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कॉलेज छूटने पर जो भी प्रिया मेरे पास गई ऐसा नहीं तू मेरे सामने अगर खडी हो गई भरी भरी आके सूखे हूँ । गालों पर पाउडर को धोती हुई बनी धारियां मुझे साफ बता रही थी कि वह अभी अभी रो कराई है हूँ । ऍम पडा उठे उच्चतम छणों तक खामोश खडी रही मेरे चेहरे को और देखती रही उसकी निगाहों में शिकायत थी मैं भी चुप रहा । शायद अगले पल आने वाली उथल पुथल के लिए खुद को तैयार कर रहा था । सिंह जी ऐसा उसके होट खुले । आज मेरे घर चल सकती हूँ क्योंकि खास वजह नहीं । बस यही पहुंचना चाहिए । लेकिन उसके होठों पर हंसी नहीं आई । आंखे पानी की बूंदों से भर गई जिन्हें छुपाने की कोशिश में उसने अपनी पलकें झुका ली । मेरा दिल ऐसे धडका की जैसे अभी सीधे कोचीन कर बाहर आ जाएगा । उनसे आंखे चुराते हुई आपने स्कूटी की चाबी मरोड रही थी । स्कूल स्टार्ट हुई थी तो उसने भरी भरी निगाहों से मेरी और देखा । मैं उसकी नजरों की भाषा को समझ सकता । भाई बिना कुछ कहे उसकी पिछली सीट पर बैठ गया । स्कूटी सडक पर तीस दौडने लगी । फिर तेज पेस और हर पल स्कूटी की रफ्तार बढती जा रही थी । लगभग पंद्रह मिनट लगातार हवा की गति में दौडती हुई स्कूटी एक पतली लडकी और बडी उसी गति की तीव्रता एका एक से कम हो गई । गाडी खडी होते ही मैं स्कूटी से उतर गया । मैं भी ठीक से खडा भी नहीं हो पाया । लगभग पैंतालीस से पचास साल का एक अधेड इंसान हमारी और दौड पडा । तंबाकू से पीछे पडे दांतों को खोलते हुए को बोला तो बेटियाँ यही है संजय बाबू अभी तो कुछ नहीं कहा । उसने झुकी झुकी नजरों से मेरी तरफ देखा और फिर अधेड व्यक्ति की और बढते हुए जबरदस्ती हंसने की कोशिश की । हालांकि उस अधेड के मुझसे अपना जिक्र सुना तो मैं चौंक पडा । मुझे ये बात मानने के लिए विवश होना पडा की जितनी साधारण बात समझकर मैं नीतू के साथ चलाया हूँ दरअसल वो बात उतनी साधारण नहीं है । सिंह है अंदर आ जाऊँ । नीतू मेरी और देखकर बोली ईश्वर का स्मरण करते हुए मैं भीतर चला गया । उस वक्त मैं जब घर पर बैठा हुआ डायरी लिख रहा हूँ अगर उसके घर की खूबसूरती को कागज पर उतारना भी चाहूँ तो असफल ही रहूंगा । मैंने जैसे ही दरवाजा पार करते हुए घर के गलियारे में दाखिल हुआ तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई । मुझे लगा जैसे मैं गलती से किसी राजा रजवाडे के घर में घुस आया हूँ । मैंने खाली खाली नजरों से नीतू की और देखने लगा । आंखों को यकीन नहीं हो रहा था । ये साधारण सी दिखने वाली लडकी ऐसे घर में रहती है । आओ संजय नीतू पीछे मूर्ति भी बोली । अब तक हम कई गलियारे और बरामदे पार करते हुए गेस्ट रूम में पहुंच चुके थे । वहाँ मैंने नाश्ता किया । जंक्शनों तक ठहरे रहे । फिर नहीं तो बोली चलो मेरे कमरे में चलकर बैठते हैं । मुझे उसके साथ जाना पडा । वहाँ देर तक खामोशी छाई रही । इस दौरान कई बार मेरी निगाहें नीतु के चेहरे को खरोष्ठी रहे हैं । वो बहुत खामोश थी । वो अपने ही कमरे को ऐसे घूमती रही जैसे वहाँ पहली बार आई हो । बीच बीच कई बार उसकी आंखें भराई थी, जिन्हें जमाने की कोशिश में उसे हर बार अपनी पलकें झुका नहीं पडेगी । तो मैंने साहस करके उसे पका रहा । वो पथराई नजरों से मेरी और देखने लगी । तुम हो रही हूँ । मैंने पूछा नहीं मैं जानता हूँ तुम रो रही हो । क्या मैं इसका कारण जान सकता हूँ तो खुद हो संजय वो अचानक बिफर पडी । मैं सहम