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लाजो- 7.1 in Hindi

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988 Listens
AuthorSaransh Broadways
एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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भारत साथ आज मौसम में तूफान का हमेशा नजर आ रहा था । उधर निशा भी रोज तो नहीं कभी कभी सुरेश से जरूर मिलती थी । सुरेश के व्यक्तित्व से वो इतना प्रभावित हुई कि दोनों अपने घरों की परेशानियों की चर्चा गर्दी करते कब पास आ गए, उन्हें खुद भी पता नहीं चला हूँ । व्यहवार में अच्छी पर सामने निशान हवा के चलने पर जब उसके लंबे घने बाल सुरेश के गालों को छोटे थे तो वो भी सुरेश से हो जाती थी । आज भी सुरेश में निशम मिलने के लिए पार्क में आए हुए थे । अब दोनों में घरों की बातें कम होती थी । दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते रहते थे और कुछ नहीं कहते थे । आज भी दोनों बैठे हुए चैन खा रहे थे कि निशा का हर सुरेश के हाथ चीज हो गया तो निशाने कहा सारी । तब सुरेश ने ऐसी शरारत भरी स्माइल पास की कि निशा के हाथ में पकडा हुआ चलो का लिफाफा गिर गया और वो बोली सोनी । तब धीरे से सुरेश ने उसका हाथ अपने हाथों में पकडा और कहा कि सौरी की कोई जरूरत नहीं । मौसम कह रहा है कि घर वापस चलते हैं । मौसम का मिजाज बिगडा महसूस कर निशाने हाथ छुडाने के लिए जैसे ही हाथ खींचा की सुरेश ने हाथ बहुत कसकर बना लिया हूँ और शरारत से मुस्कुराने लगा अपने पास निशा को खींचकर वो उसके कंधे पर हाथ रखकर चलने लगा । तभी निशाने पूछा सुरेश हमारा क्या होगा? हम ये सब क्या कर रही है? घर में भी समस्या है और हमारे कदम बहक रहे हैं । सुरेश ने कहा शायद भगवान यही चाहता है ये लोग क्या यू का हो? तुम्हारे भैया ऐसे तो मानेंगे नहीं । जब उनकी बहन कुछ समझाएगी तो शायद वो समझ जाएगा । तभी जोर जोर से बारिश की बौछारें पडने लगी । बचने के लिए दोनों तेजी से कॉलेज की तरफ भागे । पार्क से दूर पर जहाँ वो थी वहाँ से पांच ही था । लेकिन बारिश इतनी तेज की दोनों बुरी तरह भी गए । वहाँ पहुंचे तो सुरेश निशा एक दूसरे की तरफ देखने लगे । सुरेश का गठीला बदन उसकी कमीज से छात्र में लगा था । रह रहकर निशा का ध्यान वहाँ चला जाता था । सुरेश भी उस की कमी से उसके बदन की तराश को देख रहा था जो उसे आकर्षित कर रही थी । इतने में कौन स्टेज में बैठे दो नौकरी में से एक ने कहा बाबू जी ठंड लग जाएगी । आप लोग अंदर कमरे में चले जाइए । जाने बारिश कब रुकेगी? ईशा को घर जाने की भी जल्दी थी पर सुरेश का साथ पाने के लिए । न जाने क्यों मान क्यों बेचैनी महसूस कर रहा था । नौकर दोनों को कपडे व कम्बल देकर चला गया । वही एक और हीटर भी चल रहा था । दोनों ने कपडे बदले और आपके पास हादसे देखने लगे । निशा को ना जाने क्या सोचा कि वह सुरेश बोरे मुझे शादी घरों के सुरेश हक्का बक्का हो उसे देखने लगा और हामिद गर्दन ज्यादी तब निशाने आगे कहा फिर पता है तो मुझे छोड देना । सुरेश निशा की इस बात पर जोर से हसने लगा ये क्या बकवास है? सच बकवास नहीं, बिल्कुल है । सब इसी तरह ठीक होगा नहीं तो कुछ ठीक नहीं हो पाएगा । अच्छा जी हम शादी कैसे करेंगे? क्या दोनों की घर वाली मान जाएंगे? निशा ने कहा नहीं मानेंगे तो क्या हुआ । हम मंदिर में शादी कर लेते हैं और अब और