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मेरी अर्धांगिनी उसकी प्रेमिका - 33 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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उस घटना के बाद दो दिन गुजर गए । मैं कॉलेज नहीं गया कि जानते हुए भी कि मेरे और प्रिया के बीच उस दिन जो कुछ भी हुआ उसमें कम से कम मेरी कोई गलती नहीं है । फिर भी प्रक्रिया का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था । इस समय जब डायरी लिख रहा हूँ तो समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि क्या वाकई वासना के समुन्दर में उठी लहरें इतनी प्रबल होती हैं इतनी अनियंत्रति जिनके सामने मानव का अतुलनीय मस्तिष्क भी कोऑर्डिनेटेड देता है । रिया को जितना मैं जानता हूँ, खुले मिजाज की जरूरत थी लेकिन उसमें खुद को लेकर इतना नियंत्रन खान की वो उस हद तक करने से खुद को रोक सके । रोका क्यों नहीं? ऐसे न जाने कितने सवाल मुझे कचोट रहे थे । तभी ऍम ऍम फोन बज उठा । राउंड मोबाइल की टॉपिंग स्विच ऑन करते हुए मैंने कहा था ये संजय साहब उन पर खुशबू की आवाज आ रही थी । उस दिन के मौसम का मिजाज कैसा था? किस दिन ऍम । आज पहली बार उसने मेरे लिए साहब जैसे शब्द का प्रयोग किया था । इस से पहले ये शब्द अक्सर प्रिया ही इस्तेमाल करती आई है । अरे जस्टिन नहीं नहीं बाइक लेकर पहली बार बाहर पिज्जा में, लेकिन निकले थे मेरे दिल धडक उठा सुना था उसने मेरी बात बीच में ही करती साहब की पिछली सीट भी भरी थी रियाद के साथ में उसकी जो हमें प्रियंका नाम आते ही मानव मोबाइल हाथ से छूटकर गिर पडेगा । मैंने खुद को संभालते हुए पूछा है ये बात तो मैं अच्छा इसमें बताइए ऍम लडखडा गई । मुझे उसके पूछने के अंदाज से पूरी तरह साफ हो गया कि वह भले ही बात को घुमा फिराकर कहने की कोशिश कर रही हो, लेकिन उस घटना के बारे में उसे भी जानकारी है । उन पर पल भर के लिए खामोशी छाई रही है । उसमें कोई जवाब नहीं दिया । शायद वो कुछ छुपाने की कोशिश कर रही थी । कुछ वो मुझे ही बोलना पडा । मैं तुमसे शिवक मिलना चाहता हूँ । इससे पहले कि मामला आगे बढे, मैं खुशबू के सामने उस दिन की हकीकत गोल देना चाहता था । कहाँ उससे पूछा नहीं भी जहाँ पहुँचा हूँ मैं आपकी कमरे हूँ । ठीक है मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ और उसने फोन काट दिया । अभी दस मिनट भी नहीं गुजरे होंगे कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई । इससे पहले मैं दरवाजा खोलता में सोचने लगा । यही क्या इतनी जल्दी आ गई? लेकिन उन तो स्त्री ॅ किया था ठट्टा दोबारा दूसरा कोई अरे थोडा रुको मैं जरा झल्लाकर बोला खोल रहा हूँ । हाई संजय दरवाजा खुलते ही जानी पहचानी की आवाज मेरे कानों में गूंज पडेगी । यह तो मेरे मुझे आकस्मात ही दबी सी ठीक निकल गई । पदम थरथरा गया? जवाब वो सिर्फ मुस्कराई, वहाँ कुछ नहीं क्या मेरे यहाँ जाना कहाँ जाने से तो मैं बुरा तो नहीं लगा? संजय मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोले तो दो दिन से कॉलेज नहीं है तो सोचा हम खुद ही तुमसे मिलने तो तुम्हें तो हमारी याद आने सही अंदर जाओ । मैंने बेरुखी भरे स्वर में कहा थैंक यूँ सामने बडी कुर्सी खुद ही सरकार कर वह बैठ गई । थोडी देर तक मेरे कमरे के चारों तरफ देखती रही जैसे कुछ खोज रही हो । अगर मेरी नजरें उसके चेहरे पर टिकी रही । मुझे उम्मीद थी शायद उस घटना के लिए माफी मांगी लेकिन उसने