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लाजो- 7.2 in Hindi

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988 Listens
AuthorSaransh Broadways
एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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अब सुरेश्वर निशा को अपना घर बसाए हुए आठ महीने हो गए थे । निःशुल्क सुरेश अपनी छोटी से संसार में खुश थे । जैसे खुशियाँ उनके घर आंगन में अपना घर बसाकर बैठी हुई थी । समय पंख लगाकर उड रहा था । एक दिन सुरेश के फोन की घंटी बजी । सुरेश फूल लेने उठ रहा था की निशानी कहा तो आप मैं जाती हूँ । निशा को सात महीने का गर्भ था । वो उठी रही थी कि एकदम से लाइट चली गई । अचानक फोन की तरफ तेजी से बढने के कारण उसका पैर मुड गया और वो वही पेट के बल गिर गई । गिरते ही वह जोर जोर से कर रहा नहीं लगी । सुरेश को कुछ नहीं सूझा पर फिर भी टॉस लेकर पहले फोन उठाया । फोन उसके मालिक दयाशंकर का था । अपने मालिक को दोबारा फोन करने को कहकर निशा को उठाकर पलंग पर लगाया और अस्पताल फोन मिलाया । फिर अपने मालिक दयाशंकर को फोन पर अपनी बच्ची के साथ हुई दुर्घटना के बारे में बताया और फोन काट कर निशा को लेकर बाहर सडक बनाया तो देखा अंधेरा होने के कारण गली में कुछ दिख नहीं रहा था । इसलिए धीरे धीरे ध्यान से चलकर आगे मुख्य सडक पर पर वहाँ उसे कोई भी टैक्सी नहीं दिख रही थी । इसलिए वो दिशा को बाहों में लिए लिए ही सडक पर दौडने लगा । सहयोग से तभी एक कार उसके पास आकर रुकी थी । हाँ, जल्दी से मोडा और बोला हमें इस पर तो हजारों हम बहुत परेशान हैं । मेरी पत्नी की बेचने बच्चा है । गिरने के कारण वो बेहोश हो गई है । पर गाडी में से एक आदमी निकला और बोला भाई पहुंचा दूंगा पर गाडी तो चले गाडी चलते चलते रुक गई है । सुरेश के वही थोडी देर रुकना उचित समझा और गाडी के पीछे की सीट पर निशा को ले जाने के लिए पूछा तो वो बोला हाँ हाँ और लिटा दो । गाडी ठीक हो जाए तो मैं वहाँ जाऊंगा । थोडी ही गाडी चल पडी । पंद्रह मिनट में वो दोनों अस्पताल के गेट के आ गए थे । जल्दी जल्दी अंदर करो । निशा को भर्ती कराया । इलाज होने लगा । इंसानियत के नाते वो आदमी भी सुरेश के साथ दो मिनट खडा रहा । पर जब सुरेश को नर्सरी दवाइयाँ लाने को कहा तो सुरेश ने देखा कि जल्दबाजी में वो अपने ऊपर सी घर बुलाया था । अब क्या करें? तब उस आदमी ने जिसका नाम मनुभाई था, कहा पैसे नहीं है तो मैं दे देता हूँ । सुरेश को पैसे लेना अच्छा तो नहीं लग रहा था पर लेने पडेगी मरता क्या न करता हूँ । मनु सुरेश को अपना कार्ड देकर चला गया । सुरेश अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहा था । उसने सोचा काश आज यहाँ बाउजी वहाँ होते तो कितना अच्छा होता । आज सुरेश को अपने घर की कभी बहुत कर रही थी । अब की अपनी होते हैं पर आए होकर भी आ जाते हैं । शरीर के अंदर जैसे साथ आती जाती हैं वैसे ही