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लाजो- 09 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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भारत नौ आज दिशा का थर्ड ईयर का रिजल्ट आ गया था । वो खुश थी कि उसने बी ए में प्रतिशत अंक प्राप्त कर लिए थे । अब वो कुछ जॉब करना चाहती थी । पर वो अपनी माँ के मिजाज को जानकर बडी चिंता में पड गई । मैं चाहती थी कि अब उस की शादी हो जाएगी । ठीक भी था लडकियों को घर में कौन कब तक बिठाए रखेगा उसे एक ना एक दिन अपना घर बसाने के लिए दूसरे घर की चौखट को अपनाना होता है । हर कोई करता है हर लडकी को करना पडता है । पर दिशा अभी शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि उसे अपने पवन का इंतजार था । वो जो ख्वाबों में उसके साथ रहता था उसके साथ उसके स्कूल में पडता था । समय समय पर दोनों एक दूसरे के पास होनी एक दूसरे के साथ जीवन भर रहने की सोचते थे । उसे हर समय उन पलों का इंतजार रहता था । जब उर्मिला दिशा से शादी के लिए कहा तो दिशा जोर से चिल्लाने लगी । शादी, शादी और हो जाता है आपको भाई शादी करवाकर कितने खुश है । बहुत किसी को भी ढूंढ लो । क्या मिलता है शादी से मुझे सादी नहीं करानी है । हमें अपने अनुसार चलना है । किसी की गंदी का सहारा लेकर उसे बेस आके बनाकर नहीं चलना है । मुझे अपना काम करना है । इधर बुआ जी सब सुन रही थी । मन ही मन कह रही थी अब देखो भाभी को हम पर जोर चला लिया । अपनी छुट्टियों पर जोर चला सके । ये छोरिया ही भाभी को दिखा देंगे कि कैसे किसी की जिंदगी खराब जी तुम्हें ये अपने हाथों ही अपने भविष्य की नींव रखेंगे । दिशा ने भी अपना एक ट्रेनिंग सेंटर खोलने की योजना बना ली । उसमें वह दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं के विद्यार्थी को उच्च शिक्षा के लिए ट्यूशन लेने का विचार कर रही थी । इससे पैसा भी आएगा और वह समाज में अपने लिए कुछ जगह भी बना लेगी । समय ने भी जैसे अपनी रफ्तार को कम कर दिया था । राजू चाहती थी कि समय अपनी गति बढा ले और जल्दी से जल्दी जीवन का अंत हो जाएगा । पर्यंत कार आसान नहीं है । जिंदगी के हर मोड पर लाजु को रास्ता बंद दिखाई देता है । तब क्या करे, क्या ना करे, खोश होती वो भी बेहोशी सी छाई रहती है । काजू की आंखे जैसे समय के साथ साथ आंसुओं की अधिकता को सहते सहते पत्थर हो गई थी । अपना पहले की तरह हसती थी । न रोती थी बस एक शून्य को ताकि की शायद फिर से कुछ खुशियाँ इन पलकों पर टेस्ट करते हैं । जब कभी हो टोको हस्ती का मौका मिलता था तो ऐसा जान पडता था जैसे जबरदस्ती मुस्कुरा रहे हो जैसे मुस्कुराने की भी कोई सजा मिल गई हूँ । यदि नहीं हंसेगी तो साथ बैठे लोगों की हसी को भी रोक देगी इस गुस्ताखी खोलना करने के लिए या अपने ऊपर कोई इस जानना लगने के लिए राजू को सूचना ही होता था । आंसू आंखों में न आकर अंदर ही रह जाते थे । सभी ने अपनी चेहरे पर दूसरे चेहरे का नकाब उड रखा था । कहना बहुत जाते थे अपनी जिस बातों को व्यक्त नहीं करते थे ना जो इस उदासी में ऐसी लगती थी जैसे खेलना जाने वाला फूलने, जवानी से पहली बुढाते की वहाँ पकड ली हो और अपने खेल खिलाते रूप को पाने के लिए पत्र ही आंखों से किसी की