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भाग की लाजु राजेंद्र का ऐसे उतरकर घट के अंदर आ गए । राजेंद्र को अपनी सुहागरात का इंतजार था । राजू के मन में भी रात को लेकर कई ख्वाब सजे हुए थे । महसूस कर वो अपनी खुशी को छुपाए हुई थी । पर जब राजेंद्र से राजू की निजी टकरा जाती तो अचकचाकर का जो अपने प्रियतम की आंखों में अपने लिए प्यार वो आकर्षण देखकर लगा जाती थी । ओस की बूंदों की तरह पल पर झडता हुआ बिहार तनबदन को मैं कहा जाता था अतुल्नीय प्यार की भाषा, अनछुआ एहसास असीम सुख बहुत ज्यादा है । पूरे दिन कुछ ना कुछ रसमें चलती रही जैसे करना खिलाया गया । बार बार राजेंद्र ही उसमें जीत जाता था क्योंकि एक बार जब राजू ने जीतने का प्रयास किया तो पीछे से आंटी की आवाज सुनाई थी । चाहे कुछ भी कर लो पत्नियाँ पति से आगे नहीं बढ पाई है । इसे देखे दीदी ये तो लगता है कि कुछ रंग दिखाएगी प्लाजो फिर कैसे दु साहस कर सकती थी । इसलिए हाथ में कंगना आने पर छोड देती थी । कहीं कोई कुछ कहना नहीं कोई नाराज हो जाएगा । राजेंद्र कि बार बार जीतनी पर मिसरानी ने लाड लडाते हुए राजेंद्र से कहा देखा मेरा आशीर्वाद था इसलिए तो जीते हूँ । उधर बुआ जी का बेटा अरुण भी चलाया नहीं नहीं ये तो मेरा आशीर्वाद था इसलिए भैया जीत गए । उसकी इस बात पर सभी हस पडे और अरुण से और मिला बोली हाँ बेटा तेरह या हुए तो देखो किस का आशीर्वाद लगेगा । अरे भाबी जी तब तो अपनी भावी अपना साथ देंगे की उभरती ऐसा कहकर अरुण ने राजू की तरफ इशारा कर के कहा तो लाजो भी घर से बिना ना रह सकी । इस गुदगुदाते माहौल में राजू जैसे हो जाना चाहती थी । बस ऐसा ही हंसी खुशी का माहौल और सब प्यार से उसे पर बोलने के लिए मचलते हुए प्रतीत होते हैं । पर साल की मां और बहनों को छोडकर छोटी नहीं तो फिर भी आकर बार बार कोई ना कोई प्यार भरी बात कह दे दी थी । जिससे लगता था कि उसके मन में छोटी सी कोमल काली वापस कर रही हैं । जब जैसा देखा बोल दिया साडी नहीं पसंद आई तो घट गई । जब भाभी से मजाक करने का समय आया तो मजाक भी किया, छेडछाड भी की जैसे कुछ हुआ हूँ । फिर सुबह थाल का लीक हुआ सभी सुहागी नहीं । बारी बारी से उसे थोडा थोडा चावल खिला रही थी एक ही थाली में से तभी आंटी ने कहा देखो तो कैसे जल्दी जल्दी खा रही है सांस । उर्मिला ने कुछ हो जाते हुए कहा तो लाजो को सुनाई पड गया क्योंकि उर्मिला लाजु के साथ ही बैठी हुई थी और जो पहले से ही बहुत धीरे खा रही थी । अब ओवर भी धीरे हो गई । आंटी व्यंग से मुस्कुरा रही थी । फिर धीरे धीरे दोपहर होने तक सभी काम वनीत पूरे हो गए । इतने में कमी नहीं आई और लाजो से बोली भाभी आपके भाई आए हैं । सुरेश, उमेश और छुट्टी भी आई है । राजू को बडा आश्चर्य हुआ वो क्यों आए हैं? उसे पता चला कि उसे लेने आए हैं वो उनके साथ जाकर शाम को पति राजेंद्र के साथ वापस आएगी तो बडी फुर्ती से अपनी साढे ठीक करने लगी । की देख निशा बोली भाई मई की जा रही हूँ जल्दी जल्दी ही करोगी लेकिन हम आपको ज्यादा