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बात छह दिन बीत गए जाती गुजरने लगी । रिश्तेदारों में तरह तरह की बातें होने लगी । राजेंद्र अपने मन में सोचता रहता क्या मिला जो हूँ कभी मन कहता हूँ कभी ना क्यूँ ऐसा क्यों होता है? मैंने उसे अपने सपनों की जानी महसूस किया था । फिर भी वो मुझे छोड कर चली गई । कुछ भी नहीं सोचा मेरे बारे में मैं उसे देखे बिना कैसे जी होंगा । परिजात को देर से आता था पर मेरा मन तो से दो पल देखने से ही खुश हो जाता था । क्या उसे सोचना नहीं चाहिए था? कुछ बस हुआ और चली गई तो क्या समझती है उसे बनाने जाऊंगा । मैं नहीं जाऊंगा । बाप आए, दादा आए, चाहे कोई भी आएगा । मैं किसी से नहीं डरता । मुझे क्या समझ रखा है । घर में रहो तो माँ कुछ ना कुछ कहती रहती है । अपने कमरे में आओ तो पत्नी कहेगी आंटी के पास जाओ तो आंटी को शिकायत मैं कहाँ जाऊँ? कम से कम आंटी डांट भी तो नहीं है । जो कहता हूँ वही खाने को बना देती है और क्या चाहिए राजू को मुझे संभाल कर रखना नहीं आया । अभी तो यही कहती है । फिर मेरी कोई गलती नहीं है । मेरे साथ । मेरे घर वाले हैं । मुझे डरना नहीं चाहिए । आई ही देने वाले लग रहा था । वो अंदर ही अंदर डर रहा है पर अपने आप को जबरदस्ती समझा रहा है । क्यों और कैसे? कब ऍम शाम के आठ बजे थे । राजेंद्र अपने पलंग पर अकेला लेटा हुआ था । सामने पर्दा खिडकी पर हल्के हल्के उड रहा था । राजेंद्र ने उठकर उसे बंद करना जहाँ पर जैसे शरीर में दम ही नहीं था । राजू के सामने उसे अपने अंदर हिम्मत हिम्मत नजर आती थी । पर अब तो ना जाने क्या हो गया था । वोट कर बैठना चाहता था पर बैठ भी नहीं सकता । हताश होकर वह सुबह सुबह करो नहीं लगा । सोचने लगा ये भी कोई जिंदगी है । मैंने कितना कहा था कि मैं शादी नहीं कर होगा । कोई भी लडकी अपना पति बाढ नहीं पाएगी । पर माँ को तो बहुत चाहिए थी । आई उस चली गई । पापा भी चले गए । सब की जिम्मेदारी मुझ पर ही है । चल राजेंद्र खडा हो कहीं से कोई नहीं आने वाला कुछ करने के लिए या फिर चल भावना के घर चलते हैं । राजेंद्र आंटी को अकेले में भावना ही कहता था । उसे कभी कभी लगता था जैसे भावना के आगोश में उसे चले जाना चाहिए पर ये सब हो नहीं पाता था । कभी कभी वो भावना को ऐसे देखता था जैसे वो उससे कुछ पाना चाहता हूँ । पर समय कब कैसे आता है किसी को नहीं मालूम । सब वही नहीं होता जैसा कि हम चाहते हैं । धीरे धीरे रात होने लगी थी । आज वो बत्तीस चलाने के लिए भी नहीं उठा । दिशा कमरे में आई और बत्ती चलाते हुए बोली अरे भैया क्या धीरे में बैठी हूँ? दिशा को देख राजेंद्र सोने का बहाना बना । आंखों को बंद कर ऍम दिशा को लगा भाई हो रहे हैं । फिर वो बडी बत्ती बनकर खिडकी को बंद कर नाइट लैंप जलाकर चली गई है । दिशा के जाने के बाद राजेंद्र अपनी आँखे खोलता है तो उसे लगता है जैसे लाजु सामने खडी है तो बहन बनी जब राजेंद्र सोचे लगा मैंने अपनी दिल की रानी को अपनी से दूर कर दिया है । मुझे कुछ करना चाहिए मेरे लिए भावना नहीं मेरी पत्नी मेरी सुंदरी कुछ मदहोश कर देने वाली मेरी राजकुमारी ही मेरी सब कुछ है । मुझे अभी बडी को लाने का प्रयत्न करना चाहिए । वो उठता है । ऐसा लगता है जैसे इस मिलने से ही उसमें एक नई ताजगी ने करवट है । वोट कर बाहर आया तो देखा कि उसका दूसरा रजत आया हुआ है । वहाँ से बातें कर रहा है । रजत को माँ से बातें करता दी । उसे भी वहाँ जाने लगा । पर माँ को राजू के बारे में बात करता सुन वो बीच में ही रुक गया । मैं कह रही थी कैसी बहुल आए भैया, हम तो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेगा और रोने की आवाज भी राजेंद्र को सुनाई पड रही थी । रजत की तरफ राजेंद्र नहीं देखा तो पाया कि वह चुप चाप बैठा हुआ था । रजत ने राजेंद्र को देख लिया था पर वह कुछ बोला नहीं । राजेंद्र ने सोचा कि वह वहाँ गया तो माँ का नाटक तेज हो जाएगा । माँ की बातों को कुछ कुछ समझने लगा था पर मांग होने के कारण वो कुछ उनको कह नहीं पाता था । बस मायूस आ खामोश हो जाता था । कभी कभी राजेंद्र को माँ की बातें बहुत बुरे लगती थी पर वह कुछ भी नहीं कहता था । वह सोचता था कि मार शायद पापा के जाने के कारण ऐसा बोल रही हैं । उधर भावना भी राजेंद्र को कहते कि बस जी जी अच्छी हैं तो मैं तो जी जी का ही कहना मानना चाहिए । ये कल की लडकियाँ आई है तो क्या उसका गुलाम थोडी बन जाना चाहिए? कुछ तो सोचना चाहिए । एक तो अकेला बेटा है और किसी जेठानी देवरानी की चर्चा नहीं हैं । रानी की तरह रहती है । राजेंद्र को भावना की सब बातें सही लगती । राजेंद्र भी शुरू से देखता आया है कि घर के सब लोग उसका इतना ध्यान रखते हैं और बीवी को भी तो चाहिए कि वो अपने पति का ध्यान रखेगा । पर वो तो तन तन आकर ही बातें करती थी । मुझे राजू को सबक सिखाने के लिए कुछ तो करना ही चाहिए । जब समय खराब चल रहा हूँ तो सबकी गहरे से इंसान खराब हो जाता है । कभी अच्छा हो जाता है और यही हुआ । राजेंद्र का मन अच्छा था पर सब के कहने से उसे लगा कि उसमें कोई कमी नहीं है तो घरों में होता ही रहता है । पति तो पत्नी को कभी भी थप्पड मार सकता है । पत्नी को ही चाहिए कि आपने डायरी में रहेगा । पहले के पति दो दो दो बीवियाँ रखते थे पर मैंने तो कोई भी नहीं रखी हुई है । बस रात को भावना जी के यहाँ से देर से आता हूँ । वो तो मैंने पहले ही रात कह दिया था । यदि परेशानी थी तो पहले क्यों नहीं का? अब क्या कहते हैं पता नहीं ये औरते भी उल्टे दिमाग की क्यों होती है? अभी वही सोच रहा था कि रजत भी उर्मिला के सामने से उठकर राजेंद्र की हो रहा है । और फिर राजेन्द्र रजत के साथ बाहर जाने लगा तो उर्मिला की आवाज सुनाई पडी अरे बेटा, कुछ खाना तो खा ले तो उन्हें तो शादी के बाद घर का खाना ही छोड दिया है । राजेंद्र कुछ नहीं बोला और रजत के साथ बाहर चला गया । रजत ने पूछा और सुना हूँ, कब ला रहे? अपनी पारी को लगता है और हमारी भावी को जमाने की नजर लग गई है । अरे नहीं, उसका