सांसों की तरह बिहारी अपनी यहाँ जाते हैं । सुरेश के आंखों से आंसू निकल आए और उसके होटों से बाबू जी का नाम खुदबखुद निकल आया । ऐसा लग रहा था जैसे रात की चांदनी ने भी उसकी आवाज सुनी और जानने की रास्ते चलकर है । सुरेश के बाबू जी को याद दिलाया । वैसे ही रामदास के मन में अजीब सी बेचैनी होने लगी । राहुल दास बोले पार्वती कल एक बार में सुरेश से मिलने जरूर जब का पार्वती भी अपने अंदर एक दर्ज अनुभव कर रही थी इसलिए वह कुछ नहीं बोली । अंदर ही अंदर जैसे कह रही हूँ जहाँ भी रहो खुश रहो भगवान दोबारा हर समय साथ पार्वती को भी लगा जैसे उसका बच्चा उसे पुकार रहा है पर फोन नंबर न होने की वजह से फोन करके हाल भी नहीं पूछ सकती थी । मान महसूस कर रह गई । उधर सुरेश दवाइयाँ लाकर दी तो डॉक्टर ने कहा हम बच्चा नहीं बचा सकते क्योंकि उसकी सांसे सुनाई नहीं दे रही । सुरेश को लगा जैसे एक मुसीबत के बाद दूसरी मुसीबत सामने आ गई है । चाहकर भी मन समझ नहीं पा रहा था । किसी अनहोनी की आशंका तो नहीं थी पर जब परेशानी आती है तो वे एक के बाद एक आते ही चली आती है । कब कहा कैसे होगा सोच सोच कर सुरेश घबरा गया था । डॉक्टर ने फॉर्म साइन करवाएँ और जाकर ऑपरेशन की तैयारी करने लगा । सुरेश का हाल बहुत बुरा था । चिंता में वो अपने दिमाग को संतुलित नहीं रख पा रहा था । वहीं पडी बेंच पर बैठा अपनी माँ के बारे में सोचने लगा । शायद मेरी शादी करके अच्छा नहीं किया । बाद में अब निशा को कौन संभालेगा । अब कैसे क्या होगा? सुबह उठते ही रामदास को जैसे अजीब सी बेचैनी हो रही थी । इसलिए वह जल्दी जल्दी तैयार होकर जाने लगा । पार्वती रामदास की मंशा को समझकर कि वह सुरेश के पास जा रहे हैं, कुछ बोली नहीं, पर जब राजू ने देखा तो पूछे बिना रहना सके क्या हुआ? बापू अपनी सुबह कहाँ जा रहे हैं तो वो बोले सुरेश के घर और कहकर बाहर चले गए । लाजु ने कहा आप कहीं तो मैं भी चलू । रामदासी हाँ में से हिला दिया और वो दोनों चल दिए । सुरेश के घर पहुंचे तो पाया कि घर बंद है । पडोसी से पूछा तो पता चला कि अस्पताल गए हैं । अस्पताल का पता लेकर वो पूछते हुए वहाँ पहुंचे तो देखा सुरेश ऑपरेशन थिएटर के बाहर बैठा हुआ है । बापू को देखकर वो खडा हो गया पर अपने आप को संभालते हुए बोला अब कुछ नहीं हुआ । बस कहकर सुरेश रोने लगा । रामदास से आगे बढकर डॉक्टर से बात की । तब्बू ने पता चला कि उनके घर में नया चिराग रोशन होने से पहले ही बोझ गया है । यही सब सोचकर उन्होंने कहा चलो होना था हो गया हूँ । अब अस्पताल के बाद घर वापस चलो । बहुत तुम्हारी मान निशा का ध्यान रखेगी । सुरेश ने सुना तो पिता के कलेजे से लग गया और कहा पापा मुझे माफ कर दो । मुझे शायद चुपकर शादी नहीं करनी चाहिए थी । शायद इसलिए भगवान ने मेरा बच्चा मेरे से छीन लिया । केकर सुरेश फूट फूटकर रोने लगा । पिता ने अपने नादान बच्चे के सिर पर हाथ रखकर कहा कोई बात नहीं, प्यार में ऐसा हो जाता