देर नहीं रहने देंगे । जल्दी से अपने पास भी आएंगे । निशा की बहुत बातें सुनना जी को एहसास हुआ कि निशा की बातों में अपनापन है । वो सोच रही थी की माँ से जरूर कहेगी कि आपने मेरी नन्द के लिए अच्छी साडी क्यों नहीं रखी पर दूसरे पर सोचा क्या माँ की बात मानी जाएगी उसे वो दिन याद हुआ या जब माँ बाबूजी से कह रही थी अरे क्या सारी ऐसी ही साडी होगी? कुछ तो मैं भी पसंद करके लाई हूँ छोटी और उसकी बन्दों के लिए । पर पिता रामदास ने कहा देखो पार्वती वैसे भी पार्क में शादी कर रहा हूँ और चाचा ने जो कह दिया की साडिया यही जाएगी तो ठीक ही कहा होगा चाचा नहीं रिश्ता बताया है जबकि पोती के लिए कुछ गलत करेंगे । पार्वती ने फिर भी अपनी बात को कहने का प्रयास किया था परंतु रामदास से वही रोक कर कहा था देखो पार्वती जिद बहस ना करूँ ये सोचकर लाजु को अभी माँ से कहना ठीक नहीं लगा तो उसने सोच लिया कि वहाँ से कुछ नहीं रहेगी । सास उर्मिला ने लाजु को बुलाकर काम देखो । बहुरानी ये दो जोडे तुम्हारे भाइयों के लिए है । ये दो साडी है तुम्हारी है, कुछ मिठाई है जो पहली बार मायके जा रही हूँ तो ले जानी होती है । राजू की मुझ से निकल गया मम्मी जी इस की जरूरत है । बगल में भावना उनकी खडी थी । गोली पडी लोग अब ये सिखाएगी किस की जरूरत है कि इस की नहीं । राजू की बोलती एकदम से बंद हो गई । फिर तो वो चाहे उर्मिला क्या कोई और कुछ कहता चुपचाप सुन लेती हूँ । अपने भाई सुरेश उमेश के साथ वह पीहर आ गई और खुशी खुशी वहाँ की बातें सबको बताने लगी । कडवी बातों को उस ने छेडा तक नहीं पर जब मानी उसके साथ ले जाने के लिए साढे रखी क्योंकि उन खिलाडियों से अच्छी थी तो तसल्ली हो गई कि चलो अब तो साडिया भी अच्छी है । अब कोई उसे साडियो के लिए कुछ नहीं कहेगा । दामाद राजेंद्र अपने छोटे भाई अरुण आंटी के दोनों बच्चों निशा, दिशा और दो बच्चे हैं जिन्हें लाजु नहीं जानते भी लेकर आए थे । पार्वती ने अपनी जमाई की आवभगत करने के लिए कई पकवान बनाए थे । राजू की चाची भी अपनी जेठानी के काम में हाथ बटाने वहाँ गई थी । छोटी बुआ नंदी भी अभी तक ससुराल वापस नहीं गई थी । सभी राजेंद्र को किसी ना किसी बात पर कुछ न कुछ खिलाना चाहते थे । राजेंद्र को भी इन सबके बीच अच्छा लग रहा था । बार बार मना करने पर आगरा के साथ खिलाया गया खाना राजेंद्र को भा रहा था । वही दिशा ने निशा से कहा दीदी भी तो भैया को ही खिलाए जा रहे हैं उसका आशय समझ सुरेश ने एक गुलाब जामुन जो गरम गरम था, चम्मच से निशा को खिलाने के लिए हाथ आगे बढाया तो निशाने ना नुकुर करते हुए खा लिया । पर वो इतना गरम था कि निशा कामो जल गया तो सुरेश की और आखे निकाल कर देखने लगी तो सुरेश अचकचाकर वहाँ से हट गया और दूर जाकर मुस्कुराने लगा । निशाने देखा उसे बुरा लगा और बार बार तो सुरेश को खा जाने वाली नजरों से देखने लगी । सुरेश क्योंकि सुभाव से ही मजे लेने वाला था । फिर से उसके पास सब्जी वो छोटे समूह से लेकर पहुंच गया । पर निशा की गुस्से भरी निगाहें