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भाग ऍम कमरे में बैठे अपनी स्कूल का काम कर रही थी कि तभी पंखे की तेज हवा से उसके बीच इधर उधर कुछ नहीं लगेंगे । पाॅच चीनी कहाँ से पंगे की तरफ देखा जैसे कह रही हूँ इस कमरे में रहना है नहीं जैसे पंखी ने उसकी निगाहों की बात समझ रही हूँ । वो तुरंत धीमा हो गया और धीरे चल रही हूँ । चाहे बिजली के बॉल पीछे कारण पर ऐसा लगता था जैसे पालक कुछ कह रही है और उसके कमरे में रहने वाली बीजान चीजे भी उसके हावभाव को समझकर उसका अनुसरण करने के लिए तैयार रहती है । पंखे की धीमे होते ही पालक की गुना भी गहरी बन एक मुस्कान आ गई और अपना पैन पंक्ति की तरफ करके बुरे अब सही है पर जो कागज उड गए थे वो कैसे उसके पास है वो भी हूँ । पालक वहीँ बैठी रही और कागजों ने भी उसके मन की वन निगाहों की आवाज को जाना और खुद ब खुद उसके पास आ गए । ऐसा पहली बार नहीं हूँ, पालक को मालूम है और वो जानती है कि ऐसा होगा क्योंकि जब वह बहुत छोटी थी तब उसके साथ पहली बार हुआ था और उसने दूसरों के आगे भी उसके होने की उम्मीद की थी । पर किसी और क्या ऐसा नहीं होता था । पर जब अकेली होती थी तो अक्सर ऐसा होता था । आज भी हो रहा था । फिर जाने उसे क्या हुआ । वो बोलने लगे, देखो सुनो मेरे मित्रो, मैं तुमसे एक बात कह रही हूँ, बिहार से सुना हूँ । जब मैं अकेली होती हूँ तब तुम लोग में साथ देते हूँ । कुछ सुनते तो हर समय हूँ पर काम अकेले में ही करते हो । अब मुझे भी तुम लोगों के लिए कुछ करना चाहिए तो उसकी हो । तुम लोगों के लिए एक सुंदर गीत ली हो कहकर अलग है । सबको एक एक करके देखने लगी । जैसे जैसे देख रही थी वैसे वैसे हर तरफ की चीज उसके वो जवाब भी दे रही थी । पंक्ति की तरफ देखा तो वो भी तेज चलने लगा । कुर्सी को देखा तो उसने भी हल्का सा हिलकर अब की खुशी का इजहार किया । वैसे ही सब ने अपने ढंग से अपना जवाब दिया । पालक अपने नाम के अनुसार ये पालक भी कुछ साधारण व्यक्तित्व था । खुश रहना, जहल, पहल बनाए रखना उसका व्यहवार था । छोटी सी थी । तब से वो अपने मित्रों के समय समय पर मनोरंजन करती रहती थी और वो चाहकर भी किसी की मदद नहीं कर पाती थी । सब कोई उसकी कार्य करने को तैयार रहती थी । पर जब वो चाहती है कि जाओ डी जी के लिए कुछ करूँ, पापा के लिए कुछ करूँ महा के लिए कुछ करूँ तो नहीं कर पाती थी । अपनी असमर्थता व्यक्त कर देते थे । नई पारी किशोर अवस्था को पार कर जवाने के क्रम पड रही थी । पर बडो की दुख से भी क्या बिहार के नाम पर बस भाई बहन का प्यार पर दोस्ती ही समझ बनी थी । उसे ही रांची का प्यार समझ में नहीं आता था इसलिए दीदी के दुखों को समझ पाना उसके लिए कठिन था । अक्सर जरूर रात को नींद खुल जाने के कारण जान जाती थी । बातें जाने के लिए होती है तब उसे थोडा डर लगता था । अंधेरे में वो अक्सर ये डर महसूस करती थी । तभी उसे अपने आस पास प्रकाश साथ दिखाई देने लग जाना था । उसे नहीं मालूम किया था पर वो उस प्रकाश के साथ अपने आप को सुरक्षित महसूस करती थी और आपने अलोकिक प्रकाश चले परियों की तरह उछल कूद ही बात हो जाती है और आकर सो जाती पर सोने से पहले और प्रकाश का धन्यवाद जरूर करेंगे? कहती प्रकाश आप मुझे अंतरमंत्री लाभान्वित करते हो । आप आ जाए उसके लिए आप का धन्यवाद प्रकाश का शायद पालक की पिछले जन्म से यह पूर्व जन्म से कोई संबंध था । हर चीज उसे मदमस्त करती थी । एक बार जब सबसे पहले उसे इन शक्तियों का ज्ञान हुआ तो उसने अपने भाई उम्मीद से कहाँ भी था? पर वो बोला पता है पलक तो क्या है? फॅमिली तो को ही इन सब चीजों में विश्वास होता है । फॅमिली लगती थी । तब से उसने अभी इन शक्तियों अनुभूतियों को किसी से भी ना बांटने का फैसला किया था । पर जो होता है उसका वह भरपूर आनंद