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सभ्यता की ओर: चतुर्थ परिच्छेद भाग 4 in Hindi

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AuthorNitin
सभ्यता की ओर Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त Voiceover Artist : Ramesh Mudgal
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है । चतुर परिच्छेद बहुत चार । इसके पश्चात सेट यादव ने अपने भाई को पत्र नहीं लिखा और न ही उसके भाई ने अपने मन की बात उसे लिखी । इतने बडे घर में शून्यता का आवास हो गया । मणीलाल को छात्रावास में प्रविष्ट करा दिया गया था और वह मास में एक आध बार ही अपनी महीन से मिलने आता था । मणीलाल की पढाई और छात्रावास का व्यस्त सेट यादव ही वहन करता था । इसके अतिरिक्त उसकी बहन उसको अपने पास है । कुछ रुपये जेब खर्च के लिए दे दिया करती थी । घर में पूरा महाराज रसोई की बनाई थी वहीं बाजार से वस्तुएं लाया करता था । इस प्रकार छह वर्ष के पश्चात बोले उसके भाग्य का सीतारात समझ उठा था । रतन लाल बॉम्बे क्लब का सदस्य था । वहाँ उसका मेलजोल ब्राय सभी सरकारी अधिकारियों से होता रहता था । बम्बई प्रदेश के लेबर ऑफिसर से बातचीत हुई तो उसने रतन लाल को आश्वासन दिलाया कि अवसर मिलते ही ओलंपिक मिल के मालिक को नाको चने सब हुआ देगा । इसी समय एक घटना यह घटी की रतन लाल का स्थानांतरण देश के उत्तरी विभाग में हो गया । उसको अब दिल्ली जाना पड गया । इसपर भी वह अपने मित्र लेबर ऑफिसर को लिखता रहता था । बहुत प्रतीक्षा के पश्चात मैं अब सर भी आया जतनलाल से सेट यादव का झगडा हुए तीन वर्ष और उसको दिल्ली गए । दो वर्ष हो चुके थे । इस समय ओलंपिक लो तमिल में हडताल हो गई । हडताल का कारण गया था की मिल का मैनेजर मोहनदास गांधी गुजराती था । मिल के मालिक गुजराती से परन्तु अधिकांश कार्य करने वाले महाराष्ट्रीयन थे । भारत सरकार ने मुंबई प्रांत के विषय में एक विशेष नीति का अवलंबन किया था । प्रदेश पुनर्गठन समिति ने तो सौराष्ट्र प्रांत को कुछ बडा करने की सम्मति दी थी और मुंबई के साथ मध्य भारत का कुछ भाग मिलाकर महाराष्ट्र प्रांत के निर्माण का मत दिया था परन्तु भारत की केन्द्रीय सरकार को यह स्वीकार नहीं हुआ । मुंबई नगर के विषय में झगडा आरंभ कर दिया गया । मुंबई नगर सौराष्ट्र में जा नहीं सकता था महाराष्ट्र में जाने से गुजरातियों को जिनके हाथ में बम्बई का प्राइस, सारा व्यापार और दस्तकारी थी, आपत्ति थी । इस कारण बम्बई राज्य को बढाकर इसमें स्वराष्ट्र मिला दिया गया । कुछ मध्य भारत के भाग भी इसमें संबंधित कर लिए गए और इस प्रकार मराठी और गुजरातियों में लट्ठ बाजी चल गई । बम्बई में मराठों ने जुलूस निकाले । पुलिस पर पत्थर फेंके और गुजरातियों के पेट में छोरे को अपने आरंभ कर दी । भारत सरकार ने अपनी नीति के समर्थन में युक्ति दी । भारत के प्रधानमंत्री ने व्यक्तव्य दिए और व्याख्यानों में अपनी नीति का समर्थन किया । महाराष्ट्रीयन ओ और गुजरातियों को उपदेश दिए गए परंतु दोनों में से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं हुआ । इस प्रकार एक ओर महागुजरात समिति और दूसरी ओर बहन महाराष्ट्र समिति बन गई है । इन दिनों मोहनदास गांधी पर एक महाराष्ट्रीयन युवक ने छोटे से आक्रमण कर दिया । उसको पकडने का यतन किया गया किन्तु है मिल के कर्मचारी यूनियन के कार्यालय में भाग गया और जब मोहनदास अपने साथ मिल के कुछ चौकीदारों को लेकर उस युवक को पकडने के लिए यूनियन के कार्यालय में पहुंचा तो यूनियन के मंत्री ने कह दिया कि यहाँ पर इस प्रकार का कोई भी युवक नहीं आया । विवस मोहन दास ने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी तुरंत ही इसकी जांच आरंभ हो गई । मोहन दास के हाथ पर छोरे का गहरा घाव आया था । हत्या के यात्रियों का मुकदमा बना और यूनियन के मंत्री पर हत्यारे की रक्षा करने का केस बनाया गया । जो भी यूनियन का मंत्री पकडा गया कारखाने के कर्मचारियों ने हडताल करने का निश्चय कर लिया । कारखाने में नब्बे प्रतिशत कर्मचारी महाराष्ट्रियन थे । लेबर ऑफिसर भी महाराष्ट्रीयन था । साथ ही रतन लाल का मित्र भी था । उस नहीं है । अवसर देख अपना एक विश्वस्त कार्यकर्ता कर्मचारी के पास भेजकर उनको भडका दिया । अतः हडताल का नोटिस दे दिया गया । मैनेजर ने सेठ जी की राय से नोटिस की नकल और उसका उत्तर जो यूनियन को दिया गया था सरकारी अधिकारियों के पास भेज दिया । उत्तर में लिख दिया गया था कि यूनियन के मंत्री को पुलिस ने पकडा है । मिल का इसके साथ कोई संबंध नहीं है । अतः इस कारण मिल में हडताल करना सर्वथा नियमित होगा । इस पर भी हडताल हो गयी । मिल बंद हो गई । जब यह समाचार रतन लाल को मिला तो वह अपने कार्यालय से छुट्टी ले बम्बई आ गया । दूसरी ओर यूनियन के मंत्री पर मुकदमा चला । हत्या करने का यतन करने वाला युवक पकडा गया । चौकीदारों ने पहचान लिया और उस पर भी मुकदमा चलने लगा । मुकदमा सेशन सुपुर्द हो गया । वहाँ हत्या का यतन करने वाला युवक कोर्ट से शमा वाली और बताया कि यूनियन के मंत्री नहीं उसको मोहन दास की हत्या करने की प्रेरणा दी थी । हत्या का यतन करने वाले ने स्वीकार किया कि उसने भूल की है उसको जमा कर दिया जाएगा । इस बयान के पश्चात यूनियन के मंत्री पर तफा बदल गई । पहले तो केवल हत्यारे को छिपाने का दोस्त था अब हत्या की प्रेरणा देने का तथा हत्या करने में सहायता देने का अपराध लगाया गया और उसके अनुसार दफा बदल गई । पहले अपराध में तो अधिकाधिक पांच वर्ष की कैद का दंड था और इस नए अपराध में आजन्म कारावास का दंड भी हो सकता था । इससे कर्मचारियों ने जो तीन माँ से हडताल पर थे और अब भूखे मरने लगे थे, मिल को आग लगाने की योजना बना ली है या तन पुलिस ने जो हडताल के आरंभ से ही मिल पर नियुक्ति विफल कर दिया । आखिर हडताल का विषय जो सुलह के लिए बोर्ड के पास दीन माँ से लटक रहा था अब सालस् बोर्ड के पास भेज दिया गया । दोनों बोर्ड का चेयरमैन राज्य का लेबर ऑफिसर था और उसका यह था कि मिल जितनी अधिक से अधिक गांव तक बंद रह सके उतना ही उचित होगा । मिल के वकील सेट की राय सही है, पक्ष ले रहे थे की हडताल नियमित है । उन्होंने ये नोटिस दे दिया था कि यदि हडताली प्रमुख अतिथि तक अपने कार्य पर उपस् थित नहीं होंगे तो वे डिसमिस कर दिए जाएंगे । निश्चित तिथि पर जब कोई कर्मचारी उपस् थित नहीं हुआ तो सबको निकाल दिया गया और उनको कह दिया गया कि वे पुन है । प्रार्थना पत्र देकर कार्य पर आ सकते हैं । साला बोर्ड का अध्यक्ष समझता था कि कर्मचारियों का मुकदमा ढीला है और इस हडताल से ये तबाह हो जाएंगे । इस कारण मैं सेट के वकीलों को डरा धमकाकर समझौता कराना चाहता था । कर्मचारियों को तो कठिनाई थी, मालिक को भी भारी छती हो रही थी । क्लर्क और प्रबंध विवाह के सेवक हडताल पर नहीं थे । वे नीति आकर कार्यालय