देखकर हल्का सा मुस्कुराकर आगे बढ गया और अपनी देरी लाजो से आकर बोला वो दीदी तेरी मैंने देना उसका मुंह गुलाब जामुन से जल गया है । लाइफ को डर लगा कहीं पे कोई बघेरा ना खडा हो जाएगा इसलिए सुरेश को समझाते हुए बोली भाई जो मजाक करना हो मुझे कर लो, उसके साथ मत करो । पता नहीं कोई बुरा मान गया तो मुझे सुनना पडेगा । तब सुरेश बोला अब तो सुना ही पडेगा तुम भी तो मेरे का नीति जोर से मरोड दी थी कि दर्द हो जाता था । अब तो मजा आएगा । इतना कहकर वहाँ से चला गया राजेंद्र और सबके लिए पांच मंगाए गए सबने पान खाली । राजेंद्र ने दिशा से कहा जाओ अपनी भावी से कहो जल्दी करें । तब उसकी चचिया सास ने कहा अरे इलाजों को तो हमने पहले से तैयार कर दिया है । वो तो खुद ही जल्दी कर रही है । अब थोडी ना उसका मन हमारे साथ लगेगा । थोडी ही देर में लाजों को छोडने । जब सब काली के बाहर तक आए तो ला जो अभी रुलाई नहीं हो पाई अपने पीहर की यादव को लेकर वहां से विदा हो गई । जाते जाते उसने अपनी माँ से कहा हाँ बहुत अच्छी हूँ हाला जो बेटा छोटा बंद कर वहाँ भी मेरे से अच्छी है मन लगाकर सेवा करना । किसी को कुछ कहने का मौका मत देना । पार्वती ने सच में हैं ना जो को समझाते हुए कहा । राजू ने ससुराल आकर अपनी सास के पहले हुए और एक के रुपये दिए । फिर उर्मिला के कहने पर उसने मिसरानी आंकी । दोनों ननदों वो जितनी भी बडी और तो और वहाँ की सबकी बैठे हुए रुपए दिए । मिश्रा नहीं बोली, देखो माँ तो जाने दी की रुपये भी हो गए हैं । तो बेटी को देकर भेजे हैं । अरे उर्मिला तो भी देख ले याद रखूँ आगे तेरी भी चोरी ब्याहना आने वाली है । ये ही छोटी छोटी बातें होती है जो छोरी ने कुछ सुनने को ना मिले हैं कहीं तो दुनिया छोड देना है । उर्मीला बोली मिसरानी जी ये देखना मैं अपनी छोरियों के होगी या तो कुछ लाये ही नहीं । हम तो फिर भी कुछ नहीं बोल रहे हैं । राजेंद्र के बापू ने जवान दे दी थी कि जो देखोगे सर माथे हाँ हाँ सच्ची तुम तो कुछ बोले ही ना हो हाँ में हाँ भारती मिसरानी बोली पडी । कुछ और कहती तो उर्मिला से कैसे बिहार का कुछ भी ले बातें । इसलिए वो उर्मिला को नाराज नहीं करना चाहती थी । रात को दस बजे लाजु के हाथ में दूध का गिलास लेकर उसे अपने कमरे में जाने के लिए कहकर उर्मिला सोने चली गई ना जो छोटे छोटे कदमों से कमरे की और जा रही थी कि क्या देखती हैं । राजेंद्र की कमरे से आंटी बाहर आ रही है उससे ज्यादा ध्यान नहीं दिया और कमरे के दरवाजे पर पडा हुआ पर्दा हटाकर जैसी अंदर जाने लगी तो पीछे से बुआ जी की आवाज सुनाई दी । अरे राजेंद्र पडता तो हटा दे । बुआ की आवाज सुनकर राजेंद्र पर्दा हटाने लगा । प्लाजो को अंदर कमरे में जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई । धीरे से राजेंद्र ने कमरे को अंदर से बंद कर लिया । तब तक सब सो चुके थे । बाहर की बत्ती बंद हो गई थी । राजेंद्र ने भी कमरे की बडी बत्ती बनकर नाइट लैंप चला दिया था । राजू जैसे खडी थी वैसे ही खडी रही । हाथ में