कहते कहते निशन शर्मा गई । तब सुरेश उसे धीरे से अपनी पांच की और उसके होटल को प्यार से चुनने लगा । ऐसा करते करते वो कब एक दूसरे के हो गए पता ही नहीं चला । जब होश आया तो निशा नहीं पाया की उसकी और सुरेश के ऊपर एक नंबर था और सुरेश के साथ उस कम्बल में वो बिलकुल सटकर हो रही थी । जब उसने उठना चाहा तो सुरेश ने भी थोडा और कसकर उसे अपनी बाहों में भर लिया । उस आनंद उस प्यार में एक निश्छलता थी जो दोनों को उन्मुक्त कर रही थी । सुरेश का गठीला बदन निशा के कोमल अंगूठी सडा हुआ था । दोनों उठा नहीं चाहते थे । एक दूसरे को भरपूर बिहार कर रहे थे । निशा को ना तो अब घर याद आ रहा था न घबराहट महसूस हो रही थी । वो अपने मजबूत सारे को छोडना नहीं चाहती थी । आज से अपनी भाभी लाजु का कुछ सुख से वंचित होना महसूस हो रहा था । आज से पता चल रहा था कि लाजों को क्या कमी है । श्री पति का सामने देव प्यार पाना चाहती है । चुडा जो भाभी को नहीं मिल पा रहा था लेकिन निशा को अपने भाई के लिए भी दर्ज महसूस हो रहा था क्योंकि भैया भी तो बंदी चाहते हैं पर ले नहीं पाती । सब भगवान की रची लिया है । थोडी देर बाद दोनों संयत हुए । फिर उन दोनों ने फैसला किया कि वो शादी कर लेंगे । और घर वापस नहीं जाएंगे । यदि घर वाले कुछ कहेंगे तो हमेशा अपने भैया से कहेगी । पहले लाजो भाभी को सर सम्मान अपने घर लाना होगा नहीं तो वह कभी वापस घर नहीं आएगी । सुरेश अच्छी खासी नौकरी कर रहा था । तनख्वाह अच्छी थी इसलिए दोनों ने एक मंदिर में जाकर शादी करेंगे । साथ ही रजिस्ट्रार मैरिज ब्यूरो जाकर रजिस्टर्ड मैरिज भी कर ली थी तो उन्होंने अपने घर टेलीग्राम भेज दिया हूँ । हम दोनों ने शादी कर ली है । आप लोगों को मंजूर हो तो हम इस पते पर है । यदि नहीं तो हमारा कोई पता नहीं है । लेकिन यदि भैया ला जो भाभी को घर लाकर पूरी इज्जत देंगे तो मैं घर आ जाउंगी और बेटी की विदाई मुफ्त में हो गई । ऐसा मत समझना । समय आने पर मैं अपने हिस्से का सब कुछ होगी । ऍम पढा तो आखिरी पंक्तियां काटने लगा । तब निशाने कहा रहने दो नहीं तो रूस कचोरी में लाल मिर्ची खिलाऊंगी । सुरेश ने भी समर्पण कर दिया और हल्के हल्के हसने लगा । निशाने भोलेपन से कहा तो मेरे साथ खुश हो ना । तब सुरेश बोला हम क्या करें? घर के हालात को ठीक करने के लिए तो मैं सहन करना ही पडेगा । इतना सुनते ही निशाने भी कहा । हाँ हाँ, मुझे भी तुम्हारे घर को ठीक करने के लिए सहन करना पडेगा । क्या करें कहकर वो जाने लगे । तब सुरेश ने उसके बालों को पकडकर अपनी तरफ खींचकर कहा बंदरिया नकल कर दी है । कुछ तो रीजल कहकर तविशा बोली तो अंदर हो तो मैं शादी के बाद बनी भारीपन दरिया हूँ । सुरेश ने फिर कहा अब बंदरिया से ये बंदर एक पप्पी चाहता है । मिलेगी तब दिशा बोली ऍम जो निकालती है, पत्ते ही देती, दाद दिखाती है । सारी कहकर वो रसोई में चली गई । इसी नौकझोंक में दोनों अपनी सुन्दर से फ्लाइट में रहने लगे । इस फ्लैट में ज्यादा कुछ नहीं था । दो कमरे का छोटा सप्लाई था । इधर पिता रामदास को सुरेश के इस बर्ताव पर बहुत गुस्सा आ रहा था । सोच रहे थे आजकल के लडकों को तो बस अपने से मतलब है ना बहन की सोची नाम आमिर ना घर परिवार की, कैसे वो किसी के प्रश्नों का उत्तर देंगे । बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने सुरेश को माफ कर देना ही मुनासिब समझा । क्योंकि बहुत कुछ ऐसा हो जाता है जो कोई चाहता नहीं है । फिर भी उसे करना सहना पडता है । बहुत मजबूरी होती है । फिर भी सब स्वीकार करना पडता है । अब जब शादी करके घर बसा ही चुका है तो क्यों हमें उसकी खुशियों का सम्मान नहीं करना चाहिए । ऊं अभी उसी स्वीकार कर लेना चाहिए । पर ही बार तो उसे हम से पूछना चाहिए था । फिर आपने ये प्रश्न का अपने आप उत्तर देते हुए सोचते कैसे कहता हूँ घर का माहौल ऐसा बना हुआ था । इसी सोच रहे नीचे क्या कि हमें जाकर सुरेश और भूख को घर लिया आना चाहिए । पर जब पार्वती से कहा तो वो बोली तो भारा दो दिमाग खराब है तो तो बेटे के प्यार में भूली गए की एक बेटी से ससुराल के बाहर है और एक को देखना है एक लडकी की पढाई पूरी करवाकर काम पर लगाना है । ये तो कमाई के साथ साथ अलग घर बसाकर सारे कामों को हमारे ऊपर छोडकर चला गया नहीं । पार्वती सुरेश का फोन आया था । वो कह रहा था बाउजी मैं जो भी कर रहा हूँ यही सोचकर की शायद अब जीजा जी दीदी को ले जायेंगे और मैं और निशा एक दूसरे को प्यार करने लगे हैं इसलिए हम दोनों शादी कर रहे हैं । हमें मालूम है कि यदि हम घर आएंगे तो शायद शादी को कोई भी स्वीकार नहीं कर पाए । इसलिए आपको हमारा निर्णय उचित लगे तो इस पते पर अगर हमें आशीर्वाद देंगे जरूर आइयेगा । तब मैं गुस्से में था । मैंने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया । इसलिए अब जब मैंने ठंडे दिमाग से सोचा तो मुझे लगता है कि हमें उनको घर बुला लेना चाहिए । पार्वती जो पीटी के गम के अलावा कुछ सोच नहीं पा रही थी, बोली बस आप बिना उसी का पक्ष ले रहे हो । दो दो जवान बहने घर में बैठे हैं और इससे अपनी शादी कर ली, वो भी उस की कमी जमाई की बहन से और कोई लडकी नहीं मिली से क्या इसलिए पढा लिखाकर बडा किया था । मुझे तो समझ नहीं आता क्या करूँ अपना जाने क्या होगा । यह कर अंदर कमरे में चली गई । रामदास का बहुत मन था की हो जाए पर पार्वती की उखड के नेहवाल को देखकर वो वही के वही रह गए और अपना जाना टाल दिया । पर राजू को लगा कि उसे अपनी भाभी अपनी बिहारी सीनियर के पास एक बार जरूर जाना चाहिए । वो जानती थी कि उसे वहाँ जाने की कोई भी इजाजत नहीं देगा । इसलिए जब सिलाई सीख नहीं जाती थी तब सिलाई सीखने जाकर वहाँ चलते हैं । निशा आपकी भाभी को देख कर बहुत खुश हुई और अभी भाई घर वालों के व्यवहार के कारण थोडी शर्मिंदा भी । पलाजो मन में बहुत खुशी महसूस कर रही थी । इस समय तो सब भूल गई थी राजू ने अपने साथ लाये साडी वह मिठाई अपनी तैयारी भाभी को भी तो निशा उसे लेकर हो गई हूँ और अपनी भाभी के चले लग गई । दोनों ननद भावज भावज ननद बिन ही एक दूसरे से बहुत कुछ कह रही थी । लाख चाहकर भी दोनों एक दूसरे के प्यार को समझ नहीं पा रही थी पर कई बार नहीं भी समझ पा रही थी । व्यक्ति के स्वभाव ही ऐसा होता है कि सब कुछ जानकर भी अनजाना बन जाता है ना । जहाँ पर भी कई बार ऐसा कर जाता है कि भगवान भी उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं । लाजु के दर्द को निशांत बखूबी महसूस कर रही थी क्योंकि वह समझ गई थी कि पति का प्यार एक बार मिलकर जब नहीं मिलता उसका दर्ज कैसा होता है । अपने जीवन में प्यार के रंगों को भरने वाले उस साक्षी को वो जीवन भर भूल नहीं आएगी । वो प्यार से कौन नहीं सकता है । हिंदुस्तान में जहाँ कोई भी मनुष्य उसको यू कहीं की स्त्री