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लाजो- 6.2 in Hindi

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999 Listens
AuthorSaransh Broadways
एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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निशा इतनी खराब हो गई और दिशा जो बाहर से ली गई थी । कमरे में आई तो पाया कि डीडी हो गई है । क्या होगा इसका? उधर देखो माल नाजुक भाभी को लाना नहीं चाहती । उधर भैया भावना आंटी को छोडना नहीं चाहती और इधर इतने कहानी ने जान ले लिया है । न जाने इस कहानी में क्या क्या देखने को मिलेगा । मेरे लिए क्या होता है मेरे भगवान दिशा ने बडे नाटक के ढंग से ऊपर की तरफ देख कर कहा और अपने प्रिय छोटे से रेडियो को लेकर भाई के कमरे में चली गई । सफाईकर्मी साथ ही साथ गाना भी गा रही थी मेरी भाविक कब आएगी का मुझे छुट्टी मिलेगी का है ना आवे क्यों तरसाव एक दिन तो आएगी । तभी पडोस में रहने वाले मल्होत्रा अंकल का लडका जो दिशा के साथ स्कूल में पढता था, आया और उर्मिला से पूछा आंटी दिशा घर में है क्या? उर्मिला ने उसे सिर से पांव तक देखा हूँ । फिर यही बैठ क्या अंदर देखे हैं आती है दिशा अब तो उसके साथ नहीं पडते हैं । फिर क्यों आये हूँ? इतना ही कहाँ तक की दिशा गई? हाई बंदर दिशा ने अनिरुद्ध को संबोधित करते हुए कहा तो वह भी कहां पीछे रहने वाला था । कुछ नहीं बनाया गोर्स्के किताबे हैं तुझे चाहिए क्या यही पूछने आया था चाहिए तुझे जाओ । अनिरुद्ध उसके इस तरह से संबोधित करने से चिढ गया था । दिशा भी अनुरीत को पसंद नहीं कर दी थी । पर वो दिशा पर लगता था न जाने उसे दिशा का गोरा चिकना रंग वो अलग बन अच्छा लगता था पर वो से बंदरी समझती थी और बंदर ही कहती थी पर अनिरुद्ध उसकी हर समय मदद करने के लिए तैयार रहता था । उसे मालूम था कि दिशा स्कूल के पवन को पसंद करती है क्योंकि वो पढाई में तेज था । अब वो अमेरिका पडने चला गया है । परानी क्या करेगा? मन है कि मानता नहीं अपनी बेज्जती करवानी ये यू कहूँ उसे दो पल निहाल में चलता है उर्मिला जो इतनी देर से उनकी बातें सुन रही थी । प्यार से बोले अरे भाई भक्तो बात हो रही ना जाओ बच्चे या बैठो तो चाय वाय पी कर जाना । अनिरुद्ध दिशा से बोला ठीक है तो मैं चाहिए तो बता देना जानती मैं चलता हूँ अन्य आपको याद है । एक बार जब दिशा और पवन स्कूल के पार्ट में बैठे पढ रहे थे वो दिशा को वहाँ दूर से खडा देख रहा था तो पाया था की दिशा पवन को पसंद करती है । पर पवन केवल अपनी पढाई पर ही ज्यादा ध्यान देता था । ऐसा लगता था मानो वो आकाश छू लेना चाहता है । पर अनुरोध को केवल दिशा को देखना वो उसका ध्यान रखना ही अच्छा लगता था । समय समय पर जैसे कोई अपने का ध्यान रखता है । समय ना जाने की ग्यारह दिखाई पडा निरुद्धि अपने मन मस्तिष्क में अपने सपनों की रानी दिशा को बना रखा था । पर दिशा की भावी लाजु के साथ जो हुआ उसे देखकर उसी दिशा के भाई के ऊपर बडा गुस्सा आता था । सोचता था आदमी है जानवर के इसलिए एक भगवान की मूर्ति को इस तरह से बरसाकर तडपाकर रखते हैं कि वह जिसे पूछे वही उसे छोडने पर मजबूर हो जाए । ऐसा क्यों? पर भगवान तो दोनों हाथों से लोगों को या चाहता है । लगता है पर कभी भी कुछ कहानी बस मंद मंद हस्ता है । कोई कहता है मनुष्य को अपने पिछले कर्मों का हिसाब चुकाना पडता है इस जन्म में या अगले जन्म में, पर इससे दूर नहीं जा सकता । पर किसने देखा पिछला जल्दी, अगला जन्म जो करना है हमें इसी जन्म में कर लेना चाहिए । कहते भी है कि दोबारा नहीं आना हो तो जन्म मरण के बंधन से छूटने के लिए इसी जन्म में सारे कर्तव्य कर लेनी चाहिए । सारी मनचाही चीजे कर लेनी चाहिए । सारे रिश्तों को जी देना चाहिए । सारी आजमाइशों में खरा उतरने की कोशिश कर लेनी चाहिए । नहीं तो हम फिर इस दुनिया के थपेडे खाने के लिए इस दुनिया में भेज दिए जाएंगे । समय का ये अजीब जगह जो इस दुनिया में भेज देता है । एक बेटी देकर पेट भरने के लिए आज भी रोटी कमाता है । रोटी कमाने के लिए वो कभी किसी दूसरे से मोहब्बत तो कभी किसी के साथ दुश्मनी करता है । पेट तो भर रही हैं फिर कुछ ना कुछ तो करना पडता है । जो कुछ नहीं कर पाता वो आत्महत्या तक कर लेता है । कैसे कमाए कैसे खिलाए ये भी उसके कर्मों पर ही छोड दिया जाता है । कब क्या होगा कुछ कह नहीं सकते पर समय अपना रंग जरूर दिखाता है । दिल जब अपना खेल खेलता है तो एक तरफ खुशियाँ तो दूसरी तरफ खामोशी आती है क्यूँ कभी दो प्रेमी भी एक होते हैं पर कुछ समय बाद उन्हें भी वैसा प्यार नहीं रह पाता क्यूँ हर इंसान भूखा है उसे कहना चाहता है देना तो भूल जाता है । वह कहता है कि यदि वह सब दे देगा तो उसके लिए क्या बचेगा । सूर्य सबको रोशनी देता है पर कभी भी कुछ मांगता नहीं है । उसे खुश करने के लिए लोग जल का एक लोटा समर्पित कर देते हैं । पर क्या वो जल देने से खुश होता है के सिर्फ मनुष्य का सुभाव है की चलो हमें भी कुछ करना चाहिए जैसे श्रद्धा दिखा रहे हो । हम भी आपको नमस्कार करते हैं । इस प्रकार भारत की संस्कृति में पूर्वजों ने समय समय पर अपने युवाओं को पूछने बना देने की भावना को भर दिया है । पालक अपने स्कूल में इंटरवल में अपना खाना खा रही थी कि तभी उसकी सही अरुणा ने जो दो साल पहले भी आठवीं कक्षा में फेल हो गई थी । पूछा पालक अब तेरी डीजी तुम्हारे घर पर ही रहेगी ना क्योंकि उनको तेरे जीजा जी ने छोड दिया है । तब पालक को लगा की किसी क्या जवाब दे क्योंकि उसे तो इतना भी नहीं पता था कि दीदी को जाना चाहिए क्या नहीं । बस उसे तो दीदी का साथ बहुत अच्छा लगता था । वो बोली कुछ नहीं क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों पूछ रही है । अब तक खाना खा क्लास अटेंड कर वापस घर पहुंची तो राजू से पूछा डीडी यही रहूँगी ना? अरुण पूछ रही थी कि आप क्यों अपने घर में ही जाती? तब