दूध का गिलास लिए राजेंद्र ने बिहार से राजू को अपनी और पलंग पर बिठाना चाहा तो राजू ने दूध का गिलास आगे कर दिया । राजेंद्र ने आंखों के इशारे से पूछा क्या करूँ? राजू ने भी आंखों से ही कहा पी लूँ । तब राजेंद्र ने कहा मेरे लिए नहीं, तुम्हारे लिए हैं अपना जो बोली नहीं, नहीं आपके लिए है आप प्लीज पी लीजिए लाजु की । उन्होंने विनय को देखकर राजेंद्र गिलास उसके हाथ से लेकर एक और रख दिया और उसके सिर पर पडा आचल धीरे से नीचे कर दिया । राजू पर राजेंद्र के छूने से ही मदहोशी छाने लगी थी । फिर वो यंत्र चली थी । राजेंद्र के आगोश में आ गई । तब धीरे धीरे राजेंद्र ने लाजु की चूडियाँ भी उतारती । लाजु की मना करने पर राजेन्द्र कहा सब सुनेंगे तो मजाक बन जाएगा । राजेंद्र के कमरे के सामने का कमरा ज्यादा दूर नहीं था । सहमती में लाजु ने चूडियां उतारने दी । अपनी बाहों में लिए लिए ही राजेंद्र इलाज उसे बोला ललिता मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ? हाँ, कहीं राजू ने पूछते हुई राजेन्द्र की आंखों में देखते हुए कहा । राजेंद्र कुछ गंभीर हो गया और बोला काजू, मैं रोज आंटी के घर जाता हूँ क्या मैं जा सकता हूँ? फॅमिली के यहाँ तो क्या हुआ आंटी के पति को मम्मी भी भाई कहती है कि यदि राजेंद्र वहाँ जाते हैं तो क्या हुआ? उसने कहा तो क्या हुआ? चले जा रहा हूँ । इसमें पूछने की क्या जरूरत है? टाइजेन ट्रेने राजू की आंखों में देखा तो पाया वहाँ एक प्रश्न ही था । राजू के उत्तर से संतुष्ट हो उसने नाजु की माँ को प्यार से जो लिया और फिर राहत के अंधियारे में दो शरीर एक जन बन गए । जब राजेंद्र सो चुका था तो राजू ने देखा कि कमरे में जो अजनबीपन था वो खत्म हो गया था जैसे फिल्मों में दिखाते हैं कि कमरा फूलों से सजा होता है । ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था भी । राजेंद्र को प्यार से निहारते हुए ना जाने कब नींद आ गई । सुबह जोर जोर से निशा की आवाज दरवाजे पर सुनाई दे रही थी । भारी भैया उठो माँ बुला रही है तो मुझे उठाने भी ज्यादा मांगो । तीसरी बार बार निशा अपना वाक्य दोहरा रही थी । राजू ने जल्दी जल्दी अपने अस्त व्यस्त कपडे ठीक किए और राजेंद्र को भी उठाकर धीरे से कुर्ता पहनने के लिए कहा । राजेंद्र कुर्ता रजाई में कर रजाई गर्दनदर्द ढकी और लाजों का हाल भी अपनी और खींच कर पास बुलाने लगा तो राजू दरवाजे की तरफ इशारा कर हाथ छुडाने लगी । राजेंद्र नहीं ना चाहते हुए भी हाँ छोड दिया । नाजू ने सिर पर आ चल डालकर जल्दी से दरवाजा खोला तो निशा खरीदा था । भाभी माँ बुला रही है । जल्दी चलो राजू निशा के साथ मांगी की बजा दे । नाजों को देख उर्मिला ने सिर से पैर तक उसे ऐसे देखा जैसे उनकी निगाहें एक्स रे कर रही हूँ की रात को कुछ हुआ या नहीं । इलाज इलाज के मारे चुपचाप खडी जमीन में आंखे गढाए देखती रही । अरे खडी रहोगी या सुबह सुबह हम से आशीर्वाद भी होगी । उर्मिला कुछ समझाते हुए बोली राजू ने सास ससुर के पहले छूकर प्रणाम किया और