है जो हो गया तो तो वापस नहीं आएगा । पर घर का ध्यान रखो कहकर रामदास जाने लगा । तब जो बोली पापा यही रखती हूँ । अब भैया को घर ले जाओ और कुछ खाले वो आराम कर ले तो ठीक हो जाएगा । सुरेश ने कहा नहीं मैं ठीक हूँ । जब खुशी थी आपने बाबा को शामिल नहीं किया, पर आज दुख है तो वह कैसे इसमें शामिल कर सकता है । घर की ओर जाते हुए भी सुरेश के कदम जैसे मन भर भारी हो गए थे । ना चाहते हुए भी हो जा रहा था क्योंकि वो बहुत टूट चुका था । जब एक बार घर से निकल जाओ तो दोबारा घर में जाना ऐसा एहसास दिलाता है जैसे हम पराये हो गए हैं । हमारे अधिकार जो पहले था तो फिर नहीं रहता । कैसे और क्यों होता है ये सोचकर ही भगवान के इलाकों समझना कठिन लगता है । पार्वती ने अपने सुरेश को वापस घर आता देख महसूस किया कि जैसे एक सहारा जो चला गया था, वापस आ गया है पर रुपए से नाराजगी दिखा रही थी । सुरेश ने आकर माँ के पैर छुए, पर पार्वती कुछ नहीं बोली । पता चला कि बच्चा पेट में ही मर गया है और सुरेश दुखी है । तो जैसे सारे गिले शिकवे भूल गई और प्यार से बिठाया । कुछ कारण और उसके लिए खाना लेकर आई सुरेश ने भी कुछ नहीं कहा । बस चुप चाप खाना खाने लगा, पर उसकी आंखों में कभी कभी आंसू झलक जाते थे । उधर पार्वती भी आंसू देखकर और ज्यादा पिघलती जा रही थी । जैसे सुरेश ने कुछ गलत किया ही नहीं । पर इतना सब होने के बाद भी पार्वती का निशा को लेकर विरोध जरूर था । मैं उसे उसकी मायके ही भी होंगी, जैसे राजू को उन्होंने भेजा है, पर कहा कुछ नहीं । एक वहाँ अपनी बेटी के साथ हुए अन्याय को सहन ही बता रही थी । उसने तय कर लिया था कि वह सुरेश को इसके लिए मना लेगी । इसलिए खाना खाने के बाद इधर उधर की बातें होने लगी । पर पार्वती के अंतर्मन में एक युद्ध की तैयारी चल रही थी । कैसे वो निशा को उसके मायके भेजते । कहते हैं कि स्त्री ही सीखी दुश्मन होती है और दूसरी तरफ दोस्त वो सहायक भी होती है । वही हो रहा था । एक तरफ बेटी का प्यार ऍम दूसरी तरफ निशा के प्रति द्वेष । अपने साथ हुए अन्याय को लेकर निशा के सुखों को दांव पर लगाने के लिए तैयार रामदास को लग रहा था कि अब बहु भी घर में आ जाएगी तो घर में रौनक लौट आएगी । उधर दादा यमुना दास ने अपनी आदत के अनुसार चिल्लाना शुरू कर दिया । क्या चाहिए अब सुरेश को क्यों आया है? हमारा मुकाला करवाकर उसे अपनी बहन नहीं देखी जो उसकी ननद से बिहार कर लिया । कुछ सोचना चाहिए था आजकल के बच्चे बस प्यार प्यार करे हैं । माँ बाप तो नहीं दिखते ही नहीं है । बस जो कुछ देखते हैं वो ना करेंगे । कुछ नया करेंगे । सुरेश दूसरे कमरे में बैठक सब सुन रहा था । वो अपनी गलती बराबर महसूस कर रहा था । कुछ दिनों बाद निशा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई तो रामदास वाला जो निशा को घर लिया है पर दादा जी पार्वती ने हंगामा खडा कर दिया । यदि ये घर आएगी तो मैं घर में नहीं रहूंगी, मर जाऊंगी पर इसे