अपने पहले प्यार का ये अपने पति को नहीं भूल सकती क्योंकि उसे बचपन से ही सिखाया जाता है कि वह बार शादी करके दूसरे घर जाएगी । फिर तो वहाँ से उसकी अंतिम विदाई ही होनी चाहिए । वो इन संस्कारों को सीट के सीट के पल बढकर जवान होती है । कोई उसके इरादों को बदल नहीं पाता हूँ । जिस तरह से कोई आम का बेड होता है तो आम ही देता है नहीं बोलियाँ नहीं उसी तरह से हिंदुस्तान की लडकियाँ भी अपनी चरित्र कर्तव्य घर संसार को संभाल के आगे कुछ भी अहम नहीं समझती । पर यदि उसका पति ही उसको नाॅक उल्टी सीधी दोष लगाएगा तो क्या करें? तब भी यहाँ केसरियां अपनी जीवन को अकेले बिता नहीं पसंद करती थी । मन मसोसकर भगवान को समर्पित हो वो बाकी का जीवन गुजार देती थी । मैं समय बदला लडकियों के सपने के पूरा होने का समय आ गया । माँ बाप लडकियों को एक वस्तु ना समझकर इंसान सौ में से लगे । उन्हें भी लगने लगा कि हमें लडकों की तरह ही है । लडकियों के जीवन को सुख में बनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए । इतने में सुरेश भी काम पर से वापस आ गया देखते ही अपनी दीदी के पैर हुए और कहा दे दी शायद आपको बुरा लगे पर मैं क्या करता हूँ । वाकी को अधूरा ही छोड कर चुप हो गया । राजू ने भी ममता के साथ सुरेश के सिर पर हाथ रखा और कहा अरे भाई, जो होना होता है वही होता है । सब भगवान पर छोड दो । जो चाहता है वहीं होता है हम तुम तो नियमित मात्र हूँ । राजू ने बडे प्यार से सुरेश को आशीर्वाद क्या? सुरेश ने निशा को इशारा किया कि दीदी के पहले हुए तब लाजु संकोच पाँच कहा नहीं नहीं ये तो मेरी ननद भी है । मैं पहले कैसे छोड सकती हूँ? परेशानी कहा नहीं नहीं आज से आप मेरी बडी नहीं है । मैं आपकी भाविन जब आप भैया के घर भैया के पास होगी तो आप मेरी भाभी होंगे । पर अभी आपके आशीर्वाद की मुझे बहुत जरूरत है । क्या है की निशानी नीचे झुककर लाजु के पैर छुए तो लाजु की आंखों में अचानक आंसू छलक आए । तब सुरेश ने कहा अब कितनी आज सुबह होगी तो मारा । भाई भी कितना कमा निकला कि आपके आंसू भी सुखाना पाया पहले नहीं भैया ऐसा कहकर मुझे बडा बनने की कोशिश मत कर रहेगा तो छोटा ही बडा तो बन नहीं सकता हूँ । निशाने खाना बनाया तीनों ने मिलकर खाया फिर तूने कहा मुझे चलना चाहिए नहीं तो सब चिंता करेंगे । सुरेश काजू को गाली तक छोड वापस चलाया । अभी लाजु गली में चल ही रही थी कि उसके सामने से दीपक आता दिखाई दिया । दीपक उसे देख वही रुक गया और छुप छुपकर राजू को देखने का प्रयास करने का । जब राजू बिल्कुल उसके पास से गुजरी तो दोनों क्या की टकराएंगे । तबला जो को हंसी आ गई ही क्या सोचकर लाजु ने अभी हसी को वही दबा दिया । उसे लगा कि उसे इस तरह से किसी ने हस्ते देख लिया तो मतलब का बखेडा हो जाएगा । सोच कर दबे पांव अपने घर की ओर खोली थी । पर जब अपने मकान की सीढियाँ चढ रही थी तब अपनी हंसी को संभाल नहीं पाए और हसने लगी और जब सामने माँ को देखा तो खामोश हो गई । पार्वती आग्रह करके पूछते हुए बोली लोग अब हसने पर भी रोक लगानी चाहिए क्या हुआ बेटियाँ? राजू ने कुछ नहीं कहा कहा बस मैं ऐसे ही हंसी आ गयी । माँ पार्वती को भी लगा चलो इस बहाने हम सीढियों से ही शहर में ऐसा आकर्षण होता है कि दूसरे में भी बहुत तेज तक इस आकर्षण की मिठास बनी रहती है । ना जाने क्या था कि लाल को भी इस दीपक का अपनी और छुपा चुपी ताकझांक