में अपनी स्थिति लिख जाया करते थे । उनके वेतन का जोड दी । पंद्रह हजार रुपए मासिक से अधिक हो जाता था । इसके अतिरिक्त कारखाने का कार्य चालू रखने के लिए एक भारी मात्रा में कोई मोल ले ली गई थी । वह हुई बैंकों के रुपये से मोल ली गई थी है । बैंकों के गोदाम में रखी हुई थी और उस पर ब्याज पड रहा था । सेठ के घर का खर्चा और मुकदमे पर भी धर्म का हो रहा था । पांच मार्च तक मिल बंद रहने के पश्चात सालस् बोर्ड ने निर्णय दे दिया । मजदूरों नहीं है नियमित हडताल धोखे में आकर की है । मालिकों की ओर से केवल यूनियन के पत्र का उत्तर देकर संतोष कर लिया गया था । मालिकों को चाहिए था कि वे प्रचार के लिए विज्ञप्तियां छपवाकर अथवा लाउड स्पीकर से मिल मजदूरों की बस्तियों में घोषित करवाते और अनपढ मजदूरों को समझाते की हडताल नियमित है । आता है यह बोर्ड दोनों पक्षों इस दुर्भाग्या मैं घटना में सामान रुपये उत्तरदायी मानता है । इस कारण यह निर्णय देता है कि पांच मास में से तीन मार्च का वेतन मालिक दे और एक सप्ताह के अंदर मिल को खोल देंगे । इस काल के व्यतीत होने पर भी यदि कोई कर्मचारी उपस् थित नहीं हो तो बोनस इत्यादि देकर उस को छुट्टी दे दी जाएगी । सेठ के वकील इस साल से फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील करने की राय दे रहे थे । छेडने बोर्ड के सामने यह कह दिया मेरे साथ न्याय नहीं किया गया । इस कारण मैं इस निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील करूंगा । इस पर लेबर ऑफिस करने का परसेंट जी कारखाना तो खोल दो, मैं उन कर्मचारियों में से एक को भी नहीं रखना चाहता हूँ । ये सब अपराधी है । मैंने पांच मास पूर्व भी उनको काम पर से निकाल दिया था और अब मैं उनके वेतन नीतिया दी का उत्तरदायी नहीं । इससे आपकी भी दिन प्रतिदिन हनी हो रही है । ठीक है पर वो तो ये है तो बोर्ड को पहले ही विचार कर लेना चाहिए था । अब जबकि मेरा दिवाला पीठ सुबह है, इस प्रकार की बातें करने का अब कोई लाभ नहीं है । लेबर ऑफिसर इससे मन में प्रसन्न था । वह देख रहा था कि यदि साल से बोर्ड का फैसला मान भी लिया जाए तो भी कर्मचारियों को ढाई तीन वास की हानि होगी । इस कारण उसने यूनियन के नवीन मंत्री को बुलाकर कहा इससे अच्छा निर्णय तुम्हारे पक्ष में नहीं हो सकता हूँ । इस कारण रात को सेठ जी के मकान पर एकत्रित होकर उनकी मिन्नत चामत कर आगे अपील न होने दो । लेबर ऑफिसर के सुझाव के अनुसार ही कार्य किया गया थे तो मिल खोलने के लिए तैयार था । परंतु है यूनियन की ओर से आश्वासन चाहता था की उन की ओर से किसी प्रकार की अपील नहीं की जाएगी । यूनियन ने ये आश्वासन दे दिया और मेल खोल देंगी । सब हिसाब लगाने पर विधित हुआ कि मिल को लगभग बीस लाख रुपये की हानि हुई है । छेड जी इसको कडवा कोट समझकर दी गई परन्तु भविष्य में इस प्रकार की दुर्घटना से बचने का उपाय करने लगी । वे लेबर वेलफेयर ऑफिसर के पद पर किसी योग्य व्यक्ति को रखना चाहते थे । इसके अतिरिक्त वे अब अपनी मिल में उत्तर प्रदेश और मद्रास के ही कर्मचारियों को अधिक स्थान दे रहे थे । जब भी कोई स्थान रिक्त होता वहाँ पर महाराष्ट्र और गुजरात प्रदेश के बाहर का ही व्यक्ति नियुक्त किया जाता हूँ । इस समय मिल की कर्मचारी यूनियन आॅफ बोर्ड के निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील करती

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