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लाजो- 4.3 in Hindi

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958 Listens
AuthorSaransh Broadways
एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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दिशा के व्यहवार में भी परिवर्तन आने लगा । क्योंकि बापू के जाने का कारण उर्मिला लाजु और राजू के घर वालों को मानने लगी थी । आज राज्यों को बुखार है फिर भी उर्मिला ने आवाज देकर उसे कम करने के लिए कहा । यदि सोती रहेगी तो शरीर काम करना बंद कर देगा । काम करेगी तो ठीक रहेगी । खाना तो बना नहीं है । जब बाल्टीभर कपडे ले वो जीना चढ छत पर कपडे सुखाने का तो पडोस की चाची ने कहा हरी क्यों पडी है इस घर में क्या तो नौकरानी है । काम भी करना है तो अपने माँ बाप का कर यहाँ तुझे क्या मिल रहा है । बहुत लाजु के समझ में आ गई । पर जैसी वो नीचे उतरने लगी उसका सिर चकराया और गिरने लगे । तभी सामने से आते नरेश ने सीढियों पर यू से गिरने से रोक लिया । पर लाजो तो बेहोश हो गई थी । चाची ने उस पर पानी लाख डाला और निशा को आवाज देकर कहा अनिषा तेरी भाभी गिर गई है सीढियों से जरा देख तो पर बडबडाती हुई लाजु को उठाने का प्रयास करने लगी । जाने कैसे लोग हैं पूर्व बहु का काटा बना दिया है मेरा बस चले तो सबको पता चखा तो तभी अंदर से बुआ वनिशा भागती हुई आई । तब तक लाजु को होश आ गया था । वो धीरे से उठी तभी वो फिर से देने लगी तो नरेश वहीँ खडे थे । उसे संभाल लिया । वो फिर बेहोश हो गई थी । उसकी ये हालत एक वो से उठाकर निशा के पीछे पीछे आकर अंडर कमरे में बता दिए । तभी उर्मिला वहाँ गई । वो नरेश को देख चाची से पूछ रही थी ये कौन था? अरे उर्मिला ये नरेश है बराबर में संतों का भतीजा है । मिलने आया होगा तो बहु को संभाल । राजू का घर एक बिल्डिंग में था जहाँ चार पांच परिवार रहते थे । उन्हीं में से ये बराबर के पोषण में रहने वाली चाहिए थी । राजू की ससुराल में क्या हो रहा है? सब जाती थी क्या संभालो मुझे तो कुछ न सूझे हैं । क्या करूँ कैसे बेहोश हो गयी । जरूर जानबूझ कर गिर गई होगी । संभलकर चलना ही नहीं देख रही होगी । नरेश ने सच्ची आजकल की हुए कैसी हो गए हैं । सुबह दूध के साथ रोटी खाई थी फिर भी कैसे गिर गई? कूलर दे रखा है । नहीं खोलेगी तो गरम हो रही होगी नहीं । धूप में कपडा सुखा करा रही थी । इसलिए भी गर्म होगी कोई बुखार ना है । बस धूम कर रहे हैं । तब तक लाजु को हल्का होश आ गया था । वो अपनी सास की सारी बातें सुन अपनी आंखों के आंसू को रोक नहीं पाई । चाची भी देखने के लिए वही खडी रही और देखती रही कि उर्मिला डॉक्टर को बुलाती है या बस यूँ ही छोड देगी । चाची के वहाँ खडे रहने से उर्मिला को डॉक्टर को फोन करके बुलाना पडा । डॉक्टर आया चेक करने पर पता लगा कि लाजो को एक सौ तीन डिग्री बुखार है । चाची ने कहा देख उर्मिला बुखार है । बहुत को ध्यान रख नहीं तो मूह काला हो जाएगा । उर्मिला भी कहां पीछे रहने वाली थी । बोल ही बडी कहाना धूप में गई थी । अब इतनी बडी लडकी का हम क्या ध्यान रहे । कुछ काम तो करती नहीं जो करती है बस वो हर तरीके से । हम तो दुखी हो गए हैं । क्या होगा हमारा कुछ मालूम नहीं । शाम को निशाने राजेंद्र को फोन पर कहा भाई