करना बडा अच्छा लगा था । पर अपने मन की इस गुदगुदी को बडी जल्दी भूल जाती थी जब उसी राजेंद्र क्या जाती थी मन मयूर नाचने लगता था । इंसान कुछ कर नहीं पाता बस मन को समझौता है समझाते समझाते कब आंखें भर आती उसे पता ही नहीं चलता था इस अहसास को जब तक वह सह पाती सहती पर जब सहन शक्ति खत्म हो जाती तो निढाल होकर अपने भगवान कोई आठ कर उसे ही दोषी ठहराती । लाजु का मन भी पूछता था ये प्रभु मैंने ऐसा क्या किया था जो तुमने मुझे कहीं का नहीं छोडा ना घर का ना किसी से बात करने का तबला जो को लगता था जैसे उसे राजेंद्र की घर ही रहना चाहिए था । कम से कम वहाँ दुनिया तो मेरे बारे में कुछ नहीं सोचती थी । सबको मालूम रहता था की लाल जो अपने घर में है, खुश है । फिर क्यों ऐसा होता है कि हम कुछ सही नहीं । बातें पलाजो तुम्हारे अपने आप से ही प्रश्न करती क्यों सहती रहती हूँ । मैं कि हमें हर समय कुछ कुछ सहती होंगी । मैंने जो किया सही किया । यदि भाग्य में रोना लिखा था तो हो रहे हैं । कम से कम सिलाई तो सीख रही हूँ नहीं तो ये भी नहीं मिलता । किस्मत में सोच कर फिर अब की आपको संयुक्त करने लगी । पर बार बार ये ऍम किसी का प्यार पाना चाहता है । किसी पत्नी के लिए पति का प्यार ही सबसे अधिक महत्व रखता है । पर जब उसे इसका सहारा नहीं मिलता तो बस काबू में ही पहुँच कर रहे जाती है । सोचती रहती है सोचती रहती है मिलता क्या है? कुछ कह नहीं सकती । यथार्थ में हर एक को जीना पडता है । हर कोई सोचता है पर कुछ सहकर कुछ भी करके कुछ तो रहा निकलती है । राजू ने अपनी हंसी के दरमियां आए विचारों, आंसू को अपनी सोच तो अपने तर्कों द्वारा एक रह गई तो मन कुछ शांत हुआ । उधर दिशा ने भी कॉलेज में अच्छे नंबर लाकर द्वितीय वर्ष पास कर लिया था । उसी के साथ पडने वाले हिमेश उसकी बहुत पास आने लगा था और दिशा के रूप को वो निहारता तो दिशा उसे आघा कर देती । यहाँ दाल नहीं गलने वाली । तब हिमेश लगता है जैसे ऐसा कहना लडकियों के कहने की आदत होती है । वो इस बात पर ध्यान नहीं देता था और उसे प्रभावित करने की कोशिश करता रहता था । मजाक करना, चुटकुले सुनाना उस की आदत थी । वो दिशा को अपने मजाक के सुभाव से इतना हंसाता था की दिशा भी उस का साथ पाकर अच्छा महसूस कर दी थी । पर अपना दिल को पवन को दे चुकी थी । पर जिंदगी में दूसरी होना शायद जरूरी है । इसलिए वो इसको महसूस कर अपने मन की बातों को मन में ही रख उसे लगा बढाने लगी । उसके साथ बैठना, पार्टी करना, वो उसका इसकदर ख्याल रखना । उसे इतना सुखद लगता था कि वह इस खुशी को छोडना नहीं चाहती थी । पर दिशा अपने परिवार के सदस्यों का सुभाव जानती थी । इसलिए उसे मालूम ढाकी लडकों से ज्यादा मेल मिलाप नहीं रखना है । बस हैलो हाय रखनी है और कुछ नहीं करना है, नहीं तो घर परिवार, समाज में बदनामी मिलेगी । भैया और दीदी के कारण वो उन बदनामियों को और नहीं बढाना चाहती थी । पर पवन को अपने विचारों से अलग नहीं कर पाती थी । उसी याद है जब ग्यारहवीं क्लास पास कर बारह में गई तो पवन से उसकी मुलाकात हुई थी । उन्हें अहसास को कैसे लोगों से कोई अलग करें । जब ही नहीं छोडना चाहिए तो क्या करें हूँ । प्यार दिखता नहीं है पर भगवान की तरह हर तरफ व्याप्त है । क्यों हम इसके लिए लगते हैं क्योंकि ऐसी दवा है जो अंग अंकों मान के हर कोनोको तरोताजा कर देती है । जब नहीं मिलता तो रोड आती