घर के अंदर नहीं आने दूंगी । इधर ज्यादा जी अरे भेजो इसे वहीं जहाँ से आई है तब वही आंगन में खडी दिशा जो सब सुन रही थी सोची लगी की अब मुझे वापस जाना ही पडेगा पर वो तो बिल्कुल अकेली रह जाएगी क्योंकि माँ तो घर में कदम नहीं रखने देगी । अब क्या होगा ये सोचकर परेशान होने लगी दो घरों के बीच लडकी को समय समय पर क्यों इस तरह इम्तिहान देने पडते हैं? क्यों नहीं उसे पलकों पर बिठाया जाता है क्या दो घरों की मान मर्यादा, इज्जत को वो नहीं संभालती । हर समय उसे समय की कसौटी पर ही कैसा जाता है । मन चाहता है सजन के पास रहने को, पर साजन को पाने के लिए उसे ही समय समय पर बताना पडता है कि वो सिर्फ उसकी है और उसकी ही रहेगी । क्यों पुरूषों को नहीं मिलती है सजा क्यों पुरुष एक अहसास हो सुख देकर अपने दामाद को दूर कर लेते हैं और उस अहसास को उस बिहार को पाने के लिए उसे क्या क्या नहीं करना पडता है । आज निशा के सामने भी अंधेरा छाने लगा लगा की वही बेहोश हो जाएगी । उधर सुरेश को भी खामोश देखो । बहुत डर गई कि अब प्यार का यही परिणाम होता है जिस पर भरोसा किया वहीं इस तरह खामोश होकर खडा हो गया । निशानी हिम्मत की और सुरेश से बोली सुरेश चलो वापस अपने घर चलते हैं और उत्तर की प्रतीक्षा में सुरेश के उलझन भरे चेहरे को मुखो देखती रही । सुरेश के चेहरे पर दो तीन मिनट में ही अनगिनत भाव आए और चले गए । पर निशा को वो कुछ कह नहीं पाया कि क्या करें । तब निशा को लगा जैसी माँ बाप की आज्ञा न मानने से लडकी के सामने ये परिणाम भी सामने आ जाते हैं । पर वह कुछ ना बोली और सुरेश को बलपूर्वक हाथ से अपनी और खींचने लगी । तब सुरेश ने कहा देखो निशान तुम्हारी तबियत खराब है इसलिए तो यहीं है । अपने मायके में रहकर यह आराम करना चाहिए क्योंकि मैं तो में खोना नहीं चाहता और यदि हम वापस घर गए तो तुम्हारी देखभाल कौन करेगा तो भी देखभाल की जरूरत है । ये तो माँ का गुस्सा है । अभी सब ठीक हो जाएगा । पर निशा को लगा कि यदि वो यहाँ रहेगी तो जैसे माँ भावी को दिन जाता नहीं देती थी वैसे ही ये लोग मुझे बिताने देंगे । इसलिए उसे सोचा कि इस से तो अच्छा है कि माँ की ही सुन ली जाए और इस तरह मेरे घर वालों को भाबी को घर से निकालने की सजा भी मिल जाएगी । पर सजा शायद ही शब्द तो उसे अपने पर ही लागू होता दिख रहा था । सजा तो मुझे रही है न साजन माइका, ना बच्चा यही था । अभी फैसला वापस जाने से तो अच्छा है कि मुझे कहीं मर जाना चाहिए । पर इतने महिला जो अंदर से आई और बोली चलो भाभी अंदर चलो उसके हाथ में पूजा का था था । उससे निशा के माथे पर टीका लगाया और अंदर आने लगी । लाजु भी माँ और बाबा की सब बातों को सुन रही थी, पर वो निशा को अंदर ले आई । निशा की आंखों में आंसू झलक आए । तब ना जो बोली ना रोना नहीं । इतने में ही पार्वती वहाँ आयोजना जैसे कहने लगी क्या तुझे घर साजन कुछ नहीं चाहिए जो इसको अंदर ले आई? राजू ने बडे प्यार से वहाँ से कहा हाँ क्यों बात का बतंगड बना रही हूँ । अब मेरी ननद नहीं इस घर की शोभा है । हमारे आंगन में मैंने मैंने फूल खिलाने वाली मालिन है तो उसका अनादर कैसे कर सकती हूँ? माँ ही हुआ कि जरूरी है कि सब लडकियों के साथ हो । मामू मेरी ननद भी हैं और ननद के लिए भावी माँ के समान होती है क्या एक माह चाहेगी उसकी बेटी की खुशियों की अर्थी उसके सामने से लिखिए और इस सबसे पहले तो मैं एक नारी हो । एक लडकी, एक बहू, एक स्त्री का मान सम्मान बचाने के लिए हमें उसका सहारा बनना चाहिए ना कि उसके आंसूओं को और बढाना चाहिए । निशा लाजु की बातें सुन रही थी । उसे ऐसा लगा कि शायद मेरी ही गलती थी जो मैंने भैया वहाँ को लाजो भावी पर अन्याय करने से नहीं रोका । नहीं तो आज मेरे भाई का भी घर बसा हुआ होता । इतनी प्यारी भाभी से घर मेहरूम ना होता का मैं कुछ कर पार्टी और निशाने आगे बढकर राजू के पैर छू लिए भी बोली भाभी आपके विचार कितने महान है? हम तो कुछ भी नहीं दे पाए पर आपने मुझे संकट की घडी में भी अपनाया जबकि आप इस समय कह सकती थी कि मैं क्या करूँ पर आप नहीं अपने नाम की तरह अपने घर की लाज वही से अपनी ममता के आंचल से ढककर रखें । इस उपकार का बदला में कैसे चुका हूँ की मौजूद बडी प्यार से निशा को उठाया और कहा तुम बीमार हो तो मैं प्यार वो आराम की जरूरत है । मैं तुम्हारी ननद हूँ । बाद में ठीक हो जाने के बाद तो भी मेरे नखरे भी उठाने पडेंगे । इस वक्त निशा को लग रहा था जैसे लाजोस थी न होकर किसी देवी का रूप हो उसे दुखी करना । जैसे भगवान को दुखी करने के बराबर है उसका गुस्सा । अपनी माँ बाप भाई वो भावना के प्रति और भी बढ गया । पर गुस्सा तो गुस्सा है । कोई से कुछ कर दो सकता नहीं । राजू की इस प्रकार कहने से रामदास को भेज रहा था जैसे उनकी बेटी ने घर के संस्कारों की लाज रखी है । पार्वती को भी राजू ने बडे प्यार से समझाया । कहा मांग मेरे और तुम्हारी किसी भी गलत व्यहवार से कोई मुझे सुखी नहीं कर पाएगा । इस तरह हम अपने दुखों को और बढा लेंगे । मैं उस देश नहीं दे रही पर शांति से कुछ सोचो तो लगेगा कि यही अच्छा है । मैं ही नहीं निशा भी आपको अपनी ही लगेगी । किसी की गलतियों की सजा किसी और को नहीं देनी चाहिए । पार्वती ने कुछ कहना चाहता पर लाजु ने कहने नहीं दिया । उसने कहा मेहनत भी अब भाभी है जो अपने घर परिवार को छोड कर मेरे भाई के साथ अपनी जिंदगी बितानी है । इसके लिए हमें इसका सहारा बनना चाहिए । यदि इसकी जिंदगी में से कुछ दुखों को हम निकाल कर बाहर भेज सके क्योंकि हम छोटे हो जाएंगे । नहीं मांग ये हमारा फर्ज है । इससे हमें मून ही होना चाहिए । तभी वहाँ पालक आई और कहने लगी एक काली सी भी मुझे नहीं चाहिए । निशा के कानों में भी पालक की आवाज सुनाई पडी । तब राजू पालक के ऊपर हाथ रखकर एक चप्पल लगाते हुए इशारे से कहने लगी बहुत मारूँगा । यदि ऐसा कहा तो पर पालक भी कहा मानने वाली थी । वो भी गए सुरेश के पास