राह देख रही हूँ कि वह आएगा और मुझे अपनी साथ ले जाएगा । पर नवहटा बस इंतजार है । इंतजार होता कभी कभी लाजो सोचती मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था । कम से कम सुबह रात को उनका चेहरा देखना तो नसीब हो जाता था । यहाँ आने से तो वो भी छिन गया । छोटे भाई बहन सब को उसी की परवाह उसी का ध्यान रहता है । वो ना यहाँ होती न सब उसके बारे में ज्यादा सोचते । पर समय समय पर माँ के दिए गए तनी तो बुखार में भी उसे काम लिया जाता । इस स्थिति वार दशा को सोच कर वो अपने लिए गए निर्णय को ठीक समझे लगती । सोचती थी कि यही सही है । जब उसका मन मेरे बिना लग सकता है तो मैं भी आराम से रह सकती हूँ । किसी कश्मीर कश्मीर अपने समय को निकाल रही थी । अपनी सिलाई स्कूल से सीआईसी थी और समय को गुजारने का प्रयत्न करती थी । राजू के साथ ही सिलाई सीख रही थी महीना जो वहीं उसके मायके के कुछ घरों के बाद ही रहती थी । मीना कुमारी थी । उसकी उम्र भी राजू की उम्र के आसपास ही थी । दोनों अच्छी सहेलियाँ बन गई थी । मीना अक्सर कहती थी ना जो तो दूसरी शादी करेंगे । चाहिए तबला जो कहती की आप करूँ क्या नहीं करूँ कुछ समझ ही नहीं आता । मीना आपके मामा मामी के साथ रहती थी उसका खुद का घर मतलब उसके माँ बाप नजफगढ में रहते थे । पर कभी कभी नीना के माँ बाप मीना को मिलने के लिए आ जाते थे । बिना की मामी नीला से बेपनाह प्यार करती थी । उनकी कोई औलाद नहीं । पर छोटी मामी जो उसी घर के दूसरे माले पर है दी थी । उसे प्यार नहीं हूँ । हर वक्त उसे लगता कि जैसे मीना यहाँ रह रही हैं तो उसके बच्चों का हक छीन रही है । पर मीना के नाना नानी की होते । वो कुछ नहीं । घर पार्टी थी । हर समय ऐसा प्रयास रहता था की कुछ ऐसा हो जाएगी । मीना यहाँ से चली जाएगी । मीना को भी महसूस होने लगा था पर उसे लगता था कि यहाँ उसे सिलाई सीखने को मिल रही हैं । नवगढ में जहाँ वो रहती थी ये सब सुविधाएं उपलब्ध दी थी इसलिए वो चुप चाप भी रहती थी । पर कहते हैं ना कि कभी कभी तो पानी से ऐसे ऊपर सही है । जब छोटी मामी अरुणा नहीं देखा कि कुछ नहीं हो रहा है तब उसने उसे अपने बच्चों के द्वारा जो सिर्फ अभी दस और तेरह साल की ही थे उल्टा सीधा बुलवाने लगी दीदी आप के बाद तो वे जैसे हैं आपका मूड बंदर जैसा है । जबकि ऐसा कुछ नहीं था ना देखने में । पर इनसें पर एक साधारण युवती से कहीं अधिक अच्छी लगती थी । तब मीना को और भी अधिक पूरा लगता था जब बच्चे उसे किसी के भी सामने कुछ ना कुछ बोल देते थे । नीना कि बडी मामी मेरे को समझाते हुए कहती ध्यान मद्दे ये तो पालक है । पर एक दिन गुस्से में आकर मीना ने दो चार कस कसकर बडी अंडों को लगा दी । क्यों बडों को ऐसा बोलते हैं । अब बोली तो तेरे सारी बाल काट दूंगी, फिर नहीं होगी किसी के बाल को वे जैसे हैं तब अनु मासूम थी । उसे पता ही नहीं था कि वह क्या कर रही है । बस माने कहाँ तो उसे अच्छा लग रहा था । पर मीना का थप्पड खाकर तो अन्य अब माँ के कहने पर भी नीना को कुछ नहीं कहती थी । परिवहन को लगा कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था । क्यों मारो में होती कौन हूँ? मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए । बडी मामी क्यों मुझे