दिमाग खराब हो गया है इसलिए ये सब हुआ है । सब ठीक हो जाएगा और तू सुना कैसा चल रहा है । यार क्या चल रहा है? लक्ष्मी मां बनने वाली है । नौवाँ महीना चल रहा है । मुझे खुशी है कि एक महीने बाद मैं भी पापा बन जाऊंगा या सच । पापा बनने का सुखबीर कैसा अच्छा होता होगा । ना मन करता है । वह दिन चल दिया जाएगा । राजेंद्र मित्र की बातें सुनकर जैसे सोते से जाएगा वो सोचने लगा मैं आप किसी बन होगा । पापा बनने के लिए तो पत्नी का होना जरूरी है । पर मैं क्या करूँ? रजित कुछ कुछ बोले जा रहा था । पर राजेंद्र का दिमाग तो बस पापा बनने की इच्छा और न जाने किन किन ख्यालों में घूमने लगा था । राजेंद्र ने अपने पानवाले से पांच बनवाकर रजत को दिया । खुद भी लिया और कहने लगा और पाजी चले, कहीं घर जाना है । रजत ने कहा नहीं तेरी भाभी राह देख रही होगी इसलिए मुझे तो जाना है । राजेंद्र ने भी जबरदस्ती नहीं बस अच्छा कहा और भावना के घर जाने की सोची लगा । पर आज उसका मन भावना के घर जाने को भी नहीं कर रहा था । उसी मंदिर की तरफ चल दिया । पर अभी मंदिर की तरफ जा ही रहा था कि देखा आगे रास्ते में दिलीप चंद्रा जी के घर के आगे कुछ लोग खडे हैं और वहाँ जाकर देखा तो पाया कि उनके बेटे की बहु की आवाज सुनाई पड रही थी । वो घर के बाहर खडी थी कह रही थी मिला जो नहीं हूँ जो घर छोडकर चुपचाप चली जाऊंगी । मैं तो सबको तुम्हारे बेटे की करतूत बताकर ही जाऊंगी । सब लोग जैसी राजेंद्र की तरफ देखने लगे तो राजेंद्र तुरंत ही वहां से खिसक गया । पर सब लोग उसे ही देख रहे थे । जैसे बिना बोले भी उसके पीछे पीछे उनकी घूमती हुई नजर कुछ कह रहे हो तो मंदिर जाकर भावना के घर की तरफ मुड गया । कहते हैं जब गुनाह का एहसास होने लगता है तो खुद ब खुद इंसान लोगों से नजरें चुराने लगता है । इसलिए वो अपने आप को छुपाने के लिए तारीख पाने के लिए अपने ही बनाए राज महल में तथा अपने ही चमचों के बीच चला गया । भावना ने राजेंद्र को आते देखा तो अपने बच्चों को आवाज देते हुए बोली अरे चुन्नु मुन्नु भाई आए हैं, दीदी से कहो खाना लगा दे । राजेंद्र ने भावना की और देखा तो भावना को लगा जिसे राजेंद्र उसे कुछ कहना चाहता है । वो कमरे में उसे अपने साथ ले गई, पर कुछ बोली नहीं । राजेन्द्र सोफे पर आधा लेटा हुआ था । धीरे धीरे पूरा ही लेट गया और भावना की गोदी में सिर रखकर ऐसे सोने लगा । किसी भूत बालक सारी दुनिया से छिपकर पर हमें आया हूँ । वही भावना का बडा बेटा चुल्लू भी पर्दे के पीछे से देख रहा था । चुना ग्यारवी कक्षा में पडता था । उसे अच्छा नहीं लगा की माँ की गोद भैया ऐसे लेट गए हैं लेकिन भैया होने से वो ज्यादा नहीं सोच पाया और अपना काम करने लगा । इतने में भावना के पति भी दरवाजे पर आने को थे । भावना ने राजेंद्र का सिर्फ सोफे पर रखा और वहाँ से हटकर जमीन पर बैठ गई । राजेंद्र हो चुका था । यहाँ राजेंद्र को कोई कुछ नहीं कहता था जिसके कारण एक मासूम सा बच्चा बना । वो इस चारदीवारी में