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नमस्कार साथी हो आप सुन रहे हैं संपूर्ण जाना, कहीं थी कॅश इनके साथ, ये हैं अध्याय तीन । तीसरे अध्याय की शुरुआत में श्री चाइना के कहते हैं कि दोष किसकी कुल में नहीं है । ऐसा कौन है जैसे दुखने नहीं बताया अगर किसी नहीं है सर देर सुखी कौन रहता है यह संसार दुखों का सागर । इस संसार में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे दुख ना हुआ हूँ । सभी व्यक्तियों में कुछ न कुछ दुख रोग ऍम अथवा कुछ न कुछ बुरी आदतें पाई जाती है । इस संसार में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सदैव सुखी रहता हूँ । हर इंसान को किसी ना किसी तरह के संकटों का जुडोका रोगों का बुरी आदतों का सामना करना ही पडता है । दुख और सुख तो साथ साथ लगे रहते हैं जैसे दिन और रात आगे श्री चढा के कहते हैं कि मनुष्य का चरित्र उसकी खानदान को बताता है । भाषण अर्थात उसकी बोली से उसके देश का पता चलता है । विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से उसके बहुजन का पता चलता है । आगे श्रीजानकी समझाते हैं की कन्या का विभाग अच्छे स्कूल में करना चाहिए । पुत्रको विद्या के साथ जोडना चाहिए दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्यों में लगना चाहिए । शौचालय के समझाते हैं कि अपनी पुत्री का विवाह वरपक्ष के खानदान को अच्छी तरह पर कर ही करना चाहिए । वहाँ अपने पुत्र को अच्छा और उच्च शिक्षा प्रदान करना चाहिए । यदि सत्र निकट आ जाए तो उसे विपत्ति में डाल देंगे और अपने प्रिय मित्र को हमेशा अच्छे और महत्वपूर्ण कार्यों में लगा कर रखें । आगे समझाते कि दुर्जन और सबके सामने आने पर सर्वआवरण करना उचित है ना कि दुर्जन का । क्योंकि सर तो सिर्फ एक ही बार डसता है लेकिन दुर्जन व्यक्ति आपको कदम कदम पर बार बार दस्ता ही रहता है । इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें । राजा खानदानी लोगों को ही अपने पास एकत्र करता है क्योंकि कुलीन अर्था अच्छे खानदान वाले लोग प्रारंभ में मध्य में और अंत में राजा को किसी भी दिशा में नहीं त्यागते हैं । चाइना की समझाते हैं कि मूर्ख व्यक्ति से हमेशा बचना चाहिए । वहाँ प्रत्यक्ष में दोपहर वाला पशु है । जिस प्रकार बिना आंख वाले अर्थात अंधे व्यक्ति को काटे भेजते हैं, उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति अपने कटु अज्ञान से भरे बच्चों से हमें भेजता रहता है । रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्चकुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति बीएडी विद्या से रहित है तो वहाँ बिना सुगम के फूल की भांति शोभा नहीं पाता है । भाव यही है कि आदमी की शोभा उसके सुंदर रूप यौवन हाँ, सच्ची कुल में जन्म देने से नहीं होता है । उसकी शोभा उसके ज्ञान से होती है । गोयल की शोभा उसके स्वर में हैं । स्त्रियों की शोभा उनके पति व्रता धर्म में है । गुरु व्यक्ति की शोभा उनके ज्ञान में होती है और तपस्वियों की शोभा उनके छमा में हैं । यदि किसी एक व्यक्ति को त्यागने से पूरे कुल की रक्षा होती है तो उस एक व्यक्ति को छोड देना चाहिए तो गांव के भलाई के लिए, कुल को तथा देश की भलाई के लिए एक गांव को और अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए सारी पृथ्वी को छोड देना चाहिए । आगे श्री चढा के कहते हैं कि उद्योग धंदा करने पर निर्धनता कभी नहीं रहती है । प्रभु का नाम जपने पर पाप नष्ट हो जाते हैं, चुप रहने था । सहनशीलता रखने पर लडाई झगडे नहीं होते हैं । जो जाता रहता है अर्थात सदैव सजग रहता है । उसे