चाहती है? छोटी क्यों नहीं? ऐसे कोई कुल्टी सीधे सवाल नहीं ना कि मन मस्तिष्क में समय समय पर घर बना लेते थे, पर ही ना । फिर भी वहीं पर थी तो वहाँ बडे मामा मामी के कहने पर आएगी । छोटी मामी लाता नीना को यहाँ से भेज देना चाहती थी क्योंकि जिस दिन से मीना आई थी लता के बच्चों को नीना कि बडी मांगे तो मामा जितना प्यार करती थी उतना नहीं करते थे । इसलिए लता को लगता था कि उनके हिस्से का ब्याज नीना को मिल रहा है पर किसी से कुछ कह नहीं । पार्टी पर वो यदि बडी मामी लक्ष्मी से ये सब कहती तो उसकी बातों को बहुत ही छोटे रूप में लिया जाता । इसलिए वह नींद से सबके सामने तो बडे प्यार से बोलती थी पर अपने बच्चों के द्वारा समय समय पर कुछ न कुछ कहलवा आती रहती थी । जब कभी नहीं डलता से कहती देखो मामी और अभी कैसे बोलते हैं तो सामने तो यही कहती की बिगडती जा रहे हैं । समझते ही नहीं पर अंदर ही अंदर अपने एरिया में एक खुशी महसूस कर दी थी । ऐसा नहीं था कि लक्ष्मी लगा के बच्चों को प्यार नहीं करती थी । मीना के आने के बाद जो चीज है दो के लिए आती थी अब तीन के लिए आती थी । बस इतना था जो लडका को सहन नहीं हो रहा था कि ऐसी सोच बन जाती है मनुष्य की वो अपनी ख्याल को उल्टा सीधा बुनकर उनको से जाता है । फिर उसी के जाल में फंसकर अपनी ही सोचे अपने समय को खराब कर लेता है । यहीं लगा के साथ हो रहा था । इसी क्या कहे मासूमियत के जलन एक छोटा सा कुछ कहना आसान नहीं लगता हूँ । कब मन में शैतान प्रवेश कर हमारे मस्तिष्क पर अपना अधिकार जवान लेता है, पता ही नहीं चलता । शायद लगता की जगह कोई और होता तो वो भी यही कहता हूँ । अपने गंभीर बाहर के गहरवार को वह समय पर प्रकट करता है । नीना कि था यही थी कि उसे अपने भविष्य को सुंदर बनाने की इच्छा हुई की सिलाई लग सके । उसके लिए ही सही उसी ना जाते हैं । इन सब बातों को अपने दिनचर्या में शामिल करना पड रहा था । इन मीम जैसी कडवी बातों को वो दवाई समझकर सहन कर रही थी ना जो सी नीना कहती थी, अब तो ही बताऊँ मैं कैसे रहूँ? तब ना जो कहती है सही है हम लडकियों की तकदीर ही ऐसी होती है । हम जो चाहते हैं उसके लिए क्या क्या कीमत चुकानी पडती है । पर हमें वो भी जाए तो भी लगता है कि शायद भगवान हमपर एहसान कर रहा है कि देखो तुम लडकिया हो तो मैं कोई अधिकार नहीं है कुछ मांगने का, पर वह दे रहा हूँ मेरा एहसान मानूँगा । नीना कहती अरी बहना वो भगवान तो एक पुरुष हैं पुरुष जिससे सुहाग है पर प्यार नहीं । एहसान दिखाना तो वो जानता है पर प्यार जताना नहीं देख राजेंद्र भी जरूर आएंगे तो जिले में ऐसा मेरा मन कहता है । मीना के इस प्रकार कहने से ना जो बच्चों की भर्ती फफक फफक कर लो पडती कहती यहाँ करू नहीं ना वहाँ तो काम करती रहती थी । पर यहाँ आने के बाद ऐसा लगता है कि वो हर कोई परेशान सा दिखता है । बाॅस बहुत जी हर कोई टीना कहती छोटा हूँ, सब ठीक हो जाएगा । वो दिन भी आएगा जब ये आंसू तेरी हंसी बन जाएंगे । पर लाजों को दूर दूर तक कोई रोशनी नहीं दिखाई दे रही थी । मान जवानी में खेलना चाहता है पर परिस्थितियां सारी हंसी को अपनी आंचल में समेटकर दूर ले गई थी । बस इन हसरतों को दबा इलाज ओ अपने ससुराल न जाने के दिन गिन रही थी । वरना ससुराल से