अपने को सुरक्षित समझता पर इससे ज्यादा कुछ सोच रही पाता था । रात के करीब बारह बजे राजेंद्र उठा और भावना को अपनी इंतजार में बैठे पाया । सब सो चुके थे । तब वो धीरे से बोला क्यों तुम मेरे लिए करती हूँ । मैं कैसे दुबारा कर्ज चुकाऊंगा? क्यों मुझे छोड नहीं गई थी? भावना मन ही मन बोली तो भी बचपन से इसलिए थोडी ना खिलाना है कि जब तुम्हारी देने का समय आए तो छोड दो मेरे बच्चे कहाँ जायेंगे? मेरा घर कैसे चलेगा? पर ऊपर से बोली तो भारी लिए मुझे काम करना अच्छा लगता है । चलो खाना खा लो । राजेंद्र ने खाना खाया तो देखा की भावना की लडकी भी बैठी हुई थी । अभी तो वो भी नहीं हुई थी । हरी बंटू तो हो जाती है । राजेंद्र ने कहा तो बोली बस आप चले जाओगे तो सोना ही है । राजेंद्र को एक तरफ अच्छा लग रहा था तो दूसरी तरफ बुरा भी लग रहा था । इसलिए उसे जल्दी जल्दी खाना खाया और अपने घर के लिए चल दिया । जैसी वो आदि रास्ते में आया तो देखा कुछ लोग वहाँ बैठे हैं और कह रहे हैं पता नहीं ये हिन्दू मुसलमान के झगडे ऐसे भडक जाते हैं जैसे मंडी में अभी अभी सब्जियों के दाम बढ गए हैं । इंदिरा गांधी का राज चल रहा है । पता नहीं ये क्या दिखाना चाहती है । चाहे कुछ हो जाए, कुछ देश को खतरा हो गए ही, राजेंद्र को भी लग रहा था । जैसे कुछ लोग झुंड में एक और से कुछ सामान लेकर इन बैठे हुए लोगों के पास ही आ रहे हैं । राजेंद्र के हाथ पैर का आपने लगे और वह जल्दी जल्दी घर की ओर चलने लगा । लगभग घर पहुंच गया था कि जोर जोर से आवाजें आने लगी । बचाओ बचाओ राजेंद्र ने मुड कर नहीं देखा और दौडने लगा । घर पहुंचकर दरवाजा बंद कर लिया । रात के अंधेरे में जोर जोर से शोर मचने लगा । उर्मिला जो बेटे के इंतजार में बैठे बैठे ही हो गई थी, जाते और बत्ती जलाने के लिए कहने लगी । पर दिशा और बुआ अंदर के कमरे में सो रही थी । पहली सी खोल दी थी । राजेंद्र नहीं, जल्दी जल्दी सारे घर की बत्तियां बंद करवा दी । आज राजेंद्र को घर की चिंता हो रही थी । पापा की बाद आज वो अपने आप को अकेला सा महसूस कर रहा था । सोच रहा था क्या करें? थोडी देर में ही आवाज दूर होती चली गई और सबकी जान में जान आई घबराहट महीना जाने का । उर्मिला का रक्तचाप तेज हो गया । कुलमिला बीज करती दो जवान बेटियाँ एक बेटा कैसे संभालती? अपनी आपको पति के बिना दुनिया को कितना ही बुरा बढा गए । पर चिंता तो यही है कि किसी तरह से जिम्मेदारियाँ का बोझ उतरे तो चैनल है । कभी कभी उर्मिला को लगता था कि वो आपके बहू बेटी के बीच में दरार बन रही है । पर दूसरे ही पर उसे ध्यान आता जिसे आनंदी का बेटा बहु को लेकर ससुराल जाकर रहने लगा और आनंदी वो उसकी बेटियां अकेले घर में रहते हैं । कैसे घर चलता है कोई पूछने वाला भी नहीं है । अपने भविष्य को अंधेरे से बचाने के लिए वो अपने बेटे बहू की बजाय अपनी अपनी बेटियों की खुशियों से ज्यादा मतलब रखती है । वह सोचती थी । यदि बहुत हमारे तरीके से रहे तो ठीक नहीं तो जो होगा देख लेंगे । बेटा तो हमारे पास ही है, सब ठीक हो जाएगा । लाजु की पिता रामदास ने भी उर्मिला के यहाँ कई लोगों से फोन करवा करवाकर वह खुद भी फोन करके पूछना चाहा था कि आप लोग क्या चाहते हैं? पर उर्मिला कह देती हमें क्या चाहिए? बहू और क्या? पर बेटा नहीं रखना चाहे तो कोई क्या कर सकता है । फिर हम भी कौन है? पंडित जी कुछ पूजा पाठ भी तो आपको बेटी के लिए बता रहे थे पर आप है कि सुनते ही नहीं । सब के लिए आपके पास पैसा है पर बेटी के लिए नहीं । दिशा निशा वही सब सुन रही थी जैसे सोच रही हूँ । यदि शादी के बाद वीडियो को कोई पूजा करवानी पडेगी तो मायके वाले ही पैसे देते हैं । कहते हैं बच्चा अपने घर से ही संस्कार लेता है । वैसी इस घर की बेटियाँ भी रही थी कि पीछे से ही बेटियों का गुजारा है । पीहर वाले ही बेटियों को कपडा तथा चीजें देते हैं । संचार का पालने वाला भी । कभी कभी अपने वाहन पर बैठकर अपने सिंघी साडियों के साथ अपनी लचीला को देखने निकल ही जाता है वो इस घर की दुविधा को देखकर सोचता है । मनुष्य अपने स्वार्थ में अंधा होकर अपना ही अपना सोच कर अपने लिए कितने बडे, बडे और पहाड जैसे कष्टों को इकट्ठा कर लेता है । फिर चाहे वो कितना भी दान करें, कितनी ही पूजा करें पर मनुष्य के मन में बैठा उसके रूट के दुख सुख नहीं बदल सकता हूँ । फिर क्यों चाहता है कि वो भी सुखी हो सकता है । उसके मन में बैठा उसका भगवान मनचाहा कर सकता है । संचार की दूर्दशा को देखकर संचार रचियता अपना काम करने के लिए एक घर से दूसरे घर में घूमता रहता है । इधर चारों तरफ हिंदू मुसलमानों के झगडे जोर पकडने लगे थे जिसके कारण खाने पीने के सामान को लेकर भी राजेंद्र को चिंता होने लगी थी । धीरेधीरे झगडे शांत हुए । सरकार ने जोर पकडा सकती दिखाई तो सब कुछ ठीक होने लगा । चीजों की कीमतें आसमान छूने लगी । राजेंद्र ने भी अपनी कपडों की दुकान पर मन लगाकर काम करना शुरू कर दिया था । अब वो दुकान से इतनी आमदनी करने लगा कि उसे अपना काम पर भरोसा होने लगा । निशा दिशा बडी रही थी । निशा के रिश्ते की चिंता भी उर्मिला को सताने लगी थी । बहु के घर से बाहर होने के कारण कोई रिश्ते पर हाथ नहीं रखता था । निशा देखने में सुंदर मदमस्त पर सामली थी । बाल छोटे छोटे कंधे सकते । परिचित साडी पहनती थी तो कामदेव की रहती से कम नहीं लगती थी । इधर अपनी बेटियों को बिहानी की चिंता । उधर बेटे की चिंता । इसी उधेडबुन में ही उर्मिला क्या आँखों की रोशनी कम होने लगी थी । हर वक्त सोचती थी चल अब इस की पूजा करवा दू तो ये हो जाएगा और कभी किसी की कभी किसी की पूजा चलती रहती थी । पर घर में रहने वाले बेजान चित्रों में भी जान होती है । देवी जांच के सन्नाटे में आकर बातें कर लेते हैं । अरे बुढिया, जब तू घर की लक्ष्मी ही लाये नहीं तो क्या अपने घर को बचा सकती है? वैसे उर्मिला को भी सपना आता था । रात को सोते सोते बैठ जाती थी कि मुझे भूख घर लानी चाहिए पर कुछ होता दिख नहीं रहा था । दूर की एक चाचे