देर तक कुछ नहीं कहा । क्या उसकी चुप्पी जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई तो मुझे बोलना पडा । कोई नहीं आने की क्यों मेरी और देखने लगी और बोले तो महारे आने के लिए भी मुझे वजह चाहिए । टीम मेरा वो मतलब नहीं था । संजय मैं जानती हूँ की तुम मेरा यहाँ शायद अच्छा नहीं लगा मगर तो दो दिन से कॉलेज नहीं आए तो मैं क्या करती है? बॅाल अभी हाँ खुशबू आने वाली है इसलिए पूछ रहा था । मैंने धीरे से कहा तो उम्मीद थी और ऐसे देखी जिससे मुझे निकल जाएगी दोनों को इस तरह यहाँ आकर वो पूजा सीधा सोच सकती है । मेरे स्वर्ग के कानों पर पडे तो हंस पडी । बोली संजय हम दोनों आपस में से दोस्त है । इस बात को बहुत अच्छे से जानती है । बोलते ऐसी कुछ नहीं सोचने वाली मैं खामोश हो गया । मेरी नजर एक बार फिर उसके चेहरे को पढने की कोशिश करने लगी । कितनी बदल चुकी है प्रिया तो प्रिया तो कभी सिद्धांतों की बातें किया करती थी । रिश्तों की सीमाएं लांघने में भी गुरेज नहीं कर रही है । चंद पलों तक कमरे में खामोशी छाई रही । प्रिया मुझे बोलना पडा तो उस घटना पर शराबी अफसोस नहीं है । तुम याद रखना चाहिए कि तुम किसी की मंगेतर हो । संजय के तो मेरी बात को समझ सकती हूँ । वो ही कर गंभीर हो गई तो बिना मेरी और देखे हुए कहने लगी उस घटना के बाद हमें क्या करवाया है काश तुम समझ पाते हो अगर तुम समझते हैं तो ये सवाल तो मार्च कम से कम हम से तो नहीं करते हूँ । मतलब मेरा हूँ । गले में ही अटक गया संजय अचानक उसके होटल में रुकी से मुस्कानों भराई आंखों में उबल रहे पानी को थामते हुए बोली क्या तुम यकीन करोगे? ये सब अचानक होकर भी अचानक ही हुआ । सच्चाई ये है कि वह सैकडों वेदनाओं और हजारों आंसूओं की कीमत थी । ये सब करने के बाद हमारे बारे में तुम्हारी राय बदल जाएगी । हम जानते थे फिर भी क्या हमें उसकी आंखों से पानी की चंद बूंदें टपक पडी । रुंधे हुए स्वर में बोली तो बताओ उससे पहले हम क्या थे तुम्हारे लिए? आज तो हम से किस तरह बात कर रहे हो? आप पहले प्रश्न सूचक निगाहों उसकी और देखा नहीं तुम ये कहने की कोशिश तो नहीं कर रही होगी । हमारे बीच उससे जो कुछ भी हुआ फिर मेरी गलती थी । नहीं संजय मैं ऐसा कुछ नहीं सोचती । उसके स्वर में अचानक बढता गया । उस दिन जो कुछ भी हुआ उसमें हमारी मर्जी की और इसी अगर तुम गलती कहते हो तो गलती भी हमारी ही थी । मगर संजय पूरे होशोहवास में हमने अपनी नादानी की वो कीमत चुकाई, कीमत भी आके फैल गई । हडबडाकर बोला ये तुम किस भाषा में बात कर रही हूँ? प्रिया मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है । तुम ही आदि । संजय उसी पार्क में तो हम दे रहे थे और हम ने उसे ठुकरा दिया था । मगर मैं इस बात को कब का भूल हाँ सच है । ये उस नादानी की कीमत ही थी । उसमें बीच में ही मेरी बात कार्ड मेरी और गहरी निगाहों से देखते हुए बोली संजय बच्ची नहीं हूँ, मैं सब कुछ समझती है । उस घटना के बाद तुम्हारे दिल पर क्या गुजरी होगी? मुझे एहसास है जानते हूँ उसने । पर फिर अपनी नजरे झुका नहीं । मैंने किसी बहुत याद किताब में पढा था कि औरत अगर एक पर किसी मर्ज की नीचे आ जाती हैं तो जिंदगी भर फिर उससे ऊपर नहीं उठ पाती । अगर ये सच है ना । संजय तो में अपने इस फैसले पर कभी अफसोस ही करूंगी दिया । मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था मगर उसके आंसुओं को देखकर मेरा हरा भरा है यहां पागल पाॅड मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ । संजय मेरी बात को अनसुना करते हुए वो बोले जिंदगी में भले ही तो में मुझे लाख गुना बेहतर लडकियाँ चूना मिल जाती है । मगर उस दिन अगर तुम मेरे शरीर को ना पा लेती तो शायद नए वर्ष के पहले दिन जब तो उससे मिलने पार्क में आए थे । मेरे द्वारा फुल ठुकराने की उस घटना को उस अपमान के अहसास को जिंदगी भर ना भूल पाते । इसलिए अच्छा है ना कि दर्द । जिंदगी भर मैं सोती रहूँ । सच कहूँ तो उस वक्त मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था की प्रिया क्या कहने की कोशिश कर रही है । वो वाकई डरा हुआ था । खुशबू कभी भी आ सकती थी । मैं चाहता था कि प्रिया किसी भी तरह कम से कम उस वक्त वहाँ से चले जायेंगे । मैं अंदर आ सकती हूँ दरवाजे पर अगर स्वाती आवाज को जुटे, आवाज खुशबू की थी भरे आओ मैं झटके से कुर्सी से उठकर खडा हो गया तो अंदर आ गई । मैं तो मैंने अपनी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा खुद बिस्तर पर बैठ गया । दरअसल मेरे घर में सिर्फ दो ही कुर्सियां थी प्रिया एकता मेरी और देखे जा रही शायद से मेरा खुशबू के लिए विशिष्ट व्यवहार अच्छा नहीं लगा । उस दौरान प्रिया और खुशबू के बीच कोई संवाद नहीं हुआ । सिर्फ पल भर के लिए उनकी आपस में निगाहें टकराई । खुशबू के हो टोमॅटो ठीक इसी मुस्कान बिखर गई जबकि प्रिया के चेहरे पर सूनापन छाया रहा । उनके बीच की खामोशी मुझे परेशान कर सकती थी । नहीं खुशबू कप्रिया और मेरे बीच हुई उस वक्त तक पता तो नहीं चल गया । इस वहाँ वो भी में बहुत देर तक खामोशी छाई रही । मुझे लगता है वो खामोशी तोडते हुए मैंने कहा प्रिया हमें जाना चाहिए । वैसे भी काफी देर हो गयी है । तुम्हारे घर वाले परेशान हो रहे होंगे मेरे लिए अस्वाभाविक शब्द प्रिया की कानून पर पडे तो वह मेरा सवाल जवाब के उठकर खडी हो गए । हरे संजय प्रिया को क्यों बना रहे हूँ खुशबू हैरान होकर मेरी और देखिए मैंने कोई जवाब नहीं दिया । संजय मुझे भगाने ही रहा है । मैं खुद जा रही हूँ । चलते चलते प्रिया ने बेहद तीखे अंदाज में मेरी और पूरा ऍम नहीं मिलाई । उसके जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद कर के जैसे ही पालता कुछ मुस्कुराते हुए बोले यहाँ भी प्रिया हमसे पहले पहुंच गई । मतलब मेरी सैलॅरी कुछ नहीं, कुछ नहीं । मेरे चेहरे को गौर से देखा तो फोन पर कुछ कह रहे थे । वहाँ पे थोडी देर सोचने के बाद मुझे याद आया तो नहीं । किसने बताया था कि उस दिन साथ में जाती थी चीफ में ही पूछने के लिए मुझे बुलाया था कुछ के चेहरे पर कुछ ऐसी ही दौडाई और कुछ नहीं होंगे । और क्या मुझे लगा तुम गुलाब लाख दोगे? कुछ कम होंगे कुछ चुनाव के, मगर तुम तो उससे अपने हो भेज लिए । मैं कुछ समझा नहीं मैं प्रश्न सूचक नजर उसकी और देखने लगा । हाँ वो संजय जी मुँह पडी पी आ गए आपको बुद्धू कहती है तो गलत नहीं कहती । कहती हुई वह कुर्सी से उठी और मचलती हुई मेरी गोद में समा गयी । मेरे गानों को अपनी उंगलियों से छूटे हुए बोले मैं कब से तुम से मिलने के लिए उतावली थी और तू कहाँ अभी तक प्रिया की बातों में उलझे हुए हो । मतलब शादी करोगे हमसे की क्या बात है? मैं कुछ पूछ रहा हूँ तुम से मैं भी तो कुछ पूछ रही हूँ की शादी करो हम से ऍम

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Voice Artist

सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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