वो कब आई थी । आज राजू को ससुराल से आए दो साल हो गए थे । सिलाई के स्कूल में अभी कुछ समय पहले ही दाखिला लिया था । मन था की उडाई लिए चलता था । मिलन होगा, पी आएंगे ले जाएंगे यही उम्मीद यही आज ये हर एक पर हर एक दिन निकलता था । एक उम्मीद थी हाँ मैं ससुराल वापस जाऊंगी कब पता नहीं पर हाँ चाहूंगी । लाजो सोचती कि नीना भी तो परेशान है पर उसकी परेशानी में भी हसी हैं । एक सुखद इंतजार है वो भी अपनी होने वाले दुल्हे के बारे में सोचती है । पर उसके इंतजार में गुजरा हुआ हर एक पल शामिल है । जिन बलूनी उसे एक औरत के वजूद का अहसास कराना था । कहते हैं जब तक गुटखा खाओगे रही तो पता कैसे लगेगा की भूमि है । नाम की यही हाल था । शादी हो गई । उसके सुखद अनुभव से पाल दो पहलों के लिए महसूस कर लिया तो वहीं कोमल आनंदायक पल दोबारा भी चाहिए । पर जहाना और पाना जिसे एक नदी के दो किनारे हैं जो एक साथ कभी ही नहीं सकते । वही हाल हो रहा है । चाहतो बरकरार है पर पाना कहीं दूर तक भी नहीं दिख रहा था । मीना ने नारंगी रंग का सूट पहन रखा था । उसमें नहीं ना अच्छी लग रही थी । मध्यम घर की होने के कारण अपने संस्कारों को समझती थी । साधारण से देखने वाली थी पर शादी तो इसकी भी होगी । प्लाजो सोच रही थी कि उसे सब कहते हैं कि वह सुंदर है । सुन्दर होने के बावजूद वो अपने पति का प्यार नहीं पा सकी । टू के मीना को भी शादी के बाद उसका पति छोड देगा । लाजु मनी मनी सोच रही थी इस से तो अच्छा है कि शादी ही न करें । पर प्रत्यक्ष में वो नींद से नहीं कह सकती थी क्योंकि लडकी का अरमान होता है कि उसकी शादी हो । चाहे देर से ही सही पर उसे भी कोई तैयार करें । उसी चाहे उसके नखरे उठाएगा । थोडी किसी से प्यार करें, किसी के लिए कुछ करें तो जीवन सार्थक हो जाएगा । वैसे भी भारतीय लडकियों के सपने में दुल्हा रूपी राज कुमार किशोर अवस्था में आते ही अपने आप आने लग जाता है । जिसके कारण उनका वह समय अपनी सपनों को पालने तो उनको पूरा होते देखने में ही निकल जाता है । कब पढाई होती है, कब शादी का समय आ जाता है, कब क्या हो जाता है सपना जैसे सपना ही रहता है । नीना भी ऐसे ही कुछ अपने देखती थी पर वो जानती थी कि उसके माँ बाप इतना पैसा नहीं लगा सकते हैं कि एक अमीर घर का लडका खरीद सके । पर वो पहनती थी । अपने सपनों को साकार भी करना चाहती थी । अपने खाली समय को सिलाई सीखने में लगाकर एक हुनर को अपने हाथ में लेकर आत्मनिर्भर बनना चाहती थी । समय की घडी की सोनिया चलती जाती है । मीना बोला जो भी एक दूसरे से सुख दुःख कहकर अपने समय को आगे बढा रही थी । आज पूर्णिमा थी । दोनों सिलाई के स्कूल से वापस आ रही थी कि अचानक बूंदाबूंदी शुरू हो गयी । दोनों ने ही सलवार सूट पहना हुआ था । पहले में साधारण ही चलती थी, हाथों में बैठा था जिसमें अपना सामान लेकर हो जाती थी । राजू ने कहा अरे नहीं ना कुछ खाएगी कितना प्यारा मौसम हो रहा है । सर्दी के दिन थे । मीना बोली क्यों बीमार पडना है क्या ठंड लग जाएगी । घर चल तुझे घर चलकर चाय और पकौडे खिलाओगे । तब राजू ने कहा किसके घर मेरे घर चलेगी तो वहाँ कहेगी लोग इसे कुछ काम ही नहीं । अच्छा नहीं लगता कि मैं वहाँ से कहूँ कि मुझे पकौडे खाने हैं । बिचारी पहले मेरे