भावी बहुत बीमार है । आपको जल्दी आना होगा । आज राजेंद्र जल दिया गया । लाजु बेहोश थी । दवाइयाँ निशाने शाम के सात बजे खाना खिलाने के बाद दी थी जिसके कारण वह हुई थी । राजेंद्र आज कहीं भी नहीं गया । बस लाजु के पास बैठा रहा तो भी उर्मिला को सहन नहीं हुआ और दिशा से कहकर राजेंद्र को अपने पास बुला अपना दुखा सुनने लगी और कहने लगी बेटा हुई है अब तो जो हमारा करेगा बहुत किसी काम की नहीं । जरा सा काम करने से बेहोश हो जाती है । दुनिया तो रहेगी की खाने को नहीं देते तो भी जाने है कि कितना खाती है । फिर भी उसके शरीर में नहीं लगता तो हम क्या करें? तभी मिशन बीच में बोली हाँ, भाभी ने आज चुने से कुछ नहीं खाया था । उनके जी नहीं कर रहा था । लोग नहीं खाया तो उसने अपने मन से पर हम ने तो दिया था नहीं खाएगी तो क्या करें, हमारा तो वो काला करेगी । देख बेटा कुछ भी कर अब मेरे बापू तो रहे नहीं घर की जब मेरे हाथ में है । भावना ने सारा काम करा दिया । तेरह दिनों में इस दोनों को देखो ये तो कुछ करती दिखाई नहीं देती । वही बैठी निशा को माँ की बातें बहुत बुरी लगी । वो बीच में ही बात काटते हुए बोली माँ बाप भी बीमार है और अब भाई से क्या कह रही हैं? उर्मिला लगभग चिल्लाते हुए बोली चोरी तो जायेगा से चल जाकर पर्सन हूँ और चौकी को साफ कर बोले जा रही है दुष्ट नहीं की । कुछ मिला तो नहीं लगी । माँ को होता देख निशा वहाँ से हट गई । राजेंद्र ने भी माँ से कहा अभी आ रहा हूँ और वो अपने दोस्त विनायक के पास चला गया । आज वो आंटी के यहाँ नहीं गया । आंटी का फोन करीब दस बजे आया । उर्मिला नहीं उठाया । आंटी ने कहा आज राजेंद्र आएगा नहीं क्या दीदी, मैं तो खाना बना रखा है । उसके लिए । उर्मिला को तो जैसे बहाना मिल गया । सच्ची तो नहीं राजेन्द्र का ध्यान रखा है जो बहुत एक बीमारी का बहाना बनाए । सोई बडी है बिना खाने घाई चला गया । निशा जो रसोई में दिशा के साथ काम कर रही थी । मन ही मन बोल रही थी । तुमने कौन से पूछा भाई को खाने के लिए? तुम तो बस अपना काम निकालना चाहती थी तो निकाल लिया । अगले दिन राजू पूरा दिल लेती रही । निशाने भी भावी के सभी काम किए । बुआ ने भी सहायता की जो उसी घर में उनके साथ दूसरी और रहती थी । दोनों हुआ तो तेरह दिनों के बाद वापस अपने ससुराल चली गई थी । दिशा ने भावी के लिए दलिया बनाया । निशाने दवाई दी, दलिया खिलाया । राजू को कोई ज्यादा होश नहीं था, पर निशा को पास देखकर उसकी आंखें भर आती थी । शाम को छह सात बजे एक कप चाय ले कुछ आराम महसूस कर रही थी । आज राजेंद्र जल दिया गया था और सीधा अपने कमरे में लाजु के पास । जहाँ उसे धीरे से उसकी तबीयत के बारे में पूछे लगा तो लाजु जो उसे बिल्कुल उखड चुकी थी, कुछ नहीं बोली । कई बार पूछने पर भी जब लाजु नहीं बोली तो राजेंद्र को चिल्लाते हुए उस से मुखातिब हो कहने लगा अरे मैं बोले जा रहा हूँ तो भाव खाते हो जाऊँ मैं नहीं बोलता तुम से तभी लाजु कुछ उग्र रूप में जुलाई हाँ तुम क्यों बोलोगे? मैं तो मोम की गुडिया हूँ । जब जी जहाँ बोले जब जहाँ गांव लिया जब जहाँ छोड कर भाग गए मैं हूँ क्या जो बच्चे बोलोगी तुम तो सिर्फ अपनी प्यारी आंटी की गोद में हो सकती हूँ । मुझे तो दुनिया को दिखाने के लिए लेकर आए हो । राजेंद्र ने कहा इतनी तेज आवाज में मुझे