बर उर्मिला के पास आई । वो कह रही थी अरे दूसरी लिया हूँ क्या वही रह गई है? अपने राजेंद्र के लिए कुछ कर होते । पोती का मूड नहीं देखना है क्या? उर्मिला भी सोचे लगी थी । उस समय समय पर राजेंद्र के दिमाग में डालने लगी थी कि हमें लाजु का ध्यान छोडकर कोई दूसरी लडकी देख लेनी चाहिए । पर दिशा हुई सब अच्छा नहीं लगता था । वो सोचती थी लाजु भाभी की भी अच्छी है, वो क्यों नहीं आ सकती? अरे ये जो भावना आंटी है इसे तो भगवान को अपने पांच बुला लेना चाहिए । बाइज्जत दिशा भुआ से ऐसी बातें कर रही थी कि तभी निशा वहाँ गई और बोली शहर मैं वहाँ से कहती हूँ दिशा दिशा से सिर्फ एक साल छोटी थी । बोली ताहा तू तो चाहती है कि शादी भाई की दोबारा हो जिससे मुझे और बैंक के पैसे भी हाँ और क्या? मैं तो ये ही जाती हूँ । शादी होगी फिर से कपडे में लेंगे फिर से सब होगा । फिर कॉलेज नहीं जाना होगा । निशा पढाई लिखाई कम अच्छी लगती थी और वो सुरेश का बच्चा भी फिर घर में दोबारा नहीं आएगा । बडा अपने आप को कुछ समझता है । देखें कैसे कुछ नहीं होता और इनिशियल कल को तेरी शादी हो जाती है और तुझे ससुराल वाले ऐसे ही छोड कर दूसरी शादी अपने बेटे की कर दे तो बता तो जरा तूझे और तेरी माई को कैसा लगेगा? निशा की । वहाँ बीच में ही बोली निशा बोली कोई करके तो दिखाए, ऐसा सेनापुर दूंगी । हाँ, बस तू ही सिर्फ फोर्सके हैं । दुनिया वाले तो सारे बिना हाथ पैरों के हैं जो कुछ न करेंगे । निशा बुआ की बातें सुन जैसे आसमान से धरती पर आ गई और चुप हो गई । फिर माँ को कोई क्यों नहीं समझाता? निशा बोली बुआ बोली भाभी को कोई कुछ नहीं कह सकता हूँ । हम ठहरे खुद भावी । पर आश्रित हम तो कुछ कर नहीं सकते हैं । अब तो भगवान ही कोई चमत्कार करेगा । तभी कुछ होगा भाभी की सोच और इस घर का भाई तो रहे नहीं । कौन किसको समझाए जो भावना की बच्ची ने तो अपना घर चलाने के लिए राजेंद्र को मोहरा बना रखा है । उसका पति भी सोचता है कि चलो अच्छाई है । बिना कुछ किये ही उसकी पत्नी सब काम कर रही है । कभी कभी उसका पति रूप दिखाता भी है तो वह भावना जादूगरनी न जाने क्या खिलाती है या करती है कि वह चुप हो जाता है । बारिश भी खुदाई बार ईश्वर तेरी मर्जी कोई नहीं जान पाया । तेरी लिया हम कौन है । इधर दिशा सोच रही थी कि क्या और इत इतनी कमजोर है कि उसे एक आदमी के कंधों का सहारा लेना पडता है । क्यूँ ऐसा क्यों हैं जब सब लडके लडकियां से मार्च में बराबर पढ सकते हैं, लिख सकते हैं नौकरी व व्यवसाय कर सकते हैं तो क्यों ऐसा होता है कि हमारे घरों में एक लडका इतनी सारी और तो का सिर्फ खिलौना बनकर है जाता है । ऐसा लगता है जैसे वो खुद नहीं चल रहा है उसी चलाया जा रहा है । रह रहकर दिशा को अपने भाई पर तरह साने लगा और उसकी आंखें भराई सोचे लगी मैं क्या करूँ? मैं भी तो लाचार हूँ । उठकर भगवान के मंदिर के आगे बैठ गई और विनती करने लगी भगवान कोई चमत्कार कर बी कुछ शुरू को रास्ता दिखाओ । धीरे धीरे बातों की