कारण दुखी रहती है और तेरे घर चले तो वहाँ तो मुझे नहीं लगता कि कुछ हो सकता है । यहाँ करें मेरी जान । इसलिए तो कह रही हूँ कि एक पूरी वाले की दुकान में बैठकर पूरी खाते हैं । आएगी मीना का भी मन था पर नाजुकी व्यहवार को वो जानती थी कि बस ये सब बातें बना रही हैं । इसे खाना पीना कुछ नहीं है क्योंकि किसी दुकान पर बैठकर ये कुछ खाया ऐसा हो ही नहीं सकता । पर मैंने भी सोचा चलो खा कर देती हूँ चलना जो चलते हैं पूरी खाने और हलवा दिखाएंगे । इतना ही हुआ था की बारिश की बूंदाबांदी थोडी तेज हो गई । पर सर्दियों की बारिश की ऐसा लग रहा था कि अभी शुरू हुई है अभी खत्म हो जाएगी । पिछले दोनों मस्ती में चल रही थी । बूंदों ने उनके कपडे को हल्का हल्का जी ला कर दिया था इसलिए उन्हें किसी दुकान के पास शेर के नीचे रुकना पडा । नीना ने कहा क्यों क्या हुआ अब खा पूरी निकल गई थी पूरी जो बोली अरे दिखाएंगे ना । मुझे मालूम है तुझे बस पंगे लेने की आदत है ना कि कुछ करने की तो पूरी खाएगी, मेरी ही पूरी बना देगी । अभी बारिश ने जोर पकडा ही था कि एकदम से बारिश रुक गई । दोनों सहेलियां जल्दी से वहाँ से निकल आगे बढ गई । जब पूरी वाले की दुकान आई तो नीना उस और जाने लगी तबला जो बोली क्या दिमाग खराब हो गया, तेरा पूरी खाएगी वो भी दुकान में बैठकर घर जल जब जब मीना को मालूम था कि ऐसा ही होगा पर लाजु की बातों से उसे लगने लगा कि वह शायद खाना चाहती है । पर अब उसके बदलते मूड को देखकर उसने खा जाने वाली निगाहों से राजू को देखा तो पाया कि वो उसकी तरफ देखी नहीं रही थी जिसे राजू को पता था कि मिनट देखेगी और वह बेपरवाह रही जो मन ही मन मुस्कुरा रही थी । मीना अभी भी उसे देख रही थी जब राजू ने कनखियों से नीना कि तरफ देखा जो उसे ही देख रही थी कि जोर से हंस पडी । बोली हाय मारी हजरत नहीं है कि पूर्णिमा का और हमने कभी ऐसी दुकानों में बैठकर पूरी खाई है की अब जो अब खाएंगे । मीना ने जवाब में कहा मुझे क्या मालूम था कि लाजु में लाज शरम है ही नहीं । किसी को भी बुद्धू बना सकती है तो घर चला जब मैं तेरे घर चल रही हूँ और आज जो तेरी शामत आएगी । मुझे मत कहना कि हाई नहीं मर गई । अब ऐसा मजाक ही करूंगी । पर घडी मैं तो करूंगी तूने कब सोच लिया कि तेरे में दिमाग है नीना को लाजु का ऐसे हसना बोलना बहुत अच्छा लग रहा था । पर वो काजू को कभी कभी ही ऐसे हसते हुए देख पाती थी । मीना सोचती थी कि शादी इतनी बुरी होती हैं की एक लडकी की हस्ती बोलती जिंदगी में खामोशी ला देती है । मीना चाहती की वो हर समय अपनी लाजों को देखती रहे पर वो सिर्फ सोची सकती है, कुछ कर नहीं सकती । कभी इंसान ने पक्षियों की तरह बोलना चाहा तो आज उनकी तरह उठ लेता है । चाहे कुछ चलने के लिए ही सही पर उडता है । क्यों? कोई कहता है कि हमें अपने सपनों को सजाना नहीं चाहिए । भारतीय समाज में शायद लडकी सपने भी शादी तक ही सीमित करके देख पाती होगी । उसके सपने को भी जैसे कोई आजादी नहीं है ना जो अपने घर चली गई और मीना अपने घर आ गई । मीना का मन हुआ कि आज अपने लिए नहीं वाॅरंट अपनी प्यारी सहेली के लिए वह भगवान से प्रार्थना करें कि मेरी सहेली की खुशियों को उसकी झोली में डाल दे । इधर पालक और निशा में भी अभी नोक झोंक