और कहने लगी हूँ भाई तो काली रोटी पसंद नहीं है ना काली रोटी तो नहीं खाते तो फिर इस काली से शादी क्योंकि तो कितने गोरे हो? सुरेश के निशा की तरफ देखा जो से ही देख रही थी और इशारे से कहा बताओ पालक को? क्योंकि काली से शादी पालक भी अब दसवीं कक्षा में थी पर ही वोट । तब सुरेश ने शरारत से कहा किस काली ने मेरे ऊपर जादू कर दिया था? पालक बोलिंग जादू करने से ऐसा होता है तो ज्यादा उतरवाओ जादू दते ही काली भाग जाएगी तबेला जो वहाँ और बोली अब तो चुप होती है कि नहीं? पालक बोली नहीं कुछ गोरी कोई भाभी चाहिए निशाने मूठभेड लिया तब निशा के लम्बे बाल देखकर बाल बोली पर बाल अच्छे हैं तभी राजू को लगा जैसे निशा की आंखे भर आई है । तब राजू ने पालक से कहाँ देखा बोला दिया ना भाभी को । पलक को भी लगा कि अपने शहर होने लगी है तो उसे डांट पडने वाली है । इसलिए फटाफट उठकर उसने निशा को बडे प्यार से अपनी और देखने को कहा और बोली लोग होती हूँ उपर से पालक हस रही थी पर अंदर से उसे डर लग रहा था कि यदि मैंने उसे नहीं हटाया तो घर वाले मेरी जो वार्ड लगाएंगे उसे कोई नहीं बचा पाएगा । ये तो ला जो देने की नदी है । फिर बोला जो दीदी मेरी चटनी बना देगी इसलिए वो दिशा को हसाने की कोशिश करने लगी । जब निशत थोडी सामान्य होने लगी तो फिर पालक को लगा कि काशी गोरी होती मन में आई बात एक सिटी में जगह डाली गाई भाभी जान तो थोडी गोरी होती कहकर जेट वहाँ से उठकर भाग भाग गई । बाहर जाते जाते भी बोले चलो अब रोज दूध मलाई से नहाना धीरे धीरे गोरी हो जाओगी उसके पीछे पीछे का जो भी भागी शहर तो मैं बताती हूँ तुझे और तेरी दूर बनाई हूँ । उसके जाने के बाद सुरेश से निशाने पूछ लिया तो सुरेश अपनी बहन के लिए गोली भाभी क्यों नहीं आई? तब सुरेश ने कहा हूँ क्योंकि गोली को जब देखते हैं हमें तो ऐसी चाहिए थी जिसे सिर्फ हम देखें और वो हमें देख के जमाने का क्या है? वो तो होता ही ऐसी उडाने के लिए और बताया तो तुम्हें ज्यादा जो कर दिया था वो जादू हटाना मत नहीं तो मैं उठ जाउंगा । निशाने कहा मैंने जादू किया था या तुमने दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे । देखते देखते सुरेश ने कहा मेरे ऊपर तो कचौडियों ने ज्यादा किया था तो तुमने मेरे भर करके लाई थी । मैंने सोचा था कि एक बार खिलाड होगी तो दोबारा वापस नहीं होंगे । बर्तन तो बदला लेने के लिए मेरी जिंदगी को ही अपना बैठे । मैंने सोचा था कुछ और लेकिन तो भारी कसर नहीं । मुझे अपना बना लिया । तुम्हारी अपने बनने तुम्हारे अच्छे आवाज नहीं और तुम्हारा उस सारी कचौडिया खाया जाने के कारण भी लगा हूँ जैसे मैं तुम्हें कुछ भी होगी तो वो भी घायल हो गया । तब मुझे तुम पर थोडा तरफ भी आया था पर सोचा था चलो मीठा खिला देती हूँ तो आप खिलाडियों मीठा कहकर सुरेश निमिषा को अपनी और खेल लिया और मिठास कुछ इस कदर बढी कि दोनों अपने प्यार की मस्ती में डूब गए । पर निशा को इन पलों में