कभी भी किसी भी चीज का है नहीं बताता है । आगे चाहा कि समझाते हैं कि अति सुन्दर होने के कारण सीता का हरण हुआ । अत्यंत अहंकार के कारण रावण का वध हुआ । अत्यधिक दान के कारण राजा वाली बांधा गया अर्थात सभी के लिए अति ठीक नहीं होती है । इसलिए हमें किसी भी चीज में अति नहीं करना चाहिए । हर चीज की एक सीमा होती है, मर्यादा होती है । सीमा से बाहर जाने पर दायर नुकसान ही होता है । आगे चल के समझाते हैं कि समर्थको बाहर कैसा । व्यवसाय के लिए कोई स्थान दूर । क्या विद्वान के लिए विदेश कैसा मधुर वचन बोलने वाले के लिए छात्र कौन अर्थात जो कि समर्थ है, उसे कोई भी काम सहज ही लगेगा । उसे कोई भी कार्य भारतीय रूप नहीं लगेगा । व्यवसायी व्यक्ति अपने व्यवसाय के लिए कहीं भी जा सकता है, वहाँ स्थान की दूरी को नहीं देखता, वहाँ अपने लाभ को देखता है । इसी प्रकार विद्वान व्यक्ति के लिए विदेश में भी लाखों मित्र हो सकते हैं और यदि कोई व्यक्ति मीठा बोलता है, अच्छा वाणी में बोलता है तो उसकी कोई शत्रु नहीं होते हैं । आगे समझाते हैं कि एक ही सुगंधित फूल वाले ब्रेक से जिस प्रकार सारा वन सुगंधित हो जाता है, उसी प्रकार एक सापुतारा से सारा कुल शोभित हो जाता है । अच्छे हैं । सभी जगह प्रशंसनीय होते हैं । उनकी नो प्रसिद्धि सुगंधित पुष्प की भांति होती है, जो सभी जगह फैल जाती है । किसी कुल का एक सापुतारा सारे उनको सम्मानित कर देता है । आगे कहते हैं कि आग से चलते हुए सूखे बृक्ष से सारा बंद जल जाता है । जैसे कि एक कुपुत्र से सारे कुल का नाश हो जाता है । कुल का विनाश करने के लिए एक ही को पुत्र काफी होता है । ठीक उसी प्रकार जैसे एक जलता हुआ बृक्ष पूरे वन को जलाकर खाक कर देता है । आगे चल के कहते हैं कि शोक और दुख देने वाले बहुत से पुत्र को पैदा करने से क्या लाभ है । कुल को आश्रय देने वाला एक ही पुत्र सबसे अच्छा होता है । जैसे महाभारत में भ्रष्ट राष्ट्र के सौ पुत्र थे, पर सभी ने उन्हें दुखी पहुंचाया । वे सभी महाभारत युद्ध के करन बने जबकि पांच पांडवों ने धर्म के मार्ग पर चलकर विजय प्राप्त की और मंच का नाम सुशोभित । क्या आगे समझाते हैं कि पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए । उसके बाद दस वर्ष तक उसे दाल आदि देते हुए अच्छे कार्यों की ओर लगना चाहिए । सोलह साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए । संसार में जो कुछ भी भला बुरा है उसका उसे ज्ञान कराना चाहिए । इस प्रकार एक पिता अपने पुत्र के जीवन को भली बातें सवार सकता है और उसे गलत मार्ग पर बढने से रोक सकता है । आगे जाना के समझाते हैं कि देश में भयानक उपद्रव होने पर शत्रु के आक्रमण के समय पर भयानक अकाल के समय दूसरी का सात होने पर जो भाग जाते हैं वही जीवित रहता है । मतलब समझने का तात्पर्य यह है कि यदि ऐसी कंडीशन आपकी लाइफ में आती है तो उस कंडीशन में भागना ही सही फैसला होगा । जिनके पास धर्म, अर्थ, काम पर मुख्य इनमें से कुछ भी नहीं होता है उसके लिए जन्म लेने का फल केवल मृत्यु हुई होता है । आगे चणक समझाते हैं कि जहाँ मुर्खों का सम्मान नहीं होता जहाँ अन्य भंडार सुरक्षित रहता है । जहाँ पति पत्नी में कभी झगडे नहीं होते हैं वहाँ लक्ष्मी बिन बुलाए ही निवास करती है । भाव यह है कि जिस देश में मूर्खों की जगह विद्वानों का सम्मान होता है तो जहाँ समुचित अन्य भंडार रहता है, जहाँ परिवार और घर गृहस्ती में प्यार बना रहता है वहाँ सुख और समृद्धि बराबर बनी रहती है । यह था चाणक्य नीति का भागती हूँ आप सुन रहे हैं फॅमिली के साथ चलिए बढते हैं अगले अध्याय की ओर दो ऍम हूँ ऍम