लेती । उसके घर पर ही नहीं, पास पडोस की बीजान चीजे भी उसकी पहुंचने से जिसे जीव हो जाती थी, शायद उसमें कुछ था जो हर व्यक्ति वो चीज को उसकी सहायता करने के लिए कहता था । पर वह जब भी किसी को अपना अनुभव बताना चाहती हूँ तो सब यही कह रहे थे कि पलक को काल्पनिक बातें करना अच्छा लगता है । कल्पना ही हो सकती है । ये सब इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति वाले पृथ्वी पर जो पालक के साथ होता था, वो सब एक सपने के समान ही था, जो अनोखा निराना पर चमत्कारी था । पलट रखते हुए ऐसा अनुभव करती थी और जब वह होती थी तो सुंदर सुंदर स्वप्ने देखती थी । जैसे हनुमान जी अपनी गोद में उसे बैठाकर बातें कर रहे हैं । उनके लंबे लंबे बालों को छूकर पूछती थी ये आपके शरीर पर इतने सारे बाल क्यों हैं? और वो भी सब पेट की हैं । हनुमान जी मुख्य रहते थे, बस मुस्कुराते रहते थे । कहते कुछ नहीं थी । फिर वो खुद ब खुद कहती थी पर बहुत अच्छे लगते हैं क्योंकि उसे उनकी गोद में अस्सी आनंद की अनुभूति होती थी । पाल दोपहर में वो उनकी गोद में सो जाती थी । कैसा ग्यारह आनंद था । हालांकि वो अपने साधारण पलंग पर सो रही होती थी, पर आनंद वो हनुमान जी की गोद में सोने का उठा दी थी । जब भी ऐसा होता तो आपकी माँ से कहती थी छोटी बच्ची होने के कारण पालक को पार्वती भी कहते थे । चल हट पर पता नहीं क्या क्या सोचती रहती है । भगवान तो अच्छे ही होते हैं । फिर दुखी होकर कहती हूँ पता नहीं तेरह भविष्य क्या होगा? तेरी बहन तो दुखों के अंबार चले घिरी बैठी है तेरे लिए भी अब मुझे चिंता होने लगी है । पालक दसवीं कक्षा में होने पर भी कुछ नहीं समझ पाती थी । इस समय एक इच्छा रहती है कि ये जो उमेश मुझे पागल समझता है, कोई उसे समझाए कि मैं पागल नहीं हूं । जबसे दिशा घर आई है लाजु का रुझान पालक से हटकर निशा की तरफ ज्यादा हो गया था । पालक को लगता था कि इस काली भागी में ऐसा क्या है । डीडी को तो मेरे साथ रहना चाहिए इसलिए उसे निशा से कुछ एशिया होने लगी थी । वो सोचती थी उससे प्यार करने वाली दीदी भी इन सब शक्तियों की तरह उसके पास है । डी । डी का अपनी से दूर हो रहा और निशा के साथ उनकी निकलता ये उसे अच्छा नहीं लगता था । पालक को सब गोरा साफ सुथरा ही अच्छा लगता था जबकि निशा सामली थी इसलिए वो उनके बीच ना बैठ पार्टी थी । पर जब निशा उसे अपने पास बुलाना चाहती तो पालक उल्हाना देती है । पता है हाँ जी आपको थोडे से प्रयास करना चाहिए इसलिए पूरा कर लू । बस पहले की यही बातें निशा को पूरी लगती थी पर छुट्टी होने के कारण उसके लिए मन में कुछ भी गलत नहीं रख पाती थी । कोई भी इसके लिए गलत नहीं सोचता था । पालक में कुछ ऐसा था । जो कोई भी बुरी प्रभाव वाली शक्ति पालक के सामने आती थी तो वह जरूर प्रभावित होती थी । उसके सिर में दर्द हो जाता था । जैसे उसकी दूर की चाची जो जादू टोना में विश्वास सकती थी । जब भी करती थी तो पालक को देखकर वो सूची लगती किसने कुछ तो है जिसके कारण का घर बचा हुआ है, ये खत्म हो जानी चाहिए । कहते हैं कभी कभी बुरी और मैं भी बच्चों को खिला दे दी है । वहीं होता भी था और उसके जाने के बाद पालक फिर सामान्य हो जाती थी । समय बचाने के लिए लाजु को पार्वती कहती रहती थी । अरे सुबह सुबह उठकर पार चली जाया कर क्या घर की चाहरदीवारी में बैठी रहती है? दादी ने भी हाँ में हाँ मिलाई और कहा ना, जो कल से हमारे साल सुबह सुबह जमुना जी और मंदिर चलाकर सब ठीक हो जाएगा । पार्वती ने भी मुझसे कोडकर कहा क्या ठीक हो जाएगा? मुझे तो कुछ ठीक होता देख नहीं रहा । इधर इलाजों को लग रहा था क्या करें? किसकी माने कुछ समझ नहीं आ रहा था पर दादी से बोली देखो दादी मैं यमुना जी तो नहीं जाऊंगी, पर कल से पार्क चली जाया करेंगे । दादी ने फिर भी