है और जो मिलता है तो समय को पंख लगा देता है । कभी एक अनछुआ सा एहसास ऍन चलता भर जाता है । यही हाल दिशा का भी था जिसे चारों तरफ से प्यार ही प्यार मिल रहा था । इधर अनिरुद्ध को दिशा से बातें करना अच्छा लगता था । उधर हिमेश की दोस्ती और मन में पालता बडा होता पवन का प्यार । दिशा को भगवान ने काम खुशियाँ नहीं दी थी । शायद पर जब वो घर का हाल देखी तो उसे सारे जंग फीके लगने लगते । भाई रात को देश से आते हैं । माँ का भावी वनिशा की न होने पर दिशा पर ही जोर चलता था । पर दिशा भी जैसे पत्थर हो गई थी वो भी वही करती । वो सुनती जो उसे अच्छा लगता । वो ज्यादा कुछ नहीं बोलती । जो माँग रहे वो वैसा सब नहीं करती । भाई से वह इतवार को ही मिल पाती थी क्योंकि छुट्टी होती थी तब उसे अपने भाई के अकेलेपन को महसूस करके है । यानी होती एक बार जब भाई को बुलाने उसकी कमरे गई तो देखा भाई ललिता की फोटो को हाथ में लेकर बडी प्यार से उसके चेहरे पर हाथ भेज रहा था और उसकी आंखें नम थी । दिशा ये देख अंदर नहीं गई और वापस आ गई । पर मैं बोली अरे कहाना लेकर अब भाई को बुलाना खाना खा लेगा । दिशा ने माँ की और ऐसे देखा जैसे गहरी हूँ कि जाओ अपनी सहेली भावना से कहूँ वहीं कर सकती है कमीना पर मैं नहीं कर सकती । उर्मिला को दिशा की आंखों में ही जैसे बहुत कुछ समझा दिया था । इसलिए उर्मिला ने दुबारा ना कहकर खुद ही आवाज लगानी शुरू कर दी थी । राजेंद्र अरे राजेंद्र जब राजेंद्र आया तो दिशा ने देखा कि भाई की आंखों में कोई आंसू नहीं था और वह बहुत सहज दिख रहा था । आते ही बोला और दिशा सुना कैसा चल रहा है तेरा सब ठीक है नहीं । दिशा ने अपने भाई के रूट को देखकर अपनी आंखों की नमी को छुपाते हुए कहा भैया सब ठीक है, आप कैसे हो हूँ? नाश्ता कर लूँ । हाँ हाँ क्या बनाया है? मेरी गुडिया नहीं । मैंने नहीं माने बनाया है । हाँ हाँ, वही किया है बताना आलू की सब्जी पराठा ढाई और जलेबी भी है । पडोस के अंकल जा रहे थे । लेने माने उनसे मंगवा ली तो चलो अच्छा है । मैं तो सबका ध्यान रखती है । तभी उन मीना बोली तो कब सुनेगा मेरी अगर वो नहीं आ सके हैं तो तो दूसरी लिया बेटा घर में बालक हो तो सोना लागे हैं पर ना बालक है न बहुत है । कोई भी नहीं है तो बडा सोना सोना सा दिखे हैं । दिशा मन ही मन सोच रही थी पर कोई आए ये तुम जहाँ भी तो नहीं हूँ । कोई आता है तो चाहे नाश्ता तो करवाना ही पडता है । पर बोली कुछ नहीं । भाई से हंसी ठिठोली करते हुए नाश्ता खत्म हुआ । तब उर्मिला से राजेंद्र ने कहा निशा को कोई फोन आया क्या? उर्मिला बोली अब नाक कटवाकर क्या फोन करेगी? घर की नहीं सोची । माँ की नहीं सोची । बाप तो पहले चले गए । यदि नहीं गए होते तो अब इस की करनी से चले जाते हैं । उर्मिला जम्मू में आ रहा था तो बोले जा रही थी पर उर्मिला का मन भी या मन है तो बाहर से तो कह रहे थे पर अंदर ही अंदर बेटी को देखने की लालसा दबा नहीं पा रही थी तो सोच रही थी कि वो खुश होनी चाहिए । पर उर्मिला दूसरे की बेटी के बारे में नहीं सोच पा रही थी । राजेंद्र को भी लग रहा था जैसे घर में सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं है क्यूँ ऐसा होता है?

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एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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