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आप सुन रहे है तो फॅमिली किताब का नाम है खौफ कदमों की आहट और खानी है लाल जोडे वाली तुम्हरा जिससे लिखा है देवेंद्र प्रसाद ने आर्चे मनीष की आवाज में तो कॅश सुने जो मनचाहे लाल जोडे वाली दुल्हन भाग एक भूत प्रेत, साया डायर आदि पर आप चाहे विश्वास करते हूँ या नहीं करते हो लेकिन उनके अस्तित्व को आप पूरी तरह नकार भी नहीं सकते हैं कि एक ऐसा विषय है जिस पर काफी बातचीत होती है । लेकिन इसका सच के बाद ही इंसान जानता है जिनके साथ घटना घटित हो चुके हैं । अन्यथा बाकियों के लिए बस ये मनोरंजन के लिए कहानी मार रह जाता है । मेरा नाम आशीष मंगाई है हम मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ । मैंने बचपन से ही अपने दादा से भूत प्रेतों के बहुत किसको सुनाए । मुझे बचपन से ही रोचक विषय लगता था और मैं इसके बारे में और अधिक से अधिक जानना चाहता हूँ । एक बार मेरे डिप्लोमा की तृतीय वर्ष में ऍम हुआ और बीस दिन के लिए कॉलेज बंद हुआ । मैंने निश्चय किया कि चंपावत में भाई के पास जाऊँ मेरा बडा भाई ऍम था । मैंने घरवालों को किसी तरह वहाँ जाने के लिए राजी किया उसके बाद कुछ जरूरी सामान आपको एक छोटे से बैग में रखकर सुबह पांच बजे के बस कश्मीरी के । इससे फॅमिली बडे भाई से बात हो गई थी । उन्होंने बताया था कि शाम ठीक चार बजे बस चंपावत बस अड्डे पर पहुंच जाती है और कुछ नहीं मिलने वाले थे । मैं पहली बार दिल्ली से कितनी दूर जा रहा था, बहुत उत्साहित था क्योंकि मेरी इच्छा थी कि मैं भी लेकिन पहाडों के हसीनवादियों में घूम कर रहा हूँ । टी । वी । आर । फिल्मों में देखा करता था कि पहाडों का मौसम बडा हीरो मानी होता है और यह जगह घूमने के लिए बहुत ही सुंदर होती है कि मेरा पहला अवसर भी था तो मैं इस मौके को अच्छी तरह से बनाना चाहता था । मैं बस मैं चाहकर भी नहीं हो पाया क्योंकि मेरे मन में के चल रहा था कि कहीं मुझे नहीं लग गयी तो मैं अपने गंतव्य से आगे नहीं निकल जाऊँ । बैठे चार बजे चंपावत के बस पर पहुंचा जैसे बस से बाहर निकला मुझे मेरे बडे भाई जिनका नाम सुदर्शन मंहगाई था तो देखते हैं उनके साथ तीन लडके होते हैं । शायद उनके दोस्त होंगे । उन्होंने मुझे देखा और मेरी तरफ बढ जाएगा । यात्रा में किसी तरह की तकलीफ तो नहीं हुई । मेरे भाई ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, नहीं नहीं, किसी भी तरह की नहीं । लेकिन मानना पडेगा अब जैसा कहा था की ये बस ठीक चार बजे यहाँ पहुंचाएगी । ठीक वैसा ही हुआ । मैंने उनके पास होते हुए आशीर्वाद लेते हुए कहा जो ये तो कोई भी बता देगा क्योंकि इस बस का यहाँ पर पहुंचने का वक्त ही चार बजे का है । नहीं, मेरे घर का नाम है, मेरे परिवार के सदस्य हैं और मेरे करीबी मित्र या रिश्तेदार इसी नाम से मुझे बुलाना पसंद करते थे । भैया के साथ जो तीन बंदे आए हुए थे उनमें से देखने मेरे हाथ से बैठ ले लिया । भैया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा जहाँ से डेढ किलोमीटर पर ही काम रहा है, जहाँ हम लोग रहते हैं, ये लोग मेरे साथ भी मेरे विभाग में काम करते हैं । भैया ने ये कहते हुए सबसे बारी बारी परिचय करवाया । उन्होंने बताया कि दिनेश, राजेश और सुरेश उनके नाम है । बातों का सिलसिला जो शुरू हुआ तो कमरे तक पहुंचने पर ही खत्म हुआ । ऐसा करूँ मैं अंदर वाले कमरे में रखता हूँ और जल्दी से हाथ होकर फ्रेश हो जाओ तो तक चाय बन