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मेरी अर्धांगिनी उसकी प्रेमिका - 31 in Hindi

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Authorराजेश आनंद
सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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कॉलेज के आखिरी साल का पहला सत्र सितंबर वहाँ बादलों से घिरी दोपहर मैं नई मोटरसाइकिल खरीदने के बाद पहली बार कॉलेज गया था । उस दिन प्रिया बहुत खुश थी । लौवंशी घंटे बजते ही उसने मेरा हाथ पकडा और कॉलेज की इमारत के पीछे वाले सक्रिय बगीचे की और लेकर चली गई । उच्चतर अक्सर सुनसान हुआ करता था । ज्यादातर छात्र छात्राएं कैंटीन, प्लेग्राउंड या फिर एक और इमारत के बीच पहले बडे इससे बगीचे में ही पहनते हुए मिला करते थे । प्रिया इमारत की ऊंची दीवार से सटे रखे हुए ईटों की और बैठने के लिए बडी तो मैं चिल्ला उठा अरे तुम तो मुझे कहाँ जा रही हूँ? बहुत पुरानी है देखना उन के नीचे साहब के बिच सुना हूँ कि नहीं और आराम से जाकर उन पर बैठ गई । कुछ ये इनके नीचे मगर धूल तो है हो तुम भी । वो अचानक तेजी से उठी और मुझे अपनी और खींचनी बोली आॅटो और तुम धूल से कब से डरने लगे । उसके बगल में मैं भी बैठ गया । उसने मेरी बाहों में बाहें फसा लें । हम दोनों ने एक दूसरे की और नहीं देखा । हमारी नजरें जीर तक एकता सामने लहलहाती छोटी छोटी घास पर केंद्रित रही । उस समय एक दूसरे की और देखकर हम एक दूसरे को शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे । सिंह है थोडी देर बाद अपनी बातें मुझे अलग कर दी हुई शिकायत भरे लहजे में बोली साहब की आज नहीं नहीं बाइक आई है तो कोई पार्टी साटी मिलेगी । क्यों नहीं मिलेगी जरूर मैं उसका हो क्या खाना चाहोगी? आज खाने वाला कुछ नहीं है । वो अजीब सब बनाते हुए बोले बच्ची हूँ मैं कुछ दिनों में शादी होने वाली है तो आज अपनी बाइक से लिए चलो हमें कहीं और कोई फिल्म दिखाओ आप? हवा ये हमारे बस का नहीं है क्यों? वो लेकर चौक पडी नहीं हमारे उन्हें पता चल गया तो पक्षी की भी नहीं । शायद छुट्टी भी हो जाए हमारी उन्हें उन्हें कौन? तो उसे याद आया तो खिलखिलाकर हंस पडी तो साहब उनकी इतनी दीवानी हो गए हैं कि उनकी घंटियों से भी डरना शुरू कर दिए हैं । भोजपूरी है मैं बस बडा चलिए मान लेते हैं । लेकिन इतना भूली मिस्टर संजय की आपके इस प्यार का सारा ताना बाना हमने ही बोलना है । वरना यही कॉलेज की नकचढी लडकियों के आगे पीछे ही मक्खियाँ मारते नजर आती । और हाँ कुछ भी नहीं लगता हूँ हूँ कितनी बुरी है क्या तब क्या तो अपने आप को हीरो समझते हो? पहले तो नहीं समझता था मगर ऍम आया तब से जरूर समझने लगा हूँ अच्छा बहुत बडी । फिर छोडो इन बातों को हम मजाक नहीं कर रहे हैं तो इतना बताओ आज फिल्म दिखाने लेकर चल रहे हो क्या नहीं उसके स्वर में वाकई रूखापन आ गया । ऐसे मना नहीं कर पाया । मैं यहाँ कर दिया तो फिर चलो पोस्ट कर खडी हो गई अभी और ऍम दूसरी मीटिंग की कक्षाएं नहीं करने क्या हर रोज तो करते हैं । अच्छा नहीं करेंगे तो बाहर नहीं टूटने वाला ।

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Sound Engineer

Voice Artist

सूरज एक ही है जो सफर पर है मगर सूरज को सुबह देंखे तो ऊर्जावान, दोपहर में तपता हुआ और शाम को अस्तित्व खोता हुआ दिखता है, स्त्री भी कुछ ऐसी ही है। हालात मेरे पक्ष में हो तो वफ़ा, ममता और त्याग की मूर्ति, विपक्ष में हो तो कुलटा, वेवफा, कुलनाशिनी... ऐसे ही पता नही कौन कौन से शब्दों में तरासा जाता है उसे? स्त्री के जीवन को पुरुष के इर्द गिर्द इस हद तक समेट दिया गया है कि कभी कभी लगता है उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही नही है। ऐसी ही प्रेम, त्याग, कुंठा, विवाह और तलाक के भंवर में खुद को तलाशती तीन स्त्रियों का की कहानी है मेरी अर्द्धांगिनी उसकी प्रेमिका! जो एक पुरुष के साथ अस्तित्व में आई और उसी के साथ कहीं गुम हो गयी। Voiceover Artist : Ashish Jain Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Rajesh Anand
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