गया । एक बात बताओ कि संजय मेरी और झुक गई । क्या मैंने कहीं पढा था कि और इस प्यार पाने के लिए सेक्स करती हैं और पुरुष सेक्स करने के लिए प्यार की सच है? क्या? जी मुझे नहीं पता । उसकी अजीब से सवाल पर एकबारगी में हर बडा गया सोचने समझने की क्षमता लौटी तो बोला झूठ है । फिर प्रिया में ऐसा क्या है जो कुछ भी नहीं है? उसका अगला सवाल मेरे कानों में पडा तो मेरा शरीर एक एक शून्य बढ गया । मुझे यहाँ लाने का कारण अब मुझे समझ में आया । मैंने खुद को संभालते हुए कहा तो ठीक ऐसा प्रश्न है । क्या तुम ये कहने की कोशिश कर रही हूँ कि मैं प्रिया के साथ नहीं? संजय मैं नहीं जानती मैं क्या कहने की कोशिश कर रही हूँ । बस तू मुझे इतना बता दूँ कि प्रिया में ऐसा क्या है जो जिस सवाल उचित नहीं है नहीं तो क्यों? संजय उसके सूखे होठों पर रोक ही से मुस्कान फट पडेगी तो जवाब जानते नहीं या फिर तीन नहीं चाहते । मुझे वाकई कुछ नहीं सूझ रहा था कि मैं उसके सवाल का क्या जवाब दो । मैं खामोश हो गया जब मैंने देर तक कोई जवाब नहीं दिया तो वह एकएक गडबडा कर सोफे से उठी । मैं कुछ समझ पाता उससे पहले बडी निर्दयता से उसने अपनी कमी से निचले छोड को पकडा और उतारकर से फर्श पर फेंक दिया । कुछ सेकंड में अचानक घटी इस घटना पर मैं कहाँ गया? करता कीजिए वो लडकियां अकेले कमरे में आपके सामने एक कपडे उतारना शुरू कर दे और वो भी ऐसे हालात पर भूति हुई । क्या गुजरेगी आप? उस वक्त घर से मैं कांपने लगा । मेरा दिमाग अपाहिज और शरीर संवेदनहीन हो गया । मेरे नजरिए जमीन परदर्शी जा रही थी । अनायास ही नहीं तू मेरे एक दम करीब आ गयी । मेरी थोडी को अपनी उंगलियों के सहारे ऊपर उठाते हुए बोली संजय इधर देखो मेरे बदन की और क्या नहीं है मुझे अगर जरूर से कपडों को छोड दिया जाए तो लगभग वह अर्धनग्न थी । अपनी बात को आगे बढाते हुई बोली तो इतनी नाजुक अंगों के दीवाने हो ना उसने अपने स्तनों की ओर इशारा क्या उसकी आंखों से आंसू टपक पडे । इन्हें छूकर देखो । संजय यह पे ऐसे कमरे में ही है । हाँ बस पर कितना है उसमें अपनी पलकें झुका लिया । वो हर पल तुम्हारी नजरों के सामने होते हैं और इन्हें देखने के लिए तो मैं पर्दा हटाना पडेगा क्योंकि ये पर्दे में होते हैं । मीरा के मारे उसके आवास केले में फसलें लगे । उसने जबरन मेरे हाथों को खींच कर उन पर रख दिया । छूकर देखो संजय होगी । मैं बर्फीले स्पर्श महसूस कर पाया । मेरे मस्तिष्क अत्तार तार झनझना उठा । मुझे लगा उस स्पष्ट है जैसे इकाई मुझे उस पागलपन के समंदर में फेंक दिया हो । जहाँ देर तक मैं डूबता उतराता रहा । सोचने समझने की क्षमता लौटी तो मैं तीव्रता से अपने हाथ समझता हूँ । खडा हो गया । एक क्या पागल पर नहीं, तू सिंह है तो मैं अभी पागल पर लगता है । फिर प्रिया क्या करती है? उसी पागलपन होंगे । पीडा और स्कूल का मिला जुला भाव उसके चेहरे पर दिख रहा था । उसकी आंखें तीसरी भराई की शायद मुझे साफ साफ देख भी नहीं पा रही होगी । तुम समझते हो मैं अपने दामन की नुमाइश कर रही हूँ तो हाँ संजय कर रही हॅू या फिर कहूँ कि करना पड रहा है । तो संजय अपनी बात जारी रखते हुए बोली मैं था पैसों के बीच पली बडी जरूर हूँ मगर अपने माँ बाप के इस बडप्पन को मैंने अपने दामन के बीच कभी नहीं आने दिया । मेरा दामन आज भी मेरे लिए ऊपर वाले कर दिया हुआ सबसे कीमती तोहफा है । जिसे मैंने नुमाइश का सामान नहीं समझा । इसे आज