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आप सुन रहे हैं उनको एफएम किताब का नाम है शिव से शिवत्व तक जिसे लिखा है आशुतोष नहीं और मैं हूँ आर्चे श्री कम सिन्हा कुकू ऍम सुनी जो मन चाहे प्रभु का योग महल से निकलना रात्रि का दूसरा बाहर होगा बहुत धोनी के साथ मैं खुद सब हो रहा था । अनुमान था कि अत्यंत तीन प्रगति के साथ मेरा अपना रोष प्रकट करने वाले हैं । साथ ही प्रकृति की अन्य विविधताएं बंद होने वाली है । जोर से धडाम की प्रतिध्वनि के साथ ताल को भर पति एक विशाल शिला के टूटने की कर कहीं उधवानी सुनाई दे दी है । धर धर धर धर धर धर धर धर की । बहुत शोर से शिला के कितने की आवाज और अंत में था वहाँ की आवाज । कितना भी हम कब दृश्य विशाल शिला नदी में की नहीं तो उस खाने को दामिनी नहीं । छह से अपना प्रकाश देकर उसमें शोक के साथ अपना शोक प्रकट कर दिया । छपडा के चमकने की कुछ क्षण के नहीं, पूरे वन्य प्रांत में प्रकाश हो गया । उस प्रकाश से कालकूट पर्वत के शिखर पर दो मानव आकृतियां प्रतित हुई परन्तु में भी दो क्षण के बाद रात ऋष्टि कालिमा में लगता हो गई । महिला ने कहा वो ये हम लोग कहाँ कहाँ आ रहे पर हम लोग नहीं केवल मैं और तुम अन्य सभी और अपने पुत्र भी अपने ही महिला कब से? वहीं बैठ नहीं । वो शायद उसकी चेतनाशून्य हो गई । पर उसने उसको अपने विशाल भुजाओं से उठाया और पर्वत शिखर के नीचे उतरने का मार्ग खोजने लगा । पुँछ जल्दी जल्दी पर्वत शिखर से नीचे उतरना चाहता था । लगभग रात्रि समाप्त होने को थी । परंतु सदानीरा नदी अभी भी बहुत दूर थी । अब उसको विश्राम करना ही होगा अन्यथा दिल में उसको खोजा या देखा जा सकता है । परन्तु से उसी क्षण याद आया । उसका विश्वासपात्र भोजन देशभर पहुंच गया होगा और महल से निकलने का संकेत भी वह तेज चुका था । अब अगर फोन नहीं पहुंचा तो पीछे से शव हुआ कर पर मेरी वो प्रमुख को अपने आघात से क्षति पहुंचा सकता है अथवा बंधक बना सकता है । मुझे छुपकर चल नहीं होगा । फिर सोचा इतना रखता बह रहा है और गौरी को भी उठाकर चलना है । उसने बडी शिला पर गौरी को धीरे से ही लेटा दिया । अपनी पीठ पर बंधा हुआ मृगछाल उसने धीरे से खोला । उसमें चल पत्थरों से लिपटा हुआ कुछ था । उसका प्रयोग वो पहली बार कर रहा था । सभी पत्रों का रंग अलग अलग था । रात ही समाप्त होने को थी । वो अब चाह भी रहा था कि रात्रि समाप्त हो जाए ताकि उसको रंग अलग अलग समझ में आ जाए । परंतु जिनके साथ खतरा नहीं पड रहा था अपने लिए वह सम्भवता इतना चिंतित नहीं था जितना वो अपनी गौरी है । भूत, जंगेश्वर और परिनीति प्रमुख के लिए था । उसने सोचा इनको तो बचाना ही है सासा उसका हाथ अपने वक्षस्थल पर गया पूजा रखते से भरा हुआ था । पिछले स्वप्नकाल की याद आई कि किस तरह उसके विश्वासपात्रों और उसके पुत्रों को मार दिया गया । वो कुछ नहीं कर पाया । वो गौरी और वो जंगेश्वर शायद प्राम्भ की इच्छा से बच गए । सामने पूर्व