होती रहती थी । एक दिन अचानक सब बैठे हुए लूडो । वो सब्सिडी खेल रहे थे कि तभी टेलीफोन की घंटी बजी । रामदास ने फोन उठाया उधर से राजेंद्र की हुई रिश्तेदार जो दूर के रिश्ते में उनकी मामा लगते थे, पूछ रहे थे । रामदास कह रहे थे कि हमें कोई ऐतराज ना था ना है । पर राजेंद्र को समझना होगा कि लाजो उसकी पत्नी है न कि गुडिया । चाहा तो शादी कर ले गए । चाहे तो भेज क्या? राजेंद्र का नाम सुन ना जो वो सभी तेरह कान खडे हो गए । जब रामदास ने फोन रखा तो सभी को बताया कि राजेंद्र के दूर के रिश्ते की मामा बोल रहे थे कि हम चाहते हैं कि भव्य वापस घर आ जाएगा । उसके लिए बात करने के लिए वह आना चाहते हैं तो बारह फोन आएगा क्या करूँ यहाँ जो तुम क्या चाहती हूँ । रामदास ने पूछा तबला जो बोली बाबू जी जैसे आपको सही लगे वहीं कीजिए । रामदास ने पूछा देखो बेटा यदि तुम चाहूँ तो तुम्हारी दूसरी शादी कर देंगे तो जैसी हूँ पर एक बात साफ है कि दूसरी शादी में भी हमें सब खर्चा करना पडेगा पर उसकी तुम चिंता मत करना । तबला जो बोली बहुत जी क्या गारंटी है कि दूसरी शादी करने के बाद भी सब ठीक ठीक रहेगा । तब रामदास ने राजेंद्र के मामा को फोन करके कहा कि वे इतवार को आ जाएगा । राजेंद्र की मामा व राजेंद्र के दोस्त रामदास से महीने आए । आपस में सलाह मशविरा हुआ तो बाकी में राजेंद्र की तो उसने कहा ये भी आपको कोई आपत्ति न हो तो मैं भाभी से मिल सकता हूँ । रामदास ने कहा हमें किस बात की आपत्ति लोग तब वो अपनी पत्नी के साथ उससे मिला । उन लोगों ने राजू से बात की की क्या वो राजेंद्र से मिलने बाहर चलेगी । वो पास में ही होटल में इंतजार कर रहा है । वो से बात करना चाहता है । राजू ने अपनी माँ से पूछा और उनके साथ चली गई । कुछ ही समय में लाजु उनके साथ राजेंद्र के पास पहुंच गई । राजेंद्र ने चाय नाश्ता मंगवाया हम तभी राजेंद्र के दो उसके पति ने राजू को अकेले में भेजकर कुछ कहा लाजु उसका मूड देखकर बोली ना मैं नहीं करूँगा । तब वो बोली तुम्हारी मासी है और वहाँ भाई साहब बैठे हैं । आप बात कर लो राजू को उसकी बात कुछ समझ जाए । कुछ नहीं । जब राजेंद्र से बातें हुई तो दोनों ने आपस में एक दूसरे को मंजूरी दे दी । रामदास को पता चला वह बडी खुश हुए पर सोचने लगे कि कहीं फिर ऐसा कुछ ना हो जाए इसलिए राजेंद्र के मामा जी से बात करना उचित समझा जो दिल्ली के ही एक पहुंच इलाके साउथ एक्स में रहते थे । उनसे मिलने की पांच निष्कर्ष निकाला कि लाजु को सिलाई की पढाई का कोर्स पूरा हो जाने के बाद ही भेजा जाएगा । नहीं तो कल को होना इधर की रहेगी ना उधर की तिलाई का कोर्स पूरा होने में अभी छह महीने पडे थे । राजु कि माओवाद दादी ने तो लगा ली जब दोनों राजी है तब तुम भेज के वही देते भेज तो अरे हो गई सिलाई सिलाई । रामदास खुद एक पढे लिखे व्यक्ति होने के कारण इस बात को समझते थे कि लडकियों को अपनी पढाई पूरी करनी चाहिए बल्कि लडकी एक लडके को भी पढाई लिखाई पूरी होने पर ही हाथ में कुछ रहता है । कुछ नहीं तो एक आत्मविश्वास रहता है कि हमारे पास इस चीज का हुनर है । वो उन दोनों को समझा नहीं सकते थे इसलिए कहा कि भेज देते हैं । मन्तूराम दास का भी था की बेटी के ससुराल वाले खुद आए हैं लेने के लिए क्या