तक संभाल कर रखा हुआ है । क्यों? शायद ये मैं तो मैं समझा नहीं पाओंगे मगर संजय कभी फुर्सत मिले तो सोचना जरूर । मैं नहीं जानती कि तो मेरी इस हरकत का क्या मतलब निकाल होगी । शायद ये कि मैं तो मेरी जाने की कोशिश कर रही हूँ या फिर ये कि मैं बनावटी आंसू और अल्फाजों का सहारा ले रही हूँ । लेकिन संजय सफाई देने में कोई बुराई नहीं है इसलिए बता रही हूँ जिंदगी में आज ही पहला मौका है जब मैं किसी को इस हद तक अपने करीब लेकर आई हूँ, जानती हूँ हूँ । उसने फर्श पर पडे दुपट्टे को अपनी और खींचते हुए बोली क्योंकि मैं तो बताना चाह रही थी कि मैं भी वह सब कुछ दे सकती हूँ जिसको पाने की लालसा में तुम प्रिया के आगे पीछे भाग रहे हो । तुम चाहूँ तो मैं भी प्रिया की तरह तरह कपडों का सहारा ले सकती हूँ । उसमें लंबी सांस खींचे । संजय मैं प्यार करती हो तुम से कहते हुए वो उसी हाल में मुझसे चिपक है । उसकी आंखों से दपत्ति पानी के मुद्दे देर तक मेरे कंधों को भी होती रही । उसके वजन की कडवाहट से मेरा बदन आपने लगा पी तो मैंने आवाज चलो अपनी कभी इस पहनो अच्छा नहीं लगता है और वैसे भी काफी देर हो गयी है । वहीं तुम्हारे मम्मी पापा ना आ जाए । तू धीरे समझ से अलग हुई । तिरछी झुकी निगाहों से मेरी और देखी और लगभग कर उसने अपनी कमीज उठा ली । कमीज पहनकर बोली मैं नेता घर पर नहीं है तो आप घर पर नहीं है । मैं चौक पडा तो क्या तुम नहीं संजय मेरी बात को बीच में ही कर दी । बोले तो मुझे गलत मत समझना । मैं पापा को फोन करके बता चुकी हूँ कि मैं संजय को लेकर घर आ रही हूँ । घूमने के बहाने मम्मी और पापा दोनों बाहर चले गए हैं मेरी खातिर मगर क्यूँ ताकि तुम मेरे घर में असहज महसूस करूँ । किसी को भी हैरत में डाल देने वाले उसके शब्द मेरे कानों में टकराया तो मेरी हैरानी सातवें आसमान पर पहुंच गए । मैं देर तक उसके चेहरे की और ने हफ्ता रह गया । मुझे कि नहीं हुआ कि दुनिया में ऐसे भी माँ बाप हो सकते हैं जो भी जवान बेटी को इस हद तक छूट दे रखी हो जबकि उन्हें पता है कि मैं उसके लिए अजनबी हूँ और मौके का फायदा उठाकर उनकी बेटी के साथ कुछ भी कर सकता हूँ । शायद जिंदगी भर भारत होने वाली घिनौनी हरकत भी नहीं तो मुझे मना नहीं कर पाती । इन तमाम पलों के बाद भी मैं लगभग आधा घंटे वहाँ ठहरा रहा । उस दौरान भी तो कई बार मुझे को देरी रिछाई । तेवर ढीला नहीं पडा तो समझाने लगे अपने आखिरी सवाल पर आते आते हुए पर फिर रो पडी थी उससे और पीडा के मिले जुले स्वर में कहने लगी हूँ मान लेती हूँ कि तुमने मुझे कभी प्यार नहीं किया, लेकिन मैं करती हूँ बे पनाह करती हूँ । उसका क्या? क्या उसके कोई मायने नहीं है? हमें कुछ नहीं कहा । संजय खामोश मत रहो बोलो । कुछ देर तक मेरी आंखों में अपने लिए प्यार तलाशती रही । थोडी देर बाद मैं उस पर चल पडा तो वो भी मेरे पीछे पीछे बाहर तक आ गई । वो ढेड अब भी गेट पर ही बैठा था । हमारे कदमों की आहट सुनकर खडा हो गया । इस बार उसने तक जिन्दा मुंह नहीं खोला । बस फटी फटी निगाहों से मेरी और देखता रहा । चलता हूँ गेट के बाहर आकर मैंने कहा मैं, मैं, मैं चलो के तुम्हारे घर तक तो मैं छोटा हूँ । आपने सूख चुके होटों पर उसमें हंसी बिखेरने की एक नाकाम कोशिश की । नहीं मैं चला जाऊंगा । इतना कहकर मैंने आखिरी बार उस हवेली की और देखा । इसके दी तू इकलौती वारिश थी ।
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