दिशा से भगवान भास्कर अपनी लालिमा के साथ उदय हो रहे हैं । भगवान भास्कर को प्रणाम करने के उपरांत उसने अपने पत्रों को धीरे से खोला और अपनी पूर्व स्प्रे थी पर जोर देने का प्रयास किया । किस पत्र पर रखा लें? छोडना क्या कार्य करेगी? फिर वो मन ही मन बुदबुदाया क्या कहा था हूँ? हीइस प्रिती में आओ । फिर बोला अरे कुछ परिनीति प्रमुख ने कहा था कुछ विकसित होते हुए सिर्फ छोटे आप कुछ सत्तर बताया था हैं क्या हाँ हूँ और उसको और आते हुए लालब्रत हूँ नी ललिता पी तबला हरित है हडजोड सुत्र ज्ञान जब होते हैं महानुष्ठान होने पे हूँ सर्वप्रथम उनके मन में विचार आया कि रक्त का प्रवाह अगर उसके शरीर से और गौरी के शादी से नहीं होगा तो अधिक समय तक जीवन की टूर न चुन नहीं रह सकेगी । अच्छा उसने सबसे पहले रक्त का बहना रोकने के लिए लाल वर्ण का छोडना गौरी के शरीर पर और उसके बाद अपने शरीर पर लगाया । छोड के लगते ही पूरे शरीर में प्रतीत हुआ कि शरीर में संबोधन प्रक्रिया प्रारंभ हो गयी । मांसपेशिया जो शेखल हो गई थी, किस प्रकार लगा कि वे जो कर रही हैं इस प्रकार की गति बढती जा रही थी । अब खडा रहना असंभव लग रहा था । पूरा शरीर पत्थर के समान होता जा रहा था । गौरी को कुछ भी बाहर नहीं था । जब उसकी तरफ देखा तो वह जीतना शुरू थी परंतु उसका शरीर कंपायमान था । अब उसका शरीर चढ हो चुका था और उसके पैरों में उसको उठाने की क्षमता समाप्त हो गई । अब उसका शरीर निस्तेज होकर गिर गया । अब सुनाई पड रहा था देख नहीं सकता था परंतु शरीर चढ हो चुका था । इसी तरह वो चुप चाप भूमि पर पडा रहा और वो अपनी पलकों को झपकाने का प्रयास करने लगा । असफल रहा हूँ कुछ क्षण उपरांत बल्कि छपकी कुछ समय बाद उसके हाथों पैरों की उन्हें के लिए जब उसने पूरा पाल लगाया हूँ । अब धीरे धीरे उसके हाथ हूँ । पैरों में छह ना आ रही थी । अभी वो उठ सकती के प्रयास में असफल था । मन पुत्ती और दस इन्द्रियां, पांच ज्ञानेन्द्रियां और पांच कर्मेन्द्रियां पूरी तरह से काम कर रहे थे । मान के विचार शरीर के कारण बदल गए और मन में विचार आया कि शत्रु अब बाल के बाहर आ गए होंगे । विचार बदला शायद अभी तक नहीं । छत मत द्वारों में ही फंसे होंगे । याद आया यदि उम्मीदवारों से जूझ रहे होंगे तो पता चल जाएगा । अब उस कल की संकट की खडी थी । यदि वह छतों द्वारों से जूझ रहे हो गई तो महल का वो हिस्सा जो पर्वत शिखर की पूर्व दिशा में हैं, जहाँ से निकलकर आया है, टूट करके जाएगा वो और गौरी उसी पर्वत शिखर के नीचे हैं । फिर विचार आया कि द्वार खोल दिया गया तो अब तक पर्वत शिखर से मसाल का प्रकाश दिखाई पड जाता तो क्या अभी पश्चिम तो आज से आ रहे होंगे । यदि पश्चिम द्वार से आएंगे तो पूरा महल पार करने के बाद और फिर पूरे पर्वत का चक्कर काट कराने में दो दिन समय लग जाएगा । बता अभी तक न आने का कारण या तो छत मधुआरों से ही संघर्ष कर रहे हैं जिसकी संभावना अधिक है । पश्चिम द्वार तब