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उस सुबह है जब मैं प्रयोगशाला पहुंचा । उस समय तक वहाँ पर एक रूम का वृद्धि छात्र छात्रा बहुत चुके थे । सेवाएं प्रिया गई । मेरा दिल जोर से धडक पढा हूँ । अभी अभी तो मुझे गेट के पास मिली थी । फिर भी पहुंचे क्यों नहीं? ऍम पास में है तो लेट भी तो नहीं हो सकती है । दूर नहीं, लेट हो सकती जान छडों के भीतर मुझे अपने ही सैकडों सवालों का सामना करना पडा । वक्त जैसे जैसे रेंगता हुआ गुजरता जा रहा था, मेरे भीतर की बेचैनी बढती जा रही थी । हालात ऐसे थे कि मैं किसी से जिक्र भी नहीं कर पा रहा था । मैं बार बार दरवाजे की और देखता हूँ । हर आहट परचम पडता है । इस दौरान कई बार शिवानी की तिरछी निगाहों ने मुझे पूरा मेरी बेचैनी रखने की कोशिश की । एक बार तो प्रयोग को लेकर हो रही मेरी झल्लाहट और मुस्कराई भी तो शायद मुझे पसंद नहीं आया । मैं देर तक खुद को संभालता रहा । लगभग आधा घंटा गुजर चुके थे । हम में से किसी ने एक बार भी प्रिया की अनुपस्थिति का जिक्र तक नहीं किया । मेरे धैर्य का बांध टूटने लगा । मैंने घूरती नजरों से गौरव की और देखा वो प्रयोग में लगी तारों को जोडने में जुटा पडा था । एक साल के लिए लगा की गौरव के मोटे चश्मे को छीनकर तो क्या उसे अपने छोटे पहले कुछ लालू ऍम टूट गया । ॅ तो मेरी और देखने लगा तू कर क्या रहे हो वही जो तुम नहीं कर रहे हो । उसने कहा और एक बार फिर उलझी हुई तारों को सुलझाने लगा । अच्छा तो सब कुछ मैं अकेले ही करूँ और आज प्रिया क्यों नहीं आई? प्रयोग तो उसका भी है क्या अचानक उसके हाथ रुक गए । फिर खडा होते हुए मेरी और ऐसे देखा जैसे वो यह मेरे सवाल को समझ नहीं पाया हो या फिर कुछ ज्यादा ही समझ गया । संजय ने पूछा कि आज प्रिया क्यों नहीं आई? राजमा मेरे सवाल को दोहराते हुए देरी और देखा । उसके चेहरे पर बिक्री मुस्कान कुछ पलों के लिए मुझे हैरत में डाल गई । मैं समझ नहीं पाया कि वह मेरी बेचैनी पर मेरे साथ खडा होने की कोशिश कर रहा है या फिर मेरा मजाक उडा रहा है । उसे आज घर लौटना पडा । गौरव ने घूरती नजरों से राजकीय और देखते हुए बोला क्योंकि मेरे सौं कानों से टकराया तो राज के चेहरे पर थोडी उसकी नजरें उछल कर मेरे चेहरे पर आ गई । बेरुखी भरे स्वर में बोला मुझे नहीं पता मैंने अभी कोई सवाल नहीं किया । मगर प्रिया अब भी मेरे जहन में समय हुई थी । मैं प्रिया के खयाल से बाहर आ पाता । उससे पहले हर रूस की तरह हस्ती खिलखिलाती हुई । अचानक नीतू वहां हम की कैसे हो? संजय उसने पूछा मैंने कोई जवाब नहीं दिया । बस मेरी निगाहें उससे कुछ कह दे रहे हैं । कहना मुश्किल था कि मेरी निगाहों में उसके वहाँ अचानक आ जाने के लिए शिकायत थी या फिर शुक्र गुजार ही तो इस तरह चुप हो । वो बिलकुल मेरे करीब आ गए हैं । छुट्टी हुई बोली प्रयोग परेशान कर रहा है तो मैं तो मैं उसकी और देखा हूँ । मुझे बात का आधार मिल चुका था । मैंने हकलाते हुए कहा हाँ तो दम सही कह रही हो । ब्लॅक परेशान करके रखा है मुझे । हालांकि मैं प्रयोग से काफी दूर खडा था । अगर याद आया कि मैं तो तीव्रता से मैं इसकी और बडा तभी मेरी नहीं था । गौरव पर पडी वो मुझे ऐसे घूर रहा था जिससे मुझसे पूछ रहा हूँ । हिसाब अब कौन सा प्रयोग कर रहे थे । झटपटाहट में मैंने बारी बारिश राज और शिवानी की और देखा शायद उनकी निगाहों में भी वही सवाल था । नीतू जोर से हंस पडी शर्मिंदगी से बचने के लिए मैं उसे वहाँ से दूर ले जाना चाहा मगर उम्मीद की ओर बढते हुए कौन सा प्रयोग है? संजय सारा हम भी तो देखिए उस दौरान एक बार मेरी निगाहें शिवानी की ओर को में उसके अपने चेहरे को दुपट्टे से ढक लिया था । शायद वो फस रही थी इसको तो हम कॉलेज में भी कर चुके हैं । नी तूने पलट कर मेरी और देखा यार ये तो बहुत आसान है । कब किया है तो मैं इस प्रयोग को गौरव ने बडी बडी आंखों सन्नी तू और देखते हुए पूछा । पिछले साल जब स्कूल में थी उनमें गौरव ने हैरानी से देखा मेरी और उसी यकीन नहीं हो पा रहा था कि ऐसा प्रयोग स्कूल स्टैण्डर्ड भी कराया गया होगा । जी हां स्कूल में क्या आपको नहीं तू आगे कुछ कहती मैंने उसकी बात को काटते हुए बोला आज क्या कर रही थी आज आज तो खिलवाड के अलावा कुछ नहीं किया है । हमने कैसे वो जोर से खिलखिला पडेगी क्योंकि आज का प्रयोग किसी को समझ नहीं आ रहा था और सर थे तो एक बार बताकर कहीं चले गए । फिर दोबारा आकर दर्शन ही नहीं तो क्या? अब तो कुछ नहीं करोगे । कम से कम आज तो इरादा नहीं है । मेरे करीब होगा । आज तुम्हारे पास ही रहने का मन है । यहाँ नहीं आपकी फैल गई । नहीं तो मैं हकला पडा । वो मुझे लगता है तो ये प्रयोग नहीं छोडना चाहिए । मेरी और देखने लगे । शायद मेरे आश्रय को समझ गई थी । उसकी चमकती आंखों में एक एक नहीं आ गई । रूकी आवाज में बोली हाँ संजय तुम सही कह रहे हो, मुझे प्रयोग नहीं छोडना चाहिए क्योंकि मेरे प्रयोग छोडने से तुम्हें तकलीफ होती है । है ना । उसके जज्बातों को समझकर मैं अपने अल्फाज ऊपर कुछ फेरबदल करता हुआ । उससे पहले नीतू दौडती हुई वहाँ से बाहर निकल गई । नहीं तू एक आये । क्यूट कर चले जाने पर मुझे झटका तो लगा नगर पता नहीं क्यों वो घुटन बहुत देर तक नहीं नहीं । शायद इसलिए कि मुझे यकीन था कि वह देर तक मुझसे रूठकर नहीं रह सकती । मैं पलट कर पूरी एकाग्रता के साथ प्रयोग की मेज की और हो गया
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