करेगी सिलाई करके पर फिर सोचते कि क्यों न लाजु से पूछ ले । लाजो तो लडकी होने के कारण चाहती थी कि उसे अब अपनी माँ बाप की बोझ को और नहीं बढाना चाहिए था । चली ही हूँ यही अच्छा रहेगा । हो सके तो उनसे कह दीजिए की परीक्षा के समय मैं परीक्षा देने जा सकूँ । भारतीय नारी होने के कारण बिना पति या पिता की अनुमति के वो कुछ नहीं कर सकती थी । इसलिए राजू को भी मालूम था ये यू कहूँ कि अपने घर में अपनी ज्यादा चाची टाई तो मम्मी को देखते देखते ही सीख गई थी कि बिना बताए कहीं नहीं जाना है । जाती तो राजू के भाई भी नहीं थे । पर लाजों के लिए ये नियम और भी कडे हो जाते थे क्योंकि वो लडकी थी । लडकी घर की इज्जत होती है । यदि लडकी की एक बार बदनामी हो जाए तो उस की शादी में दिक्कत होती है । उसे कोई भी पसंद नहीं करता । इसलिए मायके में बेटा वाह भाई द्वारा रक्षा होती है और ससुराल जाने के बाद पट्टी फर्स्ट कसूर के द्वारा पर क्या कोई एक बार भी पूछता है कि ये मिट्टी की गुडियां तेरे में जान तो पुरुषों जैसी है । पर ये क्या पुरुषों के समान सम्मान पार्टी हैं कि तेरी पसंद ना पसंद का ध्यान रखा जाता है । वो कहती थी, मैं एक लडकी हूं । मेरी कोई पसंद ना पसंद नहीं होनी चाहिए । मुझे मेरे माता पिता पर पूरा विश्वास है कि वह जो करेंगे मेरी अच्छाई के लिए ही करेंगे । ऐसा हर एक के साथ तो होता नहीं है । हर एक तो खुशनसीब होता नहीं है कि उसके साथ सब ठीक ही हूँ । लडकी को अपनी सीमा मालूम होनी चाहिए । राजू ने अपनी बात कहकर फैसला पिता पर छोड दिया कि जैसे उन्हें ठीक लगे वैसा करेंगे । तब रामदास को लगा कि लाजु ठीक कह रही हैं । शिवरामदास से राजेंद्र से बात की तो राजेंद्र ने मना कर दिया कि हम कोई पेपर वेपर नहीं दिलवाएंगे । यदि वो पडेगी तो घर का काम कौन करेगा । तब रामदास नाजों से पूरा पूछा तो उसने कहा ठीक है कोई बात नहीं । जो सीखना था वो तो में सीखी चुकी हूँ । जरूरी तो नहीं कि पेपर दिया ही जाएगा । रामदास को अच्छा नहीं लग रहा था पर मन को समझाया कि कहीं बाद में राजेंद्र का मूड उखड ना जाए । आज रामदास को प्रतीत हो रहा था की एक बेटी का पिता होने के कारण कितना कुछ सहन करना पडता है । जो मन नहीं चाहता वो भी करना पडता है । वही ऊपर वाले फिर खेल है । निराली कोई हाँ, ऐसे तो कोई काम आएगा कोई अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाडी मारेगा क्या है की दुनिया है ये जिंदगी क्या है मौत हर पल जब थोडा मारता है तो जिंदा रहने के लिए भी कुछ पल निकालने पडते हैं । कैसा प्यार होता है और रात के प्रति हिम्मत करके जब कुछ होता नहीं तो आज छोडकर मुंह से निकल ही जाता है कि जैसा तेरा भाग गया मैं क्या करूँ । मैं तो यह न कर कर के थक गया । वही हाल रामदास का भी था । ये सोच रहे थे कि मैंने जो ठीक समझा क्या अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा किया । पर मैं और भी अच्छा चाहता था कि मेरी लाडो को सारे सुख प्राप्त हो चुकी से नहीं दे पाया । पर देखो भाग्य ने कैसा खेल रचा की शादी होने के बाद वापस उसे मेरे दरवाजे आना पडा । दुनिया का कोई भी बात नहीं जाता पर कहते है ना होनी बलवान होती है । वहीं हुआ भी । रामदास को बता दिया गया था कि वह पुनः