जाकर फिर पूरा चक्कर काटकर वापस होना इसकी संभावना कुछ कम लगती है । लेकिन उन्हें यहाँ से हटाना होगा । परन्तु उसका शरीर अभी भूमि पर पडा हुआ था । धीरे धीरे हाथों पैरों में शक्ति आ रही थी । अब उसने पूरा बाल लगाया तो वो उठकर बैठ गया । उसने अपना बॉक्स करना खर्च हुआ । रक्त का प्रवाह और रुक गया था । वो समझ गया लाल छोड रक्त के प्रवाह को रोकने के लिए अभी उसके बख्शा स्थल में बहुत पीडा हो रही है । उसकी पसलियां टूट चुकी हैं । उस पर तोमर से प्रहार किया गया था । अब उसने हारित छोडने का सेवन किया । सेवन करते ही उसके शरीर में बहुत जोर से अंगडाई आएगी और उसने अपने शरीर को जोर से बैठा ठंड के साथ छत करती आवाज आई और उसकी पसलियां छोड गई । अब वो बोला अच्छा तभी कहते हैं भारत है । हर जो अब उसमें पीटर अंदर का छोडना अपने वह गौरी के शरीर पर लगाया । उसको लगाते ही एक बार बहुत जोर से पसीना पहला शुरू हुआ और थोडी देर में शरीर में होने वाली पीडा समाप्त हो गई । अब उसने अनुमान लगाया कि गौरी भी अब स्वस्थ्य होगी । अब गौरी को जगाना होगा । शायद अब मोर्चा उतनी गंभीरता होगी । अंत में उसने नहीं लो पडेंगे । छोडना का प्रयोग किया । प्रयोग करते ही गौरी की चेतना वापस आने लगी । थोडी देर बाद गौरी और वह पुरुष दोनों उसी शिला पर बैठे थे । गौर हो रही थी पुरुष कह रहा था की प्रमुख परमात्मा जो करता है वो ठीक ही होता है । परन्तु तुम हिम्मत ना हो । अगर हम अभी जीवित हैं तो प्राम्भ का कुछ कार्य करने के लिए उसने चोट प्रयोग करने के उपरांत वह शर्म पत्र सामने फेंक दिए । उन पर उसकी दृष्टि पडेगी । अब पर्याप्त प्रकाश हो चुका था । उन चारों चरमपंथियों पर कुछ मना क्षेत्र और कुछ नदी पर्वत जैसे हिन्दू को भरे हुए थे । अब पुरुष को समझ में आया कि उनको तो बहुत ही सुरक्षित होगा । ये क्या है इसका पूरा वितरण परिनीति प्रमुख को पता होगा । फिर भी उन्होंने हमको बताया नहीं उसके मन में सोचा । उसने तुरंत ही उनको मोडकर । आपने मृगछाल के अंदर रखा और अपनी पीठ पर बात दिया । गौरी ने पूछा क्या है? आ रहे हैं और कुछ मानचित्र जैसा है, ऐसा प्रतीत होता है । परिणय प्रमुख को पहले से ही पता था । इस तरह की घटना होने वाली है । आ रही थी । उनको पता था तो उन्होंने बताया क्यों नहीं मेरे बच्चे तो बचाते । ये कहकर गौरी फिर विलाप करने लगी । पर उसने उसका हाथ पकडकर अपनी तरफ झुकाया और फिर उसके कंधे पर हाथ रखकर अपने वक्षस्थल से ठीक लिया । पर अरे मेरी प्रमुख को यदि सब पता होता तो अवश्य बता देते । हो सकता है कि केवल उन्हें इसकी आशंका हूँ । अगर सुरक्षा दृष्टि से उन्होंने मान, अक्षित व अन्य चिंदम मुझको देती हूँ । उसके मन में एक विचार बिजली की भांति कौन गया वो जो नीचे उतरने का विचार बना रहा था की कैसे सदानीरा नदी तक पहुंचे । उसने त्याग दिया । उसने पुनर मृगछाल अपनी पीठ से खोली । उसमें बंधे हुए पत्रों को पुनः निकाला । मना चित्र वासु थी । संकेतों