राजू ने कहा हाँ मुझे अपने घर चले जाना चाहिए । पर पालक ने कहा दे दी आपका घर तो यही है । फिर आप क्यों कह रही हूँ कि मुझे अपने घर चले जाना चाहिए? राजू ने उसे समझाने के उद्देश्य से कहा हर लडकी को अपने पापा का घर छोडकर दूसरे घर जाना पडता है जिससे उसकी शादी कर देते हैं । फिर वही उस लडकी का ध्यान रखता है । खाना कपडा वो घर देता है जैसे बाबा करते हैं । पालक बीच में ही बोली वैसी ही राजू ने कहा तब तो मुझे भी जाना होगा । बदलने भी पूछा तबला जुने कहाँ कहाँ जाना होगा बने कहा ही जाने वाली हूँ ने कहा शादी होती है तो वो लडकी को सुन्दर सुन्दर कपडे मिलते हैं । सुंदर सुंदर सामान मिलता है हैं पहले एक साहसी बारी सोचे लगी की शादी कितनी अच्छी होती है । सबकुछ मिलता है और लाजो से बोली फिर आपकी दुबारा शादी होगी आपको दोबारा कभी मिलेंगे ना जो कुछ नहीं बोली परसो चाहिए कि बच्चा नहीं किया होगा । मन करता है इससे अच्छा तो मर जाओ पर मिलना भी किसी चीज तो पडेगा ही । जब जीवन पाया है तो भगवान तो है ही है । चाहे हो चाहे हस्कर जी जब हम किस्मत में लिखा कर लाए हैं कि हमें ऐसे ही जोरो कर जीना है तो कौन इसमें खुशियाँ भर सकता है, वहाँ निकलती है फिर भी कोई सुनता नहीं है, दर्द होता है मगर किसी से हम कहते हैं उधर कोई ना कोई राजू को रोज मंदिर जाने तू रहा सोमवार । ये कभी सोलह शुक्रवार के व्रत रखने की सलाह दे देता है । क्या करें, क्या न करें कोई कहता हूँ गरीब पार्वती मैं एक महाराज को जानती हूँ तो कहे तो मैं तुझे वहाँ ले चलती हूँ । बाबा जी सब ठीक कर देंगे । पार्वती किसकी सुनी, किसकी ना सुने उसे कुछ समझ नहीं आता था । पर आपने भगवान पर उसे पूरा विश्वास था इसलिए वह बेटी को कहती तुझे भगवान की व्रत रखना चाहिए । वहीं बेडा पार करेंगे पर लाजो को लगता हूँ भगवान को कुछ अच्छा करना होता हूँ तो पहले ही नहीं कर दिया होता हूँ । आज फिर उसे क्यों? इस तरह सबके सामने एक बेचारी की तरफ बैठना पडता ये भगवान भगवान कुछ नहीं होते पर अगले ही पल लगता हूँ तो फिर कौन करेगा? यमुना डांस इमरतीदेवी से कह रहे थे कि अपनी बेटी है तो ठीक है । ये सब बेटी को बढाने दिखाने का नतीजा है । ना तो ग्यारवी बत्ती नखरे करती । वहीं ससुराल में ही रहती राजू कब सहानुभूति से ज्यादा अपमान महसूस होने लगा था । सोचती थी शादी से पहले थी कि ना कोई कुछ कहता था ना कोई कुछ सुनाता था । सब सुंदर है, प्यारी है, अच्छी है यही कहते थे । आज सब उसमें अच्छाई की जगह बुराई ढूंढते हैं । ऐसा क्यों होता है? बस पापा जी हैं जो समझ रहे हैं । राजू ने उनसे जाकर कहा पापा मैं सिलाई सीख लूँ । रामदास को लगा हाँ ये उसके लिए अच्छा रहेगा, मन भी लग जाएगा । इधर यमुना दास फिर भर के मैंने समझ नहीं आता है क्या चाहूँ बेटी ने घरी बिठाना है क्या, जो विषय सिलाई सिखाने के लिए घर से बाहर भेज रहे हो? इमरती देवी ने कहा और क्या मन पर पहाड लिए होती रहेगी? तुम तो समझे