बहुत से रिश्तेदारों के साथ आएंगे । राजू को ले जाने के लिए दिन बताया गया । ऍम पर होने को तो देखो कैसे कैसे जंग दिखाती है । जिस दिन राजेंद्र को राजू को लेने के लिए आना था उस दिन के दिन पहले सी उस इलाके में कर्फ्यू लग गया । किसी शादी के समय लग गया था फिर भी जान पहचान वालों से मंजूरी लेकर इस कार्य को संपन्न किया गया । आज भी सब लोग आये और काजू को विदाई दी गई । विदाई के समय मां दादी नहीं यही सीख थी । बेटा पति का गरीब वर्ग है उसे और सुंदर बनाना ही तुम खाया करो तब दिया है छोटी मोटी बातों पर ध्यान न देना । सास ससुर की सेवा करना निशान जॉब राजू की भावी थी । आकर लाजु के कान में कहने लगी भाभी भगवान करेंगे । जैसा प्यार व सम्मान मैंने इस घर में पाया वैसा प्यार और सम्मान आप उस अपने घर में बनाओ की मेरी आत्मा से हुआ है । निशा से ना तो उसकी माँ बोली ना भावना जैसे वो निशा को जानते ही नहीं थे । पर राजेंद्र ने बडे प्यार से उसे गले लगाया और कहाँ कुछ नहीं बस दोनों भाई बहनों क्या नाम हो गई थी । निशाने आंखों ही आंखों में भैया से गिनती की की भावी का ख्याल रखना । राजेंद्र भी उसके सिर पर हाथ रखा । हाँ में से हिलाया और कहाँ अपना ख्याल रखना लाजु अब मान सम्मान के साथ अपने उसी पति के साथ रह रही है । उधर पालक के अजीव अजीव कारनामें चलते ही रहते हैं । बडे होने पर शायद ये भी कुछ बडे हो जाए । इधर दिशा का स्कूल चल रहा है । वो अभी भी अपने प्यार के इंतजार में है कि वह आएगा पर कब कुछ होगा किसी को नहीं पता हूँ । पर कहते हैं ना हर एक का अपना व्यक्तित्व होता है, उसका भी है इसलिए वह सब की सुनती है पर अपने इरादे पर पडी है । हर कोई जो चाहता है भगवान उसे वो नहीं देता हूँ । उसे पता है पर वो भी कहती है कि मिलेगा तो ठीक नहीं तो कोई बात नहीं । भावना की भी अकेले अब कुछ ठीक हो गई है । उसे भी लगता है कि उसकी भी लडकिया है । यदि उनके साथ ऐसा होगा तो वो भी कुछ ठीक सीधी हो गई थी । राजू को अपनी सास की जली कटी आज भी सुननी पडती है । वो कहे बिना नहीं आएगी हूँ की मेरा घर तो बिखर गए पर तेरह सुधर गया अपना जो सोची थी । क्या मेरा घर अलग है जो साझु जैसा कहती रहती है पर उत्तर कहीं नहीं था । अब राजेंद्र कभी उसे कहता कि शाम को फिल्म चलना है तो उर्मिला के डर से वो कहती की आप वहाँ को कहूँ । तब राजेंद्र बाहर से कहता मैं शाम को दोस्त के घर जाना है । काजू को भी जाना पडेगा क्या करूँ कुलमिला बुरा समूह बनाते हुए कहती ले जाऊँ मैंने मना किया है क्या? पर वो नहीं चाहती थी कि लाजो को इस तरह इधर उधर अपने पति के साथ घूमने भेजे । उसके दिमाग में ये बात जैसे जड जमाकर बैठी हूँ की बहु को साथ नहीं ले जाना चाहिए । नहीं तो बेटा बहु के वर्ष में हो जाएगा । फिर हमारी तिमारदारी कौन करेगा हूँ?

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एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इस उपन्‍यास में बताया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियां अपने मां-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की कहानी बयां करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
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