को बहुत समझने का प्रयास करने लगा । उसने पुना ऊपर की ओर देखा, मानचित्र को देखा है, गौरव की तरफ देगा, पर लगता है वे द्वार चाल में फंस गए हूँ । सर परमात्मा की पाया है । फिर वो सोचने लगा कि वे महल से निकलने का प्रयास तो कर ही रहे होंगे । मलेच्छों का द्वार चाल में घुसना रात्रि से तुम लोग इस वार को तोडने का प्रयास कर रहे हो । आखिर द्वार में ऐसा क्या है जो इतना समय लग रहा है सो उतार आवाज में मालिक छोडा जाएगा । सेनापति मलिक शबनम बाहर आज तक तो इस तरह के द्वार कभी देख रहे हैं और न कभी सुने हैं । महाराज मालिक सूंग इसके पहले की मालिक शुद्धम् कुछ कहता क्या विशेष बात है इस बार महाराज सब कुछ विशेष ही है । ऐसा नहीं है कि द्वारा टूट नहीं रहे हैं मालिक हो बीच में बात करते हुए द्वार टूट नहीं रहे हैं का क्या अभिप्राय है तुम्हारा जहाँ केवल एक ही द्वार तो तोडने को है । तुम और तुम्हारे कितने सैनिक ऐसे एक द्वार को तोड नहीं पा रहे हैं । आज तक पहले तुमको इतनी दयनीय अवस्था में नहीं देखा । मैंने जो काम सोचा वो तुमने मेरे सोचते ही समाप्त कर दिया और आज मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं । तब तक हूँ मालिक शतम् महाराज मैंने आपके जीवन में न जाने कितने युद्ध आपके साथ जीते हैं, न जाने कितने महत्वपूर्ण कार्यों में आपकी सेवा की है परंतु गेस सबसे महत्वपूर्ण क्यूँ माॅक जब सबसे महत्वपूर्ण है ये मैं बात में बताऊंगा । पहले द्वार तोडो और ये बताओ कि दौर में विशेषता क्या है? ये कहकर बाल शुरू वहाँ से जाने लगा परंतु उसका मन स्थित नहीं था । उसका मन, विचार, गुत्थी, इन्द्रियाँ अलग अलग भाग रहे थे । उन में एकता का नितांत अभाव था । जब मन के विचार कुछ हूँ, बुद्धि कुछ सोचे और शरीर, हाथ पैर अलग अलग काम करें तो समझ लेना चाहिए कि मनुष्य में व्याकुलता की पराकाष्ठा की सुष करनी है । वो बार बार अपने दोनों हाथों को रगड रहा था । कभी बैठ जाता, कभी खडा हो जाता है । अब वह महल के दूसरे स्थानों के विषय में सोच रहा था क्या और कोई द्वार हो सकता है । पश्चिम द्वार से जाकर पूरे पर्वत की परिक्रमा करके आने में तो दो दिन लग जाएंगे । नहीं यही एक मार्ग हैं । मन में तो बताया माॅनसून खडा हो गया । बहुत जोर उसने अपना पैर भूमि पर पटना उसके लिए एक एक पल भारी हो रहा था । फिर उसने सोचा मालिक शतम् पूरा प्रयास तो कर रहा है परन्तु द्वारा नहीं खुल पा रहा है । अचानक उसके मन में विचार आया । वो जोर से चिल्लाया, शाहिद राप्ती को बुलाओ । वो फिर बैठ गया । सेनापति की प्रतीक्षा इस समय असहनीय थी, जो कि उस से दो सौ हाथ की दूरी से अधिक न था । जब मन में कोई विचार आता है तो ऐसा प्रतीत होता है कि बस ये भी चार ही सर्वोत्तम है क्योंकि मन की गति से तीव्र करती किसी की नहीं होती । परंतु जब उस विचार पर बुद्धि का प्रभाव होता है, तब अधिकांश उतर वो विचार इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे बात लोगों को टाॅक एक कपल में नब्बे दिन कर देती है । जब तक सेनापति आता तब तक उसकी बुद्धि ने कहा कोई सहायता नहीं होगा । सेनापति मलिक शतम् तेज कदमों सहित चलता हुआ पहुंचा आप क्या? महाराज कलेक्शन हमने कहा । मालिक सोम धीरे से खडा हुआ और बोला लगता है तुमको व्यस्त ही बुलाया । मालिक खतम नहीं महाराज, आपने कुछ तो सोचा ही होगा । हो सकता है कि विचार काम आ जाए । मालिक सौं नहीं, कोई फायदा नहीं । तुम जाओ और हाँ और तोडने की कोई नई योजना बनाऊँ । ऍम बाहर आज मैं क्षमा चाहता हूँ । क्या मैं कुछ अनुरोध कर सकता हूँ । मालिक शिशु इस समय पूरा जीता हुआ ता हूँ । हारा जा रहा था वो कुछ कर नहीं पा रहा था । शत्रु जिसको जीतकर वह दूसरे लोगों पर विजय प्रारंभ करना चाह रहा था वो भी जाए उसके हाथों से नदी की तरह ईद के समान सडक नहीं थी । यही दो स्थान है जहां से वो दूसरे लोगों के विषय में पता कर सकता है परन्तु शत्रु पल पल उसकी बहुत सीट दूर चाहता जा रहा है । मालिक शबनम ने एक बार पुनः महाराज से अनुरोध किया परन्तु ॅ हूँ अपने विचारों में इतना हो गया था कि वो सुन नहीं पा रहा है । इतने में मालिक शिशु, उनका ध्यान उनका वो मालिक शतम् को देखकर चौक गया और बोला तुम यहाँ खडे हो मैंने तो मैं द्वार तोडने का आदेश दिया था । मालिक शतम् शाम महाराज मैंने आपसे दो बार अनुरोध किया परंतु आप कदाचित अशांत मान के कारण मेरी आवाज नहीं सुन पा रहे हैं । मालिक हो अच्छा बोलो मालिक आपने मुझे बुलवाया था, कुछ तो विचार किया ही होगा । बताइए शायद कोई मार कर निकले । मालिक सोम ने कहा बस विचार था फिर वो टूट गया । पुना बोलना प्रारम्भ किया, कोई लाभ नहीं होगा । चलो तुम कहते हो तो बता देते हैं । मैं विचार कर रहा था कि यदि शत्रुओं का कोई सेवक या सैनिक जीवित होता तो शायद द्वार खोलने तोडने का रास्ता आसान हो जाएगा । परंतु कोई जीवित तो छोडो एक कहते हुए वो रुक गया, पूना बोलना प्रारम्भ किया और इस बार उसकी आवाज में निराशा नहीं । शिविर कोई क्या होगा? हम लोग तो शरीर तक नहीं छोड देते हैं । रख मच्छा बस्तियों केबल से तो यहाँ तक पहुंचे हैं पर इंडिया प्रमुख द्वारा नदी को सेना में पता नहीं पर मेरे प्रमुख अपने हाथों में शर्म बन्दों को लेकर एक एक करके देख रहे थे । फिर उसमें से दो चर्मपत्र को अलग कर लिया । शीर्ष बच्चे हुए चर्मपत्र को लपेटकर एक बेलनाकार पात्र में डाल दिया उस पात्र में जो देखने में एक हाथ जितना लंबा और इतना मोटा की दोनों हाथों से पकडा जाए तो शायद ही हाथों में आप आए । उसके एक तरफ का हिस्सा मजबूती से बंद था । ये अस्थायी रूप से ही बंद था । दूसरी तरफ से वो खुल सकता था । उसके दोनों किनारों के पास दो मजबूत छलने लगे थे जिससे एक मजबूत चार मत पट्टी बंधी थी । बडी मेरी प्रमुख ने उसको अपनी पीठ में तरकश की तरह पहन लिया । उसमें धार तों के पांच मटर जितने आकार के तानें बाहर उभरे हुए दिखाई पड रहे थे ।
Sound Engineer
Writer