चिनगारियां तेज होने लगी पर कोई नतीजा नहीं निकल पाया । इधर निशा के लिए रिश्ते आने लगे थे । निशा को पसंद भी कर लिया । पर साथ ही उन्होंने अपनी जरूरतें भी बता दी । हमें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक कार और दो किलो सोना देना । राजेंद्र ने खाकर रिश्ता तय कर दिया और बातों को थोडा और साफ करते हुए कहा मैं आपको पहले बता दूँ कि मैंने अपनी पत्नी को छोडा हुआ है । उसके कारण अपनी बहन को कभी कुछ नहीं रहेंगे । उन लोगों की सारी मांगे पूरी हो रही थी । इसलिए उन्होंने कहा हमें क्या है? ये तो तुम्हारे अपने घर का मामला है । उधर दिशा सुन रही थी । मुझे लगी क्या ये लोग डीजी को सुखी रखेंगे । लडका भी दीदी की न्यायिक नहीं डरावना सा लग रहा है । मेरे लिए ऐसा कुछ करेंगे तो मैं तो घर से भागे जाऊंगी । उसने देखा कि अंदरूनी शुरू हो रही है । पूछने पर पता चला कि वह शादी नहीं करेगी । भाई ने बहुत समझाया पर वो नहीं मानी । कहा ये लंगूर मिला था मेरे लिए । मैं शादी नहीं करूंगी । मुझे मार डालो पर शादी नहीं करूँगी । माँ उर्मिला भी गुस्से से चलाई । फिर क्या यार पालेगी हमारी ना कट जाएगी । हाँ मैं तो यार पालूंगी । आज ये पैसों के लिए शादी कर लेंगे । फिर बाद में ना जो भाभी की तरह मुझे भी मायके भेज देंगे । मुझे शादी नहीं करनी । दिशा को लगा दाल में कुछ काला है । कुछ दिनों के अंदर ही पता चल गया । डाल में क्या काला था? एक बार जब दिशा कॉलेज गई तो देखा कि निशा वहाँ नहीं थी । वो भी दीदी की खोज में । उसकी सहेलियों से पूछे लगी तो पता चला कोई सुरेश है, जिससे वो मिलने जाती है । सुरेश का नाम सुनकर दिशा को हल्की सी हंसी आ गई तो महारानी को प्यार हो गया । तभी सोचूं कितना बदलाव? क्यों है इसमें? अब तो जब घर पहुंचेगी तब लेती हूँ इसकी खबर दिशा मनी मनी अच्छा महसूस कर रही थी, पर सोच रही थी यदि माह को पता चल गया तो दीदी की है नहीं । इसलिए जब वनिशा के सामने पहुंची तो पाया रंग पहले से ज्यादा नहीं कराया है । डी जी जी जान सकती हूँ ये तुम्हारा रंग क्यों इतना प्यारा हो रहा है । ये तुम्हारी गाल काले की जगह नाल क्यों दिख रहे हैं? बाल देखो कह रहे हैं जैसे किसी का स्पर्श का कराए निशा को काटो तो खून नहीं निशाने अपने को बचाते हुए कहा कि क्या क्या बकवास कर रही है मैं तो अब सविता के साथ गई थी सभी टाॅप हाँ सविता दीदी तो मुझे कॉलेज में ही मिली थी । वहीं तो कह रही थी कि बताया नहीं । सुरेश की बात कर रही थी । दिशा ने चुटकी लेते हुए कहा निशा को लगा अब जो इसी जीत नहीं पाएगी इसलिए बोली । हाँ वह सुरेश से मिलने गयी थी । वो चाहता है कि भैया को हम समझाएँ पर मैंने कह दिया कि हम कुछ नहीं कर सकते हूँ और कहते हुए दिशा ने प्यार से निशा के चेहरे की तरफ बाद उठाया तो निशा बोली और और क्या, कुछ नहीं चल भाग्या से नहीं तो मारेंगे । पर खुद सुरेश के ख्यालों में उस मिलन को याद करने लगी जब सुरेश न्यूज कॉलेज के बाहर से ही इशारे से मिलने के लिए