जैसा कहा गया वैसा कर लिया । नहा धोकर रसोई के काम को समझने लगी । बताया गया की आज शाम को राजू के हाथ का खाना खाया जाएगा । घर से आंटी का परिवार जा चुका था । राजेंद्र भी नहा धोकर तैयार होकर दुकान पर चला गया था । उर्मिला ने लाजों को शाम को बनने वाले पकवानों के बारे में बता दिया था । जैसे मूंग की दाल का हलवा जरूर बनना है । डमालू बनने है । सूखी बिगडी मुगलाई कोर्टे बन में हैं । उधर बुआ मिसरानी से कह रही थी लोग आते ही बहु को काम में लगा दिया । जब भाभी आई थी तब माँ ना होने पर भी बापू ने भाभी से एक महीने तक काम नहीं करवाया था । जबकि भाबी ने आरटी बहु को रसोई, समाजवादी कौन बोले भाभी को मिसरानी अपनी आदत के अनुसार खान जी हाँ जी कर रही थी । उसके दिमाग में तो बस ऐसे ही चल रहा था कि उर्मिला बेटे के विवाह में क्या क्या देगी । वो दुनिया को अपनी और आते देखकर बाद बदलते हुए बोली सच मिसरानी बहुओं को आते ही काम समझा दो तो अच्छा रहता है । क्यों भाभी फिर वहीं बैठे अरुण से मुखातिब होकर कहने लगी जा रहे जाकर एक बंदा भाभी के लिए उर्मिला बीच में ही बोल लाना अभी नहीं चाहिए । शाम को होंगे अच्छा अच्छा, शाम को रहने दे रहे हैं । अरुण से मुखातिब हो । फिर बोली मिसरानी की और ऐसे देखा जैसे अपनी झेंप मिटा रही हो । कुल मिला के अंदर जाने पर मिसरानी भी धुआं का पक्ष लेते हुए बोली सच है माँ के न होने पर बेटियों को भावी से डरना तो पढे ही है । वो तो है मिसरानी जी कहकर बुआ ने एक लंबी आभारी । उधर लाजु ने भी खाने की सभी तैयारियां कर ली सांस । उर्मिला ने भी उसकी सहायता की । वो कभी कभी बुआ ने भी जाकर कुछ ना कुछ काम करवा दिया । खाना बन चुका था । राजकिशोर ने बहु को खाना बनाने पर शगुन में पांच सौ एक रुपये दिए तो सास ने भी कुछ रुपये दिए और बुआ जी ने भी रुपये दिए । फिर खाना खा चुके थे । फिर लाजु से उर्मिला बोली चल तो भी खाना खा ले । पलाजो ने कहा यहाँ जाए तो कुल मिला । उसका आशय समझकर बोली अरे आ जाएगा चल खाले परला जो खमन कैसे मारता उससे पहली बार तो खाना बनाया है और उसका पति खाने नहीं खाए तो कैसे खा सकती है । इसी सोच में दस बज गए, पर राजेन्द्र नहीं आया । तब सारा काम उर्मिला के साथ निपटाकर अपने कमरे में आ गई । आंटी का परिवार सुबह ही वापस चला गया था । उर्मिला ने बहुत कहा था कि बहुत पहली बार खाना बनाएगी खाकर जाना पर भावना ने कहा भाभी तब भी अच्छी नहीं है । सुबह चले गए थे, तभी हुआ । लाजु की पास आई और कहा देख बहुरानी राजेंद्र का युद्ध से आना तो पहले से ही अभी सब बंद करवा दी । बहु राजेन्द्र आंटी के यहाँ जा रहे हैं तो समझ रही है ना आपको दबाकर । समझाते हुए वो वाला जो से बोली राजू को कुछ समझ नहीं आया । पर राजेंद्र का यू समय से घर नाना उसे अंदर तक खाई जा रहा था । वो वहाँ की बात को नजरंदाज नहीं कर पा रही थी कि आंटी के जाते हैं तो ये बंद करवाना पडेगा । लाजु का मन बुझ गया । वो सोच रही थी कि उसका पति दुकान से सीधे घर आकर बस उस से ही बात करना चाहेगा । परन्तु यहाँ तो खानी ही दूसरी हो गई । उसकी आंखों में बेसब्री से इंतजार के अलावा कुछ नहीं था । उधर राजकिशोर भी रमेश के घर दस बार फोन कर चुके थे पर हर बार ये कह दिया जाता है कि राजेंद्र तो यहाँ से चलने ही वाला है पर वो नहीं आया । उधर राजेंद्र का मन बार बार राजू के पास घराने को हो रहा था । परंतु आंटी ने भी आपने तीरकमान कस रखे थे । बार बार उलहाना दिया जाता अब क्यों तुम्हें आंटी चाहिए । अब नई पारी जो मिल गई हैं ढाई जाने क्या क्या खोल खोल कर खिलाएगी की अब तो तुम यहाँ आओगे ही नहीं । राजेन्द्र का मन आज आंटी के यहाँ बिलकुल भी नहीं लग रहा था परंतु आंटी को नाराज भी नहीं कर सकता था । पास के ही कमरे में रमेश भी बार बार राजेंद्र को घर जाने को कह रहा था परन्तु भावना के उलाहनों से बचने के लिए वह वही बैठा रहा । वहाँ खाना भी खाया और रात साढे ग्यारह बजे वह घर पर आया । घर के सब लोग हो गए थे परंतु ला जो बैठी हुई थी अपने कमरे में भूखी प्यासी आपने एक दिन के बिहार पिया का इंतजार कर रही थी । राजेंद्र भी लाजु के पास आया तो राजू ने भी अपनी नाराजगी दिखाते हुए उसका हाथ झटक दिया । वो बोली खाना लिया हूँ आपको खाने का समय है खाना तो मैंने खा लिया क्या की फटी की फटी रह गई और राजेंद्र की ओर देखने लगी । जहाँ आंखों में कुछ नहीं था ना जो सोचने लगे की ये क्या हो रहा है । वो रसोई की ओर चल रही है । राजेंद्र सोचा शायद अपने लिए खाना लाने गई है लेकिन ना जो हाथ में दो गिलास पानी लेकर आई और आकर चुपचाप हो गई । राजेंद्र ने भी धीरे से कहा खुला जो मैं तो कल रात ही बता दिया था कि मैं आंटी के यहाँ जाना हूँ । फिर तुम्हें नाराज नहीं होना चाहिए । लेकिन अब इतनी देर से घर आए हैं । ऐसा वो अपनी मौसी कह नहीं बस नहीं वन पूछ रही थी । ऐसा तो नहीं कहा था । इसी उधेडबुन से नींद आने लगे तो राजेंद्र ने उसे अपने पास बुलाना जहाँ तो देखा खिला जो हो चुकी थी । पर राजू क्या खुशी नहीं कोसो दूर चली गई थी । इतने में ही राजेंद्र के सोने का स्वर सुनाई देने लगा । राजू के आंसू अब उसके गालों को भी होते हुए तकिये को भी होने लगे थे । वो पूरी रात होती ही नहीं ये यही शादी है । आज उसे अपने सपने में दरार दिखाई दे रही थी । मालूम पूर्ति हुई पारी के पर उसको काटकर खामोश कर दिया गया हूँ । राजेंद्र का दिमाग सोने से पहले बार बार अपनी रूखे व्यवहार को गलत मांग रहा था । पर दो उसे अपने आपसे कहा राजू को यह सब सहन नहीं होगा । इसलिए ज्यादा ध्यान ना देकर वो एक बे खबर पति की तरह हो गया पाएंगे । कहीं ना कहीं उसे कचोट रहा था और मजबूर मत अपने प्यार को अधिकार से पाना चाहता था । मैं तो अपने अपराधबोध से अधिकार पर भी अंकुश नहीं कर पाता है । इसी उधेडबुन में न जाने का राजेंद्र हो गया कहाँ गयी वो चल रहा था कहाँ गयी वो शुरू किया हूँ कहाँ गए अच्छे लिया कहाँ गई है अमृत क्या लिया हूँ रह गई खामोशी रह गई शिकायतें दूर होंगी जैसे ये सब मनहूसियत
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