नहीं हो । हाँ, मैं ही बुरा लागू हूँ । फिर ना कहना जब छोडी को कोई ना ले जाएगा । कहते हुए यमुना दास ने एक टुकडी मारी इमरतीदेवी भी मूड बिच का आकार एक तरफ बैठ गई । उसे मालूम है यदि वो बोलेगी तो यमुना दास उसे वो सुनाएंगे की वो कुछ भी नहीं कर पाएगी । ना जाने उसे क्या सूजी की उठकर कमरे से बाहर चली गई । तब यमुना दास भी विचार मगर हो गए कि ये क्या हो रहा है । आजकल तो टिक काबू में ही नहीं है । इस दुनिया को देखो वो बिच का दी है । पहले यही थी कि मैं कुछ भी कहता था मान जाती थी तभी तो मेरी सभी लडकियाँ सुखी है । अपनी आपसे बातें कर रहे थे की घडी देखी तो छह बज गए थे । उठकर टीवी खोला और वापस आ कर बैठ गए । सब कुछ भूलकर टीवी देखने लगे । इतने में ही पालक वहाँ आई और डरते डरते पलक ने पूछा बाबा जी मैं यहाँ बच्चों बच्चों का प्रोग्राम आ रहा है । यमुना दास से भी उल्टा ही बोला मैंने क्या मना किया है तेरे बाप का टीवी नहीं चल रहा है क्या नहीं टीवी तो चल रहा था पर बा बोली सारा दिन नहीं देखो लोग अब बच्चों को तो देखने देवी नहीं जल्दी अच्छा है । छोडी है क्या करेगी टीवी देख कर इस से तो अच्छा है कि कुछ खाना वाना बनाना ही सीखा जाएगा तो ससुराल में भी दिख जाएगी । यमुना दस मनी मंजूर रहे थे । टीवी पर बच्चों के प्रोग्राम में बताया जा रहा था कि कैसे लडकियों को भी लडकों की बराबर पढना चाहिए ना कि खाली । घर के काम काज ही करके अपना जीवन गंवा देना चाहिए । यमुना दास ने पालक से कहा जब अपनी दादी से कैसे खाना ला देंगी वो नहीं चाहते कि उनकी दूसरी पोती भी किसी तरह की सीख ले कि लडकियों को कुछ अपने लिए भी सोचना चाहिए । पुरानी सोच, पुराना स्वभाव, पुराने आदर्श इतनी जल्दी तो भाई नहीं जा सकते । परपोती के दुःख को शायद वो भी महसूस करने लगे थे जिसके कारण उन्होंने अपने मिलने वालों से जानने वालों से हर किसी से सलाह मशविरा किया था । पर कोई कुछ और कोई कुछ कहता था । कई बार राजेंद्र को बुलाकर रामदास हो यमुना दास ने बैठक रखी थी । पर राजेंद्र का मोहन सबको चुप कर देता था । जैसी कोई पूछता कि क्या कमी है राज्यों में क्यों दोनों और तुम्हारा परिवार इस तरह से उसे परेशान कर दी हूँ । तब वह कहता हूँ कुछ भी कमी नहीं है और चुप हो जाता है । जैसे हम किसी से जबरदस्ती कुछ नहीं करवा सकते हैं । वैसी कोई कुछ नहीं कहता था । रामदास को लगने लगा था कि इस मसले का कोई हक नहीं । हारकर बैठ के भी होनी बंद हो गई । यमुना डाल अब जब पोती को सिलाई सीखने के लिए जाते हुए देखते हैं तो कुछ नहीं कहती थी । पर गुस्सा बहुत आता था । राजेंद्र पर लेकिन चुप रह जाते थे और उदास मंत्री सोचती रही ना ललिता की दूसरी शादी कर देता हूँ । एक लडका मेरी नजर में है । उसके पास दो बच्चे हैं । पहली पत्नी मर गई है । ललिता बच्चों का ध्यान भी अच्छी तरह रखेगी और शादी भी हो जाएगी । तब रामदास कहते हैं चाचा, अभी हम मारे तो नहीं हैं, हम जिंदा है । कुछ ऐसे कहते हुए जैसे सब कुछ खत्म करना है, लडकी को काबिल बनाएंगे, कुछ अपने लिए जीना सिखाएंगे, ऐसे के रोने के छोड देगा । जिंदगी भर के लिए नाचा जाना । ऐसा कम से कम मेरे जीते जी नहीं होगा । हाँ, कोई दूसरा लडका शादीशुदा हूँ, पर बच्चा नहीं हूँ । दुनिया बहुत बडी है । कुछ ना कुछ तो राजू के लिए भगवान ने सोचा होगा । इस तरह हताश होने से काम नहीं चलेगा । जब माँ बाप हताश हो जाएंगे तो बच्चों के लिए कौन सूची का इमरतीदेवी वहीँ बैठी सब सुन रही थी । बोली हाँ फॅस ऐसा ही करूँगा । इनकी तो मति मारी गई है । जब देखो तब ऐसा ही बोले हैं और तेरी आंखों से यमुना दास को देखने लगी । तब यमुना डांस बोले बस तुझे तो मौका चाहिए कुछ पर बोलने का कुछ खाना वाना काम काज तो कर लेना है सोचे हैं बहु कर देगी सिर्फ फोडेगी तेरह काम तो तेरे मैं नहीं आऊंगा । इमरतीदेवी कुछ नहीं बोल परमानी मान बुडबुडी जरूर कर रही थी । गुड गुड करे हैं सामने क्यों ना बोले हराम खानी करेगी । सुनेना है बस बोले जाते हैं मैं क्या नहीं सोचा लाजु के लिए नहीं सुनते तो जाओ करो मन की चल भाग्या से सोने दे रात हो गयी है । सुबह जाना है कहकर यमुना दास हो गए । इमरती देवी भी बत्ती बंद कर चादर लेकर सो गई । रामदास तब तक जा चुका था । कमरे के बाहर ही खडी पार्वती सब बातें सुन रही थी उसे कभी यमुना दास कभी रामदास दोनों ही ठीक लग रहे थे पर कुछ निर्णय नहीं ले पा रही थी । क्या करें इसलिए कुछ नहीं बोली । बस अब सोचने लगी थी कुछ भी होगा । पर ला जो अपनी ससुराल चली जाएगी, नहीं जाएगी तो आगे बच्चों की शादी होने में भी दिक्कत खडी हो जाएगी । पर ये कडवी बात अपने मूल से निकाल नहीं पार्टी थी । हताश परेशान अपने को अपाहिज महसूस कर रही थी । जिसके कारण आज वो अपने ही बच्चों की खाते अपनी बडी बेटी के बारे में अब दूर तक नहीं सोच पा रही थी । कोई दवाई न दिखने के कारण समय के हाथों लाचार होकर जैसे अपनी एक अंक का जो दर्द कर रहा हूँ, कोई दवाई नहीं होने के कारण मजबूरी में उसका ऑपरेशन करवाना पडेगा । ऐसा पार्वती को भी करना पड रहा था । सुबह हो रही थी पर कहने का साहस अभी भी नहीं था । पर ऑपरेशन तो उस अंको, दूसरे अंगों को बचाने के लिए करना ही पडता है । तो उसी यही ठीक लग रहा था क्योंकि ऑपरेशन करने का निर्णय भी हर कोई नहीं पाता हूँ । फिर भी दिल को पक्का करके लेना ही पडता है । आज पार्वती को लग रहा था कि दूसरे बच्चों की जिंदगी में खुशियों के लिए लाजु को अपने ससुराल या दूसरी शादी कर यहाँ से चले जाना चाहिए, नहीं तो कोई भी कुछ नहीं कर पाएगा । अब राज्यों की किस्मत में जो लिखा होगा होगा तो वही यही सोचते सोचते है । न जाने कब पार्वती की आग लग गयी और वो हो गई ।

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Sound Engineer

Voice Artist

एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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