कहा था और निशा भी धागे से बनी हुई थी । उसके पीछे पीछे चल दी थी । बीच रास्ते में ही जब दोनों सडक पार कर रहे थे तो निशाने डरकर सुरेश का हाथ पकड लिया था । पर सुरेश शायद अपनी दीदी के बारे में ही बात करना चाहता था । पर निशा सुरेश के अंदर समा जाना चाहती थी । एक लडकी को क्या चाहिए? अच्छा लडका सुंदर लाॅस पढा लिखा फिर पैसा क्या चीज हैं वो तो धीरे धीरे हो ही जाता है । दोनों एक रेस्ट के अंदर बैठे और चाहे मंगाएंगे तो निशा बोली मुझे भूख भी लग रही ऍम है । सुरेश ने कहा कचौडियां मंगा मेड दीवाली । तब निशाने भी कहा क्यों नहीं जनाब भी चलेंगे । हम तो सब खा लेते हैं । खिलाने वाले में दम होना चाहिए । सुरेश भी शरारत से कहा देखते हैं । क्या क्या खाती हूँ । कभी मौका मिले तो देखेंगे । अभी भी टीवी के बारे में बात करना चाहता हूँ तो बताओगी की इस कहानी में आगे क्या होगा? निशा ने कहा देखो सुरेश घर में मेरी बिल्कुल नहीं चलती इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकती । इतने में बेरा चाय समूह से ले आया । निशा जो शरीर में थोडी सी भरी हुई थी । समोसे कचौडी उसकी कमजोरी थी । इसलिए अपना समूह का हो । चाहे उसके फटाफट काट कर डाले और चलने लगी तो उसका दुपट्टा कुर्सी की खेल में अटक गया । तब उसे लगा सुरेश ने दुपट्टा खींचकर हटा दिया है । रेस्टोरेंट में भी ज्यादा लोग नहीं थे वह गुस्से से पर इजी तो देखा वहाँ सुरेष्ठा ही नहीं । उसका दुपट्टा कुर्सी में अटका हुआ था । पीछे से सुरेश आया तो उसे धीरे से दुपट्टा निकाला और कहा सारी शरारती तो भगवान ने तुम्हें करने को दे रखी है । हम तो बस सेवा करने के लिए हैं । इस हरकत सी दोनों इतने पास आ गए कि निशा को पहली बार सुरेश से लाया जाएगा । सुरेश कॉलेज कर चुका था । निशा फाइनल कर रही थी । दोनों बाहर निशा का मन चाह रहा था की बारिश हो जाए और हमें मजबूरन एक कोने में खडी हो ना पडे बिलकुल पास पास ठंड तो मजा ही आ जाएगा । इतने में ही देखा कि आकाश में सूर्य की रोशनी और तेज हो गई थी । सुरेश उसकी और देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगा । निशा को लगा जैसे सुरेश ने उसके मन की बात पढ ली है और अब मजे ले रहा है । वो भी अपनी जेब मिटाने के लिए । एक और बढकर तेज तेज चलने लगी । सुरेश भी दूसरी तरफ जाने के लिए तैयार ही हुआ था कि निशा एक पत्थर से टकराकर गिर गई । सुरेश उसे उठाने के लिए उसके पास आया और प्यार से खडा कर मिला का की । निशा का पूरा दुपट्टा सुरेश के हाथों में था और हमेशा अपने दुपट्टे से बेखबर सुरेश की नजरों को पहचानकर सब पकाकर अलग हुई । फिर शर्मा का धीरे से अलग हो । एक और जल्दी सुरेश के पीछे से कहा हक जरा ध्यान से जाना । नींद तो लेकर जा रही हूँ । प्लीज रात को सपने में आ जा रहा हूँ । शब्दों को सुन निशा के कदम और तेज हो गए और अब उसे पीछे नहीं देखा । सुरेश ने कहा जोर से फोन कर लेना यदि मन करे तो
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