जाएगी तो उन्होंने आदेश देते हुए मुझे इशारे से अंदर जाने को कहा हूँ । मैं अपना बाहर लेकर अन्दर की तरफ चल पडा हूँ । यहाँ ऍम मतलब रेल के डिब्बे के तहत लम्बाई में थे लेकिन पढाई में कम थे । तीनो कपडे एक लाइन में पढते थे जिनसे बाहर निकलने का बाद एक रास्ता था । तीनों कमरों में ठंड के आप बडी बडी थी । मैंने अंदर वाले कमरे में जाकर बैठ रख दिया । आपके आज बज रहे थे । चारों और घुप अंधेरा बदला हुआ था और आपकी आवाज बहुत तेज सुनाई पड रही हूँ । मैंने भाई से टॉयलेट जाने को पूछा तो उसने बताया यहाँ पहाडों में कम जगह होने की वजह से इस तरह एक ही दिशा में लंबे बाल घर बनाते हैं । यहाँ हर किसी के घर में टॉयलेट घर के बाहर ही बना होता है । उन्होंने बच्चे तौर से लेकर बता दिया की मुझे कहाँ जाना है । मैंने जैसे ही टॉयलेट का दरवाजा खुला मैं घंटे खडे हो गए । पायलट के अंदर एक जोडी जब के लिए आके देखिए जो कि मेरी तरफ से लगातार खुले जा रही है । मैं इससे पहले के तौर चलाकर हालात का मुआयना करता हूँ । वो चीज अपनी जगह से मेरी तरफ से मैटर कर पीछे हटा सकते पर नीचे ऍम ऍम प्रकाश डाली तो देखा कि वो कांदी बिल्ली थी जो पहाड ठंड होने की वजह से वहाँ जाने कब से तुपकी पडते हैं । मेरे इस कदर अचानक दरवाजा खोलने से तो भी सहन गई थी और उछल कर बाहर की तरफ भाग पडे मैंने । मैं नहीं मांॅग लगा तो सुबह जाऊंगा ना बार बार रात को कौन बाहर आएगा । मैं जैसे ही लेकर के अंदर आया तो देखता हूँ कि पहले वाले कमरे का माहौल रंगीन हो चला था । मेरा भाई सुदर्शन और साथ के तीनों तो वहां बैठ कर शराब का आनंद ले रहे थे । ऍम कल रविवार का दिन है इसलिए शनिवार की रात अपनी होती है । मुझे डर आता देख दिनेश ने कहा और बोलते बोलते एक सांस में पूरा गिलास करने से नहीं होता है क्या नहीं मैं ये सब नहीं रहता हूँ । मुझे ये सब पसंद नहीं । मैं नहीं चलते हुए उस से होते हुए हो हो । लेकिन हमारे साथ बैठकर फॅसने ये बात कहते हुए मुझे वहाँ सब के साथ बैठने किसी करने लगा । अरे नहीं तो क्या होगा जब अंदर आराम कर रहे हैं । फिर कल नहीं जगह घूमने भी चल रहा हूँ । मेरे बडे भाई ने बीच बचाव करते हुए कहा उनकी बातों को सुनकर ऍम वाले कमरे में तीन बिस्तर एकसाथ चिपका कर लगे हुए थे । अंतिम वाले स्तर के साथ ही खिडकी थी । मैं वहीं खिडकी के पास वाले बिस्तर पर हो गया । बिस्तर पर पड रही, मुझे नहीं आ गई । मुझे इतनी लंबी यात्रा की थकान हावी थी । रात को किसी वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे किसी चीज के चलने की बदबू आ रही है तो जैसे किसी जानवर के चलने की गंदा हूँ । चाॅस के बाहर हो गई तो मैं अपनी जगह से उठकर क्या? मैंने देखा कि बाकी के चारों उसी जगह बराबर में हो रहे हैं । कडी पत्ता नजर पडी तो देखा कि ठीक डेढ बज रहे थे । मैं उठकर रसोई घर से पानी पीकर आ गया । वहाँ रहते हैं । मुझे आपको कंधे नहीं आ रही थी । मैंने सोचा कि चलो अब तीन तो ठीक जाएगी । टाॅपर गहरी नींद हो गया । कितना सही कहा और जब और जल्दी से चाहे खत्म करके तैयार भी हो जाएगा । अगले एक घंटे में हम लोग पातालभुवनेश्वर जा रहे हैं । भाई की आवाज थी । मुझे उठाते हुए वो आगे की तरफ राम का संक्षिप्त विवरण दे रहे थे । ऍम ऍम सोने नहीं दिया और ऊपर से ये सुबह भी जल्दी हो गई है । मैंने बनाया लेते हुए भाई को कहा ऍम मेरे भाई है सकते । कोई पूछा पि ऍफ को ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर के चलने