कमरे में रखी सोफे पर से उठते हुए कहा हाँ हाँ मैं तो पढाई होना चल बेटा जैसा तेरह जी करे वैसा करीब । मैं तो चलो तू जाने देरी वहाँ जाने हमें तो है नहीं । कहती हुई दादी अपने कमरे में चली गई । पर पार्वती ने राजू से कहा देख बारीक जाना है तो सुबह सुबह दिन निकलते ही चले जाना । ज्यादा धूप होने पर ही जाना क्योंकि धूप में घूमने से रंग काला हो जाता है । सुबह छह बजे राजू ने अपनी सहेली कुमार जो घर के पास ही रहती थी और अपने पीहर आई हुई थी, को साथ चलने के लिए आवाज लगाई । पर कुमद ने कहा कि उसका बच्चा उसकी एक देती थी, बहुत हो रहा है इसलिए वो नहीं जा पाएगी । उसने निशा को कहना उचित नहीं समझा । किसी सुरेश के कमरे का दरवाजा बंद था । राजू ने सोचा भाभी को कल से ले जाउंगी । अभी तो अकेले ही चली जाती हूँ । घर से बाहर निकली तो गली में रहने वाली ताई अपने घर के दरवाजे पर बैठी हुई थी । काजू को देखा तो बोली अच्छा क्या? बच्चा सुबह सुबह घुमाएगी तो जी बहन जाएगा । पर मनी मन कह रही थी कि आज ये पहले गा । पति जी घर रहती तो सुख था । यहाँ तो लगता है बस इधर उधर घूमने के लिए ही आई है । राजू को महसूस हुआ कि ताई उसके लिए गलत सोच रही है । उसने ध्यान नहीं दिया और पार किया और जल्दी समाज में एक लडकी अपनी पहचान बनाने के लिए कैसे अपने कदमों को मजबूत कर खुद को सुदृढ बनाती है । आज राजू को समय के अनुसार महसूस होने लगा था कि यदि लडकी इन सब के बारे में सोचने लगे तो लडकियों का कोई कुछ भी नहीं बिगाड सकता । राजू पार्क में पहुंचकर चक्का लगाए ही रही थी कि हर इतनी हल्की बूंदाबादी होने लगी । लोग पेड की छाया में होने लगे पर वह पूरे लाजों के सबसे तन मन को सुकून पहुंच जा रही थी । इसलिए उसकी सोचा थोडा आगे जाकर ही वो पेड की छाया में हो जाएगी । सोच ही रही थी कि बारिश तेज होने लगी । अब तो राजू को पेड के नीचे होना ही पडा । हवा के हल्के हल्के झूठी उसके तन मन में प्रेम की हिलोरे पैदा कर रहे थे । राजू का मन सारे वक्त उस हवा के आगोश में ही खडे रहने का कर रहा था । आज मौसम में भी जैसे लाजु के पार्क में आने का उसका स्वागत किया था । प्रकृति की सुंदरता को बिखेरकर उसे दिखा रहा था कि सुबह का समय खास बनाया है । उसे भरभूर जी लेने से सारे दुख खत्म तो नहीं होते, पर कुछ क्षण कुछ पर आनंद से भर जाते हैं । लोगों के अंदर प्रकृति का ये रूप एक नई ताजगी पैदा कर रहा था, जिसे हर कोई चाहता था । दुनिया के लोग इस चाहत को देने के बजाय छीन लेते हैं । भगवान की कोर्ट ने हर खुशी मिल जाती है । प्रकृति के आगोश में हर लम्हा आनंद आ जाता है । अभी वो आधी बीजेपी की ओर में खडी हुई थी कि उसे सामने के पेड के नीचे दीपक दिखाई दिया, जो अब पालक उसे ही नहीं आ रहा था । राजू ने उसे देख कर जैसे उस की निगाहों में अपने लिए कुछ महसूस किया । पर दीपक का संकोची मन कहता कुछ नहीं था । बस किनारे दूर बैठकर लहरों की और देखना उसका काम था । शाम को चलते हुए देखकर परवाना उसकी तपिश में जल जाना चाहता है । उसकी लोगों को आप अलग देखना चाहता है । दीपक का यही हाल था । लाजु ने कुछ नहीं कहा । दीपक की इस तरह देखते रहने से महसूस कर दी थी कि दीपक उसे पसंद करता है पर उसे ऐसा लगता था कि मुझे अपने पति के पास ही जाना है । किसी और का ध्यान नहीं करना चाहिए । पर मन रह रहकर चोरी चोरी उसको देखना चाहता है क्यों लाल को भी पता नहीं था । पर शायद इसलिए क्योंकि लाजु भी किसी पुरुष की इसमें हम भरी प्यार भरी निगाहों की प्यासी थी । थोडी देर में ही बारिश रुक गई । लाजु तेज कदमो से चलकर घर वापस आ गई । बीच में मोर कर भी नहीं देखा कि दीपक पीछे आप भी रहा है या नहीं । कैसे अजीब व्यक्तित्व हो गया था ला चुका वो खुद नहीं जानती थी ।
Producer
Sound Engineer
Voice Artist