तुमको उसकी सेवा का फल देगा । अल्मोडा पहुंचते वासंती ने कहा सुंदर हम वापस तो चल रहे हैं परन्तु मेरे मन में शांति नहीं हो रही है इसलिए क्या यहाँ से जाने का चित नहीं करता हूँ? हाँ, मुझे यह स्थान देख अपना बाल्यकाल स्वर्ण हुआ है । यह भी उस समय पिता के घर में इतनी सुख सुविधा नहीं थी जितनी अब मुंबई में है । परंतु यहाँ का वातावरण, ये पहाड और यहाँ का सब कुछ ऐसा जाना पूजा प्रतीत होता है कि इन को छोडने का चित नहीं करता । सुंदर हस पडा और बोला मदद तो यही रहे जाओ मेरे फूफा के पास रहना चाहूँ तो तुमको यहाँ मकान बनवाकर दे सकता हूँ । साथ ही खाने पीने का प्रबंध कर सकता हूँ । जब यहाँ रहते रहते मन ऊब जाए तो पत्र भेज देना मैं आकर तुमको ले जाऊंगा । बात तो ठीक है । ये वृद्ध जल्दी इसमें सुख अनुभव करेंगे । इस पर भावना ने कह दिया पर मदद मैं तो कुछ और ही विचार कर रही हूँ । क्या मैं समझ रही हो कि हम कितने स्वार्थी जीव है की इतनी दूर से आकर भी इनको साथ नहीं ले जा रहे हैं । देखिए अब भावना ने सुन्दर की ओर मुखकर कहा बारह वर्ष से ऊपर हो गए हैं । आपको घर छोडे हुए विचार कीजिए कि बाहर वर्ष से वे नित्य पगडंडी से सडक तक आकर आपकी राह देखते रहे हैं और आप आए और तीन दिन तक रहकर चल दी । पर हमने उन्हें कहाँ तो था कि वे हमारे साथ बम्बई चले । उन्होंने से हम ही वहाँ जाने से इंकार किया है । भावना क्या की तरह हो रही थी? उसने कहा, मैं समझती हूँ कि हमने बाली बातें नहीं कहा । हमारे अपने मन में ही चोर प्रतीत होता था कि वे ऐसा बोलते हैं और हम उनसे संपर्क रख है । सब माने जाएंगे । मेरा तो चित्र करता है कि कल फिर लोट वहाँ पहुँच जाऊं और फिर उन को साथ लेकर ही चले और यदि वे नहीं माने तो सुंदर का प्रसिद्ध था । कैसे नहीं मानेंगे? मैं वहां धरना दे दूंगी और कहत होंगी की यदि वे नहीं चलते तो मैं उन के द्वार पर अनशन कर प्राण त्याग दून सुंदर गंभीर विचार में मग्न हो गया । उसे मोंदे वासंती ने कह दिया, बेटा सुंदर अब तो देर हो गयी है । कल फिर वहाँ चलना चाहिए । उनके लिए पालकी का प्रबंध करके ले चलना चाहिए । यह निश्चित हो गया । सुंदर इत्यादि अल्मोडा में पाइंट होटल में ठहरे हुए थे । उन्होंने डैड को कहकर दो डांडियों का प्रबंध कर बहुत प्राप्त है उस सडक पर भेज दिया जो वहाँ से कैलाश हो जाती थी । उनका अनुमान था कि डांडी वाले सांयकाल तक वहाँ पहुंच जाएंगे । वे सेम गोडो से प्रातःकाल बाहर ले चल पडेंगे । वे लोग साढे चार बजे तक उस स्थान पर जा पहुंचे जहां चार दिन पूर्व उन्होंने वृद्ध और वृद्धा को दक्षिण की और मुख्य खडे देखा था । आज वहाँ कोई नहीं था । सुंदर और दोनों ओरतों ने घोडों से उतर उनकी लगा में पकड ली और पगडंडी से नीचे उतरना आरंभ कर दिया । वेज इसमें कर रहे थे कि जो पडा सूनसान क्यों प्रतीत होता है । सुंदर झोपडी के बाहर बहुत उत्सुकता से बुआ को मुकाबले लगा । जब भीतर से कोई उत्तर नहीं आया तो वह भीतर घुस गया । भीतर जा वहाँ व्यवस्था देख मैं स्तब्ध रह गया । उसने भावना आवाज दे दी । भावना भावना भी तो आ रहा हूँ । दोनों ओर भीतर गयी तो उन्होंने देखा कि वे रद्द और वृद्धा चटाई पर एक दूसरे के गले में बाहें डाले बडे हैं । इस प्रकार लेटे लेटे ही दोनों के प्राणांत हो गए हैं । दोनों शवों के मुख पर संतोष की मुद्रा प्रतीत होती थी । उन को देखकर यही कहा जा सकता था की दोनों किसी अति शुभकर्म को सम्पन्न कर ऍसे सो रहे हैं आपने सुनी गुरूदत्त लिखित सब रहता कि को असम सुने जो मनसा हूँ हूँ ।

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Sound Engineer

सभ्यता की ओर Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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