की गंद हो । दुर्गन ने पूरी रात सोने नहीं दिया । मैंने मुह बनाते हुए कहा जैसे बहुत वो आने के वही जिम्मेदार हूँ तो तुम कभी वो गंदगी । दिनेश कुछ बोलने वाला था कि भैया ने उसके बातों को बीच में ही काटते हुए कहा । और एक यहाँ स्थानीय पहाडी लोग बकरियां मुर्गे की बलि देते हैं और उसके बाद प्रसाद के रूप से घर ले जाते हैं । प्रक्रिया मुर्गे की चमडी उतारे बिना पहले उसको हल्का सा चलाते हुए फूलने की कोशिश करते हैं । उसके चलने से ही अजीब सी का नाती है और ये वही होगी हाँ सही कहा आपने कुछ ऐसी ही बदबू लगी थी । मानना पडेगा लोगों का जवाब नहीं । अच्छे से बात के लिए कितने जतन करते हैं । तो ये कहकर हसने लगा और मेरी आजी में वो भी शामिल हो गए । अच्छा चलो जल्दी से नहीं कर रहा हूँ । हम लोगों को दस बजे एक पौराणिक जगह घूमने चल रहा है । ठीक है अगर वो बाहर की तरफ चले गए । भैया के साथ सारे दोस्त बाहर धूप में खडे होकर इंतजार कर रहे थे । बाहर निकलने पर जब तो मेरे जिस्म पर पडी तो मान लो जैसे तुम रूम में बिजली से काम करें । शरीर में एक असीमित ऊर्जा का एहसास हुआ । उस धूप को छोडकर कहीं जाने का मन नहीं हो रहा था । लग रहा था कि कुछ और रखकर इसका दत्त लिया जाए, चलना है या बस यहीं खडे खडे तो देखते रहना चलो हम लोगों को देर हो रही है, ऍम जल्दी हो जाता है । भैया ने मेरे धूप का आनंद लेने में अलग डालते हुए कहा । उनके साथ नीचे सडक पर आ गया । नीचे सडक के किनारे एक सफेद रंग की जीत करेगी । उस जीत के आगे की तरफ भारत सरकार लाल कार्य रंग में लिखा हुआ था । भैया आपको लिमिटेड जोकि एक मिनीरत्न कंपनी थी । उसमें इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पद पर पिछले तीन साल से कार्यरत थे । उन्हें उसके ऍम पर जाने के लिए ये सरकारी गाडी मिली हुई नहीं हूँ । आज मैं कुमार का दिन था इसलिए मेरे लिए ये फायदे का सौदा हुआ और ये चीज आज हमारे लिए ऍम और उनके बाकी सारे तो पीछे बैठ करेंगे । चंपावत से पातालभुवनेश्वर जो उत्तराखंड के पिथौरागढ चले गए गंगोलीहाट नामक जगह पर हूँ । ये चंपावत से एक सौ किलोमीटर की दूरी बना हूँ हमारे साथ नीचे नदी भी ताल से ताल मिला फॅसने बताया हूँ किस नदी का नाम काली नदी है । नेपाल से आ रही है । लगभग डेढ बजे हमलोग गंगोलीहाट के पास पहुंच करें । ऍम करने लगा है और मैं भैया के साथ सामने दुकान की तरफ बढ चला हूँ । पातालभुवनेश्वर जाने के लिए किधर से जाना होगा? ऍम एक दुकान वाले से पूछता हूँ दुकान वाले ने कोई भी जवाब नहीं दिया । मुझे बडा अजीब लगता है अभी आस पास कहीं से एक व्यक्ति नहीं शायद हमारी बात सुन ली थी । वो बोला बाबू जी ये जरा ऊंचा सुनता है । बचपन में पटाखे फोड रहा था और आग लगने के बाद फिसलकर वहीँ पास ही में गिर पडा है की तेज आवाज से आपने सुनने की शक्ति को कहाँ बैठा है । ऐसा कीजिए आप सामने मुख्य सडक से भाइयों एक पतली पगडंडी जारी है ना वहाँ से सीधे चले जाइएगा । थोडी दूर चलेंगे वहाँ एक बडा सा गेट बना होगा । बस उसी गेट से अंदर जाने पर थोडी दूरी पर आपको वह जगह मिल जाएगी मैंने दुकान वाले की घटना बना सोचता हूँ और हाथ छोडकर पंजाब होते हुए हैं । उस जगह की तरफ बढ चला पगडंडियाँ बहुत कम चौडी थी ऍसे यहाँ के मौसम का सामना करने के लिए सक्षम ऍम पेड पर लाल रंग के फूल शोभायमान तो कहीं कहीं और चीन के पेड भी अपनी अपनी मौजूदगी ठंड का अहसास करवा रहे थे ।
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