भी अपनी प्यारी नरेंद्र है । वो भाभी के मेहरूम हुए बिहार उस सुखों का नाम मिल पाना महसूस हो रहा था जैसे उसका मन रह रहे कर उसे इस बात के लिए झगडा हो रहा था हूँ की क्या तो कुछ नहीं कर सकती अपने भाग्य के लिए बस लाजो ही त्याग वह सहारे की मूर्ति बन सकती है तो नहीं आज पूरनमासी है ना जो टीवी उसके प्यार को पाने के लिए ये वैध रख लो । दादी ने अब की पूर्ति के सिर को दुलारते हुए कहा पर अभी पाॅवर कितने रखेगी । सोमवार का बृहस्पतिवार का शुक्रवार का पहले ही रख रही है । इस बीच राजू बोले मैं कोई बात नहीं मैं होगी जैसे ना जो आपने मनी मन कह रही हूँ कि पति चाहिए वहीं जिसमें छुआ ये शाहिद पहली बार उस मान के अहसास तो शरीर की प्यास मिटाने के लिए वही चाहिए क्योंकि तन मन में शहीद के रूम रूम में वहीं बस गया है । फिर क्या जरूरत इस शरीर की चाहे रहे या नष्ट हो जाएगा । लाजु को लगता था राजेंद्र सिर्फ उसे ही प्यार करता है । तभी तो वह रात को वही भावना के बडा रहता था जैसे उसका मन है उसे बोल बडा हूँ । राजू ने जवाब नहीं कहा, वो आना चाहते हैं पर वो नहीं आने देगी । घर का माहौल ऐसा है कि आदमी आकर भी नहीं आना चाहता हूँ । मन कहता तो तो दीवानी हो रही है उसकी । वो तुझे देखना नहीं चाहता हूँ और दो मारे जा रही हूँ । मैं क्यों चाहूँ क्यों ना चाहूँ मालूम नहीं है, मौन है फिर भी मन अहसास उनका ही देना है । हर याद में धडकन तेज हो जाती है । घर बारे में उम्मीद नजर आती है मैं चाहूँ चाहूँ मन बस उनका ही होना चाहता है । दादी के अनुसार बतायेंगे । पूरनमासी के व्रत को भी राजू ने सहजीव स्वीकार कर लिया । रात को चांद देखने के लिए जब राजू ऊपर छत पर गई तो जल देकर वहीं बैठ गई और जन को एकटक निहारती रही । कहती रही मामा अपनी भांजी का पति उसे दिला दो । कैसे रहूँ में पति के प्यार के बिना दीपक अपनी छत पर दूर बैठा राजू की छत पर होने का अनुमान कर रहा था । पहला जो कोने में बैठी थी उसी राजेंद्र की उंगलियों के स्पर्श का अहसास अपने हाथों में बालों में पर अपनी होटों पर महसूस हो रहा था । वो उस अहसास में खो जाना चाहती थी । वहीं बैठे अपने व राजेंद्र के प्यार के मिलन को अपनी यादव में सजाए अपने समय को बिता देना चाह रही थी । जब बहुत देर तक लाजु नीचे नहीं आई तो निशा उसे देखने छत पर चली गई हूँ । वहाँ राजू को कोने में बैठ कर रोते हुए देखा तो निशा का मन भारी सा हो गया । आज निशा को घर आए पांच महीने हो गए थे । निशाने दूर छत पर दीपक को देखा जो लाजु की और देख रहा था । निशा को राजू की खुशियों को जगाने के लिए एक कॅश किरण को अंजाम देने के लिए अपने आप को लाजु की खुशियों को लाने के लिए लगा दिया । मुझे सोच लिया हूँ कि अब वो अपनी मेहनत को जो नहीं नहीं देगी ।

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एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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