बोलोगी लाजु पलंग से खडी हो गयी और राजेंद्र का सामना करके बोली हाँ बोलोगी क्या कर लोगे तो आज राजू के सब्र का बांध टूट चुका था । तभी राजेंद्र का झन्नाटेदार थप्पड लाजु के गाल पर पडा और वो आॅफ पलंग पर गिर गई । पर तभी न जाने उसमें कहां से बताई । उसने भी बीच वाले कमरे में जा अपने मायके फोन मिला दिया । तुरंत आजाओ मुझे लेने नहीं तो क्या होगा? मुझे पता नहीं और फोन पटक कमरे में आ गई थी । सुरेश ने फोन उठाया था । सुरेश ने लाजु की आवाज पहचान ली । उस जल्दी जल्दी कपडे बदलकर भागा । माँ से बोला मैं दीदी के घर जा रहा हूँ । वहां पहुंचा तो देखा सारा घर बैठा हुआ है । सबसे न मस्ती कर वो राजू के कमरे के पास पहुंच गया तो पाया दरवाजा बंद है । घट हटाया तो राजू ने खोला । राजू ने कहा सुरेश ये मेरे कपडे हैं । उसे निशा को आवाज वो दिशा के साथ आई । तब राजू ने कहा डीडी मैं अपने घर जा रही हूँ । आप लोगों ने जो मेरी सेवा की उसका मूल्य में कभी नहीं चुका सकती और मैं अपनी चार जोडी कपडे ही लेकर जा रही है । मांझी से कह देना उनके सामने अपने पहनने के चार जोडी कपडे रखे और सुरेश के साथ बिना पीछे देखे वो बाहर आ गई । मन में उठते हुए शब्दों को महसूस कर रही थी छोड अपना घर में चली कहाँ मैं जहाँ हूँ की धार संजीवना जहाँ जहाँ दिया पर मिला नहीं क्या होगा जीवन सब तो था मैंने कहा वही हुआ और निशा के मन को सुकून नहीं मिला था की चलो अब भाभी को थोडी आराम की जिंदगी तो मिलेगी वो पति का प्यार तो नहीं पा सके पर अपने घर में आराम की जिंदगी तो जिएगी अब के घर में माँ बाप, भाई बहन का प्यार उसे दोबारा मिल जाएगा शायद लडकी की शादी होने पर कुछ पल अपने पति के साथ गुजारने के बाद लडकी अपनी आपको उससे जुडा नहीं करना नहीं शायद लडका भी अपनी शादी की सुहाग रात को नहीं भूल माता हर कोई अपने तन मन के साथ ही के साथ ही रहना चाहता है । पहले प्यार को पहले पैन के मिलन को कोई बुरा नहीं पाता । अगर वो छीन जाता है तो उस खाने को कोई भर नहीं पाता । हमारे भारतीय समाज में लडकियों को एक जेल से निकाल दूसरी जेल भेज दिया जाता है । अगर वापस पहली जेल में जाती है तो उन्हें डायरो में सिमट कर रहना पडता है । राजू ने बहुत जहाँ की वो अपना घर न छोडे पर कब तक चाची की बातों ने राजू के कोई अस्तित्व को जगह दिया था । ये भी उसे अपने पति की नौकरी करने को मिलती है तो भी वो कर लेती पर वहाँ तो उसे हर दिन उलाहनों और दानों को शहर समझकर पीना पडता था । पति की कोई सेवा मिलती ही नहीं थी कैसे होती प्यार को दिखा पार्टी उसे तो दुनिया को दिखाने वाली गुडिया जैसा ही बना दिया था । यदि मुरझाई थी तो भी जाने हसती थी तो भी होता है आखिर अपना घर जो कभी थाई नहीं उसे छोड दोबारा अपने माँ बाप के कंधों का सहारा लेने वो अपनी मई किया । तरह तरह की बातें, तरह तरह की अफवाहें जैसे सब चीजों से लडने का मन बना वो अपनी माँ के आँचल वह बाप के कंधों से लगभग आगे कदम बढाना चाहती थी । निर्दोष होते हुए भी दोषी हुए हमारी थी सहारे जो जमाने की हुए है पाए कैसे खपा इशारे हुए वक्त के मारे मेहरू अहसासों से हुए

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एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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